24/10/2020

अक़ाईद का बयान

 Last Part 14

‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*
+_____🕋🕋____________+
*अलग-अलग बातों का बयान पोस्ट(4)आख़िरी*
+_____📖📖____________+
सवाल- अमर बिन लुही ने यह बुत कहाँ से हासिल किया और उसका नाम क्या था?
*जवाब- मूलके शाम से हासिल किया और उसका नाम हुबल था वाकिया यह है कि किसी जरूरत से मुलके शाम पहुँचा तो वहाँ देखा की कौमे इमालका के कुछ लोग बुतों की इबादत करते हैं तो उसने उनसे पूछा की यह क्या है और इसे क्यों पूजते हो उन लोगों ने जवाब दिया यह बुत है और हम इसकी इबादत करते हैं इसका फ़ायदा यह है कि हम इनसे बारिस तलब करते हैं तो बारिस होती है और मदद तलब करते हैं तो हमारी मदद होती है अमर बिन लुही ने यह देखकर उनसे एक बुत माँग लिया ताकि सर ज़मीने अरब ले जाए और वहाँ के लोगों को उसकी इबादत का तरीक़ा बताएं इन लोगों ने एक बुत दे दिया जिसका नाम हुबल था अमर बिन लुही ने उस बुत को लाकर खानऐ काबा में लगा दिया और लोगों को उसकी इबादत का हुक़्म दिया उसी दिन से अरब में बुत परस्ती फैल गई।*
(सीरत हलबी जिल्द1 सफ़्हा12)

सवाल- इल्मे नहव को पैदा करने वाला कौन है।
*जवाब- हज़रत अली रादियल्लाहु अन्हु।*
(महाज़िरतुल अवाइल सफ्हा69)
*बाज़ कौल यह है कि अबुलअसवद दुईली ताबेई।*
(अस्सिर्रुल मकतूम सफ़्हा2)

सवाल- इल्मे मन्तिक को पैदा करने वाला कौन है?
*जवाब- इल्मे मन्तिक का बाज़ाब्ता जुहूर सबसे पहले हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम से हुआ, अल्लाह तआला ने आपको यह इल्म बतौरे मोजिज़ा अता फ़रमाया था फिर बाद में यूनानियो ने इल्म को अपनाया और यूनान ही के हकीम अस्रतु ने इस इल्म को जमा किया।*
(कुर्रतुलउयून सफ़्हा134)

सवाल- इल्मे जाफ़र को किसने ईज़ाद किया?
*जवाब- हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने।*
(तफ़्सीर नईमी पारा12 सफ़्हा33)

सवाल- इल्मे हिसाब और इल्मे नुजूम का मोदि कौन है?
*जवाब- हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम।*
(खाज़िन जिल्द4 सफ़्हा202)

सवाल- इल्मे सर्फ को किसने ईज़ाद किया?
*जवाब- मुआज़ बिन मुस्लिम ने।*
(महाज़िरतुल अवाइल सफ़्हा69)

सवाल- इल्में मआनी का मोज़िद(बनाने वाला)कौन है?
*जवाब- जाफ़र बिन यहया।*
(कुर्रतुल उयून सफ़्हा127)

सवाल- इल्में बयान का मोज़िद कौन है?
*जवाब- अबु उबैदा मुअम्मर बिन मुसन्ना तमीमी।*
(कुर्रतुल उयून सफ़्हा129)

सवाल- फफन्ने बदिअ का मोज़िद कौन है?
*जवाब- अब्दुल्लाह बिन अल्मुअतज़्ज़ुल मुतवक्किल।*
(कुर्रतुल उयून सफ़्हा131)

सवाल- इल्में उरूज़ और इल्में काफ़िया किसने ईज़ाद किया?
*जवाब- खलील बिन अहमद ने।*
(असि्सररूल मकतूम सफ़्हा2)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)


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Part 13

‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

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*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*
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*अलग-अलग बातों का बयान पोस्ट(3)*
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सवाल- मक़्के में हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ख़िलाफ़ किस घर में मीटिंग होती थीं उसका नाम क्या था?
*जवाब- दारुनन्दवा।*
(ज़रकानी जिल्द1 सफ्हा321)

सवाल- उसकी तामीर किसने की थी?
*जवाब- कुसई बिन किलाब ने।*
(सीरत हल्बी जिल्द1 सफ्हा14)

सवाल- बुत परस्ती की इब्तिदा कब से हुई?
*जवाब- हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के ज़माने से।*
(तफ़्सीर नईमी जिल्द12 सफ़्हा84)

सवाल- बुत परस्ती की शुरुआत किस चीज़ से हुई?
*जवाब- बुज़र्गों की तसवीर से हुई वाकिया यह हुआ की वद,सुवाअ,यगूस,यऊक,नसर जो हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की कौम के नेक व सालेह लोग थे जब उनका इन्तिक़ाल हुआ तो उनके रिश्तेदारों व दोस्तों और चाहने वालों को बहुत ज्यादा सदमा पहुँचा और वह इतने ग़मगीन हुए कि सब कारोबार छोड़कर उन्हें याद करने लगे तो एक दिन इबलीस लईन ने इन्सानी शक़्ल में आकर उनके मानने वालों से कहा कि तुम इन्सानी शक़्ल में आकर उसके मानने वालों से कहा कि तुम इनकी तसवीरें बनाकर उनकी मजलिसों में लगाओ और उन्हें उन्हीं के नाम से पुकारो ताकि तुम्हारा ग़म दूर हो पस इन लोगोंने ऐसा ही किया और यह मामला मुद्दती चलता रहा फिर जब उस जमाने के लोग वफ़ात कर गए और उनके बारे में कोई बताने वाला नही रहा तो इबलीस लइन ने मौक़ा ग़नीमत समझकर उनकी औलादों से कहा कि यह तुमहारे बाप-दादाओं के माबूद(खुदा)हैं तुम्हारे बाप-दादा इनकी इबादत करते थे यह सुनकर लोगों ने उन्हें माबूद समझ लिया और उनकी इबादत शुरू कर दी।*
(बुख़ारी शरीफ़ जिल्द2 सफ़्हा732/खाज़िन जिल्द7 सफ़्हा130/सीरत हलबी जिल्द1 सफ़्हा13/फफतावा रिज़विया जिल्द10 निस्फ अव्वल सफ़्हा145)

सवाल- सरजमीने अरब पर बुत परस्ती की रस्म किसने ईज़ाद की?
*जवाब- अमर बिन लुही ने।*
(ज़रकानी जिल्द1 सफ़्हा175/सीरत तहलबी जिल्द1 सफ़्हा12)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)

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Part 12
 بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

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*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*
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*अलग-अलग बातों का बयान पोस्ट(2)*
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सवाल- वह बादशाह जिनका लक़ब फ़िरऔन हुआ कितने हैं और किस नबी के ज़माने में गुज़रे?
*जवाब- तीन हैं (1)सिनानुल अशअल बिन अलअलवान यह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने का फ़िरऔन है(2)रय्यान बिन अलवलीद यह हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम के ज़माने का फ़िरऔन है(3)वलीद बिन मुसइब यह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने का फ़िरऔन है।*
(हयातुल हैवान ज़िल्द1सफ्हा80)

सवाल- शबे क़दर अफ़ज़ल है या शबे मेराज़?
*जवाब- हमारे लिये शबे क़दर अफ़ज़ल है और हुज़ूर ‎नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिये शबे मेराज़ अफ़ज़ल है।*
(ज़रकानी जिल्द6 सफ्हा9)

सवाल- अल्लाह तआला ने कितनी उम्मतों को पैदा फ़रमाया और वह कहाँ कहाँ हैं?
*जवाब- एक हज़ार उम्मतों को पैदा फ़रमाया जिन में से छह सौ तो दरया में और चार सौ खुश्की में हैं।*
(मिस्कात शरीफ जिल्द2 सफ़्हा472)

सवाल- हुज़ूर ‎नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सबसे ज्यादा बदबख़्त किन लोगों को कहा?
*जवाब- किदार बिन सालिफ को जिसने सालेह अलैहिस्सलाम की ऊँटनी को क़त्ल किया(2)हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बेटे क़ाबील को जिसने अपने भाई हाबील को क़त्ल किया(3)हज़रते अली के क़ातिल इब्ने मुलजिम को।*
(हयातुल हैवान जिल्द2 सफ़्हा336)

सवाल- वह कौन इन्सान है जो हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पैदा होने से एक हज़ार साल पहले आप पर ईमान लाए और उन्होंने आपके नाम से एक खत भी लिखा जिसमें अपने ईमान लान की शहादत लिखी?
*जवाब- तुब्बऐ अव्वल हुमयरी है जिसने आपके नाम ख़त भी लिखा और वह ख़त सिसिले वार मुन्तक़िल होता हुआ आप तक पहुँचा।*
(सावी जिल्द4 सफ़्हा54/ज़्ज़्बुल कुलूब सफ्हा59)

सवाल- वह कौन शख्स है जिसने मदीने में आपके लिये हज़ार साल पहले एक मकान बनाया था ताकि जब आप हिज़रत करके मदीना आएं तो उसमें में आराम करें?
*जवाब- तुब्बऐ अव्वल हुमयरी है और वह मकान वही है जिसके मालिक बाद में हज़रत अबु अय्युब अन्सारी हुऐ।*
(ज़रकानी जिल्द1 सफ़्हा358/ज़ज़्ज़्बुल कुलुब सफ़्हा59)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)

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Part 11

بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*
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*अलग-अलग बातों का बयान पोस्ट(1)*
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सवाल- वह कौनसा खून है जिसका खाना हलाल है?
*जवाब- कलेजी तिल्ली,खाना हलाल है जो दर असल जमा हुआ खून है।*
(मिस्कात शरीफ जिल्द2 सफ़्हा361)

सवाल- वह कौनसा खून है जो खुद उसके लिये पाक और दूसरों के लिये नापाक है?
*जवाब- शहीद का खून है कि खुद उसके लिये पाक है और दूसरों के लिए नापाक है।*
(अलइशबाह वन्नजाइर सफ़्हा109)

सवाल- कितनी किस्मों का खून पाक है?
*जवाब- दस तरह के खून पाक हैं,(1)शहीद का खून(2)वह खून जो ज़िबह के बाद गोश्त में रह गया हो(3)वह खून जो ज़िबह के बाद रगों में बाकी रह गया हो(4)जिगर और तिल्ली का खून(5)दिल का खून जो इन्सान के बदन से बहा नहीं(7)खटमल का खून(8)पिस्सू का खून(9)जुऐं का खून(10)मछली का खून।*
(अलइशबाह वन्नजाइर सफ़्हा188)

सवाल- वह कौनसी चीज हैं जिसको अल्लाह तआला ने अपने खास दस्ते क़ुदरत से तैयार किया है?
*जवाब- (1)अर्शे आज़म(2)क़लम(3)जन्नते अदन(4)हज़रत आदम अलैहिस्सलाम(5)तौरेत शरीफ(6)शजरे तूबा।*
(खाज़िन जिल्द2 सफ़्हा236/मवाहिब लदुन्निया जिल्द2 सफ़्हा423)

सवाल- वह कौनसे हज़रात हैं जिनके पेशाब-पाख़ाना को जमीन निग़ल जाती है?
*जवाब- अम्बियाऐ किराम अलैहिस्सलाम।*
(मदारीज़न्नुबुव्वत जिल्द1 सफ़्हा29)

सवाल- वह कितने हज़रात हैं जिनको फरिश्तों ने नहलाया?
*जवाब- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम,हज़रत जकरया अलैहिस्सलाम,हज़रत हन्जला,हज़रत हमज़ा रदियल्लाहु अन्हुम।*
(ज़रकानी जिल्द3 सफ़्हा278/तफ़्सीर अज़ीज़ी सूरए बक़र सफ़्हा172)

सवाल- अल्लाह तआला के नज़दीक कौनसा पहाड़ सबसे अफ़ज़ल है?
*जवाब- उहूद पहाड़।*
(फतावा हदीसिया सफ़्हा132)

सवाल- वह कौनसा आदमी है जिसकी मौत के वक़्त फरिश्तों ने उसका फ़तवा खुद उसके सामने पेश किया,और वह अपने ही फ़तवे के मुताबिक हलाक़ हुआ?
*जवाब- वह फिरऔन है एक बार हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम इन्सानी शक़्ल में फिरऔन के पास एक इस्तिफ्ता लाए जिसका मज़मून यह था कि बादशाह का उस गुलाम के बारे में क्या हुक़्म है जिसने अपने आक़ा के माल व नेमत में परवरिस पाई फिर उसकी नाशुकी की और उसके हक़ का मुनकिर हो गया और खुद आक़ा होने का दावा किया उस पर फिरऔन ने यह जवाब दिया की जो गुलाम अपने आक़ा की नेमतों का इनकार कर दे और उसके मुक़ाबले में आए उसकी सज़ा यह है कि उसको दरया में डूबा दिया जाए जब फिरऔन डूबने लगा तो हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने उसका वही फ़तवा उसके सामने पेश कर दिया उसने उसको पहचान लिया।*
(ख़ज़ाइन सफ़्हा316)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100


Part 10

‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम
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अक़ाइद का बयान पोस्ट(10)आख़िरी
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सवाल- अल्लाह तआला के नाम कितने हैं?
जवाब अल्लाह तआला के नामो की कोई गिनती और शुमार नही है कि उसकी शान की कोई हद नही मगर इमाम राज़ी ने अपनी किताब तफ़्सीर कबीर में 5000 नामो का ज़िक्र किया है जिनमें से क़ुरान में एक हजार,तौरेत में एक हजार,इन्जील में एक हजार,जुबूर में एक हजार और लौहे महफूज़ में एक हजार हैं।
(तफसीरें कबीर ज़िल्द1 सफ़्हा119/अहकामे शरीअत हिस्सा2 सफ़्हा157)

सवाल- तमाम नामो में कौनसा लफ्ज़ ज्यादा मशहूर व मारूफ है?
जवाब-लफ़्ज़े"अल्लाह"ज्यादा मशहूर व मारूफ है।
(खाजिन ज़िल्द2 सफ़्हा262)

सवाल- क्या अल्लाह तआला को सख़ी(दानी/खैराती) आकिल(बुद्धिवान/आकाल मन्द) तबीब(हक़ीम/डॉ) वगैरह लफ़्ज़ों के साथ बोल सकते हैं?
जवाब- नही अल्लाह तआला के सारे नाम तौकीफ़ी है अल्लाह तआला को उन्हीं लफ़्ज़ों से पुकार सकते हैं जिनका इस्तेमाल कुरान व हदीस या इज्माऐ उम्मत से साबित है जैसे लफ़्ज़े"खुदा''कि इसका इस्तेमाल अगरचे क़ुरान व हदीस में नही है लेकिन इज्मा ए उम्मत से साबित है।
(खाजिन ज़िल्द2 सफ़्हा262/निबरास सफ़्हा173)

सवाल- अल्लाह तआला के लिये हर जगह हाजिर व मौजूद है ऐसा कहना कैसा है?जवाब अल्लाह तआला जगह से पाक है यह लफ्ज़ बहुत बुरे मअना का एहतेमाल रखता है इससे बचना लाजिम है।
(फ़तवा रिज़विया ज़िल्द6 सफ़्हा132)

सवाल- अल्लाह तआला को अल्लाह मियाँ कहना कैसा है?
जवाब- अल्लाह मियाँ के तीन माना है (1)मालिक(2)शौहर(3)ज़िना का दलाल इनमें बाद वाले दो ऐसे माने हैं जिनसे अल्लाह की शान पाक और बरी है और पहले वाले माना सही हो सकते हैं तो जब दो लफ्ज़ बुरे माना और एक अच्छे माना में शरीक हुआ तो उसका अल्लाह के लिए बोला जाना ग़लत होगा।
(अलमलफ़ूज़ ज़िल्द1 सफ़्हा116)

सवाल- मोहम्मद नबी,अहमद नबी, नबी अहमद, नाम रखना कैसा है?
जवाब- हराम है कि इनमें हकीकत में नुबुव्वत का दावा अगरचे नही पाया जाता मगर सूरत और लफ्ज़ो के ऐतेवार से दावा जरूर है और यह गुमान करना की नामों में पहले माना मुराद नही होते न शरीअत में ऐसा कही है और न आम बोल चाल की जुवान में इसी तरह यासीम व ताहा नाम रखना मना है यूँ ही गफुरुद्दीन, वगेरह नाम भी सख़्त ग़लत व बुरे हैं।
(फ़तवा रिज़विया ज़िल्द9 सफ़्हा201से202)
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हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)
*🌎Send To All Worlds People 🌍*
         ONLY Aᴅᴍɪɴ Pᴏsᴛ Gʀᴏᴜᴘ
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Part 9


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बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम

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अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम
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अक़ाइद का बयान पोस्ट(9)
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सवाल- क्या अल्लाह तआला को दुनिया में ज़ाहिर आँख से देखना मुमकिन है?
जवाब- हाँ अकलन और शरअन दोनों एतेवार से मुमकिन है अलबत्ता हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैह वसल्लम के सिवा किसी और ने नही देखा सिर्फ हमारे प्यारे नबी ने मेराज की रात में अपनी ज़ाहिर आँख से अल्लाह का दीदार फ़रमाया।
(फ़तावा हदीसिया सफ़्हा108/मुनब्बिहुल मुनियह सफ़्हा6/अशिअ्तुल लमआत जिल्द4 सफ़्हा424)

सवाल- यह दीदार कितनी बार हुआ?
जवाब- सिर्फ दो बार हुआ,पहली बार सिदरतुल मुन्तहा पर और,दूसरी बार अर्शे आज़म पर।
(अशिअ्तुल लमआत जिल्द4 सफ़्हा429/मवाहिब लदुन्निया जिल्द2 सफ़्हा35)

सवाल- क्या आख़िरत(मरने के बाद)में मोमिन और काफ़िरो सब को अल्लाह तआला का दीदार होगा?
जवाब- हाँ हश्र के मैदान में सब को अल्लाह तआला का दीदार होगा लेकिन मोमिनो को रहमो करम की हालत में और काफ़िरो को गुस्सा और गज़ब की हालत में फिर उसके बाद काफ़िर हमेशा के लिए इस नेमत से महरूम कर दिए जाएगे ताकि अफ़सोस और ग़म ज्यादा हो।
(शरह फ़िक़्हे अकबर बहरूल उलूम सफ़्हा66/तकमीलुल ईमान सफ़्हा6/अशिअ्तुल लमआत जिल्द4 सफ़्हा425)

सवाल- क्या सारे मोमिन इस नेमत के मिलने में बराबर होंगे या अलग अगला?
जवाब- हर एक अपने अपने नामा ऐ आमाल के एतेवार से इस नेमत के पाने में अलग अलग होंगे आम मोमिनो को हर जुम्मे के दिन और ख़ास मोमिनो को हर सुबह व शाम दीदार होगा और उनसे भी ख़ास जो जन्नते अदन में रहेंगे हमेशा करीब होंगे और अल्लाह तआला के ख़ास जलवो की नेमत हासिल होगी।
(तासीर अजीजी पारा30 सफ़्हा100/तकमीलुल ईमान सफ़्हा5)
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हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)

Part 8


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अक़ाइद का बयान पोस्ट(8)
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सवाल- मुहाल की कितनी किसमें हैं?
जवाब- मुहाल की तीन किसमें हैं, मुहाल अ़क़ली, मुहाल शरई,मुहाल आदि, मुहाल अ़क़ली कुदरत के अन्दर दाख़िल नहीं।
(अलमुअ्तक़द दुलमुन्तक़द सफ़्हा 29व30)

सवाल- क्या अल्लाह तआला की कुदरत सिर्फ़ मुमकिन चीज़ों से मुताल्लिक है?
जवाब- जी हाँ सिर्फ़ मुमकिन चीज़ो से मुताल्लिक है वाजिब और मुहाल चीज़ों से नही।
(सावी ज़िल्द 1 सफ़्हा 276)

सवाल- क्या अल्लाह तआला वाजिब और मुहाल चीज़ों का इरादा भी नहीं करता?
जवाब- नही, इरादें का तआललुक सिर्फ मुमकिन चीज़ों से हैं, वाजिब और मुहाल से नही।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 14)

सवाल- जब अल्लाह तआला की क़ुदरत वाजिब और मुहाल से मुताल्लिक नही तो क्या अल्लाह तआला की कुदरत अधुरी है?
जवाब- नही, अधुरी तो जब हौती कि कौई चीज़ क़ुदरत के अन्दर दाख़िल होती और फिर न कर सके यहाँ ऐसा नही है क्योंकि वाजिब और मुहाल में तो क़ुदरत के ताल्लुक़ की बिलकुल सलाहियत ही नही लिहाजा कुदरत के अधुरा हीने का सवाल ही नही होता।
(फ़तवा रिज़विया जिल्द6 सफ़्हा215)

सवाल- क्या मुश्रिकों की बख़शिश हो सकती है?
जवाब- मुश्रिकों की बख़शिश अक़ल के एतेवार से मुमकिन है और शरीअत के लिहाज़ से मुहाल है।
(सुब्हानुस्सुबबूह सफ़्हा82)

सवाल- क्या काफ़िरो का जन्नत में दाख़िल होना मुमकिन है?
जवाब- जमहूर एहले सुन्नत के नजदीक शरीअत के एतेवार से मुहाल है और अक़ल के एतेवार से मुमकिन है।
(सुब्हानुस्सुबबूह सफ़्हा82)
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हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)

Part 7


‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम

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अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम
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अक़ाईद का बयान पोस्ट(7)
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सवाल- एहले कुरान किन लोगों को कहते हैं?
जवाब- उन लोगों को कहते हैं जो कलमा गो होकर हमारे किबले की तरफ़ मूँह करके नमाज़ पढ़ते हों और तमाम बातों को मानते हों जिनका सुबूत शरीअत से यकीनी और मशहूर है जैसे दुनिया के लिए हुदूस जिसमों के लिए हशर(क़यामत)अल्लाह के लिए कुल्लियत व जुज़यात का इल्म,नमाज़,रोज़ा,का फर्ज़ होना वगैरह जो शख़्स इनमें से किसी बात का इन्कार करे वह एहले कुरान नही अगरचे इबादतों की परेशानी बरदाश्त करता हो।
(शरह फिक़हे अकबर लिअलीकारी सफ़्हा 154/निबरास सफ़्हा 572)

सवाल- इन बयान किये गऐ फ़िरकों के लिए क्या हुक्म है और उनके साथ मेल जोल रखना जाइज़ है या नहीं?
जवाब- वहाबी,देवबन्दी,राफ़ज़ी,तबर्राई,क़ादयानी,मौदूदी,चकड़ालवी,गैर मुक़ल्लिद,जो भी दीन की ज़रूरी बातों में से किसी चीज़ का इन्कार करने वाला है सब काफ़िर व मुर्तद हैं और जो कोई उनकी लानत वाली बातों पर आगाह होकर उनके कुफ्र में शक करे वह भी काफिर है उनके साथ मेल-जोल रखना खाना-पीना सलाम-व-कलाम इसी तरह मौत व जिन्दगी में शरीक होना वगैरह सब नाजाइज़ व हराम है।
(फतावा रिजविया जिल्द 1 सफ्हा 191/जिल्द 6 सफ्हा 95)

सवाल- ईमान किसे कहते हैं?
जवाब- जिन बातों का पेश करना हुजूर सल्ललाहो अलैही वसल्लम से यक़ीनी और क़तई तौर पर साबीत हैं उन बातों की तसदीक़ का नाम ईमान हैं।
(शरह फिक़हे अकबर लिअलीकारी सफ़्हा 86)

सवाल- क्या ईमान कमी-ज़ादती कुबूल करता है?
जवाब- नहीं,अस्ल ईमान दिल की तस्दीक हैं और तसदीक़ एक कैफ(हालत)है यानी एक हालते इज़आनीया जौ मिक़दार कै एतेबार से कमी ज़्यादती कुबूल नहीं करती अलबत्ता उनमें कमज़ोरी और शिददत होती है।
(शरह अक़ाइद सफ़्हा 93/बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 45)

सवाल- कुफ़् किसे कहते है?
जवाब- जिन बातों का पेश करना हुजूर सल्ललाहो अलैही वसल्लम से यक़ीनी और क़तई तौर पर साबीत है उनमें से किसी एक बात का इन्कार करना कुफ़् है।
(शरह अक़ाइद सफ़्हा 61)

सवाल- शिर्क किसे कहते हैं?
जवाब- अल्लाह तआला के सिवा किसी दूसरे के वुजूद को वाजिब मानना या किसी और को इबादत के लायक समझना शिर्क हैं,
हजरत शेख़ अब्दुल हक मुहदिदस देहलवी फरमाते हैं कि शिर्क तीन किस्म का हैं
पहला तो यह कि अल्लाह तआला के इलावा किसी और के वुजूद को वाजिब माने,
दूसरा यह कि खुदा के सिवा किसी और को पैदा करने वाला माने,
तीसरा यह कि खुदा के सिवा किसी और को भी इबादत के लायक समझे।
(अशिअअतुल लमआत जिल्द 1 सफ़्हा 72)
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हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)

Part 6


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अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम
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अक़ाईद का बयान पोस्ट(6)
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सवाल- एहले सुन्नत किसे कहते हैं?
जवाब- हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम सहाबए किराम ताबेईन और तबए ताबेईन के तरीक़े पर चलने वालों को एहले सुन्नत कहते हैं।
(ततहिरुल जिनान वल्लिसान पेज 9)

सवाल- देवबन्दी किसे कहते हैं और उनका अकीदा क्या हैं?
जवाब- मौलवी रशीद अहमद गंगोही,मौलवी असरफ अली थानवी, मौलवी क़ासिम नानौतवी और मौलवी ख़लील अहमद अंबेठवी के मानने वालों को देवबन्दी कहते हैं उनका अक़ीदा यह हैं की,
(1)हुजूर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के बाद दुसरा नबी हो सकता है,
(2)शैतान मरदूद का इल्म हुजूर सल्ललाहो अलैह वसल्लम के इल्म से ज़्यादा है,
(3)शैतान मरदूद के इल्म ज़्यादाती नस्से क़तई(कुरान)से साबित हैं और हुजूर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के इल्म की ज़्यादाती के लिए कोई नस्से कतई नहीं,
(4)खुदा झूठ बोल सकता हैं,बल्कि झूठ बोला भी है,
(5)हुजूर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के लिए कुछ ग़ैब के इल्मों का सुबूत बच्चा व पागल बल्कि तमाम जानवरों और चौपायों इल्म की तरह हैं।
"माजल्लाहीरबविल अलामीन"
यह चारों अपने अकीदे के ऐतेबार से काफिर व मुर्तद हैं जौ इनके कुफर व अज़ाब मैं शक करे वह खुद काफिर हैं आज के दौर मैं वहाबी देवबन्दी दोनों का एक ही हुक्म हैं कि यह लौग इन ख़बीस लोगों की झुठी बातों और ख़राब अक़ीदो को सही और हक़ मानते हैं इसलिऐ यह भी काफिर व मुर्तद हैं।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 9 सफ़्हा 39से42)

सवाल- वहाबी किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के मानने वालों  को वहाबी कहते हैं, इस मज़हब का वानी मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब नजदी है जिसके बारे में शैखुल इस्लाम मौलान हुसैन अहमद टांडवी देवबन्दी अपनी किताब"अश्शिहाबुस्साकिब"में लिखते है।कि"मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब नजदी इब्तेदाऐ तेरहवीं सदी में नजद अरब से ज़ाहिर हुआ और चूँकि यह ख्यालाते फासिद और अक़ाइदे बातिल रखता था, एहले सुन्नत व जमाअत से कत्लो किताल किया,उनको बिल्जबर अपने ख़्यालात की तकलीफ़ देता रहा, उनके अमवाल को ग़नीमत का माल और हलाल समझता रहा, उनके क़त्ल करने को बाइसे सवाब व रहमत शुमार करता रहा, एहले हरमैन को खुसूसन और एहले हिजाज़ को उमूमन उसने तकलीफ़े शाक्का पहुँचाई। सल्फ़ सालेहीन और अत्बाअ की शान में निहायत गुस्ताख़ि और बे अदबी के अलफ़ाज़ इस्तेमाल किऐ, बहुत से लोगों को बे वजह उसकी तकलीफ़े शदीदा के मदीना मुनव्वरा और मक्का मुअज़्ज़मा छोड़ना पड़ा। और हज़ारो आदमी उसके और उसकी फ़ौज के हाथों शहीद हो गऐ,
इसने अपना मज़हबे बातिल फैलाने के लिए एक किताब लिखी जिसका नाम " किताबुत्तौहिद" रखा। उसके जरिए नबियों और वलियों और खुद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की दिल खोलकर तौहीन की फिर उसी का तरर्जुरमा हिंदुस्तान में इस्माईल देहलवी, ने किया जिसका नाम तकवीयतुल ईमान रखा उसी ने यहाँ वहाबियत फ़ैलाई इस वक़्त इस्माईल देहलवी, रशीद अहमद गंगोही और क़ासिम नानौतवी अशरफ़ अली थानवी और तकवियतुल ईमान को मानने वाला या उसके मुताबिक़ अक़ीदे रखने वाला वहाबी हैं।
मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब का अक़ीदा था कि,
"जुमला एहले आलम व तमाम मुसलमनाने दयार मुशरिक व काफ़िर हैं और उनसे कत्लो किताल करना, उनके अमवाल को उनसे छीन लेना हलाल व जाइज़ बल्कि वाजिब हैं। वह सिर्फ़ अपने आपको मुसलमान समझते हैं"।
(रददुल मुहतार जिल्द सोम सफ़्हा 319/फ़तवा रिज़विया जिल्द 9 सफ़्हा 4/अश्शिहाबुस्सकीब सफ़्हा 43)
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हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)

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अक़ाईद का बयान पोस्ट(5)
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सवाल- खरिजी किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- खरिजी एक गुमराह फ़िरका है जो जंग सफ़फ़ैन के मौके पर ज़ाहिर हुआ वजह यह हुई कि यह लोग हज़रत अली मुश्किल कुशा के साथ मिलकर हज़रते अमीरे मआविया से जंग कर रहे थे दौराने जंग ही हज़रत अमीर मआविया से जंग कर रहे थे दौराने जंग ही हज़रत अमीर मआविया और हजरत अली के दरमीयान सुलह की बात चीत होने लगी तो यह लोग यह"ला हुक-म-इल्लल्लाह"यानी(अल्लाह के सिवा किसी का हुक्म नहीं)हजरत अली मुश्किल कुशा से जुदा हो गऐ और आप पर तबर्रा करने लगे और बग़ावत पर उतर आऐ यहाँ तक कि अब यह लोग उन सहाबियों की जिन्होंने आपस में लड़ाईयाँ लडीं जैसे हजरत तलहा,हजरत जुबैर,हजरत उसमान,हजरत अली,हजरत अमीर मआविया,हजरत उमर बिन आस को काफ़िर कहते हैं उनका अक़ीदा यह भी है कि गुनाहे कबीरा का करने वाला काफिर है,(2)क्यास और इजमाअ कोई दलील नहीं बल्कि इन दोनों का इन्कार करते हैं,(3)इमामे वक़्त पर खुरूज व किताल जाइज़ है,(4)इमाम का करशी होना जरूरी नहीं इन्सान करने वाला होना काफ़ी है वगैरह।
(रददुल मुहतार जिल्द 3 सफ़्हा 319/फ़तावा अज़ी ज़िया जिल्द 1 सफ़्हा 107/मजाहेबुल इस्लाम सफ़्हा 456से470)

सवाल- तफ़जीली किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- हज़रत अली मुश्किल कुशा से मुहब्बत करने वालों में से उन लोगों को कहते हैं जो हज़रत मौला अली को हज़रत अबु बक़र और हज़रत उमर पर फज़ीलत देते हैं और हज़रत अली मुश्किल कुशा को उनसे अफ़ज़ल मानते हैं बाक़ी तमाम बातों में एहले सुन्नत वल जमाअत के साथ है एहले सुन्नत वल जमाअत के नजदीक ऐसा अक़ीदा रखने वाला बिदअत व गुमराह है।
(फ़तावा अज़ी ज़िया जिल्द 1 सफ़्हा 183/इजहारूल हक़ सफ़्हा 180)
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अक़ाईद का बयान पोस्ट(4)
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सवाल- क़ादयानी किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- क़ादयानी एक शैतानी और मुर्तद फ़िरका है जो मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादयानी की पैरवी करता है उसने अपने नबी और रसूल होने का दावा किया अपने कलाम को खुदा का कलाम बताया खातिमुन्नबिय्यीन(आख़री नबी)में इस्तिसना की पच्चर लगाई नबियों की शान में निहायत बेबाकी के साथ गुस्ताखियाँ की खासतौर से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और आपकी माँ हज़रत मरयम के बारे में बकवास व खूराफ़ात और गन्दी बातें कहीं जिनके जिक्र से मुसलमान का दिल दहल जाता है उनका अक़ीदा यह है कि(1)मैं वही अहमद हूँ जिसकी खुशखबरी कुरान पाक में दी गई है(माज अल्लाह),(2)मैं हदीस बयान करने वाला मुहद्दिस हूँ और मुहद्दिस भी एक मअना से नबी होता है,(माज अल्लाह),(3)सच्चा खुदा वही है जिसने क़ादयान में अपना रसूल भेजा,(4)बराहीने अहमदया में इस आज़िज़ का नाम उम्मती भी रखा है और नबी भी,(5)मैं कुछ नबियों से अफ़ज़ल हूँ,(6)अपने बारे में लिखा"इब्ने मरयम के ज़िक्र को छोड़ो उससे बेहतर गुलाम अहमद है वगैरह(इब्ने मरयम से मुराद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम हैं)(माज अल्लाह/असतग्फिरूल्लाह)।
(अस्सूउ वल एक़ाब अल्लमसीहिल कज़्ज़ाब सफ़्हा 26से37/बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 57)

सवाल- राफ़ज़ी किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- राफ़ज़ी एक गुमराह फिरका है जो तीनों खालिफा यानी हज़रत अबु बक़र,हजरत उमर,हजरत उसमाने ग़नी रदियल्लाहु अन्हुम की खिलाफ़ते राशिदा को छीनी हुई खिलाफ़त कहते हैं और हज़रत अबु बक़र व हज़रत उमर और दूसरे सहाबऐ किराम को गालियाँ देते हैं और हज़रत मौला अली को तमाम सहाबा किराम से बेहतर बताते हैं उनका अक़ीदा यह है कि(1)मौजूदा कुरान ना मुकम्मल है(अल्लाहुअकबर)इसमें से कुछ सूरतें हजरत उसमान ग़नी या दूसरे सहाबऐ किराम ने घटा दी कोई कहता है कुछ आयतें कम कर दी कोई कहता है कुछ लफ़्ज़ बदल दिये वगैरह,(2)हजरत अली और दूसरे इमाम हजरात पहले नबियों से अफ़ज़ल हैं,(3)नेकियों का पैदा करने वाला अल्लाह है और बुराईयों का पैदा करने वाला खुद इन्सान है,(4)12 इमाम मासूम हैं(जिनमें कोई गुनाह नहीं हो सकता उन्हें मासूम कहते हैं)(5)अल्लाह तआला पर असलह वाजिब है यानी जो जो काम बन्दे के लिए फायदेमंद है अल्लाह पर करना वाजिब है वगैरह।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 9 सफ़्हा 99व401/फ़तावा अज़ी ज़िया जिल्द 1 सफ़्हा 188/बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 61)

नोट=अल्लाह तआला पर कोई शह वाजिब नहीं हा अगर अल्लाह रब्बूल इज्ज़त अपने ऊपर खुद वाजिब नही करले।
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Part 3

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अक़ीदा का बयान पोस्ट(3)
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सवाल- मौदूदी किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- अबुलओला मौदूदी के मानने वालों को मौदूदी कहते हैं इसी का दूसरा नाम जमाअते इस्लामी भी है उनका दावा तो इस्लाम की तबलीग़ का है मगर हक़ीक़त में उनकी तहरीक इस्लाम में फितना डालना और मुसलमानों के दरमीयान फर्क पैदा करना और काफ़िर बनाना है वह इस्लाम के मअना ही अलग बताते है आम मुसलमानों को मुसलमान नहीं समझते बल्कि जिहालत के साथ मुसलमान होना ही ना मुम्किन बताते हैं उनका अक़ीदा यह है कि नबी अपनी कोशिश से खुदा को पहचानते हैं नबियों के नफ़्स़ भी शरारत करने वाले होते हैं हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से बहुत बड़ा गुनाह सरज़द हो गया था वगैरह।
(मौदूदी मज़हब"इकवाल अहमद नूरी"सफ़्हा 126/मौदूदी मज़हब"काज़ी मज़हर हुसैन"सफ़्हा 20से22)

सवाल- एहले कुरान किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- एहले कुरान एक मुर्तद व गुमराह फ़िराक़ है जो हुजूरे-अनवर-सल्लल्लाहो-तआला-अलैह-वसल्लम की पैरवी का इन्कार करता है तमाम हदीसों को साफ-साफ झुठ ग़लत और अमल करने के काबिल नहीं बताता है सिर्फ कुरान मजीद की पैरवी का दावा करता है इस फिरके का बानी अब्दुल्लाह चकड़ालवी है जिसने जिसने अपनी जमाअत के लिए एक नई नमाज़ गढ़ी जो मुसलमानों की नमाज़ से बिलकुल अलग है रात और दिन में सिर्फ तीन वक़्त की नमाज़ रखी और हर वक़्त में फकत दो भी रकअते रखी उनका यह अक़ीदा है कि मुसलमानों की मौजूदा नमाज़े कुरान के मुताबिक नहीं हैं सिर्फ कुरान की सिखाई हुई नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ है इसके इलावा कोई और नमाज़ पढ़ना कुफ्र व शिर्क है एक अक़ीदा यह भी है कि हुजूरे-अनवर-सल्लल्लाहो-तआला-अलैह-वसल्लम किसी रसूल या नबी से अफ़ज़ल नहीं वगैरह।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 1 सफ़्हा 191/मजाहेबुल इस्लाम सफ़्हा 680)
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Part 2


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 अक़ाईद का बयान पोस्ट(2)
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सवाल- ग़ैरे मुक़ल्लिद किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- ग़ैर मुक़ल्लिद जिसे एहले हदीस भी कहते हैं एक गुमराह और बदर मज़हब फिरक़ा है जो इमामों की पैरवी और इजमाअ(सरकार की उम्मत के इमामों और नेक हज़रात का किसी दीनी हुक्म या मसअले पर इत्तेफाक कर लेना)और क़्याम(कुरान हदीस को आईना बनाकर दूसरे मसअले निकालना)का इन्कार करते हैं पैरवी को हराम और बिदअत बताते हैं और दीनके इमामों को गाली और बुराई से याद करते हैं और इमामों की पैरवी करने वालों को मश़्रिक बताते है इस फिरके ने अपना नाम"आमिल बिल हदीस " रखा इसके पेशवा इस्माईल देहलवी और सिद्दीक हसन खाँ भोपाली और नज़ीर हुसैन देहलवी हैं इस्माईल देहलवी ने यह नया मजहब निकाला और हिन्दुस्तान में फैलाया उनका अक़ीदा वही है जो वहाबी देवबन्दी का हे बल्कि उनसे भी एक दर्जा आगे और इनके मजहब में यह भी है कि राम चन्द्र लक्ष्मण कृष्णा जो हिन्दुओं के पेशवा हैं नबी हैं काफिर का ज़िबह किया हुआ जानवर हलाल उसका उसका खाना जाइज़ है,मर्द एक वक़्त में जितनी औरतों से चाहे निकाह कर सकता है उसकी हद नहीं कि चार ही हों,मनी पाक है मुता(कुछ वक़्त के लिए निकाह करना) जाइज़ है वगैरह।
(इज़हारूलहक़ सफ़्हा 4से18/फ़तावा रिज़विया जिल्द 9 सफ़्हा 41/ग़ैर मुक़ल्लिद के फरेब सफ़्हा 59से64)

सवाल- तबलीग़ी जमाअत किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?
जवाब- तबलीग़ी जमाअत वहाबी देवबन्दी ही की एक शाख़ है उसके बानी मौलवी इलयास कांधुलवी हैं उनकी जमाअत का मक़सद सिर्फ अशरफ़ अली थानवी और रशीद अहमद गंगोही वग़ैरा की काफ़िर बनाने वाली तालीम फैलाना और राइज करना है और सुन्नी मुसलमानों को वहाबी बनाना है लेकिन इस जमाअत के प्रचार करने वाले सीधे-सादे लोगों को धोका देने के लिये यह कहा करते हैं कि तबलीग़ी जमाअत का यह तरीक़ा नबियों और सहाबियों का तरीका है यह उनका साफ़ झूठ और निहायत शर्मनाक धोका है उनके अक़ीदे वही हैं जो अशरफ अली थानवी के थे।
(फ़तावा फैजुर्रसूल जिल्द 1 सफ़्हा 43/तबलीग़ी जमाअत सफ़्हा 12)
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Part 1


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अक़ाईद का बयान(1)
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सवाल- अक़ाइद के इमाम कितने हैं?
जवाब- दो हैं,एक हज़रत सय्यिदुना इमाम अबु मन्सूर मातुरीदी,दूसरे सय्यिदुना इमाम अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाह अलैहिमा।
(रोज़ तुलबहिया सफ़्हा 3 निबरास सफ़्हा 229)
नोट- अक़ाइद अक़ीदे की जमा यानी बहु वचन है इस्लाम में जिन बातों का जुबान के के साथ दिल से गवाही देना जरूरी है वह अक़ीदा कहलाती है।

सवाल- क्या दोनों इमाम बरहक़(सही)हैं?
जवाब- यह दोनों इमाम बरहक़ हैं, अस्ल अक़ाइद में दोनों एक हैं अल्बत्ता इख्तेलाफ है तो सिर्फ अक़ाइद के फुरूअ(अस्ल से निकली हुई बातों)में।
(बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 53)

सवाल- जो इन्सान इन दोनों इमामों के खिलाफ़ कोई अक़ीदा रखे वह एहले सुन्नत में दाख़िल है या नहीं?
जवाब- एहले सुन्नत इन्हीं दोनों इमामों की पैरवी करते हैं मातुरीदया हज़रत सय्यिदुना इमाम अबु मन्सूर मातुरीदी की अशाइरा और हज़रत सय्यिदुना इमाम अबुल हसन अशअरी की तो एहले सुन्नत की यही दो जमाअतें हैं जो इनके खिलाफ़ कोई अक़ीदा रखे और वह अक़ीदा कुफ्र की हद तक नहीं पहुँच है तो वह गुमराह है और अगर कुफ्र की हद तक पहुँचा गया है तो काफ़िर और एहले सुन्नत से खारिज है।
(मज़हबे इस्लाम सफ़्हा 4)

सवाल- मसाइल के इमाम कितने हैं?
जवाब- इस वक़्त चार हैं इमामे आज़म,इमाम शाफ़ेई,इमाम मालिक,इमाम अहमद बिन हंबल, दूसरी सदी के बाद उम्मत ने इन्हीं चारों इमामों पर इत्तेफाक कर लिया है इससे पहले कुछ इमाम और भी हुऐ हैं लेकिन उनके मसलक कुछ जमाने तक चले और ख़त्म हो गऐ।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 3 सफ़्हा 321)

सवाल- क्या इन चार इमामों में से किसी एक की पैरवी जरूरी है?
जवाब- हाँ शरीअत के मसाइल पर अमल करने के लिए किसी एक खास इमाम की पैरवी करना ज़रूरी है वरना वह शरीअत पर अमल करने वाला नहीं होगा बल्कि अपनी ख्वाहिश पर अमल करेगा और गुमराह होगा इस वक़्त इन चार के सिवा किसी की पैरवी जाइज़ नहीं अब सही और हक़ मज़हब इन्हीं चारों में महफूज़ है और जो इन चारों से ख़ारिज है गुमराह और बे दीन है।
(तहतावी जिल्द 4 सफ़्हा 153/सावी जिल्द 3 सफ़्हा 9)

सवाल- अगर चारो इमाम बरहक हैं तो इख्तेलाफ किस बात में है?
जवाब- यह चारों अस्ल अक़ाइद में मुत्तहिद हैं और इख्तेलाफ सिर्फ फुरूई मसाइल में है।
(मज़हबे इस्लाम सफ़्हा 5)
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हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।
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