*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं. 20*
*मसअला ए मीलाद शरीफ़, क़िस्त.3*
वहाबी देवबंदी अहले हदीस का अक़ीदा है के महफ़िल ए मीलाद शरीफ़ शिर्क व बिदअत व नाजाइज़ और क्रशन कन्हैया के जन्म की तरह है जैसा के मौलवी रशीद अहमद गंगोही और मौलवी क़ासिम नानोतवी ने अपनी किताबों में लिख मारा इसीलिए ये लोग महफ़िल ए मीलाद शरीफ़ नहीं मनाते, जैसा के आपने पोस्ट नंबर 54, में इन्हीं की किताबों के हवाले से पढ़ा,
लेकिन हम सुन्नी मुसलमान महफ़िल ए मीलाद शरीफ़ को सही व हक़ और बाइसे सवाब मानते हैं क्योंके ये किताब व सुन्नत से साबित है इससे पहले की पोस्ट में हमने क़ुरआन व क़ुरआन से पहले की नाज़िल हुई किताबों यानी सहीफ़ों से अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत के सुबूत दिए अब आइये
अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत और वहाबियों के बुतलान के दलाइल आहादीसे मुक़द्दसा से मुलाहिज़ा फ़रमाइये👇
(1) हदीस शरीफ़
हज़रत अबू हुरैरह रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी उन्होंने कहा के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
में बनी आदम के बेहतरीन ज़मानों में मबऊस हुआ,
बेहतर ज़माना फिर बेहतर ज़माना यहां तक के में जिस ज़माना में हुआ,
📚 अज़ बुख़ारी शरीफ़, किताबुल मनाक़िब बाब सिफ़तुन्नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम, जिल्द 1 सफ़ह 530)
(2) हदीस शरीफ़
हज़रत वासिला रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
बेशक अल्लाह ने औलादे इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से इस्माईल (अलैहिस्सलाम) को चुन लिया और औलादे इस्माईल (अलैहिस्सलाम) से बनी कुनाना को मुन्तख़ब किया और बनी कुनाना से क़ुरैश को चुन लिया और क़ुरैश से बनी हाशिम को चुन लिया और बनी हाशिम से मुझे मुन्तख़ब किया,
📚 अज़ तिर्मिज़ी शरीफ़ किताबुल मनाक़िब बाब माजा फ़ी फ़ज़लुन्नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम जिल्द 2, सफ़ह 518)
(3) हदीस शरीफ़
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब बिन वराअह रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी उन्होंने कहा के हज़रत अब्बास रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए गोया उन्होंने नसब में कुछ त़अन सुना था तो नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने मिम्बर पर क़याम फ़रमाया और फ़रमाया में कौन हूं,
सहाबा ने अर्ज़ की आप अल्लाह के रसूल हैं आप पर सलाम हो फ़रमाया में मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब हूं बेशक अल्लाह ने मख़्लूक़ को पैदा किया तो मुझे उनके बेहतर में पैदा किया फिर उनके दो गिरोह बनाए तो मुझे बेहतरीन गिरोह में पैदा किया फिर उनके क़बीले बनाए तो मुझे बेहतर क़बीले में पैदा फ़रमाया फिर उनके ख़ानदान बनाए तो मुझे बेहतरीन ख़ानदान और बेहतरीन नफ़्स पैदा फ़रमाया,
📚 अज़ तिर्मिज़ी शरीफ़ बाब माजा फ़ी फ़ज़लुन्नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम, सफ़ह 519)
(4) हदीस शरीफ़
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा से मरवी है के
हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की रूहे पाक ख़ुदा की हुज़ूरी में नूर थी आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश के दो हज़ार (2000) बरस पहले,
ये नूर तस्बीह करता और फ़िरिश्ते और उसकी तस्बीह पर तस्बीह करते जब अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया तो ये उनकी पुस्त में तफ़वीज़ किया तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तो अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल ने ज़मीन की तरफ़ मुझे पुस्ते आदम में उतारा, और मुझे पुस्ते नूह में रखा और मुझको पुस्ते इब्राहीम में वदीअत किया फिर अल्लाह तआला मुझे बुज़ुर्ग पुस्तों से पाक रहमों की तरफ़ मुन्तक़िल करता रहा यहां तक के मुझको मेरे मां बाप से पैदा किया जो कभी ज़ना में मबऊस नहीं हुए,
📚 अज़ दलाइलुन्नेवह ला फ़ी नईम, जिल्द 1 सफ़ह 11,
📚 ख़साइसुल कुबरा जिल्द 1 सफ़ह 39)
दोस्तों मीलाद शरीफ़ नाम है हुजूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की पैदाइश और उनकी शान बयान करने का तो अलहम्दुलिल्लाह हम सुन्नी मुसलमान यही करते हैं इसलिए के ये क़ुरआन व क़ुरआन से पहले नाज़िल हुई किताबों यानी सहीफ़ों और आहादीसे मुक़द्दसा से साबित है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान पोस्ट जारी रहेगी.......
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं. 19*
*मसअला ए मीलाद शरीफ़, क़िस्त 02*
अहले सुन्नत व जमाअत की हक़्क़ानियत के सुबूत अल्लाह तआला की किताबों से मुलाहिज़ा फ़रमाएं
दलाइल अज़ कुतुबे इलाहीयह👇
(01) 📗तौरैत में है👇
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा से मरवी है के
उन्होंने कअब अहबार से सवाल किया तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की नअत तौरैत में किस तरह पाते हो,
कअब ने कहा हम तौरैत में ये पाते हैं के मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह जो मक्का में पैदा होंगे और तैबा की तरफ़ हिजरत करेंगे और उनका मुल्क शाम होगा वो फ़हश ज़ुबान नहीं होंगे न बाज़ारों में शोर मचाने वाले,
📚 अज़ ख़साइसुल कुबरा, जिल्द 1, सफ़ह 10)
(02) 📗तौरैत में है👇
अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया👇
बेशक में औलाद ए इस्माईल से एक नबी मबऊस करने वाला हूं,
जिनका नाम अहमद होगा जो उनपर ईमान ले आया उसने हिदायत पाई,
और जो ईमान नहीं लाया तो वो मलऊन है,
📚 सीरतुन्नबी मिसरी, जिल्द 1 सफ़ह 143)
(03) 📗इंजील में है👇
ईसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया में अल्लाह से सवाल करता हूं के वो तुम्हारी तरफ़ एक दूसरा रसूल मबऊस करे जो अबद तक तुम्हारे साथ रहे और वो तुम्हें हर बात सिखाएगा और तुम्हारे लिए पोशीदा और ग़ैब बयान करेगा और वो मेरी शहादत देगा जैसा के में उनकी शहादत देता हूं और वो ख़ातमुन्नबीय्यीन होंगे,
📚 सीरतुन्नबी, जिल्द 1 सफ़ह 252)
(04) 📗ज़बूर में है👇
बेशक अल्लाह ने ज़बूर में वही भेजी (यानी पैग़ाम भेजा)
ऐ दाऊद बेशक अनक़रीब तुम्हारे बाद एक नबी आऐंगे जिनका नाम अहमद व मुहम्मद होगा, सच्चे नबी हैं में उनपर हमेशा ग़ुस्सा न करूंगा और ना वो हमेशा मेरी नाफ़रमानी करेगा मेंने उनकी मग़फ़िरत करदी,
📚 अज़ ख़साइसुल कुबरा जिल्द 1 सफ़ह 140)
(05) 📗सहीफ़ा ए इब्राहीम अलैहिस्सलाम, में है👇
बेशक तेरी औलाद से क़बीले होंगे,
यहां तक के वो नबी उम्मी जो ख़ातमुल अम्बिया होंगे तशरीफ़ लाएंगे,
📚 अज़ ख़साइसुल कुबरा जिल्द 1 सफ़ह 9)
(06) 📗सहीफ़ा ए शअया, में है👇
अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया
बेशक में नबी उम्मी को मबऊस करने वाला हूं के जिनसे बहरे कान 👂 खोल दूंगा और ग़िलाफ़ वाले दिल❤️ और अंधी आंखें खोल दूंगा उसके मीलाद की जगह मक्का है और उनकी हिजरत गाह तैबा है और उनका मुल्क शाम है वो मेरे ख़ास बन्दे मुतवक्किल मुस्तफ़ा हबीब मुख़्तार होंगे,
📚 अज़ ख़साइसुल कुबरा सफ़ह 130)
दोस्तो देखा आपने के अल्लाह तआला ने ख़ुद अपने महबूब अलैहिस्सलाम का मीलाद शरीफ़ मनाया यानी उनका ज़िक्र क़ुरआन मजीद से पहले नाज़िल हुई किताबों में फ़रमाया,
तो साबित हुआ के मीलाद शरीफ़ यानी हुज़ूर अलैहिस्सलाम की तशरीफ़ आवरी और उनकी शान बयान करना सही व दुरुस्त और बाइसे ख़ैर व बरकत है,
और अक़ाइदे वहाबिया ग़लत व बातिल है, तो जिसका अक़ीदा अल्लाह तआला की किताबों के ख़िलाफ़ हो वो मरदूद हैं लिहाज़ा हम मुसलमानों को चाहिए के ऐसे बद अक़ीदा मरदूदों से दूर रहें इसी में हम सबकी कामयाबी है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान
पोस्ट जारी रहेगी,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.18*
*मसअला ए मीलाद शरीफ़, क़िस्त.01*
*अक़ीदा ए वहाबिया👇*
में मीलाद शरीफ़ नाजाइज़ व नादुरुस्त और हराम व फ़िस्क़ मुशाबा ए हुनूद कन्हैया (यानी हिन्दुओं के कन्हैया (क्रशन) के जन्म की तरह है,
वहाबी देवबंदी नाम निहाद अहले हदीस के इसी कुफ़्रियात का सुबूत इन्हीं की किताबों से मुलाहिज़ा करें👇
देवबंदी मौलवी रशीद अहमद गंगोही लिखता है👇
अक़्द मजलिसे मौलूद (मीलाद शरीफ़) अगरचे उसमें कोई अम्र ग़ैर मशरू ना हो मगर अहतिमाम व तदाई उसमें भी मौजूद है लिहाज़ा इस ज़माना में दुरुस्त नहीं,
📕 अज़ फ़तावा रशीदिया, जिल्द 1, सफ़ह 48)
यही मौलवी दूसरी जगह लिखता है👇
इन्इक़ादे मजलिसे मौलूद बेदून क़याम ब रिवायत सहीहा हर हाल नाजाइज़ है, तदाई अम्रे मन्दूब के वास्ते मना है,
📕 फ़तावा रशीदिया जिल्द 2, सफ़ह 92)
इसी मौलवी से किसी ने सवाल किया के👇
महफ़िले मीलाद जिस में रिवायाते सहीहा पढ़ी जाएं और लाफ़ व गुज़ाफ़ और रिवायाते मौज़ूअह काज़िबा (झूटी) ना हों शरीक होना कैसा है,
इस सवाल पर यही मौलवी रशीद अहमद गंगोही जवाब लिखता है👇
अल जवाब👇
नाजाइज़ है ब सबब और वुजूह के,
📕 अज़ फ़तावा रशीदिया जिल्द 2 सफ़ह 131)
किसी उर्स और मौलूद में शरीक होना दुरुस्त नहीं और कोई सा उर्स और मौलूद भी दुरुस्त नहीं,
📕 अज़ फ़तावा रशीदिया जिल्द 3, सफ़ह 112)
देवबंदीयों के दूसरे मौलवी क़ासिम नानोतवी ने लिखा👇
पस हर रोज़ इआदा विलादत का तो मिस्ले हुनूद के सांग कन्हैया की विलादत का हर साल करते हैं या मिस्ले रवाफ़िज़ (शिआ) के नक़ल शहादते अहले बैत हर साल मनाते हैं, मअज़ अल्लाह, सांग आपकी विलादत का ठहरा और ख़ुद हरकते क़बीहा क़ाबिले लवम व हराम व फ़िस्क़ है बल्के ये लोग उस क़ौम से बढ़कर हुए वो तो तारीख़े मुअय्यन पर करते हैं उनके यहां कोई क़ैद ही नहीं जब चाहें ये ख़ुराफ़ाते फ़र्ज़ी बनाते हैं और इस अम्र की शरअ में कहीं नज़र नहीं,
📕 अज़ बराहीने क़ातिआ, सफ़ह 148)
दोस्तो वहाबी देवबंदी नाम निहाद अहले हदीस के गुरूऔं ने बअज़ 📕रसाइल, में मीलाद शरीफ़ को बिदअत, कुफ़्र, शिर्क तक लिख मारा,
अब आईये मीलाद शरीफ़ के मसअले में अक़ीदा ए अहले सुन्नत जिसको पहचान के लिए *मसलक ए आलाहज़रत* कहा जाता है का अक़ीदा देखते हैं👇
अक़ीदा ए अहले सुन्नत ये है के ये फ़ैएल (अमल) ना फ़क़त जाइज़ व मुबाह बल्के मुस्तहब व मुस्तहसन है और मौजिबे अज्र व सवाब है,(यानी सवाब का ज़रिया है) और बाइसे ख़ैर व बरकत है,
इसके दलाइल ये हैं👇
दलाइल क़ुरआन ए मुक़द्दस से👇
(1) आयते करीमा और तर्जमा👇
قد جاء كم من الله نور و كتاب مبين،
बेशक अल्लाह की तरफ़ से एक नूर आया और रोशन किताब,
📚 सूरह ए मायदा, पारा 6, रुकू 7)
(2) आयते करीमा तर्जमा👇
और हमने तुम्हें ना भेजा मगर रहमत सारे जहां के लिए,
📚 सूरह ए अम्बिया, पारा 17, रुकू 7)
(3) आयते करीमा तर्जमा👇
बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लाए तुम में से वो रसूल जिन पर तुम्हारा मशक़्क़त में पड़ना गिरां है तुम्हारी भलाई के लिए निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल मेहरबान मेहरबान,
📚 सूरह ए तौबा, पारा 11, रुकू 5)
(4) आयते करीमा तर्जमा👇
बेशक अल्लाह का बड़ा अहसान हुआ मुसलमानों पर के उनमें उन्हीं में से एक रसूल भेजा,
📚 सूरह आले इमरान, पारा 4, रुकू 8)
(5) आयते करीमा तर्जमा👇
वही है जिसने अनपढ़ों में उन्हीं में से एक रसूल भेजा,
📚 सूरह ए जुमा, पारा 28, रुकू 11)
(6) आयते करीमा तर्जमा👇
और याद करो जब अल्लाह ने पैग़म्बरों से उनका अहद लिया जो में तुमको किताब और हिक्मत दूं फिर तशरीफ़ लाए तुम्हारे पास वो रसूल के तुम्हारी किताबों की तस्दीक़ फ़रमाए तो तुम ज़रूर ज़रूर उसपर ईमान लाना और ज़रूर उसकी मदद करना फ़रमाया क्यों तुमने इक़रार किया और उसपर मेरा भारी ज़िम्मा लिया सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया
फ़रमाया तो एक दूसरे पर गवाह हो जाओ और में आप तुम्हारे साथ गवाहों में हूं,
📚 सूरह ए आले इमरान पारा 3, रुकू 17)
(7) आयते करीमा तर्जमा👇
और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह का अहसान अपने ऊपर याद करो के तुम में पैग़म्बर पैदा किए,
📚 सूरह ए मायदा पारा 6, रुकू 8)
(8) आयते करीमा तर्जमा👇
और याद करो अल्लाह की नेमत को जो तुम पर हुई,
📚 क़ुरआन मजीद)
(9) आयते करीमा तर्जमा👇
अल्लाह की नेमत पहचानते हैं फिर उससे मुन्किर हो जाते हैं,
📚 क़ुरआन मजीद)
(10) आयते करीमा तर्जमा👇
तुम फ़रमाओ अल्लाह ही के फ़ज़्ल और उसी की रहमत उसी पर चाहिए के ख़ुशी करो,
📚 सूरह ए यूनुस, पारा 11, रुकू 11)
दोस्तो मीलाद शरीफ़ नाम है अल्लाह तआला के महबूब की तशरीफ़ आवरी और उनके कमालात व ख़ूबीयों को बयान करने का,
तो अलहम्दुलिल्लाह
हम सुन्नी मुसलमान यही करते हैं
इसलिए के मीलाद शरीफ़ रब्बे कायनात ने ख़ुद मनाया और तमाम इंसान व जिन्नात को इसकी तरग़ीब दी,
जैसा के ऊपर की आयतों में ज़िक्र हुआ, और इसीकी तालीम तमाम बुज़ुर्गाने दीन और सरकार आलाहज़रत ने फ़रमाई है,
लिहाज़ा इन तमाम आयाते मज़कूरा की रोशनी में साबित हुआ के अक़ाइदे अहले सुन्नत हक़ व सही है और अक़ाइदे वहाबिया बातिल व मरदूद है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान पोस्ट जारी रहेगी.....
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.27*
*मसअला ए इस्तेआनत, क़िस्त. 6*
दलाइल अज़ अक़वाल ए सलफ़ व ख़ल्फ़👇
(13) हज़रत ग़ौसे पाक शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह फ़रमाते हैं
📚 बहजतुल असरार, में है👇
जब तुम किसी हाजत (ज़रूरत) का अल्लाह से सवाल करो तो मेरे वसीले से मांगो के जिसने मेरे वसीले से किसी मुश्किल में फ़रयाद की तो में उसको (यानी मुसीबत को) टाल दूंगा और जिसने मेरे नाम के साथ किसी शिद्दत में पुकारा तो में उसको दफ़ा करदूंगा और जिसने किसी हाजत में अल्लाह की तरफ़ मेरा वसीला पकड़ा तो में उसको पूरा करदूंगा,
📚 अज़ बहजतुल असरार, सफ़ह 102)
(14) शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहेलवी अपनी किताब 📗 बुस्तानुल मुहद्दिसीन, में नाक़िल हैं के शैख़ अहमद ज़र्रूक़ फ़रमाते हैं के👇
में अपने मुरीद का उसकी परागंदगियों में जामे हूं जब्के जोरे ज़माना सख़्तियों के साथ उसपर हमला करे अगर तू तंगी व सख़्ती व वहशत में हो तो *या ज़र्रूक़ू* कहकर पुकार, में जल्द आऊंगा,
📚 बुस्तानुल मुहद्दिसीन, सफ़ह 135)
(15) ख़ातिमातुल मुहद्दिसीन हज़रत अल्लामा इब्ने हजर के फ़तावे 📚 हदीसिया, में है👇
औलिया के मुनाफ़ा से ये नफ़ा है के उनकी बरकत से लोगों पर बारिश की जाती है फ़साद दफ़ा किया जाता है वरना ज़मीन फ़ासिद हो जाए,(यानी सारी ज़मीन पर दंगा फ़साद आम हो जाए)
📚 अज़ फ़तावा हदीसिया, मिसरी, सफ़ह 221)
(16) हज़रत शेख़े मुहक़्क़िक़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहेलवी
📚 जज़बुल क़ुलूब, में फ़रमाते हैं👇
अहले हाजात का जनाब सैय्यदे कायनात सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम से मदद मांगना, तवस्सुल करना जैसे रिज़्क़ में कुशाइश, औलाद हासिल होना और बारिश का होना वग़ैरह बहुत है,
के हुज़ूर अलैहिस्सलाम से तवस्सुल हाजत पूरी हो जाने का मोजिब और मुराद हासिल होने का सबब है हुज़ूर ने ख़ुद तवस्सुल किया है,
بحق نبيك والانبياءالزين من قبلى،
यानी वसीला अपने नबी और पहले अम्बिया ए किराम के तो इस हदीस में तवस्सुल पर दलील है,
दोनों हालतों में यानी अम्बिया की हयाते ज़ाहिरी में और बअद वफ़ात के तो जब और अम्बिया से बअद वफ़ात जाइज़ हुआ, तो हज़रत सैय्यदे अम्बिया सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम से बतरीक़े औला जाइज़ साबित हुआ,
बल्के इस हदीस से औलिया से तवस्सुल बअद उनकी वफ़ात जाइज़ है इसी पर क़यास करें,
📚 अज़ जज़बुल क़ुलूब, सफ़ह 158)
(17) हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ साहिब रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह 📚तफ्सीरे अज़ीज़ी, में फ़रमाते हैं👇
अगर इल्तिफ़ात ख़ास हक़ तआला की तरफ़ हो और बन्दा ए मुक़र्रब को मददे इलाही का मज़हर जान कर अल्लाह तआला के कारख़ाना ए असबाब व हिक्मत पर नज़र करके ज़ाहिर ग़ैर से इस्तेआनत करे तो ये इरफ़ान से दूर ना होगा,
और शरअ में भी जाइज़ व रवा है,
अम्बिया व औलिया ने ग़ैर से इसी तरह की इस्तेआनत की है और दरहक़ीक़त इस तरह मदद मांगना ग़ैर से नहीं बल्के ख़ुदा ही से मदद मांगना है,
📚 तफ़्सीरे अज़ीज़ी, सफ़ह 10)
अल हासिल अगर इस्तेआनत बग़ैर अल्लाह हर तरह शिर्क होती तो इन आयात व आहादीस और अक़वाल में वारिद ना होती,(जो पोस्ट नंबर 48, से 53 यानी अब ,तक पेश की गईं)
तो इन आयात व आहादीस व अक़वाल ने मज़हबे अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत और मज़हबे वहाबिया की ग़लती और बुतलान साबित कर दिया,
तो मज़हबे अहले सुन्नत आयात व आहादीस के मुवाफ़िक़ और मज़हबे वहाबिया मुख़ालिफ़ साबित हुआ,
وما علينا الإالبلاغ
*वमा अलैना इल्लल बलाग़*
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.16*
*मसअला ए इस्तेआनत, क़िस्त.5👇*
अहले सुन्नत व जमाअत की हक़्क़ानियत के दलाइल अक़्वाल ए सलफ़ व ख़ल्फ़ से मुलाहिज़ा फ़रमाइये
(8) 📚 वफ़ाउल वफ़ा, में है अबुलख़ैर अक़तअ ने कहा के मदीनातुर्रसूल सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम में हाज़िर हुआ और मैं फ़ाक़ा से था, और मेंने उसमें पांच (5) दिन इक़ामत की के उनमें कोई निवाला नहीं खाया, फिर में क़ब्रे अनवर के क़रीब पहुंचा और हुज़ूर पुरनूर पर सलाम अर्ज़ किया, और अबू बकर और व उमर के मुवाजह में सलाम पेश किया, और मेंने अर्ज़ किया के या रसूलल्लाह में आपका मेहमान हूं और कुछ हटकर सो गया तो मैंने ख़्वाब में नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम को इस तरह देखा के हज़रत अबू बकर आपके दाहिने हैं और हज़रत उमर बाएं जानिब हैं और हज़रत अली करमल्लाहू वज्ह सामने हैं तो मुझे हज़रत अली ने हरकत दी और कहा खड़ा हो जा रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ़ ले आए तो में खड़ा हो गया, और मेंने आपकी चश्माने मुबारक के दरम्यान बोसा दिया तो हुज़ूर ने मुझे एक रोटी अता फ़रमाई में आधी खाकर बेदार हो गया तो दूसरी आधी मेरे हाथ में थी,
📚 वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 2 सफ़ह 426)
(9) इसी में है
अहमद बिन सूफ़ी ने कहा के में तीन (3) माह तक जंगल में घूमता रहा तो मेरा बदन नंगा हो गया तो में मदीना तय्यबा में हाज़िर हो गया, और रोज़ा ए अत़हर पर हाज़िर हुआ और आप पर और आपके हर दो असहाब पर सलाम अर्ज़ किया फिर सो गया तो मैंने नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम को ख़्वाब में देखा मुझसे फ़रमाया ऐ अहमद तू आगया मेंने अर्ज़ किया हां में भूका हूं और आपके मेहमानों में हूं, फ़रमाया अपना हाथ खोल मैंने उनको खोल दिया तो हुज़ूर ने उन्हें दिराहम से भर दिया, तो जब में बेदार हुआ तो दोनों हाथ भरे हुए देखे तो में खड़ा हो गया मैंने रोटियां मैदा की और फ़ालूदा ख़रीद किया और खाया और उसी वक़्त खड़ा हो गया, और बयाबान में पहुंच गया,
📚 वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 2 सफ़ह 426)
(10) इसी में है
हाफ़िज़ इब्ने असाकिर ने अपनी तारीख़ में अबुल क़ासिम तक अपनी सनद से ज़िक्र किया के साबित बिन अहमद बग़दादी ने कहा के उन्होंने एक शख़्स को मदीनातुर्रसूल सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम में देखा के उसने सूबह की आज़ान कही मज़ारे नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के क़रीब और उसमें कहा *अस्सलातू ख़ैरुम्मिनन्नौम* तो उसके पास ख़ुद्दामे मस्जिद से एक ख़ादिम आया और उसके एक तपांचा मारा, जब ये कल्मा सुना तो ये शख़्स रोया और अर्ज़ की या रसूलल्लाह आपके होते हुए इसने ये फ़ेऐल मेरे साथ किया तो वो ख़ादिम मफ़लूज (यानी उसको फ़ालिज हो गया) हो गया और उसको उसके घर की तरफ़ उठाकर ले गए तीन दिन तक वो ज़िन्दा रहा फिर मर गया,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा जिल्द 2 सफ़ह 427)
(11) अबू इस्हाक़ इब्राहीम बिन सअद कहते हैं के
में मदीना तय्यबा में था और मेरे साथ तीन और फ़कीर थे तो हमें फ़ाक़ा पहुंचा तो में मज़ारे अनवर पर हाज़िर हुआ और मेंने अर्ज़ की या रसूलल्लाह हमारे पास कुछ नहीं है हमें किसी चीज़ के तीन मुद काफ़ी हैं, तो मुझसे एक शख़्स ने मुलाक़ात की और मुझे तीन मुद उम्दा खजूर के दिए,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 2 सफ़ह 427)
(12) शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद कहते हैं के
में मदीना पाक में मेहराबे फ़ातिमा के पीछे था और में फ़ाक़ा से था तो में अपने घर से निकला और बैयते फ़ातिमा के क़रीब पहुंचा, और नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम से फ़रयाद की और कहा के में भूका हूं तो में सो गया और मैंने हुज़ूर को ख़्वाब में देखा के हुज़ूर ने मुझे एक दूध का प्याला अता फ़रमाया तो मैंने उसको पिया यहां तक के में सैर हो गया और ये उस दूध का असर मुंह में है जो मेरी हथेली पर ज़ाहिर है,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 2 सफ़ह 427)
इन्शा अल्लाहुर्रहमान
आने वाली पोस्ट में अक़वाल ए सलफ़ व ख़ल्फ़ से अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत के जो दलाइल बाक़ी हैं पेश किए जायेंगे,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं. 15*
*मसअला ए इस्तेआनत, क़िस्त.4*
वहाबी देवबंदी नाम निहाद अहले हदीस के गुरु जी इस्माईल देहेलवी ने अपनी किताब
📕 तक़्वियतुल ईमान, जो हक़ीक़त में तफ़्वियतुल ईमान हैं यानी ईमान को फ़ौत करने वाली किताब में लिखा के
अल्लाह के सिवा अम्बिया औलिया से मदद मांगनी और उनसे नफ़ा और नुक़सान की उम्मीद रखनी शिर्क है,
इस ख़बीस और ऐसे ही बहुत से ख़बीस अक़ीदे को आज भी वहाबी देवबंदी नाम निहाद अहले हदीस सही और हक मानते हैं और ये किताब आज भी इनके मदरसों में तलबा को पढ़ाई जाती,
हमने इनके ख़बीस और बातिल अक़ीदे के रद्द में पहले क़ुरआन ए मुक़द्दस की कुछ आयाते करीमा पेश कीं और कुछ आहादीसे मुक़द्दसा पेश कीं और फिर बुजुर्गों के क़ौल पेश किए,
अब आईये कुछ और बुज़ुर्गों के क़ौल वहाबियों के रद्द में मुलाहिज़ा फ़रमाईये,
अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत के सुबूत
अक़वाल ए सलफ़ व ख़ल्फ़ से👇
(4) हज़रत मालिक उद्दीन से मरवी है के
ख़िलाफ़ते फ़ारूक़ी में लोग क़हतसाली में मुबतला हुए तो एक शख़्स बिलाल बिन हारिस सहाबी मज़ारे अक़दस पर हाज़िर हुए और अर्ज़ किया के या रसूलल्लाह अपनी उम्मत के लिए अल्लाह से सैराबी तलब कीजिए के वो हिलाक हुई जाती है
तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ख़्वाब में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया के तू उमर के पास जा और उससे सलाम कहना और उसको ख़बर देना के लोग सैराब कर दिए गए और उससे ये कहना के तू दानाई लाज़िम पकड़,
वो शख़्स हज़रत उमर रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और उन्हें ख़्वाब की ख़बर दी हज़रत उमर रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह रोए फिर कहा ऐ रब में कोई कमी नहीं करता मगर जिससे आजिज़ हूं,
और सैफ़ ने फ़ुतूह में रिवायत की के जिसने ख़्वाब देखा था ये बिलाल बिन हारिस मज़नी हैं जो सहाबा से हैं,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा, मिसरी, जिल्द 1 सफ़ह 421)
(5) यही हज़रत अल्लामा समहूदी इसी में नाक़िल हैं
अहले मदीना सख़्त क़हतसाली में मुबतला हुए तो उन्होंने हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहू तआला अन्हा से उसकी शिकायत की के हज़रत उम्मुल मोमिनीन ने फ़रमाया तुम नबी ए करीम अलैहिस्सलातू व तस्लीम की क़ब्रे अनवर की तरफ़ नज़र करो और उसके और आसमान के दरम्यान एक रोशनदान सुराख़ ऐसा करो के दरम्यान छत की आड़ ना रहे,
उन्होंने ऐसा ही किया तो वो बारिश किए गए,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 1 सफ़ह 421)
(6) इसी में है
इमाम अबू बकर मिक़री ने कहा के
में और तिब्रानी और अबू शैख़े हरम मदीनातुर्रसूल सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम में थे और हम इस हाल में थे के हमपर भूक ग़ालिब थी वो दिन तो इस तरह गुज़रा जब वक़्ते इशा हुआ में मज़ारे अनवर पर हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया के या रसूलल्लाह भूक लगी है
में वापस आया तो मुझसे अबुल क़ासिम ने कहा के तशरीफ़ रखिए या तो ख़ाना हो या मौत,
अबू बकर ने कहा के में और अबू शैख़ तो खड़े हो गए और तिब्रानी किसी चीज़ को देखते रह गए तो दरवाज़ा पर एक अल्वी आए और उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया,
हमने खोल दिया,
तो उनके साथ दो (2) ग़ुलाम हैं,
हरएक के पास ज़म्बील है जिसमें कुछ खाना है तो हम बैठ गए और हमने खाना खाया और ये ख़्याल किया के बाक़ी खाना ग़ुलाम ले जाएगा तो वो ग़ुलाम उल्टे पांव चला गया और बक़िया खाना छूट गया तो जब हम खाकर फ़ारिग़ हो गए तो उस अल्वी ने कहा ऐ क़ौम क्या तुमने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम से शिकायत की थी के मेंने हुज़ूर को ख़्वाब में देखा पस मुझको हुक्म फ़रमाया के उनके पास कुछ खाना ले जाओ,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 1 सफ़ह 426)
(7) इसी में है
इब्ने जिलाद ने कहा के में मदीना पाक में हाज़िर हुआ और में फ़ाक़ा से था,
तो में मज़ारे अत़हर पर हाज़िर हुआ और मेंने अर्ज़ किया के में आपका मेहमान हूं,
फिर मुझे नींद आ गई,
तो मेंने नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम को देखा के मुझे एक रोटी अता फ़रमाई मेंने आधी खा ली, और बेदार हो गया तो मेरे हाथ में दूसरा आधा टुकड़ा मौजूद था,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा जिल्द 2 सफ़ह 426)
इन्शा अल्लाहुर्रहमान
अक़वाल ए सलफ़ व ख़ल्फ़ से अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत के दालाइल अभी जारी रहेंगे आप पढ़ते रहिए..........
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.14*
*मसअला ए इस्तेआनत, क़िस्त. 3*
वहाबियों के बातिल अक़ीदे का रद्द बुज़ुर्गों के क़ौल से मुलाहिज़ा फ़रमाएं
*दलाइल अज़ अक़वाल ए सलफ़ व ख़ल्फ़👇*
(1) रद्दुलमौहतार में हज़रत अल्लामा इब्ने आबिदीन ने इफ़ादा फ़रमाया👇
जब इंसान की कोई चीज़ गुम हो जाए और वो चाहे के ख़ुदा उसको वापस दिलादे तो एक बुलंद (ऊंची) जगह पर क़िब्ला रू खड़े हो कर फ़ातिहा पढ़े और उसका सवाब हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम को हदिया करके सैय्यद अहमद अलवान रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह को पहुंचाए और कहे ऐ सैय्यद अहमद अलवान अगर तुमने मेरी गुमी हुई चीज़ वापस दिलादी तो ख़ैर वरना में तुम्हारा नाम दफ़्तर ए औलिया से कटवा दूंगा,
इस अमल से ब बरकत उन वली के अल्लाह तआला वो गुमी हुई चीज़ वापस दिलादेगा,
📚 अज़ शामी, मिसरी, जिल्द 3, सफ़ह 334)
(2) यही हज़रत अल्लामा शामी इसी रद्दुलमौहतार में इस्तेआनते इमामे शाफ़ई को तहरीर फ़रमाते हैं👇
इमाम ए आज़म के साथ इमामे शाफ़ई के अदब का ये वाक़िआ मरवी है के इमामे शाफ़ई ने फ़रमाया,
में इमामे आज़म के साथ तबर्रुक हासिल करता हूं और उनके मज़ार पर हाज़िर होता हूं जब मुझको कोई हाजत पेश आती है तो दो (2) रकअत नमाज़ पढ़ कर अल्लाह तआला से उनके मज़ार के क़रीब दुआ करता हूं तो बहुत जल्द मेरी दुआ पूरी हो जाती है,
📚 अज़ शामी मिसरी, जिल्द 1, सफ़ह 39)
इस क़ौल से साबित हुआ के औलिया ए किराम के मज़ारात पर दुआ जल्दी क़ुबूल होती है इसीलिए हमारे आलाहज़रत ने मज़ाराते औलिया पर जाने की तलकीन फ़रमाई ताके मुसलमान फ़ायदा हासिल करें,
मगर ये वहाबी देवबंदी नाम निहाद अहले हदीस, नहीं चाहते के मुसलमानों को बुज़ुर्गों का फ़ैज़ मिले, बल्के ये तो अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल व नबी ए करीम अलैहिस्सलातू व तस्लीम और औलिया किराम की शान घटाते और गुस्ताखियां करते हैं ताके मुसलमानों के दिलों से बुज़ुर्गों की मुहब्बत निकल जाए, ये इसलिए के इनके बड़े गुरु जी अंग्रेजों के हाथ बिक गए फिर अंग्रेजों ने ये काम इनसे कराया ताके मुसलमानों में आपस में लड़ाई झगड़ा हो और मुसलमान टुकड़े टुकड़े हो जाएं और ऐसा ही हुआ तफ़्सील से जानने के लिए देखिए
📘 तारीख़ नज्द व हिजाज़,
(मअज़ अल्लाह)
(3) यही हज़रत अल्लामा इसी शामी में नाक़िल हैं👇
मअरूफ़ करख़ी बिन फ़िरोज़ बड़े मशाइख़ से हैं वो मुजाबुद्दअवात हैं उनकी क़ब्र से सैराबी तलब की जाती है,
📚 अज़ शामी मिसरी जिल्द 1, सफ़ह 42)
दोस्तो बुज़ुर्गों के मज़ारात पर ज़रूर जाना चाहिए क्योंके बुज़र्गों की बरकत से वहां दुआ बहुत जल्द क़ुबूल होती है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान पोस्ट जारी रहेगी,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.13*
*मसअला ए इस्तेआनत क़िस्त 2*
दोस्तो आपने इससे पहले की पोस्ट नंबर 48, में पढ़ा के वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस का अक़ीदा है के ग़ैरुल्लाह यानी अल्लाह तआला के महबूब बन्दों यानी हुज़ूर अलैहिस्सलाम और औलिया ए किराम से मदद मांगनी और उनसे नफ़ा और नुक़सान की उम्मीद रखनी शिर्क है,
हमने इनके इसी ख़बीस और बातिल अक़ीदे को रद्द करने के लिए और अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत के दलाइल क़ुरआन मजीद की कुछ आयात व कुछ आहादीसे मुक़द्दसा पेश कीं अब आइये अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत के दलाइल में कुछ और आहादीसे मुक़द्दसा मुलाहिज़ा फ़रमाइये👇
(5) हदीस शरीफ़👇
हज़रत शरीह बिन उबैद से मरवी उन्होंने कहा के
अहले शाम का हज़रत अली रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह के पास ज़िक्र हुआ तो उनसे कहा गया के उनपर लअनत कीजिए ऐ अमीरुल मोमिनीन कहा के मेंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम से सुना है के फ़रमाते हैं के शाम में चालीस (40) मर्द अब्दाल होंगे जब एक फ़ौत हो जाएगा तो अल्लाह उसकी जगह दूसरा बदल देगा उनके तवस्सुल से बारिश से सैराबी होती है, दुश्मनों पर फ़तेह हासिल होती है, अहले शाम से अज़ाब दफ़अ हो जाता है,
📗 अज़ मिश्कात शरीफ़, सफ़ह 583)
(6) हदीस शरीफ़👇
हुज़ूर ए अकरम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
अगर मदद चाहे तो ये कहे
ऐ अल्लाह के बन्दो मेरी मदद करो,
ऐ अल्लाह के बन्दो मेरी मदद करो,
ऐ अल्लाह के बन्दो मेरी मदद करो,
📚 अज़ ज़फ़रे जलील तर्जमा हुस्ने हसीन, सफ़ह 140)
(7) हदीस शरीफ़👇
जब तुम में से किसी की सवारी वसी (बड़े) जंगल में गुम हो जाए या छिन जाए या छूट जाए तो वो यूं पुकारे
ऐ अल्लाह के बन्दो मेरी सवारी रोको,
📚 अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 18)
(8) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अबू हुरैरह रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी के हुज़ूर ने फ़रमाया
नेकी पर अपनी औलाद की मदद करो जो ये चाहता है के बच्चे से नाफ़रमानी निकल जाए,
📚 तिब्रानी अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 39)
(9) हदीस शरीफ़👇
हज़रत इबादा बिन सामत रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी के हुज़ूर ने फ़रमाया के
अब्दाल इस उम्मत में तीस (30) आदमी हैं उनके दिल क़ल्बे इब्राहीम ख़लीलुल्लाह के परतौ होंगे, जब एक फ़ौत हो जाएगा और उसकी जगह में दूसरे शख़्स को बदल देगा,
📚 अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 102)
(10) हदीस शरीफ़👇
इन्हीं हज़रत इबादा से मरवी के हुज़ूर ए अकरम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के
मेरी उम्मत में तीस (30) अब्दाल होंगे उन्हीं की वजह से ज़मीन क़ायम रहेगी, तुम पर बारिश की जाएगी तुम्हारी मदद की जाएगी,
📚 रवाहुत्तिबरानी अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 102)
(11) हदीस शरीफ़👇
हज़रत औफ़ बिन मालिक रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी,
हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
अहले शाम में अब्दाल होंगे उन्हीं की वजह से वो मदद किए जाएंगे और और रिज़्क़ दिए जाएंगे,
📚 रवाहुत्तिबरानी अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 102)
(12) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अली रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी के रसूल ए अकरम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
शाम में चालीस 40 आदमी अब्दाल हैं जब उनमें का एक फ़ौत होगा अल्लाह उसकी जगह दूसरे आदमी को बदल देगा उन्हीं की वजह से वो बारिश से सैराब होंगे और उनकी मदद होगी दुश्मनों पर और अज़ाब दफ़अ होगा,
📚 अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 102)
(13) हदीस शरीफ़👇
हज़रत इब्ने उमर रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा से मरवी के हुज़ूर ने फ़रमाया
अल्लाह तआला के कुछ ऐसे बन्दे हैं जिन्हें लोगों की हाजतें पूरी होने के लिए मख़्सूस कर दिया है लोग अपनी हाजतों में उनकी तरफ़ फ़रयाद करेंगे, वो अल्लाह के अज़ाब से महफ़ूज़ हैं,
📚 रवाहुत्तिबरानी अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 78)
(14) हदीस शरीफ़👇
हज़रत रबीअह बिन कअब रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी, उन्होंने कहा के
मेंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के पास रात गुज़ारी तो में वुज़ू और हाजत के लिए पानी लाया हुज़ूर ने मुझसे फ़रमाया
मांग मेंने अर्ज़ किया जन्नत में हुज़ूर की रिफ़ाक़त मांगता हूं
फ़रमाया भला और कुछ अर्ज़ किया मेरी मुराद तो बस यही है, फ़रमाया तो मेरी मदद कर अपने नफ़्स पर कसरते सुजूद से,
📚 रवाह मुस्लिम अज़ मिश्कात शरीफ़ सफ़ह 84)
अल हासिल अगर इस्तेआनत बग़ैर अल्लाह हर तरह शिर्क होती तो इन आयात व आहादीस में वारिद ना होती, तो इन आयात व आहादीसे मुक़द्दसा ने मज़हबे अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत और मज़हबे वहाबिया की ग़लती और बुतलान साबित कर दिया तो मज़हबे अहले सुन्नत आयात व आहादीसे मुक़द्दसा के मुवाफ़िक़ और मज़हबे वहाबिया मुख़ालिफ़ साबित हुआ,
तो जो मज़हब बातिल है मुसलमानों को चाहिए के बातिल मज़हब के लोगों से दूर रहें, ना उनसे दोस्ती रिश्तेदारी करें और ना उनके पीछे नमाज़ पढ़ें,
याद रखें जो जैसों की सौहबत में रहता है वो वैसा ही हो जाता है, यही वजह है के आजकल बातिल मज़हब के लोगों की तअदाद बहुत तेज़ी से बढ़ रही है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान आने वाली पोस्ट में अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत के दलाइल में बुज़ुर्ग़ाने दीन के क़ौल पेश किए जाएंगे,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.12*
*मसअला ए इस्तेआनत, क़िस्त. 1*
*अक़ीदा ए वहाबिया👇*
ये है के अल्लाह के सिवा अम्बिया और औलिया से मदद मांगनी और उनसे नफ़ा और नुक़सान की उम्मीद रखनी शिर्क है,
आलम में इरादा से तसर्रुफ़ करना और अपना हुक्म जारी करना और अपनी ख़्वाहिश से मारना और जिलाना, रोज़ी की कुशाइश और तंगी करनी और तंदुरुस्त और बीमार कर देना, फ़तेह व शिकस्त देनी, इक़बाल व इदबार देना, मुरादें पूरी करनी, हाजतें बरलानी, बलाएं टालनी मुश्किल में दस्तगीरी करनी, बुरे वक़्त में पहुंचना, ये सब अल्लाह ही की शान है, और किसी अम्बिया व औलिया की पीर व शहीद की भूत व परी की ये शान नहीं, जो कोई किसी को ऐसा तसर्रुफ़ साबित करे और उससे मुरादें मांगे और इस तौक़अ पर नज़्र व नियाज़ करे और उसको मुसीबत के वक़्त पुकारे सो वो मुशरिक हो जाता है, फिर ख़्वा यूं समझे के इन कामों की त़ाक़त उनको ख़ुद व ख़ुद है, ख़्वा यूं समझे के अल्लाह ने उनको ऐसी क़ुदरत बख़्शी है, हर तरह शिर्क साबित होता है,
📕 तक़्वियतुल ईमान, सफ़ह 11) लेखक वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस का गुरु, इस्माईल देहलवी,
और यही मौलवी लिखता है👇
हर मुराद अल्लाह ही से मांगे और हर मुश्किल में उसी की मदद चाहे,
📕 तक़्वियतुल ईमान, सफ़ह 39)
और लिखता है👇
इन बातों में सब बंदे बड़े और छोटे बराबर हैं आजिज़ और बे इख़्तियार,
📕 तक़्वियतुल ईमान सफ़ह 29)
और फिर लिखता है👇
नफ़ा और नुक़सान की उम्मीद रखनी उसी से चाहिए के ये मुआमला और किसी से करना शिर्क है,
📕 तक़्वियतुल ईमान, सफ़ह 44)
ये तो हैं वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस अंग्रेजों के ग़ुलाम एजेंटों के अक़ाइद,
अब आइये अक़ीदा ए अहले सुन्नत देखिए👇
अक़ीदा ए अहले सुन्नत ये है के
बिज़्ज़ात नफ़ा और नुक़सान का पहुंचाने वाला और मदद करने वाला अल्लाह तआला है और हज़रात अम्बिया व औलिया ख़ुदादाद क़ुव्वत से मदद करते हैं, मुश्किल टालते हैं, मुरादें बर लाते हैं, उनसे मख़्लूक़ को नफ़ा और, नुक़सान पहुंचता है, ये दस्तगीरी करते हैं,
इन सब बातों के दलाइल ये हैं👇
दलाइल अज़ आयाते क़ुरआन👇
(1) आयत तर्जमा👇
सब्र व नमाज़ से मदद चाहो,
📚 सूरह बक़र पारा 2, रुकू 3)
(2) आयत तर्जमा👇
और नेकी और परहेज़गारी पर एक दूसरे की मदद करो,
📚 सूरह मायदा, पारा 6, रुकू 1)
(3) आयत तर्जमा👇
ईसा ने कहा कौन मेरे मददगार होते हैं अल्लाह की तरफ़ हवारियों ने कहा हम दीन ए ख़ुदा के मददगार हैं,
📚 सूरह आले इमरान, पारा 3, रुकू 12)
(4) आयत तर्जमा👇
फिर उनको पुकार वो तेरे पास दौड़ते हुए आएंगे,
📚 सूरह बक़र पारा 3, रुकू 3)
(5) आयत तर्जमा👇
ज़ुल्क़रनैन ने फ़रमाया, मेरी ताक़त से मदद करो, में तुम में और उनमें एक मज़बूत आड़ बना दूं,
📚 सूरह कहफ़, पारा 16, रुकू 2, आयत नंबर 95)
👆ये तो थे अहले सुन्नत की हक़्क़ानियत के क़ुरआनी आयात से मुख़्तसर दलाइल जब्के अभी बे शुमार सुबूत क़ुरआन ए मुक़द्दस में मौजूद हैं मगर इसी पर इक्तिफ़ा किया जाता है,
अब आइए अहले सुन्नत व जमाअत जिसको पहचान के लिए *मसलक ए आलाहज़रत* कहा जाता है, की हक़्क़ानियत के दलाइल आहादीसे नब्वी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम से मुलाहिज़ा फ़रमाइये👇
(1) हदीस शरीफ़👇
मआज़ बिन जबल रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है के
हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
अपनी हाजतों पर कामयाबी के लिए छुपाने के साथ मदद चाहो,
📚 तिबरानी, हुलिया इब्ने अदी वग़ैरह अज़ जामे सगीर, जिल्द 1, सफ़ह 33)
(2) हदीस शरीफ़👇
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है के
हुज़ूर ने फ़रमाया के
रोज़ रोशन पर (रोज़ा रखने के लिए) सहरी खाकर मदद चाहो, और क़यामे शब पर (रात में नमाज़ पढ़ने के लिए) दोपहर में सोकर मदद चाहो,
📚 बहक़ी अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 33)
(3) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अनस रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी के
हुज़ूर ने फ़रमाया
औरतों की ख़ाना नशीनी पर उन्हें कम कपड़े देकर मदद चाहो के जब किसी के पास ज़्यादा कपड़े होंगे तो वो सिंघार करके बाहर निकलने को पसंद करेंगी,
📚 रवाह इब्ने अदी, अज़ जामे सगीर सफ़ह 33)
(4) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अबू हुरैरह रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी के
हुज़ूर ने फ़रमाया
अपने दाहिने हाथ से मदद तलब करो,
📚 रवाह तिर्मिज़ी, अज़ जामे सगीर सफ़ह 33)
देखा आपने अल्लाह तआला ने हुक्म दिया के नमाज़ व सब्र से और एक दूसरे से मदद तलब करो, और हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने भी यही फ़रमाया के रोज़ा रखने के लिए सहरी खाकर मदद चाहो और रात में नमाज़ पढ़ने के लिए दोपहर में सोकर मदद चाहो यानी जब आप दोपहर में आराम करेंगे तो रात की इबादत में नींद नहीं सताएगी तो मालूम हुआ के हर इंसान को एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होती है मगर अफ़सोस है वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस यानी ग़ैर मुक़ल्लिदों पर के क़ुरआन व हदीस का इन्कार करते हैं और फिर अपने को मुसलमान कहते हैं,
क्या क़ुरआन व हदीस को झुटलाकर आदमी मुसलमान रह सकता है,
हरगिज़ नहीं
हरगिज़ नहीं,
हरगिज़ नहीं,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान बाक़ी आने वाली पोस्ट में मुलाहिज़ा फ़रमाइये
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.11*
*मसअला ए निदा, क़िस्त.4*
वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस का अक़ीदा है के ग़ैरुल्लाह को *या* कहकर पुकारना शिर्क है जैसा के आपने वहाबी देवबंदीयों की किताबों के हवाले से पोस्ट नंबर 44, में पढ़ा जो इनके मौलवियों ने लिखा, जिसको आज भी ये लोग सही व हक़ मानते हैं,
इनके इसी बुतलान का जवाब हमने क़ुरआन मजीद और आहादीसे मुक़द्दसा से दिया और ये साबित किया के ग़ैरुल्लाह को *या* कहकर पुकारना शिर्क नहीं बल्के सही व हक़ है अब आइये अक़ीदा ए अहले सुन्नत बुज़ुर्गों के अक़वाल की रोशनी में मुलाहिज़ा फ़रमाइये
दलाइल अज़ अक़वाले सलफ़ व ख़लफ़👇
(1) इमामे आज़म ने अपने मसनद में हज़रत इब्ने उमर रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत की के उन्होंने फ़रमाया👇
सुन्नत ये है के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की क़ब्र पर हाज़िर हो क़िब्ला की तरफ़ से और अपनी पुश्त क़िब्ला की तरफ़ करे और क़ब्र शरीफ़ की तरफ़ मुंह करे फिर कहे सलाम हो तुम पर ऐ नबी ए करीम,
(2) क़सीदा ए इमामे आज़म में है👇
ऐ सरदारों के सरदार में आपके पास ये क़स्द करते हुए हाज़िर हुआ हूं आपकी रज़ा का तालिब हूं और आपकी हिमायत को तलाश करता हूं ख़ुदा की क़सम ऐ बेहतरीन ख़ल्क़ मेरे पास शौक़ीन क़ल्ब है जो आपके सिवा किसी का इरादा नहीं करता,
(3) नज़मे मुक़द्दसी में है👇
ऐ बेहतर उनके जो ज़मीन में मदफ़ून हुए तो उनकी ख़ुशबू से गौरिस्तान की ख़ाक मुअत्तर हो जाए,
📚 अज़ शिफ़ाउस्सिक़ाम, सफ़ह 46)
(4) मिराक़िउल फ़लाह में ब वक़्ते हाज़री रोज़ा ए त़ाहिरा ये अल्फ़ाज़े सलाम तअलीम किये👇
तुम पर सलाम हो ऐ मेरे सरदार या रसूलल्लाह,
तुम पर सलाम हो या नबी अल्लाह,
तुम पर सलाम हो या हबीब अल्लाह,
तुम पर सलाम हो ऐ नबी ए रहमत,
तुम पर सलाम हो ऐ शफ़ी ए उम्मत,
तुम पर सलाम हो ऐ रसूलों के सरदार,
📚 अज़ मिराक़िउल फ़लाह, सफ़ह 432)
(5) फ़तावा आलम गीरी, में है👇
तुम पर सलाम हो या रसूलल्लाह फ़लां बिन फ़लां की तरफ़ से वो आपकी रब के तरफ़ आपके वसीला से सिफ़ारिश चाहता है तो उसके लिए और तमाम मुसलमानों के लिए सिफ़ारिश कीजिए,
(6) हज़रत अल्लामा ख़ैर उद्दीन रमीउस्ताज़ साहिबे दुर्रेमुख़्तार फ़तावा ख़ैरियह में लिखते हैं👇
ऐ शैख़ अब्दुल क़ादिर, तो ये निदा है और जब इसके साथ *शैअन लिल्लाह* और मिला दिया जाए तो किसी शैय का तलब करना है अल्लाह के इकराम के लिए लिहाज़ा इसके हराम होने का क्या सबब है,
📚 अज़ फ़तावा ख़ैरयह मिसरी, जिल्द 2, सफ़ह 182)
(7) अल्लामा समहूदी वफ़ाउल वफ़ा, में ज़ाइरे मदीना के लिए ये अल्फ़ाज़ तअलीम करते हैं👇
ब वक़्ते ज़्यारत कहे या रसूलल्लाह हम आपके पास वफ़द होकर हाज़िर हुए और ज़्यारत करने वाले और हम आपकी ख़िदमत में आपका हक़ अदा करने के लिए आए हैं और आपकी ज़्यारत से तबर्रुक हासिल करने के लिए और आपके रब की तरफ़ आपको वसीला बना कर सिफ़ारिश चाहने हाज़िर हुए हैं,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 2 सफ़ह 439)
(8) हज़रत मौलाना जामी फ़रमाते हैं👇
ऐ नबी अल्लाह रहम कीजिए रहम कीजिए,
(9) हज़रत शमसुद्दीन तबरेज़ी फ़रमाते हैं👇
या रसूलल्लाह आप ही अपने ख़ालिक़ के ख़ास हबीब हैं आप ख़ुदा ए पाक के बरगुज़ीदा बे मिस्ल हैं,
(10) हज़रत शैख़े मुहक़्क़िक़ अपने क़सीदा में फ़रमाते हैं👇
या रसूलल्लाह आपके जमाल के ग़मे हिज्र में, में बरबाद हो गया, अपना जमाल दिखाइये इस जाने ज़ार पर रहम कीजिए बहर सूरत या रसूलल्लाह करम कीजिए इस बे सरो सामान पर अपना लुत्फ़ फ़रमाइये,
📚 अज़ अख़बारुल अख़ियार, सफ़ह 323)
अल हासिल अगर ग़ैर ख़ुदा को *या* से निदा करके पुकारना शिर्क या हराम व ना जाइज़ होता तो क़ुरआन व हदीस में वारिद ना होता,
और अल्लाह व रसूल जल्ल जलालहू व सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम का ख़ुद ये फ़ैऐल नहीं होता और सहाबा ए किराम व सलफ़ व सालेहीन के कलामों में ये हरगिज़ हरगिज़ वारिद ना होता,
तो इन आयात व आहादीस और अक़वाले सहाबा व सलफ़ व सालेहीन ने ये साबित कर दिया के निदा ए ग़ैरुल्लाह जाइज़ व सही है और ये मअमूल ब भी है, इसको शिर्क कहना बातिल है वरना सबको बल्के अल्लाह व रसूल पर भी (मअज़ अल्लाह) वहाबी देवबंदीयों को फ़तवा लगाना पड़ेगा और सबको मुशरिक कहना पड़ेगा,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान आने वाली पोस्ट में *मसअला ए इस्तेआनत* के बारे में बताया जाएगा,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.10*
*मसअला ए निदा, क़िस्त.3*👇
(8) हदीस शरीफ़👇
हुज़ूर सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
يا ابا ذرانه لايضر من الدنيا ماكان للاخرة،
तर्जमा
ऐ अबू ज़र बात ये है के दुनियां की कोई चीज़ आख़िरत के लिए मुज़िर न हो,
📚 रवाहुद्देलमी फ़ी मसनदुल फ़िरदौस अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़, जिल्द 2, सफ़ह 204)
(9) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ अबू ज़र कश्ती नई तैयार कर के दरया बहुत गहरा है,
📚 रवाहुद्देलमी फ़ी मसनदुल फ़िरदौस अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(10) हदीस शरीफ़👇
يا ابا صل اصلاة لو قتها،
तर्जमा
ऐ अबू ज़र नमाज़ उसके वक़्त पर अदा कर,
📚 रवाह अहमद फ़ी मसनद अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(11) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ अबू राफ़े मदीना के हर कुत्ते को क़त्ल करदे,
📚 रवाह अहमद अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(12) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ अबू सईद तेरे ख़ाने को मुत्तकी ही ख़ाए,
📚 रवाह हाकिमुत्तिर्मिज़ी फ़िलन्नवादिर अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(13) हदीस शरीफ़👇
يا ابا عمير ما فعل النغير،
तर्जमा
ऐ अबू अमीर क्या हुआ नग़ीर परिन्दा,
📚 रवाहुत्तिबरानी व अहमद अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(14) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ अबू फ़ातिमा अगर तू मुझसे मुलाक़ात करना चाहती है तो सजदे ब कसरत कर,
📚 रवाह अहमद फ़ी मसनद अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(15) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ अबू हुरैरह जब तू वुज़ू करे-तो बिस्मिल्लाह पढ़,
📚 रवाहुत्तिबरानी फ़ी अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(16) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ अबू हुरैरह कल्मा ए शहादत ब कसरत पढ़ और तजदीदे इस्लाम किया कर,
📚 रवाहुद्देलमी फ़ी मसनदुल फ़िरदौस अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(17) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ भाई ऐ उमर तू हमें अपनी दुआ से ना भुलाना,
📚 रवाह अहमद फ़ी मसनद अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(18) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ इब्ने अब्बास जब तू क़िराअत करे तो तर्तील करना,
📚 रवाहुद्देलमी फ़ी मसनदुल फ़िरदौस अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(19) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा
ऐ सअद तीर अंदाज़ी कर-तुझ पर मेरे बाप मां फ़िदा हों,
📚 रवाहुल बुख़ारी अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 205)
(20) हदीस शरीफ़👇
يا عاىشه اطمى و لايحصى فيحصى الله عليك،
तर्जमा
ऐ आयशा दे और शुमार न कर-अल्लाह शुमार न करेगा तुझ पर,
📚 रवाह अहमद फ़ी मसनद अज़ कन्ज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 205)
(21) हदीस शरीफ़👇
हज़रत उस्मान बिन हनीफ़ से मरवी है के
बेशक एक नाबीना ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह अल्लाह से दुआ कीजिए के मेरी आंख़ को बीना करदे
फ़रमाया
जाकर वुज़ू करो फिर दो रकअत नमाज़ पढ़ो फिर कहो ऐ अल्लाह में तुझसे सवाल करता हूं, और ब वसीला मुहम्मद नबी उर्रहमत के तेरी तरफ़ मुतवज्जेह होता हूं
या रसूलल्लाह में तुम्हारे रब की तरफ़ आपके वसीला से मुतवज्जेह हो कर ये चाहता हूं के मेरी आंखें खुल जाएं,
📚 अज़ शरह शिफ़ा, जिल्द 1, सफ़ह 653)
(22) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा से मरवी है के
रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम हमें तश्हहुद *अत्तहीयात* इस तरह सिखाते थे जिस तरह क़ुरआन की सूरह सिखाते थे और तश्हहुद में ये है के *सलाम हो तुम पर ऐं नबी*
📚 अज़ मिश्कात शरीफ़, सफ़ह 58)
इन तमाम आहादीसे मुक़द्दसा से साबित हुआ के हुज़ूर सैय्यद आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम अपने सहाबा ए किराम अलैहिमुर्रिज़वान को लफ़्ज़े *या* कहकर ख़िताब फ़रमाते और सहाबा ए किराम भी एक दूसरे को लफ़्ज़े *या* कहकर पुकारते थे और यही अक़ीदा व अमल हम अहले सुन्नत व जमाअत जिसको पहचान के लिए *मसलक ए आला हज़रत* कहा जाता है, का भी है,
लिहाज़ा साबित हुआ के अक़ीदा ए अहले सुन्नत क़ुरआन व हदीस शरीफ़ के मुवाफ़िक़ सही व हक़ है और अक़ीदा ए वहाबिया हुज़ूर अलैहिस्सलाम और सहाबा ए किराम के ख़िलाफ़ है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान आने वाली पोस्ट में आप देखेंगे *अक़वाल ए सलफ़ व ख़लफ़, की रोशनी में अक़ीदा ए अहले सुन्नत*
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.9*
*मसअला ए निदा, क़िस्त.2*👇
वहाबी देवबंदीयों का अक़ीदा है के किसी नबी या वली को *या* कहकर पुकारना शिर्क है मसलन *या रसूलल्लाह* पुकारना और *या ग़रीब नवाज़* पुकारना वग़ैरह, और जो ये कहे के या रसूलल्लाह या ग़रीब नवाज़ पुकारना सही हैं तो वो मुशरिक यानी काफ़िर हो जाता है जैसा के आपने पोस्ट नंबर 44, में देवबंदी वहाबियों की किताबों के हवाले से पढ़ा जिसका जवाब हमने क़ुरआन मजीद की आयाते करीमा से दिया अब आईये अक़ीदा ए अहले सुन्नत के दलाइल आहादीसे मुक़द्दसा से मुलाहिज़ा फ़रमाइये👇
अहले सुन्नत का अक़ीदा है के अल्लाह तआला के महबूब बन्दों को या कहकर पुकारना सही व हक़ है और क़ुरआन मजीद और हदीस शरीफ़ से साबित हैं
*दलाइल अज़ आहादीसे मुक़द्दसा👇*
(1) हदीस शरीफ़👇
हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया
يا ابابكران الله سماك والصديق،
तर्जमा👇
ऐ अबू बकर अल्लाह ने तेरा नाम सिद्दीक़ रखा है,
📚 रवाहुद्देलमी मुसनदे फ़िरदौस अज़ कनज़ुल हक़ाइक़, जिल्द 2,सफ़ह 204)
(2) हदीस शरीफ़👇
सरकार ए दो आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
يا ابابكرانت عتيق الله من النار،
तर्जमा👇
ऐ अबू बकर तू दोज़ख़ से आज़ाद शुदा है,
📚 रवाहुल हाकिम फ़िलमुस्तदर्क अज़ कनज़ुल हक़ाइक़, जिल्द 2 सफ़ह 204)
(3) हदीस शरीफ़👇
नबी ए करीम अलैहिस्सलातू व तस्लीम ने फ़रमाया
يا ابابكر عليك بصدق الحديث،
तर्जमा👇
ऐ अबू बकर तू सच को लाज़िम पकड़,
📚 मुसनदे फ़िरदौस अज़ कनज़ुल हक़ाइक़, जिल्द 2 सफ़ह 204)
(4) हदीस शरीफ़👇
तर्जमा👇
ऐ अबू बकर तेरा ख़्याल है उन दो के साथ जिनका तीसरा अल्लाह है,
📚 रवाहुस्सहीनीन अज़ कनज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(5) हदीस शरीफ़👇
महबूब ए ख़ुदा सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
तर्जमा👇
ऐ अबू बकर ये जिबरील हैं, तुझे अल्लाह तरफ़ से सलाम कहते हैं,
📚 रवाहुत्तिबरानी अज़ कनज़ुल हक़ाइक़, जिल्द 2 सफ़ह 204)
(6) हदीस शरीफ़👇
आक़ा ए दो जहां ने फ़रमाया
तर्जमा👇
ऐ अबू दरदा शबे जुमा को क़यामुल्लैल के साथ ख़ास मत कर,
📚 रवाह अहमद फ़ी मसनद अज़ कनज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
(7) हदीस शरीफ़👇
सरवर ए कायनात सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
يا ابا دوس اياك و مشاورةالنساء،
तर्जमा👇
ऐ अबू दोस तू अपने आप को औरतों के मशवरा से बचा,
📚 रवाहुत्तिबरानी अज़ कनज़ुल हक़ाइक़ जिल्द 2 सफ़ह 204)
जब हुज़ूर अलैहिस्सलातू व तस्लीम अपने सहाबा ए किराम से *या* कहकर ख़िताब फ़रमा रहे हैं तो फिर हम मुसलमान अपने आक़ा ए कायनात सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम और तमाम बुज़ुर्गान ए दीन को *या* कहकर क्यों नहीं पुकार सकते कोई पूछे तो सही इन वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस ख़बीसों से,
इन तमाम आहादीसे मुक़द्दसा से साबित हुआ के अल्लाह के महबूब बन्दों को या कहकर पुकारना क़ुरआन मजीद और हदीस शरीफ़ से साबित है इसके बाद कुछ और हदीस शरीफ़ पेश की जाएंगी आप मैसेज पढ़ते रहिए............
इन्शा अल्लाहुर्रहमान बाक़ी आने वाली पोस्ट में मुलाहिज़ा फ़रमाइये,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट.नं. 8*
*मसअला ए निदा, क़िस्त.1*
अक़ीदा ए वहाबिया👇
ये है के किसी ग़ैर ख़ुदा नबी वली तक को *या* कहकर पुकारना शिर्क है चुनाचे 📕तक़्वियतुल ईमान, में है
किसी अम्बिया और औलिया की पीर व शहीद की भूत व परी की ये शान नहीं जो कोई किसी को ऐसा तसर्रुफ़ साबित करे और उससे मुरादें मांगे और इस तौक़अ पर नज़्र व नियाज़ करे और उसकी मन्नतें माने और उसको मुसीबत के वक़्त पुकारे सो वो मुशरिक हो जाता है,
📕तक़्वियतुल ईमान, सफ़ह 11) लेखक वहाबी मौलवी इस्माईल देहेलवी,
वहाबी देवबंदीयों के मौलवी रशीद अहमद गंगोही अपने फ़तावा में लिखता है👇
वज़ीफ़ा या शैख़ अब्दुल क़ादिर का बन्दा अच्छा नहीं जानता अगरचे शिर्क नहीं लेकिन मुशाबा बशिर्क है,
📕 फ़तावा रशीदिया, जिल्द 1, सफ़ह 29/30)
यही मौलवी लिखता है👇
या रसूलल्लाह कहना भी नाजाइज़ होगा और अगर ये अक़ीदा करके कहे के वो दूर से सुनते हैं ब सबब इल्म ए ग़ैब के तो ख़ुद कुफ़्र है,
📕 फ़तावा रशीदिया जिल्द 3, सफ़ह 7) लेखक रशीद अहमद गंगोही,
👆ये है अक़ीदा ए वहाबिया जो अंग्रेजों के हाथ पर बिककर इन लोगों ने बनाया, चंद रुपयों के लालच में अपना ईमान ही बेच दिया,
अब आईये अक़ीदा ए अहले सुन्नत व जमाअत जिसको पहचान के लिए *मसलक ए आलाहज़रत* कहा जाता है देखिए👇
अक़ीदा ए अहले सुन्नत
ये है के निदा ए ग़ैरुल्लाह सही व जाइज़ है और इस पर उम्मत का अमल है और इसको शिर्क कहना ग़लत है,
दलाइल अज़ आयाते क़ुरआन👇
(1) आयत तर्जमा👇
يا ادم انبهم باسماىهم،
ऐ आदम बतादे उन्हें सब अश्या के नाम,
📚 सूरह बक़र पारा 1, रुकू 4)
(2) आयत तर्जमा👇
ऐ आदम तू और तेरी बीबी इस जन्नत में रहो,
📚 सूरह बक़र पारा 1 रुकू 4)
(3) आयत तर्जमा👇
ऐ नूह कश्ती से उतर हमारी तरफ़ से सलाम और बरकतों के साथ,
📚 सूरह हूद, पारा 12, रुकू 4)
(4) आयत तर्जमा👇
ऐ मूसा बेशक में ही हूं अल्लाह रब सारे जहानों का,
📚 क़सस, पारा 20, रुकू 7)
(5) आयत तर्जमा👇
ऐ इब्राहीम इस ख़्याल में ना पड़ो,
📚 सूरह हूद, पारा 12 रुकू 7)
(6) आयत तर्जमा👇
ऐ ईसा में तुझे पूरी उम्र तक पहुंचा दूंगा और तुझे अपनी तरफ़ उठा लूंगा,
📚 सूरह आले इमरान, पारा 3, रुकू 6)
(7) आयत तर्जमा👇
ऐ रसूल पहुंचा दो जो कुछ उतरा तुम्हें तुम्हारे रब की तरफ़ से,
📚 सूरह मायदा, पारा 6, रुकू 13)
(8) आयत तर्जमा👇
ऐ नबी हमने तुम्हें गवाह बनाकर भेजा,
📚 क़ुरआन मजीद,
(9) आयत तर्जमा👇
ऐ आग होजा ठंडी और सलामती इब्राहीम पर,
📚 सूरह अम्बिया, पारा 17, रुकू 5)
(10) आयत तर्जमा👇
ऐ ज़मीन अपना पानी निगल ले,
📚 सूरह हूद, पारा 12 रुकू 4)
(11) आयत तर्जमा👇
ऐ आसमान थम जा,
📚 सूरह हूद पारा 12 रुकू 4)
(12) आयत तर्जमा👇
ऐ पहाड़ उसके साथ अल्लाह की तरफ़ रुजू कर और ऐ परिंदो,
📚 सूरह सबा, पारा 22, रुकू 7)
(13) आयत तर्जमा👇
يايهاالذين امنو استعينو بلصبر و اصلوة،
ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो,
📚 सूरह बक़र पारा 2 रुकू 3)
(14) आयत तर्जमा👇
ऐ लोगो अपने रब से डरो, बेशक क़ियामत का ज़लज़ला बड़ी सख़्त चीज़ है,
📚 सूरह हिजर पारा 17, रुकू 1)
इन तमाम ही आयतों में रब तआला ने अपने नबीयों और ज़मीन पहाड़ और ईमान वालो को *या* कहकर पुकारा *या* का तर्जमा *ऐ* होता है तो साबित हुआ के अल्लाह के महबूब बन्दों को *या* कहकर पुकारना क़ुरआन के मुवाफ़िक़ सही व जाइज़ है, और अक़ीदा ए वहाबिया ग़लत व बातिल है,)
इन्शा अल्लाहुर्रहमान
इस पोस्ट के बाद अक़ीदा ए अहले सुन्नत के दलाइल आहादीसे मुक़द्दसा से मुलाहिज़ा फ़रमाइयेगा,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.7*
*मसअला ए तवस्सुल, (वसीला) क़िस्त.4*
दलाइल अज़ इज्मा व अक़वाले सलफ़ व ख़लफ👇
(1) हज़रत अल्लामा अहमद सावी,
📚 तफ़्सीरे सावी, में फ़रमाते हैं👇
हज़राते अम्बिया अपनी उम्मतों के लिए वसाइत़ और वसीले हैं हर शैय में और उनका वासत़ा और वसीला रसूलल्लाह सललल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम हैं,
📚 अज़ तफ़्सीरे सावी, जिल्द 1,सफ़ह 107)
(2) इसी तफ़्सीरे सावी में है👇
हुज़ूर अलैहिस्सलाम हर वास्ता का वास्ता हैं, यहां तक के आदम अलैहिस्सलाम के,
📚 अज़ तफ़्सीरे सावी, जिल्द 1 सफ़ह 22)
(3) शैख़ुल इस्लाम हज़रत अल्लामा समहूवी
📚 वफ़ाउल वफ़ा, में फ़रमाते हैं👇
हमेशा से लोग उल्मा और शुहदा सालेहीन की क़बरों से तबर्रुक हासिल करते रहे और सैय्यदना हम्ज़ा बिन मुत्तलिब की क़बर की मिट्टी पहले से उठाते रहे,
📚 अज़ वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 1 सफ़ह 82)
(4) यही हज़रत अल्लामा इसी में फ़रमाते हैं👇
हुज़ूर नबी ए करीम सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम से फ़रयाद तलब करना और सिफ़ारिश करना उनके वसीले और बरकत से दरगाहे इलाही में हज़राते अम्बिया व मुरसलीन और सलफ़ व सालेहीन के फ़ैएल और आदत से साबित है और हर हाल में क़ब्ल वुजूदे पाक और बअद वुजूद शरीफ़ ज़माना ए हयात और बअदे वफ़ात वाक़े है, और अर्सा क़ियामत में होगा,
📚 वफ़ाउल वफ़ा, जिल्द 2, सफ़ह 419)
(5) शैख़ुल इस्लाम साहिबे सीरतुन्नबी, अल्लामा अहमद बिन दहलां
📚 अद्दारुस्सुन्नियह, में फ़रमाते हैं👇
अहले सुन्नत का तवस्सुल पर इज्मा साबित हो चुका है,
📚 अज़ अद्दारुस्सुन्नियह, मिसरी, सफ़ह 40)
(6) शैख़े मुहक़्क़िक़े देहलवी
📚 जज़्बुल क़ुलूब, में फ़रमाते हैं👇
वसीला चाहना और मदद तलब करना हुज़ूर सैय्यदुल मुरसलीन सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम से ब इज्मा ए उल्मा ए दीन क़ौलन और फ़ैएलन अफ़ज़ल सुन्नत और मुअक्किद मुस्तहब है,
📚 अज़ जज़्बुल क़ुलूब, सफ़ह 149)
(7) यही शैख़ इसी में फ़रमाते हैं👇
हुज़ूर अलैहिस्सलाम से तवस्सुल हाजत पूरी होने का सबब और मुराद हासिल हो जाने का मोजिब है,
📚 अज़ जज़्बुल क़ुलूब, सफ़ह 158)
अल हासिल अक़ीदा ए अहले सुन्नत इन कसीर आयात व आहादीस व तफ़ासीर और अक़वाल के मुवाफ़िक़ है और अक़ीदा ए वहाबिया इन सबके ख़िलाफ़ है और इस्लाम के हर सह दलाइल क़ुरआन व हदीस और इज्मा सब ही के मुख़ालिफ़ है,
तो उसके ग़लत व बातिल होने के लिए यही बात बहुत काफ़ी है,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.6*
*मसअला ए तवस्सुल, क़िस्त.3*
दलाइल अज़ आहादीस👇
(4) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अब्दुल्लाह से मरवी है उन्होंने फ़रमाया के
मेंने हज़रत इब्ने उमर से अबू तालिब का ये शअर सुना
और क़सम है उस गौरे चहरे की जिसके वसीले से बादल से सैराबी तलब की जाती है जो यतीमों का मावा और ख़ाकसारों की पनाह है,
उमर बिन हम्ज़ा ने कहा के हमसे सालिम ने हदीस बयान की के बसा औक़ात में शाइर का ये ज़िक्र करता और नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के चहरे की तरफ़ नज़र करके सैराबी तलब की जाती तो बारिश होने लगती यहां तक के हर परनाला बहने लगता,
📚 अज़ बुख़ारी शरीफ़, बाब 4, सफ़ह 137)
(5) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अनस बिन मालिक से मरवी उन्होंने कहा के
एक शख़्स रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ करने लगा,
या रसूलल्लाह जानवर हिलाक होने लगे और रास्ते बन्द हो गए अल्लाह से दुआ कीजिए तो हुज़ूर ने अल्लाह से दुआ की तो जुमा से जुमा तक एक हफ़्ता बराबर हम पर बारिश हुई तो वही शख़्स फिर ख़िदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ करने लगा या रसूलल्लाह मकानात 🏠 गिरने लगे और रास्ते बन्द हो गए और जानवर मरने लगे तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने ये दुआ की के
ऐ अल्लाह पहाड़ों और टीलों की चोटियों पर बरसा और वादियों और बाग़ों में बारिश कर तो वो अब्र (बादल का टुकड़ा) शहरे मदीना से हट गया जैसे कपड़ा फट जाता है,
📚 अज़ बुख़ारी शरीफ़, जिल्द 1, बाब 4 सफ़ह 139)
(6) हदीस शरीफ़👇
हज़रत साअद से मरवी के
तुम नहीं मदद किए जाते मगर ब वसीला अपने कमज़ोरों के उनकी दुआ व इख़्लास की बिना पर,
📚 अज़ जामे सग़ीर, जिल्द 2, सफ़ह 183)
(7) हदीस शरीफ़👇
मुहम्मद बिन हर्ब से मरवी, उन्होंने कहा के में नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के मज़ार पर हाज़िर हुआ, और बैठ गया, तो एक ऐराबी बदवी आया, और उसने अर्ज़ किया ऐ बेहतरीन मुरसलीन अल्लाह ने तुम पर सच्ची किताब नाज़िल फ़रमाई और उसमें ये फ़रमाया
*तर्जमा👇
अगर वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें फिर तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों और अल्लाह से मुआफ़ी चाहें, और रसूल उनके लिए सिफ़ारिश करें तो अल्लाह को बहुत ज़रूर बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पाएंगे,
तो में आपके हुज़ूर अपने गुनाह से मग़फ़िरत तलब करने के लिए हाज़िर हुआ हूं और अपने रब की तरफ़ आपके वसीला से सिफ़ारिश चाहता हूं और उसने ये शअर पढ़ा,
ऐ बेहतर उन सबसे जो ज़ेरे ज़मीन मदफ़ून हों तो उनकी ख़ुशबू से गोरिस्तान मुअत्तर हो जाए मेरी जान उस क़ब्र पर क़ुर्बान हो जिसमें आप हैं उसमें है जूदो ऐफ़ाफ़ और करम ऐ जाने पाक,
फिर वो ऐराबी क़ब्र शरीफ़ के नज़दीक खड़ा रहा और उसने कहा ऐ अल्लाह तूने ग़ुलाम आज़ाद करने का हुक्म दिया है और ये तेरे हबीब हैं और में तेरा बन्दा हूं तू मुझे दोज़ख़ से आज़ाद कर अपने हबीब के मज़ार ही पर तो मुझे एक हातिफ़ ने आवाज़ दी ऐ शख़्स तू आज़ादी मांगता है फ़क़त एक अपनी तूने तमाम तमाम मख़्लूक़ के लिए क्यों नहीं सवाल किया जाओ हमने तुझे आज़ाद कर दिया दोज़ख़ से,
📚 अज़ बुख़ारी शरीफ़,
📚इब्ने असाकिर,
📚 अज़ मवाहिबुद्दुनियां, जिल्द 2 सफ़ह 388)
इन्शा अल्लाहुर्रहमान पोस्ट जारी रहेगी,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट. नं.5*
*मसअला ए तवस्सुल (वसीला) क़िस्त. 2*
वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस का अक़ीदा है के किसी नबी या वली का वसीला लेना शिर्क है यानी जो कोई किसी का वसीला ले तो वो मुशरिक यानी काफ़िर हो जाएगा,
*मअज़ अल्लाही रब्बिल आलमीन*
जैसा के आपने पोस्ट नंबर 40, में इन्हीं की किताबों के हवाले से पढ़ा,
अब आईये
अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा आहादीसे मुक़द्दसा से मुलाहिज़ा फ़रमाइये
दलाइल अज़ आहादीस👇
(1) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अनस रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है के
बेशक हज़रत उमर बिन ख़त़्त़ाब रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह ने क़हतसाली में इस तरह दुआ की
ऐ अल्लाह हम तेरी तरफ़ अपने नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम का वसीला किया करते थे तू हमें सैराब करता और अब हम तेरी तरफ़ अपने नबी के चचा हज़रत अब्बास का वसीला करते हैं तू हमें सैराब करदे (यानी बारिश करदे)
कहा रावी ने तो वो सैराब करदिए गए,
📚 अज़ बुख़ारी शरीफ़, जिल्द 1, बाब 4, सफ़ह 137)
(2) हदीस शरीफ़👇
हज़रत उस्मान बिन हनीफ़ रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है के
एक मर्द कमज़ोर बीनाई का (कमज़ोर नज़र वाला) नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और उसने कहा के अल्लाह से ये दुआ कीजिए के वो मुझे इस मजबूरी से आफ़ियत दे,
फ़रमाया अगर तू चाहता है तो में दुआ करूं और अगर तू चाहे तो सब्र कर के ये तेरे लिए बेहतर है
अर्ज़ किया के हुज़ूर दुआ करो
रावी ने कहा के हुज़ूर ने उसको वुज़ू करने का हुक्म दिया के वो अच्छी तरह वुज़ू करे और ये दुआ करे
ऐ अल्लाह में तुझसे सवाल करता हूं और तेरी तरफ़ तेरे नबी ए रहमत मुहम्मद के वसीला से मुतवज्जह होता हूं,
ऐं नबी में तुम्हारे वसीला से अपने रब की तरफ़ अपनी इस हाजत में मुतवज्जह होता हूं ताके मेरी हाजत रवाई हो जाए,
📚 अज़ तिर्मिज़ी शरीफ़, जिल्द 2, सफ़ह 55)
(3) हदीस शरीफ़👇
हज़रत उमर बिन ख़त़्त़ाब रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है उन्होंने कहा के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के जब आदम अलैहिस्सलाम ख़ता से मुलव्विस हुए तो उन्होंने अर्ज़ की
ऐ रब में तुझसे ब वसीला मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम) के सवाल करता हूं के तू मेरी मग़फ़िरत करदे
अल्लाह तआला ने फ़रमाया ऐ आदम तूने मुहम्मद(सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम) को कैसे पहचाना के मेंने उन्हें अभी पैदा भी नहीं किया है अर्ज़ किया के ऐ रब जब तूने मुझे पैदा किया और मेरे अंदर अपनी तरफ़ से रूह फ़ूंकी तो मेंने अपना सर उठाया तो मेंने अर्श के पायों पर लिखा हुआ देखा
لااله الا الله محمد رسول الله،
ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह,
तो मेंने जान लिया के तूने अपने नाम के साथ अपने महबूब मख़्लूक़ का नाम मिलाया है तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया ऐं आदम तूने सच कहा वो मेरे नज़दीक मख़्लूक़ में सबसे ज़्यादा महबूब है जब तूने उनके तवस्सुल (वसीला) से सवाल किया है तो मेंने तेरी मग़फ़िरत करदी अगर मुहम्मद सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम न होते तो में तुझको पैदा न करता,
📚 बहक़ी,
📚 हाकिम,
📚 अज़ मवाहिबुद्दुनियां, जिल्द 1 सफ़ह 12)
ग़ौर करने का मुक़ाम है के अगर हमारे हुज़ूर सैयद आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ना होते तो कायनात भी ना होती यानी कोई इंसान ही ना होता,
तो कितना बड़ा अहसान है हमारे हुज़ूर का हम पर,
इसीलिए सरकार आलाहज़रत फ़रमाते हैं👇
*वो ना थे तो कुछ ना था वो ना हों तो कुछ ना हो*
*जान हैं वो जहान की जान है तो जहान है*
(सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम)
मगर फिर भी अपने नबी के गुस्ताख़ व गद्दार व अहसान फरामोश हैं वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस,
जब सारे इंसानों के बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की मग़फ़िरत हमारे हुज़ूर सैयद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के वसीला से हुई तो फिर हम मुसलमानों को चाहिए के अपने आक़ा के वसीला से दुआ किया करें और उनकी फ़रमाबरदारी करें और उनसे सच्ची मुहब्बत करें उनके दुश्मनों से दूर रहें क्योंके ये वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस हम मुसलमानों के दिलों से हमारे हुज़ूर सैयद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत निकालना चाहते हैं इसीलिए वसीला का इन्कार करते हैं,
इसीलिए शसज़ादा ए आलाहज़रत हुज़ूर मुफ़्ती ए आज़म हिन्द हज़रत मुस्तफ़ा रज़ा ख़ांन अलैहिर्रहमतू व रिज़वान फ़रमाते हैं👇
*गर वसले मौला चाहते हो तो वसीला ढूंडलो। बे वसीला नज्दियो हरग़िज़ ख़ुदा मिलता नहीं*
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.4*
*मसअला ए तवस्सुल,(वसीला) क़िस्त.1*
*अक़ीदा ए वहाबिया*👇
ये है के हज़राते अम्बिया व औलिया को वसीला न बनाए और अगर उनको वसीला और सिफ़ारशी समझें तो वो अबू जहल की बराबर मुशरिक है अल्लाह साहिब को के सब बादशाहों का बादशाह है पर और बादशाहों की तरह मग़रूर नहीं के कोई रियायती बेहतराही इल्तिजा करे उसकी तरफ़ मारे ग़ुरूर के ख़्याल नहीं करते इसलिए रियायती लोग और अमीरों को मानते हैं और उनका वसीला ढूंढते हैं ताके उन्हीं की ख़ातिर से इल्तिजा क़ुबूल होवे बल्के वो बड़ा रहीम व करीम है वहां किसी की वकालत (सिफ़ारिश) की हाजत (ज़रूरत) नहीं जो उसको याद रखे वो आप ही उसको याद रखता है कोई सिफ़ारिश करे या न करे,
📕 तक़्वियतुल ईमान, सफ़ह 38) लेखक वहाबी मौलवी इस्माईल देहेलवी,,
और यही मौलवी लिखता है👇
यानी जो लोग पुकारते हैं उनको अल्लाह ने कुछ क़ुदरत नहीं दी, ना फ़ायदा पहुंचाने की ना नुक़सान कर देने की और ये जो कहते हैं के ये बुज़ुर्ग हमारे सिफ़ारशी हैं अल्लाह के पास सो ये बात अल्लाह ने तो नहीं बताई,
📕 तक़्वियतुल ईमान, सफ़ह.6)
और लिखता है👇
सो जो कोई किसी से ये मुआमला करे गो के उसको अल्लाह का बन्दा व मख़्लूक़ ही समझे, सो अबू जहल और वो शिर्क में बराबर है,
📕 तक़्वियतुल ईमान, सफ़ह 8)
यानी ये वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस का पेशवा व ईमाम ये कह रहा है के अगर कोई किसी नबी या वली के वसीले से दुआ करे या उनको सिफ़ारशी माने तो वो अबू जहल की बराबर मुशरिक यानी शिर्क करने वाला है,
*मअज़ अल्लाही रब्बिल आलमीन*
दोस्तो ये तो वहाबियों का मुख़्तसर सा कुफ़्रिया अक़ीदा है जब्के इनके और मौलवियों ने भी बहुत सारे कुफ़्रियात अपनी अपनी किताबों में लिखे हैं, जिनको ये हक़ मानते हैं,
अब आप अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा मुलाहिज़ा फरमाएं👇
*अक़ीदा ए अहले सुन्नत व जमाअत*👇
ये है के हज़राते अम्बिया व औलिया दरगाहे इलाही में वसीला हैं और उनके तवस्सुल से दुआ जल्द क़ुबूल होती है इसके दलाइल (सुबूत) मुलाहिज़ा हों👇
अज़ आयाते क़ुरआनी👇
وابتغوا اليه الوسيله،
(1) तर्जमा👇
और ख़ुदा की तरफ़ वसीला ढूंडो,
📚 सूरह मायदा, पारा 6, आयत 35)
(2) तर्जमा👇
और वो उससे पहले इसी नबी के वसीले से काफ़िरों पर फ़तह मांगते थे,
📚 सूरह बक़र पारा 1, रुकू 11, आयत 89)
(3) तर्जमा👇
और अगर वो जब अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐं महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से मुआफ़ी चाहें और रसूल उसकी सिफ़ारिश फरमाएं तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पाएं,
📚 सूरह निसा, पारा 5, रुकू 6)
इन आयाते क़ुरआनी से साबित हुआ के अक़ीदा ए अहले सुन्नत व जमाअत जिसको पहचान के लिए *मसलक ए आलाहज़रत*
कहा जाता है का अक़ीदा क़ुरआन शरीफ़ के मुताबिक़ है और वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस का अक़ीदा क़ुरआन के ख़िलाफ़ व बातिल है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान
पोस्ट जारी रहेगी,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट.3*
*मसअला ए तसर्रुफ़, क़िस्त.4*
दलाइल अज़ अक़वाले सलफ़ व ख़लफ़👇
(1) हज़रत अल्लामा अली क़ारी रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह
📚 शरह शिफ़ा, में फ़रमाते हैं👇
यानी हुज़ूर ने फ़रमाया मुझे ज़मीन के ख़ज़ानों की कुंजियां देदी गईं फिर मेरे हाथ में रखदी गईं,
यानी मेरे तसर्रुफ़ और मेरी उम्मत के तसर्रुफ़ में करदी गईं,
📚 अज़ शरह शिफ़ा, मिसरी, जिल्द 1, सफ़ह 218)
(2) हज़रत शैख़े मुहक़्क़िक़
📚 मदरिजुन्नबूव्वह, में फ़रमाते हैं👇
हुज़ूर के ख़ुसूसियात में से ये है के आपको ख़ज़ानों की कुंजियां देदी गईं इसका ज़ाहिर तो ये है के रूम व फ़ारस के सलातीन के ख़ज़ाने सहाबा के क़ब्ज़ा में आए और बातिन ये है के आलम की जिन्सों के ख़ज़ाने मुराद हैं के सबका रिज़्क़ आपके दस्ते अक़दस में देदिया गया और ज़ाहिर व बातिन की तरबियत सब आपको देदी गई जैसे ग़ैब की कुंजियां इल्मे इलाही में हैं उनको सिवा उसके कोई नहीं जानता रिज़्क़ के ख़ज़ानों की कुंजियां और उनको तक़सीम करना इस सैय्यदुल अम्बिया के क़ब्ज़ा में रखा,
📚 अज़ मदारिजुन्नबूव्वह, जिल्द 1 सफ़ह 139)
(3) इसी 📚मदारिजुन्नबूव्वह, में हैं👇
शारअ अलैहिस्सलाम को ये हक़ हासिल है के वो जिसको चाहें ख़ास करदें,
📚 अज़ मदारिजुन्नबूव्वह जिल्द 1 सफ़ह 157)
(4) हज़रत अल्लामा इब्ने हजर मक्की रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह
📚 फ़तावा हदीसियह, में फ़रमाते हैं👇
औलिया के मख़्लूक़ को नफ़ा पहुंचाने से ये भी है के उनकी बरकत से लोगों पर बारिश होती है और फ़साद दफ़ा होता है वरना ज़मीन फ़ासिद हो जाए,
📚 अज़ फ़तावा हदीसियह, सफ़ह 221)
इस क़ौल से मालूम हुआ के ज़मीन पर अगर कोई अल्लाह का वली न हो तो सारी दुनियां में दंगा फ़साद क़त्लो ग़ारत आम हो जाए लेकिन रब्बे कायनात का फ़ज़्ल व करम है के उसने हम पर रहम फ़रमाया और अपने महबूब बन्दों को हमारे दरम्यान रखा जिनकी बरकत से हम तमाम मुसीबतों से बचे हुए हैं,
मगर ये नमक हराम वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस हम मुसलमानों के दिलों से हुज़ूर अलैहिस्सलाम और औलिया ए किराम की मुहब्बत निकालने में रात दिन लगे हुए हैं,
इसीलिए ये मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन हैं,
(5) आरिफ़े बिल्लाह हज़रत अल्लामा अहमद सावी
📚 तफ़्सीरे सावी, में फ़रमाते हैं👇
पस जिसने गुमान किया के नबी और लोगों की बराबर हैं किसी चीज़ के मालिक नहीं न उनसे नफ़ा पहुंचता है ना ज़ाहिर तौर पर ना बातिन तौर पर तो वो काफ़िर है और उसकी दुनियां व आख़िरत बरबाद है,
📚 अज़ तफ़्सीरे सावी, जिल्द 1 सफ़ह 158)
इस तफ़्सीर से मालूम हुआ के जो नबी को अपनी तरह कहे या ये कहे के नबी वली किसी को फ़ायदा नहीं पहुंचाते, तो ऐसा कहने वाला काफ़िर है,
इसीलिए वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस काफ़िर हैं क्योंके इनके बड़े गुरु इस्माईल देहेलवी ने अपनी किताब
📕 तक़्वियतुल ईमान, में लिख मारा जिसका हवाला पोस्ट नंबर 36, में दिया गया है जिसको देखना हो वो फेसबुक पर देख सकते हैं, फेसबुक लिंक नीचे दिया गया है,
अल हासिल ये आयात व आहादीस व अक़वाल तफ़ासीर अक़ीदा ए अहले सुन्नत के मुवाफ़िक़ हैं
और अक़ीदा ए वहाबिया इन सब आयात व आहादीस व अक़वाल व तफ़ासीर के ख़िलाफ़ है
और तसर्रुफ़ की क़ुदरत अल्लाह तआला ने हज़रात अम्बिया व औलिया को अता फ़रमाई, और वो उस क़ुदरत से आलम में तसर्रुफ़ करते हैं और जो उनको ऐसी ताक़त ना माने और उनसे नफ़ा न समझे तो वो हज़रत अल्लामा सावी रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह के हुक्म से काफ़िर है
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.2*
*मसअला ए तसर्रुफ़, क़िस्त. 3*
अक़ाइद ए अहले सुन्नत के दलाइल हदीस शरीफ़ से मुलाहिज़ा फ़रमाइये👇
(1) हदीस शरीफ़👇
नबी ए करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने फ़रमाया
मुझे ज़मीन के ख़ज़ानों की कुंजियां अता फ़रमा दी गईं,
📚 अज़ बुख़ारी शरीफ़, मुज्तबाई, जिल्द 1, सफ़ह 508)
(2) हदीस शरीफ़👇
रसूल ए अकरम सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने फ़रमाया
में जवामे कलम के साथ मबऊस किया गया और रोओब के साथ मेरी मदद की गई और में सोने वाला था के मेंने देखा के ज़मीन के ख़ज़ानों की कुंजियां मुझे देदी गईं और मेरे हाथों में रखदी गईं,
📚 अज़ मिश्कात शरीफ़, सफ़ह 512)
(3) हज़रत अली रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है के हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया
मुझे वो अता किया गया जो मुझसे पहले किसी नबी को अता ना हुआ,
मेरी रोओब के साथ मदद की गई और मुझे ज़मीन की कुंजियां अता की गईं और मेरा नाम अहमद रखा गया और मेरे लिए मिट्टी को पाक करने वाला किया गया और मेरी उम्मत बेहतरीन उम्मत बनाई गई,
📚 मसनदे अज़ जामे सगीर, जिल्द 1 सफ़ह 38)
(4) हदीस शरीफ़👇
हज़रत जाबिर रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है के हुज़ूर सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने फ़रमाया के
मुझे दुनियां की कुंजियां अबलक़ (सबसे बेहतरीन) घोड़े पर सवार करके दी गईं उसको जिबरील मेरे पास लाए जिसपर रेशमी सुन्दुस की चादर थी,
📚 मसनदे अहमद अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 7)
(5) हदीस शरीफ़👇
हज़रत इब्ने उमर रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा से मरवी है के हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया
बेशक अल्लाह तआला के कुछ बन्दे हैं जिन्हें लोगों की हाजतें (ज़रूरतें) पूरी करने के लिए ख़ास कर दिया गया है के लोग उनकी तरफ़ अपनी हाजतों में फ़रयाद करते हैं,
📚 तिब्रानी अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 78)
(6) हदीस शरीफ़👇
इन्हीं हज़रत इब्ने उमर रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा से मरवी है के हुज़ूर सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने फ़रमाया
मुझे हर चीज़ की कुंजियां देदी गईं,
📚 तिब्रारानी अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 92)
(7) हदीस शरीफ़👇
हज़रत इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है के हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने फ़रमाया
बेशक अल्लाह तआला के कुछ फ़िरिश्ते हैं जो ज़मीन की सैर करते हैं मुझे मेरी उम्मत का सलाम पहुंचाते हैं,
📚 मुसनदे अहमद,
📚 निसाई, अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 78)
(8) हदीस शरीफ़👇
हज़रत अम्मार बिन यासिर रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है के हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया
बेशक अल्लाह तआला का एक फ़िरिश्ता है जिसे लोगों की आवाज़ सुनने की त़ाक़त अता फ़रमाई है तो जो कोई भी मुझ पर दुरूद पढ़ता है तो वो उसे मुझको पहुंचा देता है,
📚 तिब्रानी अज़ जामे सगीर जिल्द 1 सफ़ह 18)
(9) हदीस शरीफ़👇
हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ीअल्लाहू तआला अन्हा से मरवी है के हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने फ़रमाया
ऐ आयशा अगर में चाहूं तो मेरे साथ सोने के पहाड़ चला करें,
📚 रवाह फ़ी शरह्हुस्सुन्नह अज़ मिश्कात शरीफ़, सफ़ह 521)
(10) हदीस शरीफ़👇
हज़रत सोबान रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है उन्होंने कहा के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने फ़रमाया के
मुझे दो ख़ज़ाने सुर्ख़ व सफ़ेद अता करदिए गए,
📗 अज़ मिश्कात शरीफ़ सफ़ह 512)
देखा आपने हुज़ूर सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम तो फ़रमा रहे हैं के मुझे और मेरे शैदाइयों को तसर्रुफ़ करने की क़ुदरत दी गई है,
मगर अफ़सोस है अंग्रेजों के एजेंट वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस के बड़े बड़े मौलवियों की जानवरों से भी बदतर अक़्ल पर के उन्होंने चन्द रुपयों के लालच में अपना ईमान अंग्रेजों के हाथ बेच डाला, और अल्लाह तआला के महबूब बन्दों के तसर्रुफ़ का इन्कार कर दिया,
जैसा के आपने पोस्ट नंबर 36 में पढ़ा, और जिसने नहीं पढ़ा हो वो फेसबुक पर देख सकते हैं फेसबुक लिंक नीचे दिया गया है
लिहाज़ा ऐ सुन्नी भाईयो तुम इनसे बचकर रहना वरना ये लोग तुम्हें भी बदमज़हब बना देंगे,
*मअज़ अल्लाही रब्बिल आलमीन*
क्योंके जो जिसके साथ उठता बैठता है वो उसी की तरह हो जाता है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान पोस्ट जारी रहेगी,
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*फ़ैसला हक़ और बातिल, पोस्ट नं.1*
*मसअला ए तसर्रुफ़, क़िस्त.2*
अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा क़ुरआन ए पाक से साबित है
दलाइल अज़ आयात👇
अल्लाह तबारक व तआला इरशाद फ़रमाता है
(4) आयत तर्जमा👇
और जब मिट्टी से परिन्द की सी मूरत मेरे हुक्म से बनाता फिर उसमें फूंक मारता तो वो मेरे हुक्म से उड़ने लगती, और तू मादर ज़ाद अन्धे और सफ़ेद दाग़ वाले को लेकर मेरे हुक्म से शिफ़ा देता और जब तू मुर्दों को मेरे हुक्म से ज़िन्दा निकालता,
📚 सूरह माएदा, पारा 7, रुकू 5)
(5) आयत तर्जमा👇
और सुलेमान के लिए तेज़ हवा मुसख़्ख़र करदी के उसके हुक्म से चलती उस ज़मीन की तरफ़ जिसमें हमने बरकत रखी और हमको हर चीज़ मअलूम है,
📚 सूरह अम्बिया पारा 7, रुकू 6)
(6) आयत तर्जमा👇
(हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने)
अर्ज़ की ऐ मेरे रब मुझे बख़्श दे और मुझे ऐसी सल्तनत अता कर के मेरे बाद किसी को लायक़ ना हो बेशक तू ही बड़े दीन वाला तो हमने हवा उसके बस में करदी के उसके हुक्म से नरम नरम चलती जहां वो चाहता और देव (जिन्न) बस में करदिए हर मेमार और ग़ोता ख़ोर, और दूसरे और बेड़ियों में जकड़े हुए,
📚 अर्ज़, पारा 23, रुकू 12)
(7) आयत तर्जमा👇
तुम फ़रमाओ तुम्हें वफ़ात देता है मौत का फ़िरिश्ता जो तुम पर मुक़र्रर है,
📚 सूरह सजदा, पारा 21, रुकू 1)
(8) आयत तर्जमा👇
बस काम की तदबीर करने वालों फ़िरिश्तों की क़सम,
📚 सूरह ए नाज़आत, पारा 30, रुकू 1)
(9) आयत तर्जमा👇
(ईसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया) के में तुम्हारे लिए मिट्टी से परिन्द की सी मूरत बनाता हूं फिर उसमें फूंक मारता हूं तो वो फ़ौरन परिन्द हो जाती है अल्लाह के हुक्म से और तुम्हें शिफ़ा देता हूं मादर ज़ाद अन्धे और सफ़ेद दाग़ वाले को और में मुर्दे जिलाता हूं अल्लाह के हुक्म से और तुम्हें बताता जो तुम खाते और जो अपने घरों में जमा रखते हो, बेशक इन बातों में तुम्हारे लिए बड़ी निशानी है अगर तुम ईमान रखते हो,
📚 सूरह आले इमरान, पारा 3, रुकू 5)
(10) आयत तर्जमा👇
और उन्हें क्या बुरा लगा, यही न के अल्लाह व रसूल ने अपने फ़ज़्ल से ग़नी कर दिया,
📚 सूरह ए तौबा, पारा 10, रुकू 11)
(11) आयत तर्जमा👇
और ऐ महबूब याद करो जब तुम फ़रमाते थे, उससे जिसे अल्लाह ने नेमत दी, और तुमने उसे नेमत दी,
📚 सूरह ए अहराब, पारा 22, रुकू 10)
दलील के लिए
यूं तो ईमान वालों के लिए क़ुरआन मजीद की एक ही आयत कफ़ी है
लेकिन यहां तो हमारे बुजुर्गों ने 11, आयतें पेश करदीं
ये तो बहुत कम हैं अभी तो बेशुमार आयतें मौजूद हैं,
इन्हीं 11 आयाते क़ुरआनी से साबित हुआ के अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा सही व सालिम व हक़ है, के अल्लाह तआला ने अपने महबूब बन्दों को तसर्रुफ़ करने की क़ुदरत दी है,
और वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस का अक़ीदा बातिल है,
इन्शा अल्लाहुर्रहमान इसके बाद अक़ाइदे अहले सुन्नत व जमाअत जिसको पहचान के लिए मसलक ए आलाहज़रत कहा है का अक़ीदा हदीस शरीफ़ के हवाले से बताया जाएगा आप लगातार मैसेज पढ़ते रहिए
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