28/10/2020

_करीना -ए-जिन्दगी_ 🅰️

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      📕 *करीना -ए-जिन्दगी* 📕

     ✍🏻       *भाग-0⃣1⃣*
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          कुदरत ने हर नर (male) के लिए मादा (female) और हर मादा के लिए नर पैदा फरमा कर बहुत से जोड़े आ़लम में बनाए और हर के बदन के मशीन पर मुख्तलिफ़ पुर्जों को इस अंदाज के साथ सजाया की वोह हर इक की फ़ितरत के मुताबिक़ एक दूसरे को फायदा पहुँचाने वाले और जरूरत को पूरा करने वाले हैं।
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        अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मर्द और औरत को एक दूसरे के ज़रिये सुकून हासिल करने की ख्वाहिश रखी है ।  चुनान्चे मज़हबे इस्लाम ने इस ख्वाहिश का एहतिराम करते हुए हमें निकाह करने का तरीका़ बताया ताकि इंसान जाइज़ तरीकों से सुकून हासिल कर सकें।
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       इस जमाने में अक्सर मर्द निकाह के बाद ला इल्मी और मज़हब से दूर रहने की वजह से तरह तरह की गलती करते हैं। और नुकसान उठाते है इन नुकसानात से उसी वक्त  बचा सकता है। जब के इसके मुत्अल्लिक सही इल्म हो अफसोस इस जमाने में लोग किसी आ़लिमे दीन या जानकार  शख्स से मियाँ, बीवी के खास तआल्लुकात के मुत्अल्लिक पूछने या माअलूमात हासिल करने से कतराते हैं। हालाँकि दीन की बातें और शरई मसाइल माअलूम करने में कोई शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए। ~*_______________________________________*~
हमारा रब अज़्ज़ व जल्ला इर्शाद फरमाता है।
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👉🏻  तो अए लोगों इल्म वालों से पूछो अगर इल्म न हो।
📕 *(तर्ज़ुमा कन्जुल इमान पारा १७ सूरए "अम्बिया" आयत नं ७)*

हमारे आक़ा ﷺ इर्शाद फ़रमाते है।
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👉🏻 इल्मे [दीन] सीखना हर मुसलमान मर्द औरत पर फर्ज है
📕  *(मिश्क़ात शरीफ जिल्द १, सफा नं ६८, कीम्या -ए- सआ़दत सफा नं १२७)*
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 अक्सर देखा येह गया है के लोग मियाँ बीवी के दरमियान होने वाली खास चीज़ो के बारे में पूछने में शर्म महसूस करते हैं। और इसे बेहूदापन और बेशर्म समझते हैं। यही वह शर्म और झिझक है जो गलतियों का सबब बनते हैं। और फिर सिवाय नुकसान के  कुछ  हाथ नही आता है।
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         एक साहब मुझसे कहने लगे । "क्या यह शर्म की बात नहीं ? के आपने एसी किताब लिखी है। जिसमें सोहबत के बारे में  साफ़ साफ़ खुले अनदाज़ में बयान किया गया है। अगर मैं यह किताब अपने घर पर रखूँ  तो वह मेरी माँ,बहनो के हाथ में लग जाएँ तो वोह मेरे मुत्अल्लिक किया सोचेंगे कि मे कैसी गन्दी किताब पढ़ता हूँ। उनकी बात सुनकर मुझे उनकी कम अक़्ली पर अफ़सोस हुआ। मैंने उनसे सवाल किया-क्या आपके घर टीवी (t.v.)है ? कहने लगे_ _"हाँ है" मैंने कहा ।  मुझे आप बताइए "जब आप एक साथ इक ही क़मरे में अपने माँ,बहन के साथ टीवी पर फिल्म देखते हैं। और उसमें वोह सब देखते हैं। जो अपनी माँ बहनों के साथ तो क्या अकेले भी देख़ना ज़ायज़ नही तो उस वक्त आपको शर्म क्यों नहीं आती" !!
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    मेरे प्यारे भाईयों शरई रोशनी  में अ़दब के दाइरे मे ऐसी माअ़लूमात हासिल करना और उसे बयान करना ज़रूरी है। और इसमें किसी किस्म की शर्म व बेहूदापन नही है।_
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  देखो हमारा अल्लाह अज़्ज़ व ज़ल्ला किया इर्शाद फरमाता है।---
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👉🏻 तर्ज़ुमा :-  और अल्लाह हक़ फ़रमाने में नही शर्माता।
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा २२, सूरए अहज़ाब, आयात ५३, ]*
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       हदीसो में है कि हुज़ूरे अकरम  ﷺ के  जाहिरी जमाने में  औरतें तक आज्दवाज़ी [शादी शुदा ज़िन्दगी में] आने वाले मसाइल के बारे में हुज़ूर ﷺ से पूछा करती थी।

      उम्मुलमोमेनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा  [रदीअल्लाहो तआ़ला अन्हु] इर्शाद फरमाती है।
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 👉🏻 अन्सारी [मदीने मुनव्वराह की औरतें] क्या खूब है । के उन्हें दीन समझने में हया [शर्म] नही रोकती"। [यानी वोह दीनी बातें माअ़लूम करने में नहीं शर्माती]

📕 *(बुख़ारी शरीफ,जिल्द १, सफा नं १५०, इब्ने माज़ा जिल्द १, सफा नं २०२]*
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    मअ़लूम हुआ। के दीन सीखने मे किसी किस्म की हया [शर्म] नहीं करनी चाहिए। अगर यह बात [मियाँ बीवी के दरमियान होने वाली चीजें] बेहूदा या गन्दी होती तो उसे हमारे आक़ा व मौला ﷺ क्यों बयान फरमाते और फिर सहाब-ए-किराम, आइम्म-ए-दीन, बुजुर्गाने दीन, लोगों तक इसे क्यों पहुँचाते? और इन बातों को अपनी किताबों में क्यों लिखते। क्या कोई शर्म व हया में हमारे आक़ा व मौला ﷺ से ज्यादा हो सकता है।
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          🔴🔵 *_"यकीनन नही"।_* 🔵🔴
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     हमारा अक़ीदह  है। के सरकार ने बिला झिझक वोह तमाम चीज़े हमें साफ़ साफ़ बयान फरमा दिया जिस के करने से हमारी ही ज़ात को नुकसान है। *[अल्लहमदुलिल्लाह]*





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      *📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*

     ✍🏻 *.....भाग-0⃣2⃣*

             *[जरा इसे भी पढ़िए]*
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_[आयत :--]अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है!----_
_👉🏻 तर्जुमा :- तो निकाह मे लाओ जो औरतें तुम्हें खुश आए!_
_[तर्जुमा कन्जुल इमान पारा 4, सूरए निसा, आयात नं 3]_

✍🏻 _[हदीस :-].... नूरे मुजस्सम, रसूले खुदा, हबीबे किब्रिया, नबी-ए-रहमत, शाफ-ए-महशर, फख़रे दो आलम, फख़रे बनी -ए-आदम, मालिके दो जहाँ, ख़ातमुल अम्बिया, ताजदारे मदीना राहते कल्बो सीना, जनाबे अहमदे मुज़्तबा, मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने इरशाद फरमाया-------_
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_*👉🏻 निकाह मेरी सुन्नत है!*_

*📚 [इब्ने माज़ा जिल्द 1, हदीस नं 1913, सफा नं 518,]*

*📚 [हदीस :-]....* _और इरसाद फरमाते है हमारे मद़नी आक़ा ﷺ-------_

👉🏻 _"बन्दे ने जब निकाह कर लिया तो आधा दीन मुक़म्मल हो जाता है। अब बाकी आधे के लिए अल्लाह तआला से डरे"_
*📕 [मिश्कात शरीफ जिल्द 2, हदीस नं 2962, सफा नं 72,]*

*📚 [हदीस :-]....* _हज़रत सहल बिन सअ़द [रदिअल्लाहो तआला अन्हे] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरसाद फरमाया-----_

👉🏻 _"निकाह करो चाहे [महेर देने क लिए ] एक लोहे की अँगूठी ही हो ।"_
📕 *[बुखारी शरीफ जिल्द 3, हदीस नं 136, सफा नं 80,]*
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📚 *[हदीस :-]....* _हज़रत अब्दुल्ला बिन मसऊद [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। सरकार ﷺ ने इरशाद फरमाया------_
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👉🏻 "एे ज़वानो तुम मे से जो औरतों के हुक़ूक़ [हको़ को] अदा करने की ताक़त रखता हो तो वोह निकाह जरूर करे। क्यों कि यह निगाह को झुक़ाता और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करता है जो इसकी ताक़त न रखे वोह रोज़ा रखे क्यों कि यह शहवत [वासना sex] को कम करता है।"

📕 *[बुखारी शरीफ जिल्द 3, सफा नं 52, तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 1, सफा नं 553,]*

✍🏻 [मसअला :-].... शहवत का गल़्बा [ज़वानी का जोश] ज़्यादा है और मआजअल्लाह अंदेशा है की जिना (निकाह किये बिना किसी भी शादीशुदा या गैर शादी शुदा औरतो से नाजायज शारीरीक सबंध बनाना या जबरदस्ती किसी भी औरत को वासना का शिकार बनाना) हो जाएंगा! और बीवी का महेर व ख़र्चा वगै़रह दे सकता है तो निकाह करना वाज़िब है। यु ही जब की अजनबी औरत की तरफ निगाह उठने से रोक नही सकता या माआजअल्लाह! हाथ से काम लेना पडेगा (हस्तमैथुन किया तो भी गुनाह मे मुब्तीला होंगा) तो निकाह करना वाजीब है!

✍🏻 [मसअला :-].... यह यक़ीन है कि निकाह नही करेगा तो ज़िना वाके हो जाएगा तो ऐसी हालत मे निकाह करना फ़र्ज़ है।

✍🏻 [मसअला]....अगर यह अंदेशा (डर) है कि निकाह करेंगा तो बीवी का महेर, खर्चा वगैरह नही दे सकेंगा तो एसी हालत मे निकाह करना मक़रूह है।

✍🏻 [मसअला].... यक़ीन है कि महेर और खर्चा दे ही नही सकेगा तो ऐसी हालत में निकाह करना हराम है।

📕 *[बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा 7, सफा नं 6, (करीना-ए-जिंदगी) क़ानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 44,]*




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            _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

               ✍🏻 *.....भाग-0⃣3⃣*

                 *[जरा इसे भी पढ़िए]*
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       _*[किन लोगों से निकाह ज़ायज़ नही]*_
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_✍🏻 .... दुनिया में इन्सान के वज़ूद को बाकी रख़ने के लिए क़ानूने खुदा के मुताबिक़ दो गै़र जिन्स *[ Different sex, मर्द और औरत ]* का आपस में मिलना ज़रूरी है लेकिन उसी खु़दा के कानून के मुताबिक़ कुछ ऐसे भीे इन्सान होते है। जिनका जिन्सी तौर पर मिलना कानूने खुदा के ख़िलाफ़ है।_

_*✍🏻 [आयात :-]....* चुनान्चे हमारा और सबका ख़ुदा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है।_
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_*👉🏻 तर्जुमा :-* हराम हुई तुम पर तुम्हारी माँऐ, और बेटियाँ, और बहनें, और फूफियाँ, और खालाऐं, और भतीज़ियाँ, और भांज़ियाँ, और तुम्हारी माँऐ जिन्होंने दूध पिलाया और दूध की बहनें,और औरतों की माँऐ।------_

_*📕 [तर्जुमा ए कुरआन कन्जुल इमान, पारा 4, सूर ए निसा, आयात नं 23]*_

_...... क़ुरआने करीम की इस आयात से मअ़लूम हुआ कि माँ, बेटी, बहन, फुफी, ख़ाला, भतीज़ी, भांजी, दादी, नानी, पोती, नवासी, सगी सास, वगैरह से निकाह करना हराम है।_

_*✍🏻 [मसअला :-]....* माँ सगी हो या सौतेली, बेटी सगी हो या सौतेली, बहन सगी हो या सौतेली, इन सब से निकाह करना हराम है। इसी तरह दादी, परदादी, नानी, परनानी, पोती, परपोती, नवासी, परनवासी, बीच में चाहे कितनी ही पुस्तों [पीढ़ियों ] का फासला हो, इन सब से निकाह करना हराम है।_

_*✍🏻 [मसअला :-]....* फूफी, फूफी की फूफी, खाला, खाला की खाला, भतीज़ी, भान्ज़ी, भतीज़ी की लड़की, उसकी नवासी, पोती, इसी तरह भान्ज़ी की लड़की, उसकी पोती, नवासी, इन सब से भी निकाह करना हराम है।_

_*📕 [बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा 7, सफा नं 23, कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 47,]*_

_*📚 [हदीस :-]...* हज़रत अमरा बिन्त अ़ब्दुर्रहमान व मौला अली [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया-----_
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_💫 "रज़ाअ़त [ दूध के रिश्तों] से भी वही रिश्ते हराम हो जाते हैं जो विलादत से हराम हो जाते हैं।_

*📕 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, सफा नं 62, तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 1, सफा नं 587,]*
           .... यानी किसी औरत का दूध बचपन के आलम मे पिया हो तो उस औरत से माँ का रिश्ता हो जाता है। अब उसकी बेटी, बहन है उससे निकाह हराम है। यानी जिस तरह सगी माँ के जिस रिश्तेदारों से निकाह करना हराम है। उसी तरह उस दूध पिलाने वाली के रिश्तेदारों से भी निकाह करना हराम है।

_*✍🏻 [मसअला :-]....* निकाह हराम होने के लिए ढ़ाई बरस का ज़माना है कोई औरत किसी बच्चे को ढाई बरस के अन्दर अगर दूध पिलाएगी तो निकाह हराम होना साबित हो जाएगा। और अगर ढाई बरस की उमर के बाद पिया तो निकाह हराम नही । अगर्चे बच्चे को ढाई बरस के बाद दूध पिलाना हराम है।_

_*📕 [बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा नं 37, कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 50, ]*_

_*✍🏻 [हदीस :-]....* हज़रत अबूहुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया----_
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_💫 "कोई शख्स अपनी बीवी के साथ उसकी भतीज़ी, या भान्जी से निकाह न करे "_
_*📕 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, हदीस नं 98, सफा नं 66, ]*_
          _.... औरत [ बीवी ] की बहन, चाहे सगी हो या रज़ाई [यानी दूध के रिश्ते से बहन हो ] या बीवी की खाला, फूफी, चाहे रज़ाई फूफी या खाला हो इन सब से निकाह करना हराम है।_

_*[हदीस :-]....* हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [ रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से इमाम बुखारी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] नेे रिवायत किया है-----_

_*📕 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, बाब नं 54, सफा नं 48, ]*_
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 🔴🔵 *_[ क़ाफ़िर मुश्'रिक से निकाह ]_* 🔵🔴
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_*✍🏻 [आयत :-].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है।-----*_
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 💫 [तर्जुमा :-].... "और मुश'रिको के निकाह में न दो जब तक वोह ईमान न लाए।
_*📕 [ तर्जुमा कुरआन कन्जुल इमान पारा 2, सूरए बखरा, आयात नं 221, ]*_

_✍🏻 [ मसअला :- ].... मुसलमान औरत का निकाह मुसलमान मर्द के सिवा किसी भी मज़हब वाले से नहीं हो सकता।_
_*📕 [ कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 49, ]*_

 _*[आयत :-].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है-----*_
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_💫 तर्जुमा :-.... और शिर्क वाली औरतों से निकाह न करो जब तक मुसलमान न हो जाए।_

_*📕 [तर्जुमा कुरआन कन्जुल इमान पारा 2, सूर ए बखरा, आयात नं 221, ]*_

_✍🏻 [मसअ़ला :-].... मुसलमान का आग की पूज़ा करने वाली, बुत [मूर्ती] पूज़ने वाली, सूरज़ की पूज़ा करने वाली, सितारों को पूज़ने वाली, इन मे से किसी से निकाह नहीं होगा।_

_*📕 [ बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा नं 32,]*_
                _...... आज के इस दौर में अक्सर हमारे मुस्लिम नौजवान क़ाफ़िर मुश'रिक़ [बुत पूज़ने वाली, गैर मुस्लीम ] औरतों से निकाह करते हैं। और निकाह के बाद उन्हें मुसलमान बनाते है। यह बहुत गल़त तरीका है और शरीअ़त में हराम है। अव्वल तो निकाह ही नही होता क्यों कि निकाह के वक्त तो लड़की मुसलमान न थी! काफ़िर मज़हब पर थी।_ 
        _याद रखिए क़ाफ़िर मुश'रिक़ औरत से मुसलमान करके शादी करना जायज जरूर है लेकिन येह कोई फ़र्ज़ या वाज़िब नही है। बल्कि हुज़ूर ﷺ ने इसे पसंद भी नही फरमाया इसकी बहुत सी वज़ूहात उलमा -ए- किराम ने बयान फ़रमायी है जिसमें से चन्द ये है।_
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_✍🏻 1.... जिस औरत से आपने शादी की वोह तो मुसलमान हो गयी मगर उसके सारे मैक़े वाले क़ाफ़िर ही है और अब चूँकि वह आपकी औरत के रिश्तेदार है। इसलिए वोह उनसे तआ़ल्लुक़ रखती है।_

_✍🏻 2.... औरत के नव मुसलमान होने की वजह से औलादौ की तरबियत ख़ालिस इस्लामी ढंग से नहीं हो पाती_
_✍🏻 3.... अगर मुसलमान मर्द क़ाफ़िर औरतों से निकाह करेंगे तो मुसलमान औरत को ज़्यादा दिनो तक कुँवारा रहना पड़ेगा और मुसलमानों में मर्दो की क़िल्लत होगी तब जब औरतें ज़्यादा होगी।_

_✍🏻 4.... दीने इस्लाम में मुश्'रिकाना रस्म का रिवाज़ बढ़ेगा।_
      _....इस तरह की कई बातें हैं जो यहां बयान करना मुमकिन नही - बेहतर यही है कि क़ाफ़िर व मुश'रिक़ औरतो से निकाह न करे इस से दीन व दुनिया का बड़ा नुकसान है। इसलिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने जहाँ मुश'रिक़ औरत से मुसलमान करके निकाह की इज़ाज़त दी वहीं मो'मिन लवंड़ी [ गुलाम लड़की ] से निकाह को ज्यादा बेहतर बताया । ब निस्बत इसके कि का़फ़िर व मुश'रिक़ औरत से निकाह किया जाए।_

_*✍🏻 मसअ़ला....* जिसमे मर्द व औरत दोनों की अलामतें पायी जाए और यह साबित न हो कि मर्द है या औरत उससे न मर्द का निकाह हो सकता है न औरत का अगर किया गया बातिल [ झूठा ] है_

_*📕 [बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा नं 5,]*_




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        _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

             ✍🏻 _*.....भाग-0⃣4⃣*_

              _*[जरा इसे भी पढ़िए]*_
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        _*[ क्या वहाबियों से निकाह करें? ]*_
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        _... वहाबियों से निकाह करने के मुताअ़ल्लिक इमाम इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे दीन व मिल्लत अज़ीमुल बरक़त आला हज़रत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खाँ [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] अपनी "मलफ़ूज़ात" मे इरशाद फरमाते है।------_

_*✍🏻 [इरशाद :-]....* सुन्नी मर्द या औरत का शिया, वहाबी, देवबन्दी, नेचरी, कादयानी, जितने भी दीन से फिरे लोग है उनकी औरत या मर्द से निकाह नहीं होगा। अगर निकाह किया तो निकाह न हो कर सिर्फ़ ज़िना होगा। और औलाद ज़ायज़ न होकर नाज़ायज़ व हरामी कहलाएगी फ़तावा-ए-आलमगीरी मे है-----_
لا یجوز النکاح المرتد
مع مسلمة ولا كافرة اصلية ولا مرتدة وكذالایجوز نكاح المرتدة مع احد--

☝☝ अगर कहीं लिखने मे गल़ती [mistake] हो तो जरूर बताऐं
_*📕 [ अ़लमलफ़ूज़ जिल्द नं 2, सफा नं 105, ]*_

          _....अक्सर हमारे कुछ कम अक़्ल- न समझ सुन्नी मुसलमान जिन्हें दीन की माअ़लूमात व ईमान की अ़हमियत माअ़लूम नही होती वोह वहाबियों से आपस में रिश्ते जोड़ते है। कुछ बदनसीब सब जानने के बावजूद वहाबियों से आपस में रिश्ता करते हैं!_
     
         _.......कुछ सुन्नी हज़रात ख्याल करते हैं। कि वहाबी अ़क़ीदे की लड़की अपने घर ब्याह कर ला लो। फिर वोह हमारे माहौल में रहकर खुद ब खुद सुन्नी हो जाएगी अव्वल तो यह निकाह ही नही होता क्यों कि जिस वक्त यह निकाह हुआ उस वक्त तक लड़का सुन्नी और लड़की वहाबी अ़क़ीदे पर क़ायम थी। लिहाजा सिरे से ही येह निकाह ही नही हुआ_

        _सैंकड़ो जगह तो येह देखा गया है कि किसी सुन्नी ने वहाबी घराने मे येह सोचकर रिश्ता किया कि हम समझा बुझा कर हम अपने माहौल में रखकर वहाबी से सुन्नी बना लेंगे लेकिन वह समझा कर सुन्नी बना पाते इससे पहले ही उस वहाबी रिश्तेदारों ने उन्हें कुछ ज़्यादा ही समझा दिया और अपना हम ख़्याल बनाकर सुन्नी से वहाबी बना डाला *[ अल्लाह की पनाह ]* सारी होश़ियारी धरी की धरी रह गयी और दीन व दुनिया दोनों बर्बाद हो गये_

    _.... यह बात हमेशा याद रखिए एक ऐसे शख्स को समझाया जा सकता है तो वहाबियों के बारे में हक़ीक़त से वाकिफ न हो लेकिन ऐसे शख्स को समझा पाना मुम्क़िन ही नही जो सबकुछ जानता और समझता है। औलमा -ए- देवबन्द *[ वहाबियों ]* की हुज़ूरﷺ अम्बिया-ए-किराम, बुजुरगाने दीन, की शाने अ़क्दस में गुस्ताख़ियों को समझता है। उनकी किताबों में येह सब गुस्ताख़ाना बातों को पढ़ता है लेकिन इस सबके बावजूद येह कहता है कि येह *[ वहाबी ]* तो बहुत अच्छे लोग हैं इन्हें बुरा नहीं कहना चाहिए। ऐसे लोगों को समझा पाना हमारे बस में नहीं।_

_*✍🏻 [आयत :-]....* अल्लाह तआला---ऐसे लोगों के मुत्अ़ल्लिक़ इरशाद फरमाता है-----_
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_*👉🏻 तर्जुमा :-....* अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानो पर मुहर कर दी और उनकी आँखों पर घटा टूप है और उनके लिए बड़ा अज़ाब़ है_

_*📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा 1, सूरह ए बखरा, आयत नं 7,]*_

           ....लिहाजा जरूरी व अहम फर्ज है कि ऐसे लोगों से जिनके दिलों पर अल्लाह ने मोहर *[ seal छाप ]* लगा दी हो उनसे रिश्ता न क़ायम करें वर्ना शादी शादी न होकर ज़िना रह जाएगी।
   
   _अल्हमदुलिल्लाह आज दुनिया में सुन्नी लड़कियों और लड़कों की कोई कमी नहीं है। और इन्शा अल्लाह तआला अहले सुन्नत व ज़माअत के मानने वाले क़यामत तक बड़ी तादाद में शानो शौक़त केसाथ क़ायम रहेंगे_
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           _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

               ✍🏻 *.....भाग-0⃣5⃣*

                _*[जरा इसे भी पढ़िए]*_
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_*📚 [हदीस :-]....* हज़रत अब्दुल्ला इब्ने उमर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है कि सरकार मद़ीनाﷺ ने गै़ब की खबर देते हुए इरशाद फरमाया------_
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_📚 "बेशक कौमे बनी इस्राईल [हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम की क़ौम ] बहत्तर [ 72 ] फ़िरक़ों में बट गयी और मेरी उम्मत तिहत्तर [ 73 ] फ़िरक़ों में बट जाएगी सब के सब ज़हन्नमी होंगे सिर्फ़ एक फ़िरक़ा जन्नती होगा । सहाब-ए-किराम, ने अर्ज किया--वोह जन्नती फ़िरक़ा कौन सा होगा ।_

_✍ .... हुजुर ﷺ ने इरशाद फरमाया--_
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    _...."जो मेरे और मेरे सहाबा के तरीके़ पर चलेगा।"_
_*📕 [ तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 2, सफा नं 89,]*_
             ....अल्हमदुलिल्लाह ! बेशक वह जन्नती फ़िरक़ा अहले सुन्नत वल ज़माअ़त के सिवा कोई नही ! क्यों कि हम सुन्नी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त व हुज़ूरे अकरम ﷺ के मरतबे व अ़ज़मत के और बुजुरगाने दीन की शान व इज़्ज़त के काएल हैं।
           ....हम सुन्नियों का अ़क़ीदा है कि यह तमाम फ़िरक़े जैसे---- शिया, वहाबी, तबलीगी, देवबन्दी, मौदूदी, कादयानी, नेचरी, चक़डालवी, सबके सब गुमराह, बद दीन, क़ाफ़िर, और दीन से फिरे हुए मुनाफ़िक़ है।
            _.....अब ज़्यादा तर लोग सुन्नी, वहाबी, के इस इख़्तिलाफ़ को चन्द मौलवीयों का झगड़ा समझते हैं। या फिर फातिहा, उर्स, नियाज़ का झगड़ा समझते हैं येह उनकी बहुत बड़ी गल़त फहमी है।_

 _....खुदा की क़सम सुन्नियों का वहाबियों से सिर्फ़ इन बातों पर इख़्तिलाफ़ नहीं है। बल्कि हम अहले सुन्नत का वहाबियों से सिर्फ़ इस बात पर सबसे बड़ा बुनियादी इख़्तिलाफ़ है। कि इन वहाबियों के उलमा व पेशवा ने अपनी किताबों में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त व हुज़ूर अकरम ﷺ और अम्बिया ए किराम, सहाब-ए-किराम, व बुजुरगाने दीन की शाने अ़कदस मे गुस्ताख़ियां लिखी है और उनकी अ़ज़मत व शान से खेला उन्हें बिद़अ़ती, क़ाफ़िर, व बेदीन, बताया *[ माज़अल्लाह ]* और मौजूदा वहाबी ऐसे ही ज़ाहिल उलामा को अपना बुज़ुर्ग व पेशवा मानते हैं। और उन्हीं की तआ़लीमात व अकाईद ए बातील को दुनिया भर में फैलाते फिरते हैं। या कम अज कम उन्हे मुसलमान समझते है!_

_*💎 [आयत :-]....* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है।_
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_*💎 तर्जुमा :-...* जिस दिन हम हर ज़माअत को उसके इमाम के साथ बुलाएगे ।_

_*📕 [तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा 15, सूरए बनी इस्राईल़, आयत नं 71,]*_

     _अब हम आप लोगों के सामने इन लोगों के अक़ाएद [ faith ] उन्हीं की किताबों से पेश कर रहे हैं। जिसे पढ़कर आप खुद ही फ़ैसला़ कीजिए कि क्या ऐसी बातें कहने वाले यह लोग मुसलमान कहलाने का हक रखते है? *फैसला आप के हाथ में है।*_

             _*[ क्या यह मुसलमान है ]*_
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            _....वहाबी ज़माअत का बहुत बड़ा आलिम "मौलवी इस्माईल देहलवी" अपनी किताब [ तक्वियतुल ईमान ] में लिखता है------_

_✍🏻 (1).... जो कोई (किसी बुज़ुर्ग की) नियाज़ करे, किसी बुजुर्ग को अल्लाह की बारगाह में सिफारिश करने वाला समझे तो यह शिर्क है! और वह शख्स और " अबूज़हल" शिर्क में बराबर हैं। *[ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 [ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 20,]*_

_✍🏻 (2).... यकीन जान लेना चाहीये की हर मख़लूक ख्वाह छोटी हो या बडी [ जैसे अम्बिया, फिरिश्ते, औलिया, उलामा, आम मुसलमान] अल्लाह की शान के आगे चमार से भी ज़्यादा ज़लील है। *[माज़अल्लाह ]*_

_*📕 [ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 30, ]*_

_✍🏻 (3).... अल्लाह के मकर (मक्कारी) से डरना चाहीए की , धोके से डरना चाहिए कि अल्लाह बन्दो से मक्कारी भी करता है। *[ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 [ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 76, ]*_

_✍🏻 (4).... तमाम नबी और खुद हुज़ूरﷺ अल्लाह के बेबस बन्दे है और हमारे बड़े भाई है। *[माज़अल्लाह]*_

_*📕 [तक्वियतुल ईमान, सफा नं 99,]*_

_✍🏻 (5).... हुज़ूर अकरमﷺ मर कर मिट्टी में मिल गए। *[माज़अल्लाह]*_

_*📕 [तक्वियतुल ईमान, सफा नं 100, प्रकाशक :- दारूस्सालाफिया मुम्बई, ]*_
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      _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

                ✍🏻 *_.....भाग-0⃣6⃣_*

                 _*[जरा इसे भी पढ़िए]*_
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              _*[ क्या यह मुसलमान है। ]*_
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        ....यही मौलवी इस्माईल देहलवी अपनी एक दूसरी किताब "सिराते मुस्तक़ीम" में लिखता है------

_✍🏻 (1)....नमाज़ में हुज़ूर अकरम ﷺ का ख़्याल लाना अपने गधे और बैल के ख़्याल में डूब जाने से बदतर है। [ माज़अल्लाह ]_

_*📕 [ सिराते मुस्तक़ीम, सफा नं 119, प्रकाशक :- इदाराहे अलरशीद, देवबन्द जिला सहारनपुर ]*_

       ....वहाबियों के एक दूसरे आलिम जिन्हें वहाबी हज़रत हुज्जतुल इस्लाम कहते नहीं थकते जनाब "मौलवी कासिम नानोतवी" है जिसकोो मदरसा देवबन्द का बानी बतीया जाता है। अपनी एक किताब "तहजीरून्नास" में लिखते हैं।

 ✍🏻 (1).... बिल-फर्ज हुज़ूरﷺ के बाद भी कोई नबी आ जाए तो भी हुज़ूर के ख़ात्मियत [ हुज़ूर के आख़िरी नबी होने ] मे कोई फर्क न आएगा। [ माज़अल्लाह ]

_*📕 [ तहज़ीरून्नास, सफा नं 14, मत्बुआ मक्तबा फैज जामा मस्जीद देवबंद यु.पी.]*_

_✍🏻 (2)....उम्मती अ़मल मे अंबीया से बजाहीर बराबर हो जाते है और बसा औकात बढ भी जाते है! [ माज़अल्लाह ]_

_*📕 [ तहज़ीरून्नास, सफा नं 5, प्रकाशक :- मक़तब-ए-फै़ज़, जामा मस्जिद, देवबन्द, यू-पी ]*_

_....वहाबियों के नक़ली मुजद्दिद मौलवी "रशीद अहमद गंगोही" अपनी किताब में अपना ख़बीस अ़कीदह बयान करते हुए लिखते हैं।_

_✍🏻 (1)....जो सहाब-ए-किराम, को क़ाफ़िर कहे वोह सुन्नत ज़माअत से खारिज नही होगा। [ यानी सहाब-ए-किराम, को क़ाफ़िर कहने वाला मुसलमान ही रहेगा। ] [ माज़अल्लाह ]_

_*📕 [ फ़तावा-ए-रशीदीया जिल्द नं 2, सफा नं 11, ]*_

_✍🏻 (2).... मोहर्रम में इमामे हुसैन [ रदि अल्लाहु तआला अन्हो ] की शहाद़त का बयान करना , सबील लगाना, शरबत पिलाना ऐसे कामों में चन्दा देना येह सब हराम है। [ माज़अल्लाह ]_

_*📕 [ फ़तावा-ए-रशीदीया, जिल्द नं 2, सफा नं 114, प्रकाशक :- मक़तब-ए-थानवी, देवबन्दी, यू पी ]*_

         ....इन्हीं रशीद अहमद गंगौही के शागिर्द और वहाबियों के बड़े इमाम "मौलवी खलील अहमद अम्बेठी" ने अपने उस्ताद "गंगौही" की इज़ाज़त और देख रेख में "बराहिनुल कातिअ़" नामी एक किताब लिखी आइये देखिए उसमें उन्होंने किया गुल खिलाया है।----

_✍🏻 (1)....हुज़ूर अकरम ﷺ से ज़्यादा इल्म शैतान को है। शैतान को ज़्यादा इल्म होना क़ुरआन से साबित है जबकि हुज़ूर का इल्म क़ुरआन से साबित नहीं है। जो शैतान से ज़्यादा इल्म हुज़ूर का बताए वोह मुश'रिक़ [ बुतो की पूज़ा करने वाला क़ाफ़िर ] है। [ माज़अल्लाह ]_

_*📕 [ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 55, ]*_

_✍🏻 (2)....अल्लाह तआला झूठ बोलता है। [यानी अल्लाह झूठा है।] [माज़अल्लाह]_

_*📕 [ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 273, ]*_

 _✍🏻 (3).... हुज़ूर अकरमﷺ का मीलाद [ईदे मिलादुन्नबी ] मनाना कन्हैया [ हिन्दूओ के देव ] के जन्मदिन मनाने की तरह है। बल्कि उससे भी ज़्यादा बदतर है। [ माज़अल्लाह ]_

_*📕 [ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 152, ]*_

_✍🏻 (4).... हुज़ूर ﷺ ने उर्दू ज़बान मदरसा-ए-देवबन्द में आकर उलमा-ए-देवबन्द से सीख़ी [ माज़अल्लाह ]_

_*📕 [बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 30, ]*_

_✍🏻 (5).... हुज़ूरﷺ को दीवार के पीछे का भी इल्म नहीं । [ माज़अल्लाह ]_

_*📕 [बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 55, प्रकाशक :- "कुतुब खाना इमदादिया" देवबन्द यू पी ]*_

               ....यह है "मौलवी अशरफ अली थानवी" जो वहाबियों के हकीमुल उम्मत है और वहाबियों के नजदीक इनके पैर धोकर पीने से नज़ात मिलती है। यह साहब अपनी किताब में लिखते हैं।------

_✍🏻 (1)....नबी-ए-करीम ﷺ को जो इल्मे गै़ब है इसमें हुज़ूरﷺ का क्या कमाल ऐसा इल्मे गै़ब तो हर किसी को हर बच्चे व पागलों बल्कि तमाम जानवरों को भी हासिल है। *[ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 [ हिफ़जुल इमान, सफा नं 8, प्रकाशक :- दारूल किताब, देवबन्द यू पी ]*_

_✍🏻 (2).... इन्हीं थानवी साहब की एक किताब "रिसाला-ए-अलइम्दाद" मे है कि------_
                _.....इनके एक मुरीद ने कलमा पढ़ा "ला इलाहा इल्लल्लाह अशरफ अली रसूलुल्लाह" *[ माज़अल्लाह ]* और अपने पीर अशरफ अली थानवी से पूछा कि " मेरा यह कलमा पढ़ना कैसा है" ?_

       _इसके जवाब में थानवी साहब ने कहा----- तुम्हारा ऐसा कहना ज़ायज़ है तुम इसके लिए परेशान न हो तुम अगर इस तरह का कलमा पढ़ रहे हो तो सिर्फ़ इस वजह से के तुम्हें मुझ से मुहब्बत है। लिहाजा तुम्हारा ऐसे कलमा पढ़ने में कोई हर्ज नहीं । *[माज़अल्लाह]*

_*📕 [ रिसाल-ए-इम्दाद, सफा नं 45, ]*_
               .....थानवी साहब की एक और फ़तवे की किताब "बहेशती ज़ेवर" में है। कि------
        _हाथ में कोई नज़िस [ ना पाक़ ] चीज़ [ पेशाब, आदमी का, जानवर का, पाखाना वगैरह ] लग जाए तो किसी ने जबान से तीन (3) मर्तबा चाट लिया तो पाक़ हो जाएगा। मगर चांटना मना है! *[ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 [ बहेशती ज़ेवर, जिल्द नं, 2 सफा नं 18, ]*_

_👉🏻 येह है जनाब "मौलवी इल्यास कानदहलवी" जो तबलीग़ी ज़माअत के बानी *[ Founder ]* है। इनका कहना है कि-----_
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_✍🏻 (1).... अल्लाह तआला अगर किसी से काम लेना नहीं चाहते तो चाहे तमाम अंबीया *(नबी)* भी कितनी कोशिश कर ले तब भी ज़र्रा नही हिल सकता और अगर लेना चाहें तो तुम जैसे जईफ से भी वह काम ले ले जो अंबीया *(नबियों)* से भी न हो सके। *[ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 [ मक़ातिबे इल्यास, सफा नं 107, प्रकाशक :- इदारहे इशाअ़ते दीनियात नई दिल्ली। ]*_

👉🏻 _यह है जनाब "मौलवी अबूआला मौदूदी" जिन्होंने जमाअ़ते-इस्लामी नाम की एक नई जमाअ़त क़ायम की थी। आज इस जमाअ़त की कई ज़ायज़ व ना ज़ायज़ औलादें S-I-M S-I-O के नाम से वज़ूद में आ चुकी है। जो मौदूदी ताअ़लीमात को फैला रही है इनके नजदीक मौदूदी ही सबकुछ है चुनान्चे इन्हें मौदूदी साहब हुक़्म देते हैं।_
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_✍🏻 (1)....तुम को खुदा की मरज़ी के मुताबिक ज़िन्दगी बसर करने का तरीक़ा नही माअ़लूम----- अब तुम्हारा फर्ज है। कि खुदा के सच्चेे पैग़म्बर की तलाश करो इस तलाश मे तुमको निहायत होश़ियारी और समझ बुझ से काम लेना चाहीये! क्यो के अगर किसी गलत आदमी को तुमने पैगंबर समझ लिया तो वह तुम्हे गलत रास्ते पर लगा देंगा! मगर जब तुम्हे खुब जॉंच पडताल करने के बाद यह यकीन हो जाए के फ़लां शख्स खुदा का सच्चा पैग़म्बर है तो उस पर तुम्हें पूरा भरोसा करना चाहिए। और उसके हर हुक़्म की इताअ़त करनी चाहिए। *[ माज़अल्लाह ]*_

_(मुख्तसर यह के मौदुदी साहब के नजदिक इस दौर मे भी खुदा का सच्चा पैगंबर तलाश करने की जरूरत है और यह तलाश फर्ज है)_

_*📕 [ रिसाल-ए-दीनियात, सफा नं 47, प्रकाशक :- मरक़जी मक़तबा इस्लामी, दिल्ली, ]*_

_👉🏻 यही मौदूदी साहब अपनी दूसरी किताब में लिखते हैं।----_
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_✍🏻 (2)....जो लोग हाज़ते माँगने अजमेर *[ख़्वाज़ा ग़रीब नवाज़ की मजार पर ]* या फिर सैय्यद़ सैय्यद़ सालार मसऊद गाज़ी की मजार पर या ऐसे ही दुसरे मकामात पर जाते हैं। वोह इतना बड़ा गुनाह करते हैं। कि कत्ल और जिना भी उस से कमतर *[ कम ]* है। *[ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 [ तजदीदो इहया-ए-दीन, सफा नं 96 प्रकाशक :- मरक़जी मक़तबा इस्लामी, नई दिल्ली ]*_

_👉🏻 यही अबूआला मौदूदी अपनी एक और किताब में अपनी यह ही आला दर्ज़े की बक़वास लिखते हैं। कि-----_
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_✍🏻 (3)....सब जगह अल्लाह के रसूल अल्लाह की किताब लेकर आए और बहुत मुम्क़िन है। कि बुध, कृष्ण, राम, मानी, सुकरात, फ़िसा, गोरस, वगैरह इन्हीं रसूलो में से हो । *[ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 [ तफहीमात, जिल्द नं 1, सफा नं 124, प्रकाशक :- मरक़जी मक़तबा इस्लामी, नई दिल्ली, ]*_

_👉🏻 वहाबियों के पीरो के पीर "महमूदुल हसन" ने अपनी एक किताब में लिख मारा कि-----_
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_✍🏻 (1).... झूठ, ज़ुल्म व तमाम बुराइयां [ जैसे चोरी, जहालत, ज़ुल्म, गी़बत, ज़िना, वगैरा ] करना अल्लाह के लिए कोई ऐब नही, और न इन कामों के करने की वजह से उस की ज़ात में कोई नुकसान आ सकता है। *[ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 [ जहदुलमक़्ल, जिल्द नं 3, सफा नं 77, ]*_

     _*[ हमारा ऐलान Our Challenge ]*_
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_✍🏻..हमने यहां जितने भी वहाबी जमाअ़त से मुत्अ़ल्लिक़ हवाले पेश किए है। वोह सब उन्हीं के उलमा की किताबों से नक़ल किये है। याद रहे येह किताबें आज भी छप रही है। और इनके मदरसो व क़ुतुब ख़ानो [ बुक स्टॉलो ] पर आसानी से मिल जाती है।_
             .... हमारा आ़म ऐलान [ challenge ] है। कि अगर कोई साहब इन बातों को या हवालों मे से किसी एक हवाले को गल़त साब़ित कर दे। तो उसे रुपये [50,000] नगद दिए जाएंगे
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            _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

              ✍🏻 _*.....भाग-0⃣7⃣*_

               _*[जरा इसे भी पढ़िए]*_
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_[आयत :- ].... हमारा रब जल्ला जलालहु इरशाद फरमाता है। कि------_
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_*💎 तर्जुमा :-....* तुम फ़रमाओ के अपनी दलील लाओ अगर तुम सच्चे हो।_

_*📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, सूरए नम्ल, पारा 20, रूकू 1, आयत नं 64, ]*_

_*✍🏻 [ आयत :-]....* और एक दूसरी जगह इरशाद फरमाता है। कि-----_
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_*💎 तर्जुमा :-....* जब सुबूत ना ला सके तो अल्लाह के नज़दीक वही झूठे हैं।_

_*📕 [ तर्जुमा :- कुरआने करीम, सूरए नूर, पारा 18, रूकू 8, आयत नं 13, ]*_

            _वहाबियों के यही वोह अक़ाएद [ faith ] है जिनकी वजह से ओलमा-ए-हरमैन तय्यबैन [ मक्का-ए-मुअ़ज़्ज़मा, व मद़ीना शरीफ के ] और दुनिया के तमाम ओलमा-ए-दीन ने वहाबियों को क़ाफ़िर, गुमराह, बद्'दीन, मुरतद, [ दीन से फिरे हुए ] और मुनाफ़िक़ करार दिया।------_

✍🏻 ....उलमा-ए-किराम इन लोगों के बारे में फरमाते है।---
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_📚 "जो इन [ वहाबियों ] के क़ाफ़िर होने मे और इनके अ़ज़ाब में शक करे वोह खुद भी क़ाफ़िर है"।---_

_*📕 [ हस्सामुल हरमैन, ]*_

_*✍🏻 [ हदीस :-]....* हज़रत अबूह़ुरैरा, हज़रत अनस बिन मालिक, हज़रत अब्दुल्लाह बिन ऊमर, व हज़रत जाबिर [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। कि हुज़ूरे अक़दसﷺ ने इरशाद फरमाया----_
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_👉🏻 "अगर बद़ मज़हब, बेदीन, मुनाफ़िक़ बीमार पड़े तो उनको पूछने न जाओ, और अगर वोह मर जाए तो उनके ज़नाज़े पर न जाओ, उनको सलाम न करो, उनके पास न बैठो, उनके साथ न खाओ न पियो, --- न ही उनके साथ शादी करो--- न उनके साथ नमाज़ पढ़ो,"_

_*📕 [ मुस्लिम शरीफ, अबूूदाऊद शरीफ, व इब्ने माज़ा शरीफ, मिश्क़ात शरीफ, ]*_

_*📚 [हदीस :-]....* हज़रत इब्ने अ़दी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] हज़रत मौला अली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत करते है कि हुज़ूर अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया------_
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_📚 जो मेरी इज़्ज़त न करे और मेरे अन्सारी सहाबा और अ़रब के मुसलमानो का हक़ न पहचाने वोह तीन हाल से खाली नहीं,_
            *(1)या तो मुनाफ़िक़ है,*
            *(2)या हराम की औलाद,*
            *(3) या हैज़ [ माहवारी ] की*
                *हालत में जना हुआ।*

_*📕 [ बयहक़ी शरीफ, बहवाला इसअ़तुल अ़दब लफ़ाज़िलिन्नसब, सफा नं 46, अज :- आला हज़रत, ]*_

_*📕 [हदीस :-]....* हज़रत इकरेमा [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। हज़रत मौला अली [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] की ख़िदमत में कुछ बद'दीन, गुस्ताख़, पेश किए गएे तो आपने उन्हें ज़िन्दा जला दिया जब यह खबर इब्ने अब्बास [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] को पहुँची तो उन्होंने ने फरमाया--_
                  _के अगर मै होता तो उन्हें न जलाता क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ ने किसी को जलाने से मना फरमाया है बल्कि उन्हें कत्ल करता कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया----- "जो अपना दीने इस्लाम तब्दील करे उसे कत्ल कर दो"।_

_*📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द 3, हदीस नं 1814, सफा नं 658, ]*_

_*💎 [ आयत :-]....* अल्लाह जल्ला जलालहु इरशाद फरमाता है-----_
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_*💎 तर्जुमा :-....* ऐ गै़ब की ख़बर देने वाले [ नबी ] जिहाद [ जंग ] फ़रमाओ क़ाफ़िरो, और मुनाफ़िक़ो पर और सख़्ती करो।_

_*📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, सूरए तौबा, पारा 10, आयत नं 73, ]*_

_[आयत :-].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है-----_
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_💎 तर्जुमा :-....और तुम मे से जो कोई उनसे दोस्ती करे वोह उन्हीं मे से है।_

_*📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 6, सूरए माएदह, आयत नं 51, ]*_
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          🔴🔵 *_ज़रा सोचिए_* 🔵🔴
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      _अब भी क्या कोई ग़ैरतमन्द इन्सान अपनी बेटी ऐसे क़ाफ़िरो, मुनाफ़िक़ो के यहाँ ब्याहना पसंद करेगा ?।_
          _अब भी क्या कोई ग़ुलामे रसूल इन गुस्ताख़ वहाबियों की लड़कियाँ अपने घर लाना गंवारा करेगा?।_
         
  _...अब भी क्या कोई आशिके़ नबी अपने नबी के इन गुस्ताख़ो से रिश्ता जोड़ना चाहेगा?।_
         
          _हमारा यह सवाल उन लोगों से है। जिनमें ग़ैरत का ज़रा सा भी हिस्सा बाकी है जिन्हें दौलत से ज़्यादा अल्लाह व रसूल की खुशी प्यारी है। और रहे वोह लोग जो किसी दुनियावी लालच या हुस्न व जमामाल या फिर माल व दौलत से मुतास्सिर [ Impres ] होकर वहाबियों से रिश्ता बनाए हुए है या रिश्तेदारी करना चाहते हैं तो उनके मुत्अ़ल्लिक़ ज़्यादा कुछ कहना फ़ुजूल है। वोह अपनी इस हवस व लालच मे जितनी दूर जाना चाहें चले जाए अब इस्लाम का कोई कानून, शरीअ़त की कोई दफअ़, कोई ज़न्जीर उनके इस उठे हुए क़दम को नही रोक सकती। लेकिन हाँ ! हाँ याद रहे यक़ीनन एक दिन अल्लाह और उसके रसूल को मुँह दिखाना है।_
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              _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

                  ✍🏻 _*.....भाग-0⃣8⃣*_

                *_[जरा इसे भी पढ़िए]*_
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                 _*[ निकाह कहाँ करें ]*_
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_*📚 [ हदीस :-]....* उम्मुलमोमेनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा, हज़रत अनस बिन मालिक, हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने ऊमर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हा ] से रिवायत है। कि हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फरमाया-----_
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_📚 "अपने नुत्फे़ [ शादी के लिए ] अच्छी जगह तलाश करो, अपनी बिरादरी में ब्याह हो, और बिरादरी से ब्याह कर लाओ कि औरतें अपने ही कुन्बे [बिरादरी] के मुशाबा [मिलते हुए बच्चे पैदा करती है।]_

_*📕 [ इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, हदीस नं 2038, सफा नं 549, बयहक़ी शरीफ़, व हाकिम, ]*_

 इस हदीसे पाक से पता चलता है कि अपनी ही बिरादरी में शादी करना बेहतर है। अपनी ही बिरादरी में निकाह करने के बहुत से फायदे हैं जैसे----

_(1)औलाद अपनी बिरादरी के लोगों के चेहरे से मिलती जुलती पैदा होंगी जिस की वजह से दूसरे लोग देखते ही पहचान लेंगे कि यह सैय्यद है, यह पठान है, यह शैख है वगैरह।_

 _(2) दूसरा यह फ़ायदा है कि बिरादरी की गरीब लड़कियों की जल्द से जल्द शादी हो जाएगी, और शादी मे खर्च कम होंगे!_

 _(3) तीसरा फायदा यह है कि अपनी ही बिरादरी की लड़की हो तो वह बिरादरी के तौर तरीके, घर के रहन सहन तहजीब व तमद्दुन से पहले से ही जानकार होती है लिहाज़ा घर में झगड़े ना इत्तेफ़ाक़ियां का माहोल पैदा नही होगा!_

 _(4) चौथा फ़ायदा यह है कि बिरादरी की ऐसी लड़कियाँ जो देखने दिखाने में ज़्यादा खूबसूरत नहीं होती उनकी भी शादी हो जाएेगी । अक्सर देखा गया है कि लोग दूसरे बिरादरी की खूबसूरत लड़कियों को ब्याह कर लाते हैं। जब के उनके बिरादरी की बद सूरत लड़कियाँ कुंवारी रह जाती है और बहुत सी लड़कियों की जब शादी नही हो पाती तो वह किसी बदमाश, आवारा, मर्द के साथ भाग जाती है या फिर तरह तरह की बुराइयों में फँस जाती है यही वजह है कि बिरादरी में ही शादी करना बेहतर बताया गया।_

_*📚 [ हदीस :-]....* हज़रत इमाम बुखारी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। कि------_
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_👉🏻 "और मुस्तहब [ अच्छा बेहतर ] है के अपनी नस्ल के बेहतर औ़रत चुने लेकिन यह वाज़िब नही" [ सिर्फ मुस्तहब है ]_

_*📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 41, सफा नं 56, ]*_
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_*📚 [ हदीस :-]....* हज़रत अनस [ रदि अल्लाहु तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीमﷺ ने इरशाद फरमाया-----_
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_👉🏻 "अच्छी नस्ल में शादी करो [रगे खुफ़या काम करती है ]"_

_*📕 [ दारक़ुत्नी शरीफ, बहवाला इराअतुल अदब लेफ़ाज़िलिल नसब, सफा नं 26, अज़ :- आला हज़रत ]*_

_*📚 [ हदीस :-]...* और फरमाते है आक़ा ﷺ ------_
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_📚 "घोड़े की हरयाली से बचो, बुरी नस्ल में खूबसूरत औरतों से,"_

_*📕 [ दारक़ुत्नी शरीफ, बहवाला इराअतुल अ़दब लेफ़ाज़िलिल नसब, सफा नं 26, अज़ :- आला हज़रत ]*_

           _लड़की का खूबसूरत होना ही काफ़ी नही बल्कि ख़ूबी तो येह है कि लड़की पर्दादार, नमाज़ रोज़े की पाबंद हो, उसका खानदान रहेन-सेहन, तहज़ीब व अख़्लाक, मे और ख़ास तौर पर मज़हबी अक़ाएद मे बेहतर हो (बिल खुसुस सहीउल अकीदा सुन्नी हो) । अगर आपने यह सब चीजों को देख कर निकाह किया तो आप .की दुनिया व आख़िरत कामयाब है और आगे ऐसी लड़की के जरिए, फ़रमांबरदार, मज़हबी और दुनियावी ख़ूबियों वाली बेहतर नस्ल जन्म लेती है। चुनान्चे सरकारे दो आलमﷺ ने हमें यही हुक़्म दिया है।_

_*📚 [ हदीस :- ]....* हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत जाबिर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हुम ] से रिवायत है। कि हुज़ूर अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया-----_
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       💎 "औरत से चार चीजों की वजह से निकाह किया जाता है। उसके दौलत, उसके खानदान, उसके हुस्न व ज़माल, और उसके दीनदार होने की वजह से, लेकिन तू दीनदार औरत को हासिल कर"!

_*📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 59, तिर्मिज़ी शरीफ. जिल्द नं 1, सफा नं 555, ]*_
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_*📚 [ हदीस :-]....* नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया-----_
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      _"औरतों से उनके हुस्न के सबब से शादी न करो हो सकता है उनका हुस्न तुम्हें तबाह कर दे, न उन से माल की वजह से शादी करो हो सकता है उनका माल तुम्हें गुनाहो मे मुब्तला न कर दे, बल्कि दीन की वजह से निकाह किया करो। काली चपटी, बदसूरत लौन्डी अगर दीनदार हो तो बेहतर है।"_

_*📕 [ इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, हदीस नं 1926, सफा नं 522, ]*_

                _इमाम ग़ज़ाली [ रदि अल्लाहु तआला अन्हो ] इरशाद फरमाते है----_
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           _"अगर कोई औरत खूबसूरत तो है मगर दीनदार व परहेज़गार व पारसा नही तो बुरी बला है----बद मिज़ाज औरत, ना शुक्रगु़जार, और ज़बान दराज़ होती है और मर्द पर बेजा हुकूमत करती हैं, ऐसी औरत के साथ जिन्दगी बदमज़ा हो जाती है और दीन में ख़लल पड़ता है।"_

_*📕 [ कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]*_

         _याद रखिये अगर आप ने सिर्फ ऐसी लड़की से निकाह किया जो माल व दौलत (जहेज) ख़ूब साथ लाई और खूबसूरत भी बहुत थी लेकिन दीनदार नही और न ही तहज़ीब व इख़्लाक के मामले में बेहतर, तो आप उस के साथ यक़ीनन एक अच्छी और खु़शहाल जिन्दगी नहीं गुज़ार सकते, ऐसी लड़की की वजह से घर में हमेशा तनाव रहता है और आखिर कार माँ, बाप, से दूर होना पड़ जाता है इसलिए जहां आप खूबसूरती, माल व दौलत, को देखते है। इन सब से ज़्यादा जरूरी है कि आप उस का इख़्लाक, उस का खानदान और खास तौर से दीनदार है कि नही येह जरूर देखें, तभी आप कामयाब ज़िन्दगी के मालिक बन सकते हो।_
            अगर एक खूबसूरत लड़की में येह सब खूबियां नही और उसके उलट किसी बदसूरत लड़की में दीनदारी है तो वोह बदसूरत लड़की उस खूबसूरत लड़की से बेहतर है।
               अक्सर हमारे भाई दौलतमन्द, फै़शन प्रस्त लड़की पर मरते हैं और दौलत को बहुत अ़हमियत देते हैं जब के दौलत से ज़्यादा दीनदारी को अ़हमियत देनी चाहिए।

_*📚 [ हदीस :- ]....* हुज़ूर अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया----_
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_💎 "जो कोई ज़माल (ख़ूबसूरती) या माल व दौलत की ख़ातिर किसी औरत से निकाह करेगा----तो वोह दोनों से मेहरूम रहेगा और जब दीन के लिए निकाह करेगा तो दोनों मकसद पूरे होंगे"_

_*📕 [ कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]*_

_*📚 [ हदीस :-]..* और फरमाया रसूलुल्लाह ﷺ ने----_
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_💎 "औरत की तलब दीन के लिए ही करनी चाहिए जमाल (खूबसूरती) के लिए नही"।_
                  _इसके माना यह है कि सिर्फ़ खूबसूरती के लिए निकाह न करें। न यह कि खूबसूरती ढ़ून्डे़ ही नहीं, अगर निकाह करने से सिर्फ़ औलादें हासिल करना और सुन्नत पर अ़मल करना ही किसी शख़्स का मक़सद है खूबसूरती नहीं चाहता तो येह परहेज़गारी है।_

_*📕 [ कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]*_

_*💎 [ आयत :-]....* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है----_
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_*💎 तर्जुमा :-....* अगर वह फक़ीर (गरीब) हो तो अल्लाह उन्हें ग़नी कर देगा। अपने फज़्ल के सबब_

_*📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 18, सूरए "नूर", आयत नं 32, ]*_

    _लिहाजा अगर किसी लड़की में दीनदारी ज़्यादा हो चाहे वोह कितनी ही गरीब क्यों न हो उससे शादी करना बेहतर है क्या अज़ब के अल्लाह तआला उससे शादी करने की और उस की बरक़त से आप को भी दौलत से नवाज़ दे । आप को उस नेक व गरीब लड़की से वोह ही खुशी व सुकून मिल सकता है जो एक दौलतमन्द बद मिज़ाज, मार्डन (modern) फ़ैशन की परस्त लडकी से नही मिल सकता! हाँ अगर कोई लडकी दौलतमन्द होने के साथ-साथ ही दीनदार, नेक सिरत, अच्छे अख़्लाक वाली हो, पर्दादार हो और ऐसी लडकी कोई शादी करे तो यह यकीनन बडी खुश नसीबी की बात है बेशक अल्लाह तआला माल व दौलत, व चेहरों को नही देखता बल्कि तक़वा व परहेज़गारी को देखता है।_
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             _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

               ✍🏻 *_.....भाग-0⃣9⃣_*

              *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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       _*🔵 [ शादी के लिए इस्तेख़ारा ] 🔵*_
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       _किसी नये काम को शुरु करने से पहले इस्तेख़ारा करना चाहिए, इस्तेखा़रा उस अमल को कहते है जिसके करने से ग़ैबी तौर पर यह माअ़लूम हो जाता है के फु़ंला काम करने मे फ़ायदा है या नुक़सान । अगर वह काम आपके लिये अच्छा है तो इस्तेखारा की बरकत से गैब से असबाब पैदा हो जाते है! और अगर वह काम आपके लिये बेहतर नही है तो कुदरती तौर पर इंसान इस काम से रुका रहता है!_

         _इस्तेखा़रा और "शगून" में बहुत फ़र्क़ है इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में अल्लाह से दुआ़ करना और उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है। जबकि शगून जादूगरो, छू- छा करने वाले, सितारों से, परिन्दो से, सिफ्ली इल्म जानने वालो से, नुजूमीयो से ज्योतिषीयों, वगै़रह , और इस तरह की दूसरी चीज़ों के जरिए लेते हैं।_

        _इसी तरह जादुगर, नुजुमी ज्योतिषी और सिफली इल्म जानने वालो के पास आगे पेश होने वाले हालात जानने के लिये जाना और उनकी बातो पर यकीन करना कुफ्र है!_
_*📚 [ हदीस :- ]....* सरकारे मद़ीना ﷺ ने इरशाद फरमाया-----_
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         _जो किसी काहीन (भवीष्य बताने वाला) के पास जाए और उसकी बात सच्ची समझे तो वह काफीर हुआ उस चिज से जो मुहम्मद मुस्तफा ﷺ पर नाजील हुई!_

_*📚 (अबु दाऊद शरीफ जिल्द नं ३, बाब नं २०३, हदिस नं ५०७)*_
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*और फरमाते है नबी ए करीम ﷺ*

         जो किसी काहिन के पास जाए और उससे कोई गैब की बात पुछे, तो उसकी चालीस दिन तौबा कबुल ना हो! और काहीन की बात पर यकीन रखे तो काफीर हो गया!
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_*फतावा तारखानीया मे है!*_
   
         _जो कहे मै छिपी हुई चिजो को जान लेता हू, या जिन्न के बताने से बता देता हु, तो वह काफीर है!_

         _इसी तरह शगुन लेना शरीयत ए इस्लामी मे शिर्क बताया गया है! शिर्क करने वाला हमेशा हमेशा जहन्नम मे रहेंगा!_
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_*📚 हदिस....* हजरत इब्ने मसऊद रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने रसुल ए करीम ﷺ का यह इरशाद बयान किया है!_
   
     _"शगुन लेना शिर्क है, शगुन लेना शिर्क है, अगरचे अक्सर लोग शगुन लेते है!_
_*📚 (मिश्कात शरीफ, जिल्द नं २, हदिस नं ४३८०)*_
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_"तबरानी" ने हजरत इब्ने उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु के हवाले से लिखा है!_

       _"शगुन लेना शिर्क शिर्क है, और यह अल्फाज तिन मरतबा अदा किये! फिर कहा " सफर को जाने वाला किसी शगुन की वजह से लौट आए तो उसने हुजुर ﷺ पर नाजील शुदा अहकाम ए इलाही याने *(कुरआन ए करीम)* का इंकार किया!_
_*(तबरानी शरीफ)*_
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    _"रिवायत है के जो शख्स किसी शगुन की रु (वजह) से अपना काम न कर सका तो यकीनन उसने शिर्क किया!_

_*📚 (मा सबता बिसुन्नह फी अय्यामिन सुन्नह सफा नं ६३)*_
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     _इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में अल्लाह से दुआ़ करना और उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है। यह रसूलुल्लाह ﷺ, सहाबाए किराम और बुजु़र्गाने दीन का तरीक़ा है।_
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_*📚 [ हदीस :- ]....* हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह [ रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते हैं।--------_
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      _रसूलुल्लाह ﷺ हमें हर काम में हमें इस्तेखा़रा की तलक़ीन फ़रमाते थे जैसे क़ुरआन की कोई सूरत सिखाते"_

_*📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं 455, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं 292, ]*_
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_*📚 [ हदीस :- ]* सरकारे मदिना ﷺ ने इरशाद फरमाया ......_

        _"अल्लाह तआला ने इस्तेखा़रा करना औलादें आदम [ इन्सानो ] की ख़ुशबख़्ती है और इस्तेखा़रा न करना बद बख़्ती है"।_
   
       _इस्तेखा़रा किसी भी नये काम को शुरू करने से पहले करना चाहिये जैसे नया कारोबार शुरू करना हो, नया मकान बनानाया ख़रीदना हो, किसी सफ़र पर जाना हो, या कोई नयी चीज़ ख़रीदना है, वगैरह वगैरह इन सब में नुकसान होगा या फ़ायदा यह जानने के लिए इस्तेखा़रा का अ़मल किया जाना चाहिए।_

_....अब चूंकि शादी एक ऐसा काम है जिस पर सारी ज़िन्दगी के आराम व सुकून का दारोमदार है बीवी अगर नेक, परहेज़गार, मुहब्बत करने वाली, ख़ुशमिज़ाज होगी तो ज़िन्दगी ख़ुशियों से भरी होगी और आने वाली नस्ल भी एक बेहतर नस्ल साब़ित होंगी। लेकिन अगर बीवी बदमिज़ाज, बदक़ार, बेवफ़ा, हुई तो सारी ज़िन्दगी झगड़ो से भरी और सुकून से खाली होगी। यहाँ तक कि तलाक़ तक नौबत पहुँच जाऐगी । लिहाजा जरूरी है कि शादी से पहले ही माअ़लूम कर लिया जाए के जिस औरत को अपनी शरीकेे जिन्दगी [ बीवी ] बनाना चाहता है। वोह दीन व दुनिया के एतेबार से बेहतर साबित होगी या नहीं।_
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_*📚 [ हदीस :- ]....* हज़रत इब्ने ऊमर व हज़रत सहल बिन सअ़द [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया--------_

   💫 "अगर नहुसत किसी चीज़ में है तो वह घर, औरत, और घोड़ा है _[ यानी अगर दुनिया मे कोई चीज़ मन्हूस होती तो यह हो सकती थी, लेकीन होती नही हैं ]_

_*📕 [ मुस्नदे इमामे आ़ज़म बाब नं 121, सफा नं 211,मोता इमाम मालिक़, जिल्द नं 2, बाब नं 8, हदीस नं 21, सफा नं 207, बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 47, हदीस नं 86, सफा नं 61, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 327, हदीस नं 730, सफा नं 295, अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3 बाब 206, हदीस नं 524, सफा नं 186, नसाई शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 538, इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 643, हदीस नं 2064, सफा नं 555, मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 2953, सफा नं 70, मासबता बिस्सुन्ना, सफा नं 70, ]*_
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_👉🏻 इमाम तिर्मिज़ी [रदिअल्लाहो तआला अन्हु ] इस हदिस के मुत्ताल्लीक इरशाद फरमाते है------_

         _यह हदीस हसन सही है هذا حديث حسن صحيح" यह हदीस अहादीस की और दीगर किताबों जैसे मुस्लिम शरीफ, मुस्नदे इमाम अहमद, तबरानी वगैरा में भी नक़्ल है। इस से पहले एडीशनो में हमने ये हदीस बुखारी के अ़ल्फाज़ मे नक़्ल की थी और हालाँकि अपनी तरफ से इस पर कोई तबसेरा भी नही किया था। लेकिन इस के बावजूद कुछ ना वाक़िफ़ो ने इस पर एतराज़ात किये थे। लिहाजा इस बार मज़ीद हवाले बढ़ा दिये गये है। अब भी अगर किसी साहब का हम पर इल्ज़ाम बाकी हो तो वोह हमसे सही हवाले देख सकते हैं।_

_*📚 [ शरह :- ]....* इमामे आ़ज़म अबू हनीफा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] इस हदीस की तशरीह में फरमाते है। कि-----_
*___________________________________*
      👉🏻 _....… घर की नहुसत यह है कि वह तंग [छोटा] हो [और बुरे पड़ोसी हो] घोड़े की नहुसत यह है के सरकश हो! औरत की नहुसत यह है के बद अख्लाख हो, हजरत इमाम हसन बिन सुफियान रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने उसमे इजाफा किया और कहा की बद अख्लाख और बांज हो!_

_*📕 [ मुस्नदे इमामे आ़ज़म, बाब नं 121, सफा नं 212,*_

_*✍🏻 [ शरह :- ]....* इसी हदीस की शरह में आ़ला हज़रत इमाम अहले सुन्नत हजरत अहमद रज़ा ख़ाँन कादरी, महद्दीस बरेलवी *[रदिअल्लाहो तआला अन्हु]* इरशाद फरमाते है। ------_
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       💎 "शरीअ़त के मुताबिक़ नहूसत यह है कि घर तंग हो, पड़ोसी बुरे हो, और घोड़े की नहूसत यह है कि शरीर हो बद लगाम हो, बद रकाब हो, औरत की नहूसत यह है कि बदज़बान, बद अख़्लाक *(जुबान दराज)* हो, । और बाकी यह ख़्याल हो के औरत के चेहरे से यह हुआ फु़ंला के चैहरे से यह हुआ , यह सब बातील *(बकवास)* है और क़ाफ़िरों के ख़्याल है"

_*📕 [ फ़तावा ए रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 254, ]*_
*_________________________________*
       _अब आपने जान लिया के किसी शख्स के लिये कोई औरत नहुसत का सबब *(यानी बद अख्लाख, और जुबान दराज)* भी हो सकती है, और फित्ना भी! जाहीर है जो औरत बद अख्लाख, जुबान दराज, और फित्ना परवर हो तो तकलिफ व परेशानी का सबब होंगी! लिहाजा यह जानने के लिये की जिस लडकी से आप निकाह करना चाहते है वह आपके हक मे बेहतर साबीत होंगी या नही! सह सब जानने के लिये इस्तेखारा जरुर करे!_
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            _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

             ✍🏻 _*....भाग-1⃣0⃣*_

              _*[जरा इसे भी पढ़िए!]*_
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   _*🔵 [ इस्तेख़ारा करने का तरीका ] 🔵*_
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_(1) जिस से निकाह करने का इरादा हो तो पैग़ाम या मंगनी के बारे मे किसी से ज़िक्र न करें। अब रात को खूब अच्छी तरह वुज़ू कर के जितनी नफ्ल नमाज़े पढ़ सकता है दो दो रकाअत करके पढ़े । फिर नमाज़ ख़त्म करने के बाद खूब खूब अल्लाह की तस्बीह बयान करे। *[जो भी तस्बीह याद हो ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ें!]* जैसे.. अल्लाहु अक़बर اللٰہ اکبر, सुब्हान अल्लाह سبحان اللہ, अल्हमदुलिल्लाह الحمداللہ, या रहेमान, या रहीम یا رحیم, या करीम یا کریم, वगैरह फिर उसके बाद यह दुआ़ खुलूस व दिल की गहराई से येह दुआ पढ़ें---------_
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_*💎 दुआ :-....* अल्लाहुम्मा इन्न-का-तक़दुरू वला अक़दरू व तअ़लमु वला आ़लमु व अन-ता-अल्लामुल गु़यूबी-फ-इन-रा-एै-ता-अन्ना फी *[यहां लड़की का पूरा नाम ले ]* खैरल ली फी दीनी व दुनया-या-व अाख़ेरती फ़क़ दिरू हाली व इन काना गै़रू-हा-ख़ैरम मिन-हा-फी दीनी व आ़खेरती फ़क़ दिर हाली ०_

_*[ तर्जुमा :- ]....* एे अल्लाह तू हर चीज़ पर क़ादिर है। और मै क़ादिर नही और तू सब कुछ जानता है मै कुछ नही जानता! बेशक तू गै़ब की बातों को खूब जानता है अगर *[लड़की का नाम ले ]* मेरे लिए मेरे दीन के एतेबार से, दुनिया व आ़ख़ेरत के एतेबार से बेहतर हो तो उस को मेरे लिए मुक़द्दर फरमा दे । *(अगर वह मेरे लिये बेहतर ना हो तो)* इसके अलावा और कोई लड़की या औरत मेरे हक़ में मेरे दीन व आ़ख़ेरत के एतेबार से उस से बेहतर हो तो उस को मेरे लिए मुक़द्दर फ़रमा दे।_

_*📕 [ हिस्ने हसीन, सफा नं 160 ]*_
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      _इस तरह इस्तेखा़रा करने से इन्शा अल्लाह तआला सात *(7)* दिनो मे ख़्वाब या फिर बेदारी मे ही अल्लाह की जानिब से कुछ ऐसा जा़हिर होगा या कुछ ऐसा वाके होंगा जिससे आपको अंदाज़ा हो जाऐगा के उस लड़की या औरत से निकाह करने में बेहतरी है या नहीं_

   _(2) कुछ उलमा-ए-किराम ने इस्तेखा़रा करने का तरीका यह भी नकल किया है। कि--------_
*___________________________________*
          _रात को दो रक्अ़त नमाज़ इस तरह पढ़ें के पहली रकाअत मे सूरए फ़ातिहा *[अलहम्दु शरीफ]* के बाद सुरह ए काफीरून *[कुल या अय्युहल काफ़ेरून]* और दूसरी रकाअ़त में सूरए फ़ातिहा के बाद सुरह ए इख्लास *(कुल हुवल्लाहु अहद)* पढ़ें। और सलाम फेर कर दुआ पढ़ें *(वही दुआ जो हमने ऊपर बयान की है)* दुआ से पहले और बाद मे सूरह ए फ़ातिहा और ग्यारह- ग्यारह मरतबा दुरूद शरीफ, जरूर पढ़ें *(अव्वल व आखीर)*_

     _बेहतर यह है की यह काम सात मरतबा दोहराए *[यानी सात (7)* रोज़ लगातार रात को इस तरह अमल करें! *(एक ही रात में सात मरतबा भी कर सकते हैं)* इस्तेखा़रा करने के बाद फौरन बा तहारत किब्ला की तरफ रुख करके सो जाए! अगर ख़्वाब में सफ़ेद या हरे रंग की कोई चीज़ नजर आए तो कामयाबी है! यानी उस लड़की से निकाह करना ठीक होगा। और अगर लाल या काली रंग की चीज़ नजर आए तो समझे कामयाबी नहीं! यानी उस लड़की से निकाह करने में बुराई है। *[वल्लाहु तआला आ़लम]*_
                               
_(अरबी मे दुआ भी अल्फाज की दुरूस्तगी के लिये इसके साथ निचे दि गयी है, उसका भी मुलाहीजा फरमाए!)_
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          _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

            ✍🏻 _*.....भाग-1⃣1⃣*_

              _*[जरा इसे भी पढ़िए!]*_
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    _*🔵 [मंगनी या निकाह का पैग़ाम] 🔵*_
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_*💎 [ आयत :- ]....* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है-------_

_* 💎 तर्जुमा.....* और तुम पर गुनाह नही इस बात मे जो पर्दा रख कर (पर्दे के साथ) तुम औरतों के निकाह का पयाम दो----_

_*📕 [ कुरआन कन्जुल इमान, पारा 2, सूरह ए बखरा, आयत नंबर 235, ]*_

_....जब किसी लड़की या औरत से शादी का इरादा हो तो उसे शादी का पैग़ाम देने से पहले यह जरूर देख ले के उस लड़की या औरत को किसी और शख्स (इस्लामी भाई) ने पहले से ही तो पैग़ाम नही दिया है या उस की लडकी की मंगनी तो नही हो गयी है।_   
        _.... अगर किसी और ने उस लड़की को निकाह का पैग़ाम दिया है या उसके रिश्ते की बात किसी के मुताल्लीक चल रही हो तो उसे हरगिज़ पैग़ाम न दे के इसे इस्लामी शरीअ़त मे सख्त नापसंद किया गया है चुनांचे हदीस पाक में है_

_*📚 [ हदीस :- ]....* हज़रत अबू ह़ुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर [रदि अल्लाहु तआला अन्हुम ] से रिवायत है। कि हुज़ूरे अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया-------_

_* 💫 "कोई शख्स (आदमी) अपने इस्लामी भाई के पैग़ाम पर उसी लडकी को निकाह का पैग़ाम न दे! यहां तक कि पहला खुद इरादा तर्क कर दे, या उसे पैग़ाम भेजने की इज़ाज़त दे" ।*_

_*📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द 3, सफा 78, मोता शरीफ, जिल्द 2, सफा 415, ]*_

      _मंगनी असल मे निकाह का वादा है! अगर यह न भी हो तो तब भी कोई हर्ज नही! लिहाजा बेहतर तो यही है के मंगनी की रस्म *(Engagement)* के नाम पर होनेवाली कुरापात को बिल्कुल ही खत्म कर दीया जाए, उसकी कोई जरुरत नही है! आजकल उसे एक जरुरी रस्म बना लिया गया है!और उसे शादी की तरह निभाते है, शादी की तरह उसमे खर्च करते है! इस रस्म मे रुपयो की बरबादी के सिवा कुछ नही! लिहाजा इस रिवाज को छोडना ही बेहतर है! मुरवज्जा मंगनी की रस्म मे मुसलमानो मे इंतेहाई मुबालेगा पाया जा रहा है! गालीबन यह रस्म हमने हिंदुस्तान मे गैरमुस्लीमो से अपनाई है! क्यो के इस अंदाज से रस्म की अदायगी सिवाए भारत और पाक के अलावा कही नही पाई जाती है! बल्की अरबी और फारसी जुबान मे इसका *(रस्म)* का कोई नाम भी नही है!(मसलन मंगनी,सगाई, कढाई और साख वगैरह!)_           
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    🔴🔵 *_(वल्हाहु तआला आलम)_* 🔵🔴
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       _अगर मंगनी करना जरूरी ही समझते है, तो उसे निहायत सादगी के साथ अदा करे! जिससे के माशरे के गरीब मुसलमान भाई अहसास ए कमतरी और हिन भावना का शिकार होने से बच जाए!_
💎💎💎💎💎💎💎💎💎💎💎💎




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          _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

           ✍🏻 _*.....भाग-1⃣2⃣*_

            *[जरा इसे भी पढ़िए!]*
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*♻ [ निकाह से पहले लड़की देखना ] ♻*
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      _किसी लड़की या औरत को किसी गैर मर्द को दिखाने में कोई हर्ज नही जब वोह उस से शादी का इरादा रखता हो या उसने शादी का पैग़ाम भेजा हो लेकिन, उस मर्द के दूसरे मर्द रिश्तेदारों या दोस्त अ़हबाब को नही दिखाना चाहिए कि वह गैर मरहम है *[जिन से पर्दा करना जरूरी है]* लिहाज़ा सिर्फ़ लड़के या मर्द और उसके घर की औरतें ही लड़की देखे_

           _निकाह से पहले लड़की को देखना मुस्तहब है लेकिन इस बात का जरूर ख्याल रखें कि लड़के को लड़की इस तरह दिखाएँ कि लड़की को भनक भी न लगे कि लड़का उसे देख रहा है *[यानी खुल्लम-खुल्ला सामने न लाए]* अगर इस एहतियात से दिखाया जाएगा तो उसमे कोई हर्ज नहीं बल्की बेहतर है कि बाद में किसी किस्म की ग़लत फ़हमी नही होती_
📚 *[ हदीस :- ] हज़रत मुहम्मद सलामा [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते हैं*

    _"मैं ने एक औरत को निकाह का पैग़ाम दिया मैं उसे देखने के लिए उस के बाग में छुप कर जाया करता था यहां तक कि मैंने उसे देख लिया किसी ने कहा "आप ऐसी हरकत क्यों करते हैं हालांकि आप हुज़ूर ﷺ के सहाबी हैं?"_

   *तो मैंने कहा रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया*

  "जब अल्लाह ताआ़ला किसी के दिल में किसी औरत से निकाह की ख्वाहिश डाले और वह उसे पैग़ाम दे तो उसकी जाने देखने में कोई हर्ज नहीं"

📕 _*[ इब्ने माज़ा शरीफ, जिल्द नं 1, बाबू नं 597, हदीस नं 1931, सफा 523, ]*_
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_*📚 [ हदीस :- ]* हजरत जाबिर [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया..._

_💎 "जब तुम में से कोई औरत को निकाह का पैग़ाम दे अगर उस औरत को देखना मुम्किन हो तो देख ले"_

📕 *[ अबू दाऊद शरीफ, बाब नं 96, हदीस नंबर 314, जिल्द 2, सफा नं 122, ]*
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_📚 हदीस हुज़ूर सैय्यदना इमाम बुख़ारी [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी मशहूर किताब "सही बुखारी" जिल्द 3, बाब "किताबुन निकाह" मे निकाह से पहले औरत को देखने के मुत्अ़ल्लिक़ एक ख़ास बाब *[Chapter]* लिखा है जिसमें यह साबित किया है के निकाह से पहले औरत को देखना जाइज़ है। चुनांचे उस बाब की एक तवील हदीस मे है के-----_

*(हदिस अगले पार्ट मे पेश की जाएंगी! इंशा अल्लाह तआला!)*
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          _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

                ✍🏻 _*.....भाग-1⃣3⃣*_

                *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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*♻ [ निकाह से पहले लड़की देखना ] ♻*
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   _💎 हुज़ूरे अकरम ﷺ की ख़िदमते अक्दस में एक मर्तबा एक सहाबिया खातुन हाजीर हुई और आपसे निकाह की दरख़्वास्त की, लेकिन हुज़ूर ﷺ ने अपना सर मुबारक झुका लिया और उन्हें कुछ जवाब न दिया । एक सहाबी ने खड़े होकर अ़र्ज़ किया "या रसूलुल्लाह अगर आपको उस औरत की जरूरत नही है, तो उसका निकाह मेरे साथ फरमा दीजिए" । हुजुर ﷺ के उन से पूछने पर मअ़लूम हुआ कि उनके पास मुफलिसी की वजह से कुछ रुपये, पैसे, कपड़ा वगैरह नहीं है। यहां तक की यहां महर अदा करने के लिए एक अंगूठी तक भी नहीं है! अलबत्ता क़ुरआन की कुछ सूरतें याद है! चुनांचे हुजुर ﷺ ने उनके क़ुरआन करीम जानने के सबब से उस सहाबीया खातुन का निकाह उस सहाबी से फरमा दिया!_
*📚 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, बाब नं 65, हदिस नंबर 113 ]*

       _तंबी :- उलमा ए इक्राम फरमाते है की यह खुसुसीयत उन्ही सहाबी के लिये मख्सुस थी और रसुलुल्लाह ﷺ के बाद ऐसा करने का किसी को हक नही है! क्यो की अल्लाह के रसुल का हुक्म खुद शरीयत है! आज इस तरह से निकाह करना जाइज नही!_
*📚 [अबु दाऊद शरीफ जिल्द 2, बाब नंबर 108 सफा नंबर 132]*
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           इसी तरह एक दूसरी हदीस में है कि रसूले अकरम ﷺ को ख्वाब में हज़रत आएशा सिद्दीका रदिअल्लाहु तआला अन्हा को निकाह से पहले दिखाया गया।
*📚 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, बाब नं 65, हदिस नंबर 112 ]*

     _इन हदीसे मुबारका से इमाम बुख़ारी रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने यह साबित किया है की औरत को निकाह से पहले देखना जाइज़ है_
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_*📚 [ हदीस :- ]....* सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है_
   
             _"निकाह से पहले औरत को देख लेना इमाम शाफ़अ़ई [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] के नज़दीक सुन्नत है।_
_* 📚 [ हदीस :-* यही इमाम ग़ज़ाली आगे नक़्ल फरमाते है। के_

    _औरत का ज़माल मुहब्बत व उल्फ़त का ज़रीया है इसलिए निकाह करने से पहले लड़की को देख लेना सुन्नत है। बुजुर्गों का कौ़ल है कि औरत को बे देखे जो निकाह होता है उसका अंजाम परेशानी और ग़म है।_

*📕 [ कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]*
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_*📚 [ हदीस :- ]* हुज़ूर सैय्यदना गौ़से आ़ज़म शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है।--_

    _मुनासिब है के निकाह से पहले औरत का चेहरा और ज़ाहिरी बदन *[यानी हाथ मुँह वगैरह]* देख ले ताकि बाद मे नफरत या तलाक़ की नौबत न आए क्यों कि तलाक़ और नफरत अल्लाह तआला को सख्त ना पसंद हैं।_
📕 *[ गुनयातुत्तालेबीन सफा नं 112, ]*
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            _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

             ✍🏻 _*.....भाग-1⃣4⃣*_

             *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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       💫 *[ लडकी की राज़ामन्दी ]* 💫
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     _आपने अक्सर देखा और सुना होगा कुछ ग़ैर मुस्लिम मुसलमानों को ताना देते है कि इस्लाम ने औरतों के साथ नाइंसाफ़ी की है। हालांकि उन कम अक्लो को यह नही सुझता कि उनके धर्म ने औरतों के कितने ही हुक़ूक का किस बेदर्दी से गला घोंटा गया है।_
     
      _यह कम फहम औरतों को सड़कों, बाज़ारों और अपनी झूठी इबादत गांहों मे आध नंगी हालत में खुले आ़म में घूमने फिरने को ही उनकी आज़ादी और जाइज़ हक़ समझते हैं !_

        _बेशक मज़हबे इस्लाम ऐसी बेहूदा़ हरकतो की हरगिज़ इजाज़त नहीं देता। वह औरतों को बाजारों और सड़कों पर खुले आ़म अपने हुस्न का मुज़ाहिरा पेश करने से सख्ती से मना करता है। लेकिन याद रहे वह औरतों को उनके ज़ायज़ हुक़ूक़ देने में कोई कमी भी नही करता और न ही औरतों के साथ बुरा सुलूक करने उनके साथ ज़बर्दस्ती करने, या किसी किस्म की ना इन्साफ़ी करने की इज़ाज़त देता है। वह हर मुआमले में औरतों से बराबरी और इन्सानी हुस्ने सुलूक करने का मर्दों को हुक़्म देता है।_
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     _चुनान्चे शरीअ़ते इस्लामी में जहां कई मामलों में औरत की मर्जी ज़रूरी समझी जाती है। वही शादी के लिये उसकी रज़ामंदी ज़रूरी है_

📚 *[ हदीस :- ].... हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। के हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया---*
 
 💎 "कुंवारी का निकाह न किया जाए जब तक उसकी रज़ामंदी न हासिल कर ली जाए! और उसका चुप रहना उसकी रज़ामंदी है! और न ही निकाह किया जाए बेवा का जब तक उससे इज़ाज़त न ली जाए।

*📕 [ तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा 566, मुस्नदे इमामे आज़म सफा नं 214, ]*
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           _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

             ✍🏻 _*....भाग-1⃣5⃣*_

               _*[जरा इसे भी पढ़िए!]*_
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       💫 *[ लडकी की राज़ामन्दी ]* 💫
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*📚 [ हदीस :- ] हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत रिवायत करते है। के......*

     _"एक औरत के शौहर का इंतेकाल हो गया। उसके देवर ने उसे निकाह का पैग़ाम भेजा मगर [औरत का] बाप देवर से निकाह करने पर राज़ी न हुआ, उसने किसी दूसरे मर्द से उस औरत का निकाह कर दिय! वह औरत नबी ए करीम ﷺ की ख़िदमत में हाजिर हुई और आपसे पूरा किस्सान बयान किया । हुज़ूर ﷺ ने उसके बाप को बुलावाया । उससे आपने फ़रमाया "यह औरत क्या कहती है" उस ने जवाब दिया.... "सच कहती है, मगर मैंने इसका निकाह ऐसे मर्द से किया है जो इसके देवर से बेहतर है"। इस पर हुज़ूर ﷺ ने उस मर्द और औरत में जुदाई करवा दी और औरत का निकाह उसके देवर से कर दिया जिससे वह निकाह करना चाहती थी।_

*📕 [ मुस्नदे इमामे आ़ज़म बाब नं 124, सफा नं 215]*
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_*✍🏻 [ शरह :- ]....* हज़रत मौला अ़ली क़ारी [रहमतुल् अलैह] इस हदीस के मुत्तअल्लीक तहरीर फरमाते हैं। कि....._

  _"इब्ने क़त्तान *[रदि अल्लाहु तआला अन्हु]* ने कहा है कि हजरत इब्ने अब्बास रदी अल्लाहु तआला अन्हु की यह हदीस सही है! और यह औरत हज़रत खंसा बिन्त ख़ुज़ाम *[रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा]* थी, जिस की हदीस इमाम मालिक व इमाम बुखारी ने भी नक्ल की है की उन का निकाह हुजुर ए अक्दस ﷺ ने रद्द फ़रमा दिया था"!_
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_*📚 [ हदीस :- ]....* बजरत इमाम बुखारी रहेमतुल्लाह अलैही ने बुखारी शरीफ मे यही हदीस इन अ़ल्फाजो़ के साथ नक़्ल की है। हज़रत ख़नसा बिन्त ख़ेज़ाम [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] इरशाद फरमाती है। क....._

   _"उनके वालिद ने उन का निकाह कर दिया जबकि वह उस निकाह को ना पसंद करती थी। वह रसूलुल्लाह ﷺ की बारगा़ह में हाजिर हों गयी आप ने फरमाया कि "वह निकाह नहीं हुआ"_

*📕 [ मोता शरीफ, जिल्द 2, सफा नं 424, बुखारी शरीफ, जिल्द 3, सफा नं 76, ]*
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_💎💎💎💎 इन तमाम अहादीसे मुबारका से मालुम हुआ के शादी से पहले कुंवारी लड़की और बेवा *(औरत)* से इज़ाज़त लेना ज़रूरी है, और हमारे आक़ा ﷺ की बहुत ही प्यारी सुन्नत भी है। चुनांचे इस हदीसे पाक में है। कि....._

*📚 [ हदीस :-] हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है!*

        _नबी ए करीम ﷺ अपनी किसी साहबज़ादी को किसी के निकाह में देना चाहते तो उनके पास तशरीफ लाते और फ़रमाते "फलाम शख्स *[यहां उनका नाम लेते]* तुम्हारा जिक्र करता है" और फिर *[साहबजादी की रजा़मन्दी माअ़लूम हो जाने पर]* निकाह पढ़ा दिया करते!_
_*📕 [मुस्नदे इमाम ए आज़म, बाब नं 123, सफा नं 214]*_

      _आज देखा यह जा रहा है मां, बाप लड़की की मरजी को कोई अहमियत नहीं देते अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जहॉ चाहते है शादी कर देते है! अब शादी के बाद अगर लड़की को लड़का पसंद आ गया तो ठीक, और अगर पसंद न आया तो झगड़ो और नाइत्तेफ़ाक़ीयों का एक सैलाब उमड़ पड़ता है और कभी कभी नौबत तलाक़ तक आ पहुंचती है।_

   _अपनी लख्ते जिगर के लिए अच्छे लड़के की तलाश करना और फिर उसे ब्याह देना यक़ीनन यह मां-बाप की ही ज़िम्मेदारी है! लेकिन जहां इतनी उठा पटक करते है वही अगर लड़की की मर्जी *(रज़ामन्दी)* मालूम कर ली जाए तो इसमें भला क्या हर्ज है। लड़की से उसकी मर्ज़ी मालूम भी करनी चाहिए। क्यों कि उसे ही सारी ज़िन्दगी गुजारना है।_

     _और हाँ अगर लडकी खुल कर कहने मे झिझक या शर्म महसूस करती हो तो उसे भी दबे अलफ़ाज़ो में या किसी रिश्तेदार औरत के जरीये अपनी मर्जी का इज़हार करे, यह भी सुन्नत है_
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      _*📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕*_

                ✍🏻 _*....भाग-1⃣6⃣*_

              *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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        💫 *[ लडकी की राज़ामन्दी ]* 💫
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*📚 [ हदीस :- ]....हज़रत इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। के.....*
       
        हुजुर ﷺ ने जब अपनी साहबज़ादी हज़रत फातिमा [ रदि अल्लाहु तआ़ला अन्हा ] का निकाह हज़रत अली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से करने का इरादा फरमाया तो आप हज़रत फातिमा [ रदि अल्लाहु तआ़ला अन्हा ]के पास के पास तशरीफ लाए और इरशाद फरमाया, "अली तुम्हारा जिक़्र करते हैं"। [यानी निकाह का पैग़ाम भेजा है]।

*📕 [ मुस्नदे इमामे आ़ज़म, बाब नं 122, सफा नं 213]*
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               यह इज़ाज़त हासिल करने का निहायत ही बेहतर तरीक़ा है जो पैग़ाम के वक़्त ज़रूरी है। और वैसे भी साफ खुले अल्फाजों में पूछना हिजाब व हया के ख़िलाफ़ मअ़लूम होता है। ऐसे बहुत से अल्फाज़ है जो इज़ाज़त लेते वक़्त दबे लफ़्ज़ो में कह सकते है । जैसे फलां लड़का तुम्हारा ज़िक्र करता है, फलां तुम पर बहुत मेहरबान है, फलां तुम्हारे लिए बेहतर है, फलां को तुम्हारी ज़रूरत है, फलां का पैग़ाम तुम्हारे लिए है, वगैरह वगैरा, (जहाँ जहाँ "फलां" लिखा है वहां लड़के या का नाम ले!

       इसका साफ मक्सद यह है की लडकी का जिससे निकाह हो रहा है उसको वह पहले से जानती भी हो और उसे देखा भी हो! वर्ना गैर मालुम शख्स के बारे मे इजजात लेना बेकार है!

💫 मसअला लड़की या औरत से इज़ाज़त लेते वक्त़ जरूरी है की जिसके साथ निकाह करने का इरादा हो उसका नाम इस तरह ले की लडकी या औरत जान सके। अगर यूं कहा एक मर्द या लडके शादीकर दूंगा। या फलां क़ौम के एक शख्स से निकाह कर दूंगा। यह जाइज़ नही और यह इज़ाज़त सही भी नही

*📕 [ कानूने शरीअ़त, जिल्द 2, सफा नं 54, ]*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

        ✍🏻 *_....भाग-1⃣7⃣_*

      *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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    💫 *_[ लडकी की राज़ामन्दी ]_* 💫
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📚 *[ हदीस :- ]* _इमाम बुख़ारी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] नक़्ल फरमाते है। के हज़रत आइशा [रदिअल्लाहु तआला अन्हा]ने अ़र्ज़ किया की "या रसूलुल्लाह"! ﷺ कुंवारी लड़की तो निकाह की इज़ाज़त देने में शर्माती है ? इरशाद फरमाया "उसका खामोश हो जाना ही इज़ाज़त है"।_

📕 *[ बुखारी शरीफ, बाब नं 71, हदीस नं 124, जिल्द 3 सफा 76, ]*

✍🏻 *[मसअ़ला :-].....* _अगर औरत कुंवारी है तो साफ़-साफ़ रजामंदी के अल्फ़ाज़ कहे या कोई ऐसी हरकत करे जिससे राज़ी होना साफ़ मअ़लूम हो जाए। मसलन मुस्कुरा दे, या हंस दे, या फिर इशारे से जा़हिर करेे!_
_📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 54, ]*_

👉🏻 _और अगर इंकार हो तो इस तरह से साफ़-साफ़ कहे "मुझे उस की ज़रूरत नहीं या फिर कहे वह मेरे लिए बेहतर नहीं" वगै़रह वगै़रह जिस तरह भी मुनासिब तौर से ज़ाहिर कर सकती हो उस तरह से जा़हिर कर दे। फिर मां बाप पर भी जरुरी है ज़्यादा दबाव ना डालें या ज़बरदस्ती ना करें बेजा दबाव डालना, या जबरदस्ती करना जाइज़ नही_
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📚 *[ हदीस :- ]* _हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। की रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया....._

 💎💎 _"बालीग कुंवारी लड़की से उसके निकाह की इज़ाज़त ली जाए! अगर वह खा़मोश हो जाए तो यह उसकी तरफ से इज़ाज़त है। और अगर इंकार करे तो उस पर कोई ज़बरदस्ती नही"_

📕 *[ तिर्मिज़ी शरीफ, हदीस नं 1101, जिल्द 1, सफा नं 567,]*
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✍🏻 *[ मसअ़ला :-]* _बालेगा व आक़ेला औरत का निकाह बगैर उसकी इज़ाज़त के कोई नही कर सकता न उसका बाप, न इस्लामी हुकूमत का बादशाह, औरत कुंवारी हो या बेवाह, । इसी तरह बालीग व आकील [पागल वगैरह न हो] मर्द का निकाह बगै़र उसकी मर्ज़ी के कोई नही कर सकता ।_
_📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2 सफा 54, ]*_

✍🏻 *[ मसअ़ला :-]* _कुंवारी लड़की का निकाह या लड़के का निकाह उनकी इज़ाज़त के बगै़र कर दिया गया । और उन्हें निकाह की ख़बर दी गई तो अगर औरत चुप रही, या हँसी, या बगै़र आवाज के रोई तो निकाह मन्ज़ूर है समझा जाएगा। इसी तरह मर्द ने इंकार न किया तो निकाह मन्ज़ूर समझा जाएगा। लेकिन मर्द या औरत मे से किसी एक ने इंकार कर दिया या मर्द ने इन्कार कर दिया तो निकाह टूट गया।_

📕 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द 5, सफा 104, कानूने शरीअ़त, जिल्द 2, सफा 54, ]*

   👉🏻 _यह तमाम शरई मसाइल है जिनका जानना और उन पर अ़मल करना ज़रूरी है। जिसमें माँ, बाप, की भी जिम्मेदारी है की अपनी औलाद की खुशी का ख्याल रखे, और औलाद का भी फ़र्ज़ है कि वह माँ, बाप, और घर के दीगर बुज़ुर्गो का कहा माने और वह जहां शादी करना चाहे उनकी रज़ामंदी में ही अपनी रज़ा समझे कि माँ, बाप, कभी भी अपनी औलाद का बुरा नही चाहते ।_
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📚 *[ हदीस :-]* _हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। कि *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._

 💎 _"कोई औरत दूसरी का निकाह न करे, और न कोई औरत अपना निकाह खुद करे क्यों कि जानीया (ज़िना करने वाली) वही है जो अपना निकाह खुद करती है।_

📕 *[ इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 603,हदीस नं 1950, सफा नं 528, मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 3002, सफा नं 78, ]*

✍🏻 *[ मसअ़ला :-]....* _बालिग़ लड़की वली [माँ, बाप वगैरह] की इज़ाज़त के बगै़र खुद अपना निकाह छुप कर या एलानिया किया तो उसके जाइज़ होने के लिए यह शर्त है। शौहर उस का क़ुफ्व हो, यानी मज़हब या खानदान, या पेशे, या माल, या चाल चलन में औरत से ऐसा कम न हो कि उसके साथ उसका निकाह होना लड़की के माँ, बाप, व खानदान वालो और दिगर रिश्तेदारों के लिए बे इज़्ज़ती, या शर्मिन्दगी, व बदनामी का सबब हो, अगर ऐसा है तो वह निकाह न होगा।_

📕 *_[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 142, ]_*

💫 *_मसअला_* शादी की तारीख तय करते वक्त दुल्हन के अय्याम हैज (महावारी पिरीयड) से बचने के लिये उसकी रजा ले ली जाए! यह उन इलाको मे निहायत जरुरी है जहॉ निकाह के बाद उसी दिन या एक दिन बाद रुख्सती (बिदाई) होती है! 
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-1⃣8⃣_*

      *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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💫 *_[ महर का बयान ]_* 💫
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      _आपका और हमारा यह तर्जुबा है कि मुसलमानों में आज बड़ी तादाद में ऐसे लोग है जो शादी तो कर लेते है, महर भी बाँध लेते हैं लेकिन उन्हें इस बात की मालुमात नही होती के महर कितने क़िस्म के होते है! और उनका निकाह किस क़िस्म के महर पर हुआ है! लिहाजा मुसलमानों को यह जान लेना जरूरी है।_

  💫 *_महर तीन क़िस्म का होता हैं।_*💫
 
 1⃣ *_महर ए मुअज्जल (नगद)_* _महर ए मुअज्जल यह है कि खल्वत से पहले महर देना करार पाया हो। [चाहे दिया कभी भी जाए!]_

2⃣ *_महर ए मुवज्जल (उधार)_* _महर ए मुवज्जल यह है कि महर की रक़म देने के लिए कोई वक्त़ मुक़र्रर कर दिया जाए।_

3⃣ *_महर ए मुतलक़_* _महर ए मुतलक़ यह है कि जिस में कुछ तय न किया जाए।_

📕 *[फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 66, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60,]*
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      👉🏻 _इन तमाम महर की किस्मों में मेहर "मुअ़ज्जल (नगद)" रखना ज़्यादा अ़फज़ल है। [यानी रुख़्सती से पहले ही महर अदा कर दी जाए]_

📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60,]*
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✍🏻 *[ मसअ़ला :-]....* _महरे मुअ़ज्जल वसूल करने के लिए अगर औरत चाहे तो अपने आपको शौहर से रोक सकती है! यानी यह इख्तियार है की वती (मुबाशरत) से रोके रखे! और मर्द को हलाल नहीं की औरत को मजबूर करे या उसके साथ किसी तरह की जबरदस्ती करे । यह हक़ औरत को उस वक्त़ तक हासिल है जब तक महर वसूल न कर ले! इस दर्मियान अगर औरत चाहे तो अपनी मर्ज़ी से हमबिस्तरी (सोहबत) कर सकती है! इस दौरान भी मर्द अपनी बीवी का नान नफ़्क़ा [खाना, पीना, कपड़ा, खर्चा वगैरह] बंद नही कर सकता। जब मर्द औरत को उसका महर दे दे तो औरत का अपने शौहर को सोहबत करने से रोकना जाइज़ नही।_

📕 *[ फ़तावा-ए-मुस्ताफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 66, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60, ]*
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✍🏻 *_[ मसअ़ला :-]_* _इसी तरह अगर महरे मुवज्जल (उधार) था! [यानी महर अदा करने के लिए एक ख़ास मुद्दत मुक़र्रर की गयी थी] और वह मुद्दत खत्म हो गई तो औरत शौहर को हमबिस्तरी (सोहबत) करने से रोक सकती है।_

✍🏻 *_[ मसअ़ला :-]_* _औरत को महर माफ करने के लिए मजबूर करना जाइज़ नहीं ।_

📕 *_[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60]_*
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 🔥🔥🔥 *_इस जमाने में ज़्यादा तर लोग यही समझते कि महर देना कोई ज़रूरी नहीं बल्कि सिर्फ़ एक रस्म है, और कुछ लोगों का ख़्याल है कि महर तलाक के बाद ही दिया जाता है! और कुछ लोग समझते हैं कि महर इसलिए रखते है कि औरत को महर देने के ख़ौफ से तलाक़ नही दे सकेगा।_*

         *_यही वजह है हमारे मुल्क में ज़्यादा तर लोग महर नही देते यहां तक के इन्तिक़ाल के बाद उनके जनाज़े पर उनकी बिवी अाकर महर माफ करती है। वैसे औरत के माफ कर देने से महर माफ तो हो जाता है, लेकिन महर दिए बगै़र दुनिया से चले जाना मुनासीब नही, खुदा न ख्वासता पहले औरत का इंतिक़ाल हो गया और अगर वह माफ न कर सकी, या महर माफ करने की उसे मोहलत न मिली तो हक्कुल-अब्द मे गिरफ्तार और दिन व दुनियॉ मे रुसवा शर्मसार होंगा! और रोजे क़यामत में सख़्त पकड़ और सख़्त अ़ज़ाब होंगा! लिहाजा इस खतरे से बचने के लिए महर अदा कर देना चाहिए। इस मे सवाब भी है और यह हमारे आक़ा ﷺ की सुन्नत भी है_*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-1⃣9⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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         💫 *_महर का बयान_* 💫
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           *_हमारा रब जल्ला जलालाहु इरशाद फरमाता है।....._*

💎 *_तर्जुमा_*_"और औरतों को उन के महर खुशी से दो "।_

📕 *_[कुरान :- तर्जुमा कन्जुल इमान, सूरए निसा, आयत नं 4]_*

💎 *_तर्जुमा_*_" तो जीन औरतो को तुम निकाह मे लाना चाहो उनके बंधे हुए महर उन्हे दो "।_

📕 *_[कुरान :- तर्जुमा कन्जुल इमान, सूरए निसा, आयत नं 24]_*
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👉 *_मसअला_* _औरत अगर होश व हवास मे राजी खुशी से महर माफ कर दे तो हो जाएंगा! हॉ अगर धमकी देकर माफ कराया और औरत ने मारे खौफ के माफ कर दिया तो इस सुरत मे माफ नही होंगा! और अगर मरजुल-मौत मे माफ कराया, जैसा के अवाम मे राईज (रिवाज) है की जब औरत मरने लगती है, तो उससे महर माफ कराते है, तो इस सुरत मे वारीसो की इजाजत के बगैर माफ नही होंगा!_

📚 *_[फतावा आलमगिरी जिल्द 1 सफा नं 293, दुर्रे मुख्तार मआ शामी जिल्द 2 सफा 338]_*
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🔥🔥 *_जेहालत_*🔥🔥
       👉🏻 _अक्सर मुसलमान अपनी हैसियत से ज़्यादा महर रखते है और यह ख़्याल करते हैं। कि "ज़्यादा महर रख भी दिया तो क्या फ़र्क़ पड़ता है देना तो है ही नही" यह सख़्त जेहालत है और दीन से मजाक़ है! ऐसे लोगों इस हदिस को पढ कर इबरत हासील करे!......_

📚 *_हदीस_* _अबु याला व तबरीनी व बैहकी मे हजरत उक्बा बिन आमीर रदि अल्लाहु तआला से मरवी है के हुजुर अक्दस ﷺ ने इरशाद फरमाया....._

💎 _"जो शख्स निकाह करे और नियत यह हो की औरत को महर मे से कुछ ना देगा तो जिस रोज मरेंगा जानी (जिना करने वाला) मरेंगा!_

📚 *_[अबु याला, तबरानी व बैहकी बहवाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा नंबर 7 सफा नं 32 ]_*

        👉🏻 *_लिहाजा महर इतना ही रखे जितना देने की हैसियत है और महर जितना जल्दी हो सके अदा कर दे। के यही अ़फज़ल तरीक़ा है।_*

📚 *[हदीस :-]....* _*रसूले मक़बूल ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._

  💎 _"औरतों में वह बहुत बेहतर है जिसका हुस्न व ज़माल [खूबसूरती] ज़्यादा हो और महर कम हो।_
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📚 _"इमाम ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] फरमाते है....._

         *_"बहुत ज़्यादा महर बांधना मक़रूह है लेकिन हैसियत से कम भी न हो।_*
📕 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260,]*
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*_कुछ लोग कम से कम महर बांधते है, और दलील यह देते है के रुपयो पैसो से क्या होता है! दिल मिलना चाहीये, यह भी गलत है! महर की अहमियत को घटाने के लिए अगर कोई कम महर बांधे तो यह भी ठिक नही है! औरतो को अपना महर ज्यादा लेने का हक है! और इस हक से उनको कोई मर्द रोक नही सकता!_*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣0⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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         💫 *_शादी की रस्मे_* 💫
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✍🏻 _शादी में तरह तरह की रस्में बरती जाती है! हर मुल्क में नई रस्म, हर क़ौम और हर खानदान का अपना अलग रिवाज! यह कोई नही समझता है के शरअन यह रस्में कैसी है! मगर यह ज़रूर है के रस्मों की पाबन्दी उसी हद तक की जाए कि किसी हराम काम में मुब्तला न हो । कुछ लोग रस्मों की इस कदर पाबन्दी करते है कि नाजाइज़ व हराम काम को भले ही करना पड़े मगर रस्म न छुटने पाए।_
       👉🏻 _हमारे मुल्क में आम तौर पर बहुत सी रस्मों की पाबंदी की जाती है। जैसे ........रतजगा, हल्दी खेलने की रस्म, नहारी, शादी के रोज़ या बाद मे जुवा खेलना, शराब पीना, ढोल बाजे, नाचना गाना, गाने बाजो और पटाखो के साथ बारात निकालना, विडीयो रिकार्डींग वगैरह, वगैरह जबकि इन रस्मों में बेपर्दगी, छिछोरापन, अय्याशी और हराम कामों का वज़ूद होता है! जवान लडके लड़कियाँ हल्दी खेलते हैं नाचते गाते है बेहुदा हँसी मजाक़ और तरह तरह की तहजीब से गिरी हुई हरकत करते हैं। अगर इन तमाम रस्मों की पाबन्दी के लिए रुपए न हो तो सूद पर रुपए लेने से भी नही चूकते ।_
            👉🏻 _यहां मुमकिन नहीं की हर रस्म पर अलग अलग उनवान कायम करके तफ्सीली बहस की जाए! लिहाजा हम यहॉ चंद हदीसे पेश करते हैं। इन्साफ़ पसन्द के लिए इसी क़द्र क़ाफी और हटधर्म और ज़ाहिल के लिए पूरा क़ुरआन व अहादीस के ख़ज़ाने भी नाक़ाफी!_
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   _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है....._

💎 💎 *_"और फ़ुजूल न उड़ा बेशक (फुजुल) उड़ाने वाले शैतानो के भाई है, और शैतान अपने रब का बड़ा नाशुक्रा है।_*

📕 *_[कुरआन तर्जुमा कन्जुल इमान, सूरह ए बनी इस्राईल़, आयत नं 26/27,]_*
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📚 *_[हदीस :-]_* _हुजुर ﷺ ने इरशाद फरमाया....._

💎 _"जिसने जुवा खेला गोया उस ने ख़िन्ज़ीर [सुवर] के गोश्त व खून मे हाथ धोया" ।_

📕 *_[ मुस्लिम शरीफ, अबूूदाऊद शरीफ, मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 99, सफा नं 635,]_*
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📚 *_[हदीस :-]_* _नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया....._

      💎 _"सब से पहले गाना इब्लीस [शैतान, मरदूद] ने गाया"!_

📚 *_[हदीस :-]_* _हज़रत इमाम मुजाहिद [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है..._

        👉🏻 _"गाने बाजे शैतान की आवाजें है जिसने इन्हें सुना गोया उस ने शैतान की आवाज सुनी"।_

📕 *[हादीयुन्नास फ़ी रूसूमिल एेरास, सफा नं 18,]*

📚 *_[हदीस :-]_* _हज़रत शफीक बिन सलमा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है..._

💫 _हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने इरशाद फरमाया...._

  💫 *_"गित, गाने, ढोल बाजे दिल मे यु निफाक उगाते है! जैसे पानी सब्जा उगाता है!"_*
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✍🏻 *_[मसअ़ला :-]_* _उबटन मलना जाइज़ है। और दुल्हा की उम्र नव दस साल की हो तो अजनबी औरतों का उसके बदन में उबटन मलना भी गुनाह नही! हाँ बालिग़ के बदन पर ना महरम औरतों का मलना ना जाइज़ है और बदन को हाथ तो माँ भी नही लगा सकती! यह हराम और सख़्त हराम है। और औरत व मर्द के दर्मियान शरीअ़त ने कोई मुँह बोला रिश्ता न रखा यह शैतानी व हिन्दुवानी रस्म है।_

📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया जिल्द नं 9, सफा नं 170,]*   
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣1⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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              💫 *_व्हिडीयो शुटींग_* 💫
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💫 *_आजकल शादी-ब्याह मे व्हिडीयो शुटींग करवाना शादी का एक हिस्सा बन चुका है! उधर काजी साहब निकाह का खुत्बा पढ रहे है, और इधर यह शैतानी आला (व्हिडीयो केमरा) आ खडा हुआ! फिर उसी पर बस नही बल्की अब यह शैतानी आला (Video Camera) जनाने कमरे मे पहुंचा, और हमारी मॉ, बहनो को बेपर्दा करने लगा! वह लोग जिन्होने हमारी मॉ, बहनो को कभी नही देखा था, या जीन से वह पर्दा करती थी वह अब व्हिडीयो के जरीये खुले आम मज्लीस मे दिखाई देने लगी!_*💫

💫💫 *_एक शादी हॉल मे व्हिडीयो शुटींग की जा रही थी! और जगह जगह टि. व्ही. सेट रखे हुए थे, जो मंजर को डायरेक्ट टेली कास्ट कर रहे थे! औरतो के क्याम की जगह व्हिडीयो शुटींग की जा रही थी! महेफील मे कोई खातुन गर्मी की वजह से अपने साडी के पल्लु को सिने से हटाकर हवा कर रही थी! के व्हिडीयो केमरे ने उस मंजर को अपने अंदर समेट लिया! एक और तरकीब मे यह वाकीया भी पेश आया की एक खातुन अपने छोटे बच्चे को दुध पिला रही थी! और उसकी तवज्जोह इस बात की तरफ न थी के केमरे का रुख उसकी तरफ भी है! केमरे ने उस मंजर को कैद करने मे कोई कंजुसी नही की! गर्ज के कभी-कभी बेख्याली मे होने की वजह से औरतो के वह मनाजीर भी व्हिडीयो फिल्म की जिनत बन जाते है की, जिसे बाद मे देखने मे शर्म व हया से सर निचे हो जाते है!_* 💫💫
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🔥🔥🔥 *_चंद बहाने_* 🔥🔥🔥
👉 _जब यह खराबीया मुसलमानो को बताई जाती है तो उनके चंद बहाने होते है! क्या करे साहब हमारी औरते और लडके नही मानते, हम उनकी वजह से मजबुर है! यह बहाना महज बेकार है! हकीकत यह है के आधी मर्जी खुद मर्दो की होती है! तभी तो उनकी औरते और लडके इशारा या नर्मी पाकर जिद करते है! वर्ना मुमकीन ही नही के हमारी मर्जी के बगैर कोई काम हो जाए!_

👉 _दुसरा बहाना यह होता है के हमे उल्माए अहले सुन्नत ने यह बाते बताई ही नही है, और न उस से रोका इसलिये हम लोग इससे गाफील रहे!अब जब की यह रस्मे चल पडी है, लिहाजा उनका बंद होना मुश्कील हो गया है! यकीनन यह बहाना भी गलत है! उलमा ए अहले सुन्नत ने इन रस्मो से हमेशा अपने बयान व तकरीर मे मना किया है! इसके मुत्ताल्लीक बुरी रस्मो और बुरी बिदअतो के बारे मे किताबे लिखी है! मसलन_ *_"हदिउन्नासे फीरुसुमिल एरास" मुजव्वजहुन्नजा ला खुरुजन्निसाई", "शिफाउल-वला फी सुवरिल-हबीबे व मजारिहु व नेआलीही" और "अतायन लेकदिरे फी हुक्मीत्तसिवीरे"_* _और आला हजरत रहेमतुल्लाह अलैही ने सैकडो किताबे इन उन्वानात पर तस्नीफ फरमाई है! आखीर मे एक और किताब का नाम सुन लिजीये *"इस्लामी जिंदगी"* जो हजरत हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खॉं नईमी रहमतुल्लाह अलैह ने खास शादी-ब्याह की रस्मो के मुतअल्लीक लिखी है!_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣2⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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🔥🔥🔥 *_चंद बहाने_* 🔥🔥🔥
👉 _बहरहाल मुसलमानो का तिसरा बहाना यह होता है की बहुत से आलीमो के यहॉ भी तो यह रस्मे होती है! इससे कतई इंकार नही की ऐसे निम मुल्ला चंद रुपयो की खातीर शरीअत के मसाईल को भी मजाक बना देते है! और अपनी झुठी मौलवियत का रुबाब झाडने के लिये उट-पटांग मस्अले बयान करते है! और अपनी नफ्सानी ख्वाहिशात को गलत तावीलो से सही साबीत करने की कोशीश करते है! या फिर बेचारे सेठ साहब के एहसानों तले दबे है, इसलिये सेठ साहब के लडके की शादी मे जुबान नही खुलती, लेकीन ए अजीजो याद रखीये *इस्लाम की बुनियाद ऐसे गुमराह मौलीयो पर नही है!* के हम उनके कामो को दलील बनाए!_

        👉 _हर मुसलमान के लिये कुरआन व अहादीस, आइम्मा ए दीन, बुजुर्गाने दीन और उलमा ए मोतमदीन के अक्वाल ही काफी है! हमे किसी भी काम के नाजाइज व हराम होने का सुबुत कुरआन व अहादीस मे और मोतमद उलमा ए दीन व बुजुर्गो के अक्वाल मे देखना चाहीये, न की उन नफ्स परवर अमीरो के चापलुस मौलवियो के कामो से! यह भी याद रखीये बरोज महशर आपके कामो की पुछ आप से होंगी , आप यह कहकर नही बच जाएंगे की फलां मौलवी साहब ऐसा करते थे, इसलिये हमने भी ऐसा किया! इल्मे दीन हासील करना आप पर भी तो फर्ज है! हमारे आका ﷺ इरशाद फरमाते है......._

         📚 *_हदीस " इल्मे दीन हासील करना हर मुसलमान मर्द और औरत पर फर्ज है!"_*

          _लेहाजा मुसलमान पर जरुरी है, की वह इल्म हासील करे, और हराम व हलाल, जाइज व नाजाइज मे तमीज सिखे!_
 
        _मुसलमानो का चौथा बहाना यह होता है की अगर हम शादी धुम-धाम से नही करेंगे तो लोग हम को तअ्ना देंगे के कंजुसी की वजह से यह रस्मे नही की! और कुछ रिश्तेदार कहेंगे की यह मातम की मज्लीस है, यहॉ नाच गाना नही गोया तिजा पढा जा रहा है! तअ्ने से कोई भी कभी भी किसी वक्त बच नही सकता, कोई खाने मे नुक्स निकालता है तो कोई किसी और चिज मे नुक्स निकालेंगा ही_

       *_पॉंचवा बहाना यह होता है के अल्लाह तआला ने हमे नवाजा है, हमारे अरमान है, अपनी दौलत लुटा रहे है, उसमे किसी के बाप का क्या जाता है! भला शादी भी कोई बार बार होती है, मौलवियो को तो बस इतने काम है, यह मत करो वह मत करो वगैरह वगैरह!_*

         *_इस बहाने से गरूर और तकब्बुर की बु आती है! अक्सर यह दौलतमंद हजरात कहते है! सबसे बेहतर तो यह होता की मुसलमान अपनी औलाद के निकाह मे खातुन ए जन्नत, शहजादी ए रसुल हजरत फातीमातुज्जोहरा रदी अल्लाहु तआला अन्हा के निकाहे पाक को नमुना बनाते! खुदा की कसम अगर हुजुर ﷺ की मर्जीए मुबारक होती के मेरी लख्ते जिगर की शादी बडी धुम-धाम से हो तो दुनियॉ की हर नेअमत आप अपनी साहबजादी के कदमो मे लाकर रख देते! और अगर हुजुर ﷺ सहाबा ए किराम को शादी के मौके पर धुम-धाम करने का हुक्म फरमा देते तो उसके लिये हजरत उस्मान गनी रदिअल्लाहु तआला अन्हु का खजाना मौजुद था! जो एक-एक जंग के लिये हजार ऊंट और लाखो अशरफियॉं हाजीरे बारगाह कर देते थे! लेकीन मंशा यह था के कयामत तक यह शादी मुसलमानो के लिये नमुना बन जाए, इसलिये बेहद सादगी से यह इस्लामी रस्म (निकाह) अदा की गई! लिहाजा गुजारीश है के अपनी शादी ब्याह से इन तमाम हराम रस्मो को निकाल बाहर करो और निहायत सादगी से निकाह की सुन्नत को अदा करो!जिससे के गरीब-गुरबा की मुश्कीले आसान हो जाए! और वह तुम को दुवाए दे!_*
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📚 *_हदीस_* _नबी ए करीम ﷺ इरशाद फरमाते है....._

💎💎💎 *_"शादी को इस कद्र आसान कर दो की जिना मुश्कील हो जाए! आसानी करो मुश्कील मे न डालो!"_*💎💎💎
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣3⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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       💫 *_[दुल्हन दूल्हे को सजाना]_* 💫
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💫 💫 _शादी के मौके पर दुल्हन, दूल्हे को मेहंदी लगाई जाती है कंगन बाँधा जाता है और शादी के दिन सेहरा बाँधा जाता है और जे़वरात से सजाया जाता है लिहाजा यहां मसाइल बयान कर देना निहायत जरुरी है।_
✍🏻 *[मसअ़ला :-]....* _औरतों को हाथ पांव में मेहँदी लगाना जाइज़ है लेकिन बिला ज़रूरत छोटी बच्चियों के हाथ पाँव में मेहँदी लगाना न चाहिए। बड़ी लड़कियों के हाथ पाँव में मेहँदी लगा सकते हैं।_

📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 214,]*

👉🏻 _इस मसअ़ले से पता चला कि औरतें और बडी लड़कियाँ मेहँदी लगा सकती है चाहे शादी का दिन हो या और कोई ख़ुशी का मौक़ा हो!_

📚 *[ हदीस :-]....* _*सरकारें मदीना ﷺ* ने इरशाद फरमाया!......._
 
         _"औरतों को चाहिये के हाथ और पाँव में मेहँदी लगाए ताकि मर्दों की तरह हाथ न हो। और किसी वजह से या बे अहतियाती से किसी ग़ैर मर्द को दिख जाए तो उसे पता न चले औरत किस रंग की है यानी गोरी है या काली क्यों कि हाथों के रंग को देख कर भी इंसान चेहरे के रंग का अंदाज़ लगा लेता है"। इस हदीस से इरशाद हुआ कि "ज़्यादा न हो तो मेहँदी से नाखून ही रंगीन रखे"_

📕 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 148,]*

     👉🏻 _लिहाजा औरतों को मेहँदी लगाना बेशक जाइज़ है और इसी तरह हर किस्म के जे़वरात भी जाइज़ है। चुनान्चे औरत को मेहँदी लगाने जे़वरात से सजाने में कोई हर्ज नही । लेकिन मर्दों को येह सब हराम है चाहे दुल्हा ही क्यों न हो।_

✍🏻 *[मसअ़ला :-]....* _हाथ पाँव मे बल्कि सिर्फ़ नाखूनो में ही मेहँदी लगाना मर्द के लिए हराम है।_

📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 149,]*
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        👉🏻 _शहजादा-ए-आला हज़रत हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द [रहमतुल्लाह तआला अलैह] के फ़तावा-ए मे है कि आप से फ़तवा पूछा गया......_

✍🏻 *[ सवाल :-]....* _दूल्हे को मेहन्दी लगाना दुरूस्त है कि नही। दूल्हा चाँदी के जे़वर पहनता है कंगन बांधता है, इस सूरत में निकाह पढ़ा दिया तो निकाह दुरूस्त हुआ है कि नही।_

✍🏻 *[ जवाब :-]....* _[इस सवाल के जवाब में आप ने फ़तवा दिया कि] मर्द को हाथ पाँव में मेहँदी लगाना ना जाइज़ है, जे़वर पहनना गुनाह है , कंगन हिन्दूओ की रस्म है। येह सब चीज़े पहले उतरवाए फिर निकाह पढाए के जितनी देर निकाह मे होगी उतनी देर वोह [दुल्हा] और गुनाह में रहेगा। और बुरे काम, को कुदरत [ताक़त] होते हुए न रोकना और देर करना खुद गुनाह है बाकी अगर जे़वर पहने हुए निकाह हुआ निकाह हो जाएगा।_

📕 *[फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 175,]*

      _एक नीम मौलवी साहब ने हमारे एक अजीज से कहा की मर्द को मेहंदी लगाना हराम जरुरी है! लेकीन अगर अपने हाथ की छोटी अंगुली मे थोडी सी लगा ले तो हरज नही (माजअल्लाह!) हमारे इस दोस्त ने जवाब दिया! "तो फिर कोई कह सकता है की शराब हराम जरुर है, मगर थोडीसी पी ली जाए तो हरज नही!"_

   🔥🔥🔥 *_गर्ज की आजकल के चंद मौलवियो ने यह ढोंग बना रखा है की मसाईल की किताबे पढने की बजाए अपनी नफ्स (ख्वाहीश) परस्ती मे मुज्तहिद बने फिरते है, और अपनी कमजोर अक्ल से उट-पटांग नए नए मस्अले पैदा करते रहते है! उन्हे इतनी तौफीक नही होती के जितनी देर मे वह अपनी कमजोर अक्ल पर जोर देते है, इतनी देर मे कोई मसाईल की किताब ही पढ ले और मस्अला को किताब से देख कर बताए, उन्हे तो अपनी वाह-वाही, और अपने आपको अल्लामा (उलमा) कहलवाने मे ही मजा आता है! अल्लाह तआला उन्हे तौफीक दे की वह उलमा ए हक के सहीह माने मे पैरु (Follower) बने की उसी मे उनकी नजात है!_* 🔥🔥🔥
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣4⃣_*

      *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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       💫💫 *[सेहरा]* 💫💫
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    👉🏻 _सेहरा पहनना मुबाह है ! यानि पहने तो न कोई सवाब और अगर न पहने तो न कोई गुनाह । यह जो लोगों में मशहूर है कि सेहरा पहेनना *हुज़ूर ﷺ* की सुन्नत है, महज बातील,और सरासर झूठ है!_

✍🏻 *[कौ़ल :-]* _मुजद्दिदे आ़ज़म सैय्यदना आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है। कि......_

        👉🏻 _सेहरा न शरीअ़त में न मना है न शरीअ़त में जरूरी या मुस्तहब बल्कि एक दुनियावी रस्म है कि तो क्या! न कि तो क्या! इसके अलावा जो इसे हराम गुनाह, बिदअ़त व जलालत बताए वह सख़्त झूठा सरासर मक्कार है। और जो उसे जरूरी [लाज़िम] समझे और तर्क को [सेहरा न पहेनने को] बुरा जाने और सेहरा न पहेनने वालों का मज़ाक उड़ाए वह निरा जाहिल है।_

📕 *[हादिन्नास फी रूसूमिल आरास, सफा नं 42,]*

          👉🏻 _दूल्हे का सेहरा ख़ालिस असली फूलों का होना चाहिए। गुलाब के फूल हो तो बहुत बेहतर है । कि गुलाब के फूल *हुज़ूर ﷺ* ने पसन्द फरमाया है।_

           _लिहाजा सेहरा पहनना ही हो तो खालीस गुलाब या चंबेली के फुलो का सेहरा पहने! सेहरे में चमक वाली पन्निया न हो कि यह ज़ीनत है। मर्द को ज़ीनत करना और ऐसा लिबास पहनना जो चमकदार हो हराम है। दुल्हन के सेहरे में अगर यह चमक वाली पन्नीया हो तो कोई हर्ज नही। के औरतो को जिनत जाइज है!_
          _इसी तरह आज कल कुछ लोग सेहरे में रूपये [नोट] वगैरह लगाते हैं यह फ़ुजूल ख़र्ची और गुरूर व तक़ब्बुर की निशानी है! *तकब्बुर* शरीअ़त में सख्त हराम है! लिहाजा अगर सेहरा सिर्फ़ खुशबूदार फूलों का ही हो! शादी एक दिन की होती है, दुसरे दिन सेहरे को न तो पहना जाता है, और न ही वह किसी काम का होता है! सबसे बेहतर तो यह है के गले मे एक गुलाब के फूलों का हार डाल लिया जाए यही ज्यादा मुनासीब है! (वल्लाहो आ़लम)_
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🌳 *[दुलहन दूल्हे को सजाते वक्त़ की दुआ]*🌳
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          👉🏻 _दुल्हन को जो औरतें सजाए उन्हें चाहिए कि वह दुल्हन को दुआ़ए दे! हदीसे पाक में है। कि...._

📚 *[हदीस :-]* _उम्मुलमोमेनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा [रदिअल्लाहु तआला अन्हा] इरशाद फरमाती है_

       *"हुज़ूर ﷺ* _से जब मेरा निकाह हुआ तो मेरी वालिदा माजीदा मुझे हुजुर ﷺ के दौलतकदा पर लाई वहाँ अन्सार की कुछ औरतें मौजूद थी! उन्होंने मुझे सजाया और यह दुआ दी.._

 على الخیری والبراکة وعلى خير طائر

     _(अलल ख़ैरे वल बराकतेे व आ़ला खै़रे त-अ-ए-रिन०_

 *[ तर्जुमा :-]* _ख़ैर व बरक़त हो अल्लाह ने तुम्हारा नसीब अच्छा किया_

_(बुखारी शरीफ की एक दुसरी रिवायत है के, "हुजुर ﷺ ने हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रदि अल्लाहु तआला अन्हु को उनकी शादी पर इसी तरह बरकत की दुआ इरशाद फरमाई!"_

📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 87, हदीस नं 142, सफा नं 82,]*

        👉🏻 _*....* लिहाजा हमारी इस्लामी बहनों को भी चाहिए जब वह किसी की शादी के मौके पर जाएं दुल्हन सजाते वक़्त या फिर उनसे मुलाकात करते वक्त़ बरक़त की दुआ करें ।_
             _इसी तरह दूल्हे को सजाने वालो को और उससे मिलने वालो को भी चाहिए की वह भी दूल्हे को सजाते या सेहरा बांधते वक्त़ या मिलते वक्त यह दुआ दें।_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣5⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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              💫 *_निकाह का बयान_* 💫
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✍🏻 _आला हजरत इमाम अहमद रजा कादरी मुहद्दिस बरैलवी रदिअल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते है....._

       _"कुछ लोगो का खयाल है, की निकाह मुहर्रम के महीने मे नही करना चाहीये, यह खयाल फुजुल व गलत है! निकाह किसी महीने मे मना नही!"_
📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 179]*

  👉 *मस्अला* _अक्सर लोग माहे सफर मे शादी ब्याह नही करते, खुसुसन माहे सफर की इब्तीदाई तेराह (1 से 13) तारीखे बहु ज्यादा मनहुस मानी जाती है! और उनको "तेराह-तेजी" कहते है! यह सब जेहालत की बाते है! हदिसे पाक मे फरमाया की सफर कोई चिज नही! यानी लोगो का इसे मनहुस समझना गलत है! इसी तरह जिल्कदा के महीने को भी बहुत लोग बुरा जानते है, और उसको "खाली का महीना" कहते है! इस माह मै भी शादी नही करते! यह भी जेहालत और लग्वीयत है! गरज की शादी हर माह के हर तारीख को हो सकती है!_

*(Conclusion* _शरीयत ए इस्लामी के मुताबीक किसी महीने की कोई तारीख मन्हुस नही होती! बल्की हर दिन हर तारीख अल्लाह अज्जा व जल्ला की बनाई हुई है! गरज की हर महीने की किसी भी तारीख को निकाह करना दुरुस्त है!)_

📕 *_[बहार ए शरीयत, जिल्द नं 2, हिस्सा नं 16, सफा नं 159]_*
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 ✍🏻 _हुज़ूर सैय्यदना ग़ौसुल आजम शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी बगदादी [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] नक्ल फरमाते है। कि...._
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  💫 _"निकाह जुमेरात या जुमा को करना मुस्तहब है। सुबह कीे बजाए शाम के वक्त़ निकाह करना बेहतर व अ़फज़ल है।"_

📕 *_[गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115]_*
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✍🏻 _आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ कादरी बरैलवी रदी अल्लाहु तआला अन्हु "फ़तावा-ए-रज़वीया" में नक़्ल फरमाते है। की......_

 💫 _"जुमा के दिन अगर जुमा की अज़ान हो गई हो तो उसके बाद जब तक नमाज़ न पढ़ ली जाए निकाह की इजाजत नहीं के अजान होते ही जुमा के नमाज के लिए जल्दी करना वाज़िब है। फिर भी अगर कोई अज़ान के बाद निकाह करेगा तो गुनाह होगा मगर निकाह सही हो जाएगा"_

📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 158,]*
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    👉🏻 _"दुल्हा दुल्हन दोनो के माँ बाप को चाहिये कि निकाह के लिए सिर्फ और सिर्फ सुन्नी का़जी को ही बुलावाए । क़ाजी वहाबी, देवबन्दी, मौदूदी, नेचरी, ग़ैर मुक़ल्लिद वगैरह न हो।_

✍🏻 _*....* इमामे इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है। कि....._

  _"वहाबी से निकाह पढ़वाने में उसकी ताज़ीम होती है जो कि हराम है लिहाजा उससे बचना ज़रूरी है।_

📕 *[अलमलफूज़, जिल्द नं 3, सफा नं 16,]*

           👉🏻 _*....* निकाह की शर्त यह है कि दो गवाह हाजिर हो । इन दोनों गवाहों का भी सुन्नी सहीउल अ़कीदा होना ज़रूरी है।_

✍🏻 *[मसअ़ला :-]....* _एक गवाह से निकाह नही हो सकता जब तक दो मर्द या एक मर्द दो औरतें मुस्लिम [सुन्नी] समझदार बालिग न हो।_

📕 *_[ फ़तावा ए रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 163]_*

✍🏻 *[मसअ़ला :-].....* _सब गवाह ऐसे बद-मज़हब है की, जिन की बद-मज़हबी कुफ़्र तक पहुँच चुकी हो तो निकाह नही होगा।_

📕 *[फ़तावा-ए-अफ्रीका, सफा नं 61,]*

✍🏻 *[हदीस :-]....* _हज़रत इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि *हुज़ूर ﷺ* ने इरशाद फरमाया...._

💎 _"गवाहों के बगैर निकाह करने वाली औरते ज़ानिया [ज़िना करने वाली] है।_

📕 *_[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1 बाब नं 751, हदीस नं 1095, सफा नं 563,]_*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣6⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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              🔵 *निकाह के बाद* 🔵  *________________________________*       
✍🏻  ..... *_निकाह के बाद मिसरी व खजूर बाँटना बेहतर है! यह रिवाज हुज़ूर ﷺ के जाहिरी जमाने में भी था। हजरत मुहक्कीक शाह अब्दुल हक मुहद्दीस देहलवी रदीअल्लाहु तआला अन्हु नक्ल फरमाते है....._*

        _"हुजुर ﷺ ने जब हजरत अली करमल्लाहु वज्हु और फातीमा रदि अल्लाहु तआला अन्हा का निकाह पढाया तो हुजुर ﷺ ने एक तबाक खजुरो का लिया और जमाअते सहाबा पर बिखेर कर लुटाया! इसी बिना पर फुक्हा की एक जमाअत कहती है की मिसरी व बादाम वगैरह का बिखेर कर लुटाना निकाह की ज्याफत मे मुस्तहब है!"_

📕 *_[ मदारिजुन्नुबुवाह जिल्द २ सफा, नं 1२८,]_*
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✍🏻 _आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हु]  इरशाद फरमाते है........_

 💫 _"(निकाह के बाद) छुवारे (खजूर) हदीस शरीफ में लूटने का हुक़्म है और लुटाने में भी कोई हर्ज नही और येह हदीस "दारक़ुत्नी" व "बैहक़ी" व "तहावी" से मरवी है।_

📕 *[ अलमलफूज़, जिल्द नं 3, सफा नं 16,]*

    _मालुम हुआ कि  निकाह के बाद मिसरी व खजूर लुटाना चाहिए यानी लोगों पर  बिखेरे, लेकीन लोगों को भी चाहिए कि वह अपनी जगह पर बैठे रहे और जिस क़दर उनके दामन में गिरे वह उठा ले ज़्यादा हासिल करने के लिए किसी पर न गिर पड़े।_
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🌺🌺 *_दुल्हन दुल्हा को मुबारक़बाद_* 🌺🌺
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             👉🏻 _*....* निकाह होने के बाद दुल्हे को उसके दोस्त व अहेबाब और दुल्हन को उसकी सहेलियॉ मुबारकबाद और बरकत की दुआ दे!_
📚 *_[हदीस]_* _हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदिअल्लाहु  तआला अन्हु] से रिवायत है। कि........_

💫💫 _"जब कोई शख़्स निकाह करता तो हुज़ूर ﷺ उसको मुबारक़बाद देते हुए उसके लिए दुआ फरमाते।_
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*: بارك الله لك ، وبارك عليك ، وجمع بينكما في خير*
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 ✍🏻 *[दुआ :-]....* _ब-र-कल्लाहो लका-व-ब-र-क-अलैका व जम-आ-बै-न-कुमा फी़ ख़ैर!_

 *_[तर्जुमा :-]_* _अल्लाह तआला तुझे बरक़त दे और तुझ पर बरक़त नाज़िल फ़रमाए और तुम दोनों में भलाई रखे!_

📕 *_[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 557, अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 139,]_*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣7⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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      🎁 🎁 *दूल्हे को तोहफ़े* 🎁🎁
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            👉🏻 _*....लड़की को जहेज (तोहफा) देना सुन्नत है मगर ज़रुरत से ज़्यादा देना क़र्ज लेकर देना दुरूस्त नहीं है। जहेज के लिये भी कोई हद होनी चाहीए के जिसकी हर गरीब और अमीर पाबंदी करे! अमीरो को चाहीये के वह अपनी बेटीयों को बहुत ज्यादा जहेज न दे, *सजा-सजा कर और दिखाकर जहेज देना बिल्कुल मुनासीब नही,* नामवारी (अपना नाम करने की) लालच मे अपने घर को आग न लगाए! *याद रखीये के नाम और इज्जत तो अल्लाह तआला और रसुलुल्लाह की पैरवी मे है!*_

 🔥🔥 *_लड़के वालो को चाहीये लडकी वाले अपनी हैसियत के मुताबिक जिस क़दर भी जहेज (तोहफा) दें उसे खुशी खुशी कु़बूल करले! जहेज दरअसल तोहफा है, किसी किस्म की तिजारत (Business) नही है! लडके वालो का अपनी तरफ से मांग करना की यह चिज दो, वह चिज दो किसी हटधर्म भीखारी के भीख माँगने से किसी तरह कम नही है।_*
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✍🏻 *[मसअ़ला :-]....* _जहेज के तमाम माल पर ख़ास औरत का हक़ है। दूसरे का उस मे कुछ हक़ नही है।_

📕 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 529,]*
           👉🏻 _*....* हमारे मुल्क में यह रिवाज़ हर क़ौम में पाया जाता है। कि निकाह के बाद दुल्हन वाले दूल्हे को तोहफ़े देते हैं जिसमे कपड़े का जोड़ा, सोने की अंगूठी, घड़ी वगै़रा होती है तोहफ़े देने में कोई हर्ज़ नहीं लेकिन इसमें चंद बातों की एहतियात ज़रूरी है। मसलन आप जो अँगूठी दूल्हे को दे वोह सोने की न हो।_

*[मसअ़ला :-]....* _मर्द को किसी भी धातु का ज़ेवर पहेनना जाइज नही है। इसी तरह मर्द को सोने की अंगूठी पहेनना भी हराम है। औरत को सोने की अंगूठी व जे़वर पहेनना जाइज़ है। मर्द सिर्फ़ चांदी की अंगूठी ही पहेन सकता है। लेकिन उसका वज़न 4 माशा से कम होना चाहिए । दूसरी धातें मस्लन लोहा, पीतल, ताँबां, जस्त, वगै़रा इन धातु की अँगूठी मर्द और औरत दोनो को पहेनना ना जाइज़ है।_

📕 *[कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 196,]*
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📚 *[हदीस :-]....* _एक शख़्स *हुज़ूर ﷺ* की ख़िदमत में पीतल की अँगूठी पहेन कर हाजिर हुए। सरकार ने इरशाद फरमाया.. "क्या बात है कि तुम से बुतों की बू आती है" उन्होंने वोह अँगूठी फेंक दी। "फिर दूसरे दिन लोहे की अँगूठी पहेन कर हाजिर हुए। फरमाया.... क्या बात है कि तुम पर जहन्नमियों का जे़वर देखता हूँ"। अर्ज किया............ या रसूलुल्लाह ! फिर किस चीज़ की अँगूठी बनाऊँ ! इरशाद फरमाया....... चाँदी की और उसको साढ़े चार माशे से ज़्यादा न करना।_

📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 292, हदीस नं 821, सफा नं 277,]*
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✍🏻 *[मसअ़ला :-]....* _मर्द को दो अंगूठियां चाहे चाँदी ही की क्यों न हो पहेनना नाजाइज़ है। इसी तरह एक अँगूठी में कई नग या साढ़े चार माशा से ज़्यादा वज़न हो तो इस तरह की अँगूठी भी पहेनना ना जाइज़ है। व गुनाह है_

📕 *[अहकामे शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 160,]*
            👉🏻 _...लिहाजा दूल्हे को सोने की अँगूठी न दे। इस के बजाए उस की की़मत के बराबर कोई और तोहफा या सिर्फ़ चाँदी की एक अँगूठी साढ़े चार माशा से कम वज़न की ही दे वरना देने वाला और उसे पहेनना वाला दोनो गुनाहगार होंगे।_
             👉🏻 _*....मुम्क़िन है कि आप के दिल में यह खयाल आए के अगर चाँदी की अँगूठी देंगे तो लोग क्या कहेंगे? किस कदर बदनामी होगी वगै़राह वगै़राह। तो होश़ियार ! यह सब शैतान के वसवसे है। वह इसी तरह बदनामी का खौफ दिला कर लोगों से गल़त काम करवाता है। *हम आप से एक सीधी सी बात पूछते हैं कि आपको अल्लाह व उस के रसूल की खुशीनुदी (खुशी) चाहिए कि लोगों की वाह ! वाह ! सोंचिंए और अपने जमीर मे ही इस का जवाब तलब कीजिए।*_
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        _*....* अब आइये हम आप को घड़ी के मुत्अ़ल्लिक़ भी कुछ ज़रूरी व अहम मालूमात दें।_

✍🏻 *[मसअ़ला :-]....* _सरकार सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] अपने एक फ़तवे में इरशाद फरमाते है।------_

 💎 _"घड़ी की जंजीर (चैन) सोने चाँदी की मर्द को हराम है। और दूसरी धातों [जैसे लोहा, स्टील, पीतल, वगै़रा] की मम्नूअ़, इन सब को पहेन कर नमाज़ [पढ़ना] और इमामत़ करना मक़रूहे तहरीमी [ना जाइज़ व गुनाह] है।_

📕 *[अहकामे शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 170,]*
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✍🏻 *[मसअ़ला :-]....* _हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द [रहमतुल्लाह अलैह] ने अपने फ़तवे में इरशाद फरमाते है।....._

💎 _"वोह घड़ी जिस की चैन सोने, या चाँदी, या स्टील, वगै़रा किसी धातु की हो, उस का इस्तेमाल ना जाइज़ है। और उस को पहन कर नमाज़ पढ़ना गुनाह और जो नमाज़ पढी (वाजीबुल-ऐआद) है! यानी इस नमाज को दोबारा पढना वाजीब है वरना गुनाहगार होंगा!_

📕 *[बाहवाला माहनामा इस्तेक़ामत़ कानपुर, जनवरी 1978,]*
             👉🏻 _....इस लिए हमेशा वही घड़ी पहेने जिस का पट्टा (चैन) चमड़े, प्लास्टिक, या रेगज़ीन का ही हो। स्टील या किसी और धातु का न हो। और शादी के मौके पर भी अगर घड़ी देना ही हो तो सिर्फ़ चमड़े, या प्लास्टिक, के पट्टे वाली ही घड़ी दें।_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣8⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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     🚗 *_[रुख्सती का बयान]_* 🚗
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         👉🏻 _*.....* जब कोई शख़्स अपनी लड़की की शादी करें। तो रुख्सती के वक्त़ के अपनी लड़की व दामाद [दुल्हा व दुल्हन] दोनो को अपने पास बुलाऐ फिर उसके बाद एक प्याले [गिलास] मे पानी लेकर येह दुआ पढ़ें......._

*اَلّٰلهُمّٰ اِنِىّ اُعِىیْذُهَا بِكَ وَذُرِِّیِّتَھَاَ مِنَ الشَّیْطَانِ الرَّجِيمِ*

✍🏻 *[तर्जुमा :-]....* _एे अल्लाह! मेेैे तेरी पनाह में देता हूँ इस लड़की को, और इसकी [जो होगी] औलादों को मरदूद शैतान से ।_

  👉🏻 _इस दुआ को पढ़ने के बाद प्याले में दम करें उस के बाद पहले अपनी लड़की [दुल्हन] को अपने सामने खड़ा करे और फिर उस के सिर पे पानी के छींटे मारे फिर सीने और उस की पीठ पर छींटे मारे । उसके बाद इसी तरह दामाद [दूल्हे] को भी बुलाए और प्याले में दूसरा पानी ले कर यह दुआ पढ़ें।......_

*اَلّٰلهُمّٰ اِنِىّ اُعِىیْذُهْ بِكَ وَذُرِِّیِّتَهْ مِنَ الشَّیْطَانِ الرَّجِيمِ*

✍🏻 *[तर्जुमा :-]....* _एे अल्लाह! मै तेरी पनाह में देता हूँ इस लड़के को, और इसकी [जो होगी] औलादें उन को शैतान मरदूद से।_

       👉🏻 _पानी पर दम करने के बाद पहले की तरह अपने दामाद के सर और सीने पर फिर पीठ पर छींटे मारे और उस के बाद रुख़सत कर दें।_

📕 *[हिसने हिसीन, सफा नं 163,]*
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✍🏻 *[हदीस :-]....* _हज़रत इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन जज़री शाफ़अ़ई [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] अपनी किताब "हिसने हिसीन" मे हदीस नक़्ल फरमाते है। के......._

 📚 _"जब रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत मौला अली कर्मल्लाहु वज्हुल करीम का निकाह खातुन ए जन्नत हज़रत फातिमतुज्जहुरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] से कर दिया तो आप उन के घर तशरीफ ले गए और हज़रत फा़तिमा से फरमाया "थोड़ा सा पानी लाओ"। चुनांचे वह एक लकड़ी के प्याले में पानी लेकर हाजिर हुई आप ने उन से वह प्याला लिया और एक घूँट पानी दहने मुबारक [मुँह शरीफ] में ले कर प्याले में ही डाल दिया और इरशाद फरमाया "आगे आओ" । हज़रत फा़तिमा सामने आ कर खड़ी हो गई तो आपने उन के सर पर और सीने पर वोह पानी छिड़का और यह दुआ फरमाई [वह दुआ जो उपर लिखी हैं!] और उस के बाद फरमाया "मेरी तरफ पीठ करो"। चुनान्चे वह आपकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गई तो आपने बाकी पानी भी आपने यही दुआ पढ़ कर पीठ पर छिड़क दिया। इसके बाद आप ने हज़रत अली के जानिब रूख़ करके फरमाया........"पानी लाओ"। हज़रत अली कहते है कि। मै समझ गया जो आप चाहते हैं चुनांचे मैंने भी प्याला भर कर पानी पेश किया ! आप ने फरमाया...... "आगे आए"। मै आगे आया, आप ने वही कलिमात पढ़ कर और प्याले में कुल्ली करके मेरे सर और सीने पर पानी के छींटे दिये और फिर वही दुआ पढ़कर मेरे मोंडो [कंधों] के दर्मियान पानी के छींटे दिये उस के बाद फरमायाव"अब अपनी दुल्हन के पास जाओ"_

📕 *[हिस्ने हसीन, सफा नं 164,]*

✍🏻 *[नोट :-]....* _पानी पर सिर्फ़ दुआ कर के ही दम करें उस में कुल्ली न करें। *सरकार ﷺ* का लुआबे दहन हुआ मुबारक पानी पाक़ ही नही बल्कि बाइसे बरक़ात है। और बीमारियों से शिफ़ा देने वाला और ज़हन्नम की आग के हराम होने का सबब हैं। *(वल्लाहु तआला आलम)*_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣9⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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   🎆 *[ शबे जुफाफ सुहागरात के आदाब]* 🎆
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    👉🏻 _....जब दुल्हा, दुल्हन कमरे में जाए और तन्हाई हो तो बेहतर यह है कि सबसे पहले दोनो वुज़ू कर ले! और फिर जानमाज़ या कोई पाक़ कपड़ा बिछा कर दो (2) रकाअ़त नफ्ल, शुक्राना पढ़ें । अगर दुल्हन हैज़ (माहवारी) की हालत में हो तो नमाज़ न पढ़ें। लेकिन दुल्हा ज़रूर पढ़ें।_
📚 *[हदीस :-]....* _हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है।......_

          _"एक शख्स ने उनसे बयान किया कि मै ने एक जवान लड़की से निकाह कर लिया है और मुझे अंदेशा (डर) है के वह मुझे पसंद नही करेगी। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया । "मुहब्बत व उल्फत अल्लाह की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से, जब तुम बीवी के पास जाओ तो सब से पहले उस से कहो कि वह तुम्हारे पीछे दो (2) रकाअ़त नमाज़ पढ़े ! इंशा अल्लाह तुम उसे मुहब्बत करने वाली और वफा करने वाली पाओंगे।_

📕 *[गुनीयातुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115,]*
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✍ *नमाज़ की नियत :-* _नियत की मै ने दो रकाअ़त नमाज़ नफील शुक्राने की वास्ते अल्लाह तआला के मुँह मेरा काबा शरीफ के अल्लाहु अक़बर ।_
 
         _फिर जिस तरह दूसरी नमाज़े पढ़ी जाती है उसी तरह येह नमाज़ भी पढ़ें। (यानी सुरीह फातीहा, फिर उस के बाद कोई एक सूराह मिलाए) नमाज़ के बाद इस तरह दुआ करें..._

    *_एे अल्लाह तेरा शुक्र व एहसान है के तू ने हमें यह दिन दिखाया, और हमें इस खुशी व नेमत से नवाज़ा और हमे अपने प्यारे हबीब ﷺ की इस सुन्नत पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाई! एे अल्लाह मुझे इससे और इसको मुझसे रोजी अता फरमा! और हमपर अपनी रहमत हमेशा कायम रख, और हमे ईमान के साथ सलामत रख! आमीन"_*

📕 *[गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115,]*
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 🎆 *[शबे जुजाफ (सुहाग रात) की ख़ास दुआ]* 🥛🎆
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      _नमाज़ और दुआ के बाद दुल्हा, दुल्हन सुकून व इत्मीनान से बैठ जाए फिर उसके बाद दुल्हा अपनी दुल्हन के पेशानी थोड़े से बाल अपने सीधे हाथ मे नर्मी के साथ मुहब्बत भरे अंदाज़ में पकड़े और येह दुआ पढ़े_

*اللَّهُمَّ إِنِّي أَسَْلُكَ مِنْ خَيْرِهَا ، وَخَيْرِ مَا جُبِلَتهاْ عَلَيْهِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَشَرِّ مَا جُبِلَتهاْ عَلَيْهِ "*

✍🏻 *[तर्जुमा :-]....* _एे अल्लाह मैं तुझ से इस की (बीवी ) भलाई और खैर व बरकत माँगता हूँ! और उस की फितरी आदतों की भलाई और तेरी पनाह चाहता हूँ उसकी बुराई और फ़ितरी आदतों की बुराई से।_
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📚 *_हदीस :-_* _हज़रत अ़म्र बिन आ़स [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि *हुजुर ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._

 💫 _"जब कोई शख्स निकाह करे और पहली रात (सुहाग रात) को अपनी दुल्हन के पास जाए तो नर्मी के साथ उस के पेशानी के थोड़े सेे बाल अपने सीधे हाथ में ले कर यह दुआ पढ़ें। (वही दुआ जो ऊपर नक़्ल की गयी हैं!)_

📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 150, व हिस्ने हसीन, सफा नं 164,]*

✍🏻 *_[फ़ज़ीलत :-]_* _शबे जुफाफ (सुहाग रात) के रोज़ इस दुआ को पढ़ने की फ़ज़ीलत में उलमा-ए-किराम इरशाद फरमाते है। के..... "अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इस के पढ़ने की बरक़त से मियाँ, बीवी के दर्मियान इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ और मुहब्बत क़ायम रखेगा! और अगर औरत में बुराई हो तो उसे दूर फ़रमा कर उस के जरिए नेकी फैलाएगा और औरत हमेशा मर्द की ख़िदमत गुजार, वफ़ादार, और फरमांबरदार रहेगी। (इन्शा अल्लाह)_
     👉🏻 _अगर हम इस दुआ मानो (Meaning) पर गौ़र करें तो हम पाएंगे के इसमे हमारे लिये कितने अमन व सुकून का पैग़ाम है। यह दुआ हमे दर्स देती है की किसी भी वक्त इंसान को यादे इलाही से गाफील नही होना चाहीये बल्की हर वक्त हर मुआमले मे अल्लाह की रहमत का तलबगार रहे! लिहाजा इस दुआ को शादी की पहली *(सुहागरात)* को ज़रूर पढ़े!_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣0⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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   🔥 *_[ एक बडी गलत फहमी]_* 🔥
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  ✍🏻 _कुछ लोगों का खयाल है कि जब किसी कुवांरी से पहली बार सोहबत (शारीरी संबध) की जाए तो उससे (शर्मगाह से) खून निकलना जरूरी है। चुनांचे यह खून का आना उसके बाइस्मत पाक दामन (पवित्र) होने का सबूत समझा जाता है। अगर खून नही देखा गया तो औरत बदचलन, आवारा समझी जाती है। और औरत के बाइस्मत होने और उसकी दोशीजगी पर शुबह *(शक)* किया जाता है। कभी कभी यह शक जिन्दगी को कड़वा और बद मज़ा कर देता है। नौबत तलाक़ तक जा पहुँचती है। मुमकीन है इसका बयान जाहीर तबियत वालो को बुरी मालुम हो लेकीन तजरेबा शाहीद (गवाह) है के *सैंकडो जिंदगिया इसी शक व शुबाह की बिना पर तबाह हो चुकी है!* लिहाजा इस मसले पर रौशनी डालना निहायत जरुरी है! क्या अजब की हमारे इस मज्मुन (Chapter) को पढने के बाद कोई तलाक नामी दरीयॉ मे गोता जन (डुबकर) हो कर अपनी खुशियो को मौत के घाट उतारने से बच जाए!_

 💫 _कुंवारी लड़कियों के मकामे मख्सूस (शर्मगाह) में अन्दर की जानीब एक पतली सी झिल्ली होती है ! जिसे पर्दा-ए-इस्मत या पर्दा-ए-बुकारत *(Hymen)* वगैरह कहते है। इस झिल्ली मे एक छोटा सूराख होता है जिसके जरिए लड़की के बालिग होने पर हैज़ *(माहवारी)* का खून अपने खास दीनो मे खारीज होता रहता है।_

 👉 _शादी के बाद जब कोई मर्द ऐसी कुवांरी से पहली बार सोहबत करता है तो मर्द के ऊज़ू-ए-तनासुल के उस से टकराने की वजह से वह झिल्ली फट जाती है इस मौके़ पर औरत को थोड़ी तकलीफ़ होती है और थोड़ा सा खून भी खारिज होता है। फिर यह झिल्ली (पर्दा) हमेशा के लिए खत्म हो जाता है।_

     👉🏻 _चूँकि यह झिल्ली पतली और नाज़ुक होती है तो कई मर्तबा किसी कुवांरी की यह मामूली चोट, या किसी हादसे की वजह से या कभी कभी खुद ब खुद भी फट जाती है। आजकल बहुत सी लड़कियाँ साइकल वगै़रह चलाती है, कुछ खेल कूद कुछ कसरत वगै़रह भी करती है जिसकी वजह से भी यह झिल्ली कई मर्तबा फट जाती है! जाहीर है ऐसी लडकियो की जब शादी होती है तो मर्द कुछ *(खून)* न पाकर शक मे मुब्तला हो जाता है_

  👉🏻 _किसी किसी औरत की यह झिल्ली ऐसी लचक़दार होती है कि सोहबत के बाद भी नही फटती और सोहबत करने में रुकावट भी पैदा नही करती। और न ही खून खारिज होता है। लाखों में से किसी एक औरत की यह झिल्ली इतनी मोटी और सख़्त होती है कि फटती नही जिसके लिए *(Operation)* की ज़रूरत पड़ती है। लिहाजा किसी शख्स की शादी ऐसी कुवांरी से हो जिससे पहली मर्तबा कराबत (शरीर संबध) होने पर खुन जाहीर न हो, तो जरुरी नही के वह आवारा, अय्याश व बदचलन रह चुंकी हो, इसलिये उसकी इस्मत, पाकदामनी पर शक करना किसी भी सुरत मे जाइज नही! जब तक की बदचलन होने का शरई सुबुत गवाहो के साथ ना हो_
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✍🏻 _*फिक़ह की मशहूर किताब *"तन्वीरूल अब्सार"* मे है!...._

💎💎 _जिस का पर्दा-ए-इस्मत कूदने हैज़ आने या ज़ख़्म या उमर ज़्यादा होने की वजह से फट जाए वह औरत हक़ीक़त में बकेरा (कुंवारी पाक दामन) है"।_

📕 *_[तन्वीरूल अबसार, बाहवाला,फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 12, सफा नं 36,]_*
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*_सुहाग रात की बातें दोस्तों से कहना_*
👉 _कुछ लोग अपने दोस्तों को पहली रात (सुहाग रात) में बीवी के साथ की हुई बातें मज़े ले कर सुनाते हैं। दुल्हा अपने दोस्तों को बताता है और दुल्हन अपनी सहेलियों को बताती है! और सुनाने वाला और सुनने वाला इसे बडी दिलचस्पी के साथ मजे ले ले कर सुनते है! यह बहुत ही जाहिलाना तरीक़ा है भला इस से ज़्यादा बेशर्मी और बेहयाई की बात और क्या हो सकती है।_

📚 *[हदीस :-]....* _जमाने जाहिलियत मे लोग अपने दोस्तों को और औरतें अपनी सहेलियों को रात में की हुई बातें और हरकतें बताया करते थे। चुनान्चे जब *हुजुर ﷺ* को इस बात की ख़बर हुई तो आप ने इसे सख़्त नापसन्द फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया......_

    *_"जिस किसी ने सोहबत की बातें लोगों में बयान की उस की मिसाल ऐसी है जैसे शैतान औरत, शैतान मर्द से मिले और लोगों के सामने ही खुले आम सोहबत करने लगे"।_*

📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 127, हदीस नं 407, सफा नं 155,]*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣2⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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🍪🍪 *_[दावत कुबूल करना :-]_* 🍪🍪
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💫 _*दावत क़ुबूल करना सुन्नत है!*_

📚 *_हदीस :_* _हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर [रदि अल्लाहु तआला अन्हुमा] से रिवायत है। कि *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया...._

    _"जब तुम मे से किसी को वलीमा खाने के लिए बुलाया जाए तो वह जरूर जाए"_

📕 *_[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 87, मोता इमाम मालिक, जिल्द नं 2, सफा नं 434,]_*
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📚 *_हदिस_*: _हजरत अबु हुरैरा रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया...._

💫💫💫 *_"जो दावत कबुल करके न जाए उसने अल्लाह तआला और रसुल की नाफरमानी की"!_*

📚 *_हदिस_*: _हजरत हमीद बिन अब्दुर्रहमान हुमारी रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया...._

💫 _"जब दो शख्स दावत देने एक वक्त आए, ते जिसका घर तुम्हारे घर से करीब हो उसकी दावत कबुल करो, और अगरलअक पहले आया तो जो पहले आया उसकी दावत कबुल करो "!_
📕 *_[इमाम अहमद, अबु दाऊद शरीफ जिल्द नं 3, बाब नं 136, हदिस नं 357 सफा नं 134]_*
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🔥🔥 *_बगैर दावत जाना_* 🔥🔥
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_"दावत में बगै़र बुलाए नही जाना चाहिए। आज कल आम तौर पर कई लोग दावतों में बिन बुलाए ही चले जाते है और उन्हें न शर्म ही आती है न ही अपनी इज़्ज़त का कुछ ख़्याल होता है गोया....... *मान न मान मै तेरा मेहमान"*_

📚 *_हदीस :_* _*सरकारे मदीना ﷺ* ने इरशाद फ़रमाया......_

 💫 _"दावत में जाओ जब के बुलाए जाओ"! और फरमाया....._

💫💫 *_जो बग़ैर बुलाए दावत में गया वोह चोर होकर दाखील हुआ और गारतगीरी कर के लुटेरे की सूरत में बाहर निकला! (यानी गुनाहो को साथ लेकर निकला)_*

📕 *_[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 127, हदीस नं 342, सफा नं 130,]_*
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🔥🔥🔥 *_बुरा वलीमा_* 🔥🔥🔥
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 🔥🔥 *_हदीस पाक में उस वलीमें को बहुत बुरा बताया गया है । जिस में सब अमीरो को तो बुलाया जाए और गुरबा (गरीब) व मसाकीन को फरामोश (भुला दिया जाए) या उनके लिये अलग किस्म का खाना और अमीरों के लिए अलग क़िस्म का खाना रखा जाए। या अमीरो की खुब खातीर तवाजु की जाए और गरीबो को नजर अंदाज कर दिया जाए, या उन्हे हिकारत की नजर से देखा जाए!_*

📚 *_हदीस_* _हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है *रसूले ख़ुदा ﷺ* ने इरशाद फरमाया...._

💫💫 *_"सब से बुरा वलीमा का वह खाना है जिस में अमीरों को तो बुलाया जाए और गरीबों को नज़र अंदाज़ कर दिया जाए"।_*

📕 *_[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 88, मोता शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 434,]_*

🔥 _आजकल मुसलमानो मे एक नया रिवाज पैदा हुआ है के दावत मे दो किस्म के खाने होते है! सादा व कम लागत वाला खाना गरीब मुसलमानो के लिये और बेहतरीन खाना अमीर मुसलमान और गैर मुस्लीम दोस्तो के लिये रखे जाते है! और इस तरह खातीर तवाजु की जाती है के पुछिये मत_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣3⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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🔥🔥🔥 *_बुरा वलीमा_* 🔥🔥🔥
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📚 *_हदिस :_* _अल्लाह के रसुल ﷺ इरशाद फरमाते है!......_

💫 _"जो काफीरो की ताजीम व तौकीर (इज्जत अफजाई और कद्र) करे यकीनन उसने दीन ए इस्लाम को ढाने (तोडने) मे मदद की!"_

📕 *_[इब्ने अदी, इब्ने असाकीर, तबरानी, बैहकी शरीफ, इबु नईम फिल हिलयाती]*

👉 _ बताइये जिन लोगो के मुतअल्लीक यह फरमान है! उनकी खातीर तवाजु मे इस कद्र मुबालेगा करना और मुसलमानो को उन से कम दर्जा शुमार करना कहॉ तक सही है! कुछ लोग कहते है की "साहब हमे दिन रात उनके बीच उठना बैठना है! हमारे कारोबारी ताअल्लुकात है, इसलिये यह सब कुछ करना जरूरी है!"

     _"एे मेरे भाई! जरा यह तो बताओ की क्या उमुमन यह गैर मुस्लीम भी अपनी शादी ब्याह के मौके पर मुसलमानो के लिये अलग और उनका पसंदीदा खाना रखते है? जी नही! तो फीर हम क्यो उनसे मस्लेहत (Compromise) करे!" यकीनन ऐसे वलीमा का कोई सवाब नही मिलता जिसमे मुसलमानो से ज्यादा गैर मुसलमानो को अहमियत दी जाए!"_
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💫 *_[टेबल कुर्सी पर खाना]_* 💫
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📚 *_हदीस :-_* _हज़रत अनस बिन मालीक [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। कि *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._

 💎 _"जब खाना खाने बैठो तो जूते उतार लो के इस में तुम्हारे पाँव के लिए ज़्यादा राहत है और येह अच्छी सुन्नत है"_

📕 *[तबरानी शरीफ,,]*

_आज कल टेबल कुर्सी पर जूते पहने हुए खाना-खाने का फैशन बन गया है। जिस दावत मे टेबल कुर्सी का इंतजाम न हो वह दावत घटीया किस्म की दावत समझी जाती है!_   

          _टेबल कुर्सी पर खाना खाने के मुत्अ़ल्लिक़ मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खाँ रदिअल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते है....._

          👉🏻 _*....*"टेबल कुर्सी पर जूता पहेने हुए खाना खाना ईसाइयों की नक़्ल है, इससे दूर भागे और *रसूलुल्लाह ﷺ* का वह इरशाद याद करे।_
*من تشبه بقوم فهو منهم*

_यानी जो किसी क़ौम से मुशाबेहत (नक़्ल) पैदा करे वह उन्ही में से है।_

📕 *[फ़तावा-ए-अफ्रीका, सफा नं 53,]*
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💫 *_यह तो टेबल कुर्सी पर खाने के मुतअल्लीक हुक्म था! मगर मौजुदा दौर मे इतनी तरक्की हो गई है के अक्सर जगह खडे-खडे खाने का इंतेजाम होता है! इसमे ऐसे मुसलमान ज्यादा शरीक है, जिनके सर पर सोसायटी मे मॉर्डन कहलाने का भुत सवार है! हैरत बालाए हैरत इस तरह की भिकारी की दावत को स्टेंडर्ड (Standard) का नाम दिया जा रहा है!_*

💫💫 *_अल्लाह तआला ने इंसान को अशरफुल मख्लुकात बनाया, और उसे खानेे, पिने, सोने, जागने, चलने फिरने, और उठने बैठने गर्ज की हर मुआमले मे जानवरों से अलग मुंफरीद इम्तियाज खुसुसीयत से नवाजा है! लकीन ताज्जुब! आज का इंसान जानवरो के तरीको को अपनाने मे ही अपनी तरक्की समझ रहा है!और इसपर फुले नही समा रहा है! अल्लाह तआला मुसलमानो को जानवरो की तरह खडे रहकर खाने-पिने से बचने की तौफीक अता फरमाए! आमीन!_*
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 ✍🏻 *[मसअ़ला :-]....* *_भूख से कम खाना सुन्नत है, भूख भर कर खाना मुबाह है, (यानी न सवाब है न गुनाह) और भूख से ज़्यादा खाना हराम है। ज़्यादा खाने का मतलब यह है कि इतना खाया की पेट खराब होने या बदहज्मी होने का गुमान है।_

📕 *[कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 178,]*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣4⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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 ✍🏻 *_एक नई ख़ुराफ़ात_* ✍🏻
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👉 _आज कल मुसलमानों में एक और नई चीज़ राएज़ हो गयी है वोह यह के औरतों में जवान मर्द और लड़के खाना परोसते है! खाने के दौरान बेहूदा़ गन्दा मज़ाक, लड़कियों से छेड़ छाड़ और बदतमीज़ी की हर हद को पार कर लिया जाता है। क्या इस के हराम व गुनाह होने में किसी को कोई शक़ है।_

📚 *_[हदीस :-]...._* _*रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया......_

 💫 _अल्लाह की लाअ़नत बद निगाहीं करने वाले पर और जिस की तरफ बद निगाही की जाए।_

📕 *[बयहक़ी शरीफ, बाहवाला मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2 सफा नं 77,]*

📚 *_[हदीस :-]...._* _और फरमाते है हमारे प्यारे *आक़ा ﷺ*......._
 💫 _"जो शख़्स किसी औरत को बद निगाही से देखेगा, क़यामत के दिन उसकी आँखों में पिघला हुआ सीसा डाला जाएगा"।_
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        👉🏻 *_इस बुरे तरीक़े पर पाबंदी लगाना हर मुसलमान पर ज़रूरी है और ख़ास कर हमारे घर के बडे बुजुर्गों पर ख़ास जिम्मेदारी है के वह शादी ब्याह के मौके पर औरतों में मर्दों को जाने और खाना खिलाने से रोके वरना याद रखिए महशर में सख़्त पूछ होगी। और आप से पूछा जाएगा "तुम क़ौम में बुज़ुर्ग थे तुम ने अपनी जवान नस्लों को इन हराम कामों से क्यों न रोका था। इस बेहयायी के खिलाफ तुम ने क्यो इक्दाम न किया?" बताए उस वक्त़ आप् के पास क्या जवाब होगा?_*
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📚 *_[हदीस :-]...._* _अल्लाह के *रसूल ﷺ* ने इरशाद फरमाया......_
*_السالت عن ألحق شيطان اخرس_*

💎 *_"बुराई देख कर हक़ बात कहने से खामोश रहने वाला गूंगा शैतान है"।_*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣5⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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💫 *_मुबाशरत (सोहबत) के आदाब_* 💫
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 _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है....._

💎 *_तर्जुमा :_* _"तो उन से सोहबत करो और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो ।"_

📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 2, सूरह ए बखराह, आयत नं 187,]*
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      👉 _इस बात का हमेशा खयाल रखे कि जब भी मुबाशरत (सोहबत) का इरादा हो तो यह जान ले के कही औरत हैज़ (माहवारी) की हालत में तो नही है। चुनांचे औरत से साफ़ साफ़ पूछ ले । और औरत की भी जिम्मेदारी है की अगर वह हैज की हालत मे है, तो बेझिजक अपने शौहर को बता दे! अगर औरत हैज़ की हालत में हो तो हरगिज़ हरगिज़ सोहबत न करे कि इस हालत में औरत से सोहबत करना बहुत बड़ा गुनाह है। (इस मसअ़ले का बयान इंशा अल्लाह आगे आएेगा)_
           
    👉🏻 _अक्सर औरतें शादी की पहली रात (सुहाग रात) हालते हैज (महावीरी) मे होने के बावजुद शर्म की वजह से बताती नही है। या कह भी दे तो बहत कम मर्द होते है जो सब्र से काम लेते है! और जो सोहबत कर बैठते है , और जल्दबाज़ी की सज़ा उम्र भर डॉक्टरों और हकीमों की फ़ीस की शक़्ल में भुगतने पडते हा! लिहाजा मर्द और औरत दोनों को ऐसे मौक़ों पर सब्र से काम लेना चाहीये!_

 👉🏻 _कुछ मर्द मतलब परस्त होते हैं। उन्हें सिर्फ़ अपने मतलब से ही लेना (काम) होता है, वह दूसरे की खुशी को कोई अहमियत नहीं देते वह यही उसूल अपनी बीवी के साथ भी रखते हैं! चुनांचे जब उनके दिल मे ख्वाहिश ए जिमा होती है, तो वह यह नही देखते की औरत उसके लिये तैयार है या नही, वह कही किसी दुख दर्द या बिमारी मे मुब्तला तो नही है? इन सब बातो से उन्हें कोई मतलब नहीं होता वह बेसब्री के साथ औरत से अपनी ख्वाहिश की तक्मील कर लेते है! इस हरकत से औरत की निगाह में मर्द की इज़्ज़त कम हो जाती है और वह मर्द को मतलब परस्त समझने लगती है! साथ ही वह मुबाशरत (सोहबत) का लुत्फ भी हासिल नही हो पाता।_
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 📚 *_[हदीस ]_* _उत्बा बिन अस्सलमी रदी अल्हाहु तआला अन्हु से रिवायत है के *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._

💎 _"तुम मे से जो कोई अपनी बीवी के पास जाए तो पर्दा कर ले और गधो की तरह न शुरू हो जाए"_

📕 *_[इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 616, सफा नं 538, हदीस नं 1990,]_*
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📚 *_हदीस :_* _सैय्यदना हज़रत इमाम ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है । कि *हुजुर ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._
   
💎 *_"मर्द को न चाहिए कि अपनी औरत पर जानवर की तरह गिरे, सोहबत से पहले क़ासिद (पैग़ाम पहुँचाने वाला) होता है"। सहाब-ए-किराम ने अ़र्ज़ किया "या रसूलुल्लाह ! वह क़ासिद क्या है?? आप ने इरशाद फरमाया "वह बोस व किनार (kiss) वगै़रह है"। और मुहब्बत आमोज (प्यार भरी) गुफ्तगु है! (यानी सोहबत से पहले औरत को राज़ी करना)_*

📕 *_[कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 266,]_* *_____________________________________*     
📚 *_हदीस :_* _उम्मुल मोमीनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा रदि अल्लाहु तआला अन्हा से मरवी है। कि *रसूले अकरम ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._       

💎 _जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है। अल्लाह तआला उस के लिए एक (1) नेक़ी लिख देता है! जब मर्द मुहब्बत के साथ औरत के गले में हाथ डा़लता है, उसके हक़ में दस (10) नेक़ियां लिखी जाती है, और जब औरत से जिमा (सोहबत) करता है तो दुनिया और माफीहा से बेहतर हो जाता है।_

📕 *_[गुनीयातुत्तालिबीन, सफा नं 113,]_*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣6⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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💫 *_मुबाशरत (सोहबत) के आदाब_* 💫
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         👉🏻 _सोहबत से पहले खुद बेचैन न हो जाए अपने आप पर पुरा इत्मीनान रखे! जल्दबाज़ी न करें पहले बीवी से प्यार मुहब्बत भरी गुफ्तगु करे फिर बोस व किनार के जरीये उसे मुबाशरत के लिये (आमदा) तैय्यार करे और इसी दौरान दिल ही दिल में यह दुआ पढे_
*_بسم الله العلى العظيم الله اكبر الله اكبر_*

*_बिस्मील्लाह्-हील अलीयील अजीमी अल्लाहु अकबर! अल्लाहु अकबर_*

*_तर्जुमा :_* _अल्लाह के नाम से जो बुज़ुर्ग व बरतर अ़ज़मत वाला है। अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत बड़ा है_
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  👉🏻 _इसके बाद मर्द, औरत जब सोहबत का इरादा कर ले तो कपड़े जिस्म से अलग करने से पहले एक मर्तबा "सूर ए इख़लास" पढ़े_
                    *﷽*

*قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ۔ اللَّهُ الصَّمَدُ ۔ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ۔ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ۔*
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    👉🏻 _सूरए इख़्लास पढ़ने के बाद यह दुआ पढ़ें।_

*بِسْمِ اللَّهِ ، اللَّهُمَّ جَنِّبْنَا الشَّيْطَانَ ، وَجَنِّبْ الشَّيْطَانَ مَا رَزَقْتَنَا*
*_बिसमिल्लाही अल्लाहुम्मा जन्निब्नश्शयताना व जन्निबिश्शयताना मा रजखतना_*

👉🏻 *_तर्जुमा :_* _अल्लाह के नाम से! एे अल्लाह दूर कर हम से शैतान मरदूद को और दूर कर शैतान मरदूद को उस औलाद से जो तू हमें अता करेगा।_

📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3 सफा नं 473, कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 266, हिस्ने हसीन, सफा नं 165,]*
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📚 *_हदीस :_* _हज़रत अबदुल्लाह इब्ने अब्बास [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। कि *रसूले अकरम ﷺ* ने इरशाद फरमाया......_

         👉🏻 _"जो शख़्स इस दुआ को सोहबत के वक्त़ पढे़गा (वही दुआ जो ऊपर लिखी गई है) तो अल्लाह तआला उस पढ़ने वाले को अगर औलाद अ़ता फ़रमाए तो उस औलाद को शैतान कभी भी नुकसान न पहुँचा सकेगा।_

📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 85, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 557,]*
   
🔥🔥 *_होशियार_*🔥🔥

 _इस हदीस की शरह (Explanation) में हुज़ूर गौ़से आ़ज़म शेख़ अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी व मुहक़्क़िक़े इस्लाम शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हुम] इरशाद फरमाते है....._

          👉🏻 _*....*"अगर कोई शख़्स सोहबत के वक्त़ यह दुआ न पढ़े (यानी शैतान से पनाह न माँगे) तो उस शख़्स की शर्मगाह से शैतान लिपट जाता है और उस मर्द के साथ शैतान भी उस की औरत से सोहबत करने लगता है। और इस जिमा से जो औलाद पैदा होती है वह न फ़रमान, बुरी आ़दतों वाली, बेगै़रत, बद्'दीन होती है! शैतान की इस दख़ल अंदाज़ी की सबब औलाद में तबाह कारी आ जाती है। (वल-अयाज बिल्लाह)_

📕 *[गुन्यतुत्तालिबीन, सफा नं 116, अश्अ़तुल लम्आ़त, फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 46,]*
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 *_हदीस :_* _"बुखारी शरीफ" की एक हदीस में है के हज़रत सअ़द बिन ऊबादा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने फरमाया"-----_

  👉🏻 _"अगर में अपनी बीवी को किसी के साथ देख लूं तो तलवार से उस का काम तमाम कर दूँ। उन की येह बात सुन कर अल्लाह के *रसूल ﷺ* ने इरशाद फरमाया..."लोगों तुम्हें साअ़द की इस बात पर ताअ़ज्जुब आता है हालाँकि मैं उन से बहुत ज़्यादा ग़ैरत वाला हूँ और अल्लाह तआला मुझ से ज़्यादा ग़ैरत वाला है।_

📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 137, सफा नं 104,]*
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       👉🏻 *_लिहाजा इस मुसीबत से बचने के लिये जब भी सोहबत करे तो याद करके दुआ पढ ले! या कम अज कम आऊजु-बिल्लाही मिनश्शैता-निर्रजीम बिसमिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम जरुर पढ लिया करे!_*
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👉 *_गालिबन आज कल बहुत से हमारे भाई ऐसे होंगे जो सोहबत के वक्त़ दुआ़ नहीं पढ़ते । शायद यही वजह है कि नस्ले (औलादें) बेग़ैरत, नाफ़रमान, और दीन से दूर नज़र आ रही है। हमारा और आप का रोज़ मर्रा का मुशाहिदा है कि औलाद से बाप कहता है बुजुर्गों की मज़ारात पर हाजिर होना चाहिए बेटा बुजुर्गों की मज़ारों पे जाने को ज़िना और कत्ल कर देने से बदतर समझता है। बाप का अ़कीदा है कि *रसूलुल्लाह ﷺ* आक़ा व मौला है, बेटा रसूले अकरम ﷺ को अपने जैसा बशर और बडे भाई से ज्यादा समझने को तैयार नही! (माजअल्लाह!)_

👉 _गरज के इस तरह की सैकडो मिसाले है की दुनियावी मुआमला हो या दीनी, औलाद अपने मॉं बाप और बुजुर्गो से बाग़ी नज़र आती है! अल्लाह तआला मुसलमानों को तौफ़ीक़ दे।_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣7⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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💫 *_इन्जा़ल (मनी निकलते वक्त़)की दुआ़_* 💫
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 👉🏻 _जिस वक़्त इन्ज़ाल हो यानी मर्द की मनी (वीर्य) उस के आले (ऊज़ू-ए-तनासुल) से निकल कर औरत की फरज (शर्मगाह) में दाखिल होने लगे उस वक्त़ दिल ही दिल में यह दुआ़ पढ़ें!_

*اللَّهُمَّ لَا تَجْعَلْ لِلشَّيْطَانِ فِيمَا رَزَقْتَنِى نَصِيبًا*

*_अल्लाहुम्मा ला-तज-अल लिश्शैतानी फिमा रज़खतनी नसीबा!_*
         
👉🏻 *_[तर्जुमा :-]_* _एे अल्लाह! शैतान के लिए हिस्सा न बना इसमे में जो (औलाद) तू हमें अ़ता करें।_ 

📕 *[हिस्ने हसीन, सफा नं 165, फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 161,]*
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👉🏻 _इस दुआ़ की तालीम देना इस बात की शहादत है कि इस्लाम एक मुकम्मल दीन है। जो ज़िन्दगी के हर मोड़ पर अपना हुक़्म नाफ़िज़ करता है ताकि मुसलमान किसी भी मामले में किसी दूसरे मज़हब (धर्म) व कानुन का मोहताज़ न रहे! और इस दुआ मे दुसरी हिकमत यह भी है के मुसलमान कीसी भी हाल में यादें इलाही से गा़फ़िल न रहे बल्की हर हाल मे अल्लाह की रहमत का उम्मीदवार रहे!_

        _साथ ही साथ यह बात भी याद रखना ज़रूरी है। कि आने वाली औलाद के लिए अल्लाह तआला की बारगा़ह में दुआ़ तो की जाए के अल्लाह तआला उसे शैतान से महफ़ूज रखे! लेकिन जब औलाद पैदा हो जाए और उसे शैतानी कामों से न रोके, उसे बुरी बातों से मना न करे, और अच्छी बातों का हुक़्म न दे, तो बड़ी अ़जीब व ताअ़ज्जुब खेज बात होगी। इसलिए आगाह हो जाईये! के यह दुआ़ हमें आइन्दा के लिए भी अ़मले खैर करने की दावते फिक्र देती है।_
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❤ *[इन्ज़ाल के फौरन बाद अलग न हो]* ❤
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📚 *_हदीस :-_* _सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है। कि *हुज़ूर ﷺ* ने इरशाद फरमाया............._

 💎💎 *_"मर्द में यह कमजोरी की निशानी है कि जब मुबाशरत (सोहबत)का इरादा करे तो बोस व किनार (चुम्मन) से पहले बीवी से सोहबत करने लगे और जब इंजाल (उस की मनी, वीर्य) निकलने लगे तो सब्र ना करे और फौरन अलग हो जाए कि औरत की जरुरत (हाजत ) पूरी नही होती"_*

📕 *_[कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 266,]_*
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 👉🏻 _इमाम अहले सुन्नत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ कादरी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] फ़रमाते है...._
           👉🏻 _*....*"इन्ज़ाल होने के बाद फौरन औरत से जुदा न हो यहाँ तक कि औरत की भी हाजत (जरुरत) पूरी हो हदीसे पाक में इस का भी हुक़्म है! अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला की बेशुमार दुरूदे उस नबी ए रहेमत ﷺ पर जिन्हो ने हम को हर बाब में तालीमे खै़र दी और हमारी दुनियावी और दीनी हाज़तो की कश्ती को किसी दूसरे के सहारे न छोड़ा।"_

📕 *_[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 161,]_*
         👉🏻 _....चुनांचे मर्द को इंजाल हो भी जाए (मनी , वीर्य निकल जाए )तो भी फौरन औरत से अलग न हो जाए बल्कि इसी तरह कुछ देर और ठहरा रहे ताकि औरत का भी मतलब पूरा हो जाए क्योंकि कुछ औरतों को देर में इन्ज़ाल होता है।_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣8⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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 🎟 *[सोहबत के बाद जिस्म की सफ़ाई]* 🎟
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     👉🏻 _सोहबत के बाद मर्द और औरत अलग हो जाए फिर किसी साफ़ कपड़े से पहले दोनों अपनी अपने अपने मकामे मख्सुस को (शर्मगाह को) साफ़ करे ताकि बिस्तर पर गन्दगी लगने न पाए। सफ़ाई के बाद पेशाब कर ले की उसके के बहुत से फायदे है, हकीमो ने बयान किये है! जिनमे से चंद यहॉ जिक्र किये जाते है!_
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 1⃣ _अगर मर्द के आले मे (ऊज़ू-ए-तनासुल ) कुछ मनी बाकी रह गयी हो तो वह पेशाब के ज़रिए निकल जाती है! और अगर थोड़ी सी मनी उज्व मे ऊपर रह जाए तो बाद में पेशाब मे जलन और खुजली की बीमारी होने का अंदेशा होता है।_

2⃣ _पेशाब जरासीम कुश होता है (क्योकी पेशाब मे जरासीम (Germs) को ख़त्म करने वाले अज्जा पाये जाते है) इसलिए पेशाब के वहाँ से गुजरने से उस जगह की सारी गन्दगी ख़त्म हो जाती है, और उस जगह के जरासीम (Germs कीटाणु) ख़त्म हो जाते है! और शर्मगाह की नाली (नली) साफ़ हो जाती है। इस तरह के और भी कई फायदे है जिनकी तफ्सील यहॉ तवालत का सबब (मुमकीन नही) है!_
          👉🏻 *_नोट :- पेशाब के उज्वे तनासुल (शर्मगाह) से जुदा होने के बाद और ठंडा होने पर खुद पेशाब मे करोडोहा जरासीम किटानु बढ कर नुक्सानदेह साबीत होते है! इसलिये शरीयत मे पेशाब का किसी भी तरह का इस्तेमाल हराम है!_*
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 ➡ _पेशाब कर लेने के बाद शर्मगाह और उस के आस पास के हिस्से को भी अच्छी तरह से धो लें इस से बदन तंदुरूस्त रहता है और खुजली की बीमारी से बचाव हो जाता है।_

➡ _लेकिन याद रखिये! मुबाशरत (सोहबत के फौरन बाद ठन्ड़े पानी से न धोए, उससे बुख़ार (Fever) होने का ख़तरा होता है। इसलिए कि सोहबत के बाद जिस्म का दर्जा-ए-हरारत (Body Temperature) बढ़ जाता है जिस्म में गर्मी आ जाती है अगर गर्म जिस्म पर ठन्डा पानी डाला जाए तो बुख़ार जल्द होने का ख़तरा है।_
             ➡ _लिहाजा सोहबत करने के बाद तकरीबन पाँच, दस मिनट बैठ जाए या लेट जाए, ताके बदन की हरारत (Body Temperature) ऐतेदाल (Normal) पर आ जाए! फिर उसके बाद पानी का इस्तेमाल करे! अगर जल्दी हो तो हल्के गर्म, गुन गुने पानी से शर्मगाह धोने में कोई नुकसान नही।_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-3⃣9⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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💫💫 *_[सोहबत के कुछ और आदाब]_* 💫💫
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👉🏻 _जैसा के हम पहले ही बयान कर चुके है कि मज़हब ए इस्लाम हमारी हर जगह हर हाल में रहनुमाई करता हुआ नज़र आता है! यहाँ तक कि मियाँ बीवी के आपसी तअ़ल्लुक़ात में भी एक बेहतरीन दोस्त व रहनुमा बन कर उभरता है और हमारी भरपूर रहनुमाई करता है।_
        👉🏻 _यहाँ हम श़रई रोशनी में मुबाशरत (सोहबत) के कुछ और आदाब बयान कर रहे है जिसे याद रखना और उस पर अ़मल करना हर शादी शुदा मुसलमान मर्द व औरत पर ज़रूरी है।_
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💫 💫 *_सोहबत तन्हाई मे करे_* 💫💫
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       👉🏻 _आपने सड़कों पर, सिनेमा हाल में और बागो में खुले आम कुछ पढ़े लिखे कहलाने वाले मार्डन इन्सान, जो इन्सानी शक़्ल में जानवर नज़र आते है क्योंकी वह सड़को और बाग़ो में ही वह सब कुछ कर लेते है जो उन्हें नही करना चाहिये। लेकिन अल्हमदुलिल्लाह! हम मुसलमान है और अशरफुल मख़लूकात है। इसलिए हम पर ज़रूरी है कि हम इस्लाम का हुक़्म माने और मॉर्डन (Modern) जानवर नुमा इंसानो की नक़्ल से बचे! लिहाज़ा याद रखिये सोहबत हमेशा तन्हाई में ही करे और ऐसी जगह करे जहाँ किसी के आने का कोई ख़तरा न हो। और उस वक्त़ कमरे में अँधेरा कर ले रोशनी मे हरगिज़ न हो।_

✍🏻 *_मसअ़ला :-_* _बिवी का हाथ पकड कर मकान के अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर लिया और लोगो को मालुम हो गया की वती (मुबाशरत) करने के लिये ऐसा किया है, तो यह मकरूह है_
📕 *_[बहारे शरीयत जिल्द नं 2, हिस्सा नंबर 16,सफा नं 57]_*

✍🏻 *_मसअ़ला :-_* _जहाँ कुरआ़ने करीम की कोई आयते करीमा, किसी चीज़ पर लिखी हुई हो अगर्चे ऊपर शीशा (काँच) हो जब तक उस पर कपडे का ग़िलाफ़ न डाल लें वहाँ सोहबत करना या बरहेना (नंगा) होना बेअदबी है।_
📕 *_[फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 258]_*

✍🏻 _हुज़ूर ग़ौसे आ़ज़म़ [रदिअल्लाहु तआलाअन्हु] *"गुन्यतुत्तालिबीन"* में और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] अपनी *"मल्फ़ूज़ात"* *"अल-मसफुज"* मे फरमाते है..........._

 👉🏻 _"जो बच्चा समझदार है और दूसरों के सामने बयान कर सकता है उस के सामने सोहबत करना मक़रूह (तहरीमी (यानी शरीअ़त में ना पसंद, व नाजाइज़) है"_

✍🏻 *_मसअ़ला:_* _किसी की दो बीवीयां हो तो एक बीवी से दूसरी बीवी के सामने सोहबत करना जाइज़ नही। मर्द को अपनी बीवी से हिजाब (पर्दा )नही लेकीन एक बीवी को दूसरी बीवी से तो पर्दा फ़र्ज़ है और शर्म व हया ज़रूरी है"_
📕 *[फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 207,]*
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🌈 🌈 *_मुबाशरत से पहले वुज़ू_* 🌈🌈
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👉🏻 _मुबाशरत (सोहबत) से से पहले वुज़ू कर लेना चाहिये इस के बहुत से फ़ायदे है जिन में से चन्द हम यहाँ बयान करते है।..........._
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1⃣ _अव्वल वुज़ू करना सवाब और बाइसे बरकत है।_

2⃣ _सोहबत से पहले वुज़ू करने की हिक्मत एक यह भी है के मर्द और औरत दोनो मे यह एहसास पैदा हो कि सोहबत हम सिर्फ़ अपनी ख्वाहिशाते नफ्सानी पुरा करने के लिये नही कर रहे है (मज़ा लेने के लिए नही कर रहे हैं।) बल्कि नेक सालेह औलाद पैदा करना मक़्सद है! दुसरी हिक्मत यह है की किसी भी वक्त़ यादें इलाही से हमें गा़फ़िल नही होना चाहिए।_

3⃣ _मर्द बाहर के कामों से और औरत घर के कामों की वजह से दिन भर के थके मांदे होते हैं। थका जिस्म दूसरो के लिये फ़ायदा बख्श साबीत नही होता है! लिहाजा वुज़ू कर लेना चुस्ती, क़ुव्वत और खुद ऐतेमादी का सबब बनता है!_

4⃣ _दिन भर की भागदौड मे जिस्म व चेहरे पर धुल मिट्टी जरासीम (किटाणु) मौजूद रहते है! जब मर्द व औरत बोस व किनार (चुम्मन) करते है। तो यह जरासीम मुँह में और सांसो के जरीए जिस्म मे दाखील हो सकते है! जिस से आगे मुख्तलिफ अमराज (बीमारियॉ) के पैदा होने का ख़तरा होता है। ऐसे सैकड़ों फ़ायदे है जो वुज़ू कर लेने से हासिल होते हैं।_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-4⃣0⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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   🌈 *[नशे की हालत में सोहबत]* 🌈 *______________________________________*
            _शरीअ़ते इस्लामी मे हर किस्म का नशा हराम है! और इस्लाम मे शराब को तो उम्मुल-खबाईस (यानी तमाम बुराइयों की माँ) तक बताया गया है। दो हदीसे पाक का हासिल है के......_

📚 *_हदीस_* _"जिसने शराब पी गोया उस ने अपनी माँ के साथ जिना किया"।_

📕 *[ब हवाला फ़तावा-ए-मुस्तफ़्वीया, जिल्द नं 1, सफा नं 76,]*
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📚 *_हदीस_* _*रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाते है!_

💎 _"शराब पीते वक्त़ शराबी का ईमान ठीक नही रहता"।_

📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 614]*
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📚 *_हदीस_* _और फरमाते है *आक़ा ﷺ*_

💎 _"शराबी अगर बगै़र तौबा किये मरे तो अल्लाह तआला के हुज़ूर इस तरह से हाज़िर होगा जैसे बुतो की पूजा करने वाला"_

📕 *[अहमद, इब्ने हब्बान, बहवाला फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 10, सफा नं 47]*
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📚 *_हदीस_* _हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। कि *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया......._

💎 _"जो ज़िना करे या शराब पीये अल्लाह तआला उससे ईमान खींच लेता है जैसे आदमी अपने सर से (आसानी के साथ) कुर्ता खींच लेता है।_

📕 *[हाक़िम शरीफ, बहवाला फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 10, सफा नं 47,]*
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📚 *_हदीस_* _हज़रत अबू उमामा [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। के *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया.........._

 💎 _"अल्लाह ताआ़ला फरमाता है क़सम है मेरी इज़्ज़त की, जो मेरा कोई बन्दा शराब का एक घूँट भी पीयेगा मै उस को उतना ही पीप पिलाऊंगा"।_

📕 *_[इमाम अहमद, बहवाला बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 9, सफा नं 52]_*
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 👉🏻 _"हक़ीमों और डॉक्टरों ने कहा है की..........नशे की हालत में सोहबत करने से रेहुमेटीक पैन (Rehumetic Pain) नामी बीमारी पैदा हो जाती है और औलाद अपाहिज़ (लंगड़ी लूली) पैदा होती है"_   
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-4⃣1⃣_*

          *_[जरा इसे भीपढ़िए!]_*
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   🌈 *[नशे की हालत में सोहबत]*
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📚 *_हदिस :_* _उम्मुल मोमिनिन उम्मे सलमा रदि अल्लाहु तआला अन्हा इरशाद फरमाती है........_

💎 *_रसुलुल्लाह ﷺ ने हर चिज जो नशा लाए, की अक्ल मे फुतुर डाले हराम फरमाई है!_*
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💫💫💫 *_इसी तरह व्हिस्की, बियर, ताडी, गांजा, ब्राउन शुगर वगैराह जितनी भी ऐसी चिजे है, जिन से नशा आता हो वह हराम है_*
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 🔘🔘 *[ख़ुशबू का इस्तेमाल]* 🔘🔘
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 👉🏻 _*सोहबत से पहले ख़ुशबू लगाना बेहतर है। ख़ुशबू सरकारे मदीना ﷺ* को बहुत पसन्द थी। आप हमेशा ख़ुशबू का इस्तेमाल किया करते थे ताकि हम ग़ुलाम भी सुन्नत पर अ़मल करने की नियत से ख़ुशबू लगाया करे। वरना इस बात से किसी को शक व शुबाह नही कि आप का वजूदे मुबारक़ खुद ही महेकता रहता और आप का मुबारक़ पसीना खुद काएनात की सबसे बेहतरीन ख़ुशबू है। सोहबत से पहले भी ख़ुशबू का इस्तेमाल करना अच्छा है ख़ुशबू से दिल व दिमाग को सुकून मिलता है और सोहबत करने में दिलचस्पी बढ़ती है।_

📚 *_हदीस_* _हाफीजुल हदीस हज़रत इमाम क़ाज़ी फुजैल अयाज़ उन्दुलुसी मालीकी [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] अपनी मशहूर किताब *"शिफ़ा शरीफ़"* में इरशाद फरमाते है......_
          👉🏻 _*....हुज़ूर ﷺ* को ख़ुशबू बहुत ज़्यादा पसंद थी। रहा आप का ख़ुशबू इस्तेमाल करना तो वह इस वजह से था कि आप की बारगा़ह में मलाएका (फ़रीश्ते) हाजिर होते थे। और दूसरी वजह येह है कि ख़ुशबू जिमा और असबाबे जिमा में मुईन और मददगार है! खुशबु आपको बिज्जात महेबुब नही थी! बल्की बिल वास्ता यानी शहावत का जोर कम करने की गरज से महेबुब थी! वरना हक़ीक़ी मुहब्बत तो आप को ज़ाते बारी तआला के साथ ख़ास मख्सुस थी।_

📕 *_[शिफ़ा शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 154,]_*

👉🏻 _लेकिन यह याद रहे कि सिर्फ़ इत्र का ही इस्तेमाल करे अफसोस के आज कल ख़ालिस इतर का मिलना दुशवार हो गया अब ऊमुमन जो इतर बाजारों में मिलते है उनमें (Chemicals) होते हैं। उन का लिबास में इस्तेमाल करना जाइज़ है। लेकिन सर और दाढ़ी के बालों में लगाना नुकसानदेह है उसमे इस्पिरिट, Alcohol की मिलावट होती है जो शराब के हुक़्म में है। यानी शराब हराम है।_

 ✍🏻 *_मसअ़ला_* _आला हज़रत [रदिअल्लाहो अन्हो] इरशाद फरमाते है......._
       👉🏻 _"अलकोहल (शराब) वाले इत्र (सैन्ट) या स्प्रे का इस्तेमाल गुनाह है बल्कि ऐसे इत्र की ख़ुशबू सूंघना भी ना जाइज़ है।_

📕 *_[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 10, सफा नं 88,]_*
      👉🏻 _इस लिए सिर्फ़ ऐसे इत्र का इस्तेमाल करें जिसमें इस्पिरिट (अलकोहल) न हो। अलकोहल वाले इत्र या सैन्ट की पहचान यह है कि उसे अगर हथेली पर लगाया जाए तो ठंडक महसूस होगी और फौरन उड़ भी जाएगा।_
      👉🏻 _औरत ऐसे इत्र का इस्तेमाल करे जिस की ख़ुशबू हल्की हो ऐसी न हो जिस की ख़ुशबू उड़ कर ग़ैर मर्दों तक पहुँच जाए। आजकल अक्सर औरते ऐसे तेज खुशबु वाले स्प्रे, इत्र, या पाउडर क्रिम का इस्तेमाल करती है, ऐसी औरते इस हदिस को पढकर इबरत हासील करे!_

📚 *_हदीस_* _हज़रत अबू मूसा अशअ़री [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है कि *हुज़ूर ﷺ* ने इरशाद फरमाया........_

💎 _"जब कोई औरत ख़ुशबू लगा कर लोगों में निकलती है, ताकी खुशबु उन तक पहुंचे तो वह औरत ज़ानिया है"_

📕 *_[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 264, नसाई शरीफ, जिल्द नं रसूलुल्लाह 398,]_*           
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-4⃣2⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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❌ *_[मुबाशरत (सोहबत) खड़े खड़े न करें!]_* ❌
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     👉🏻 _मुबाशरत (सोहबत) खड़े खड़े न करे कि यह जानवरों का तरीक़ा है! और न ही बैठे बैठे कि यह औरत और मर्द दोनो के लिये नुकसानदेह है! इस तरीके से मुबाशरत करने से बदन कमजोर और खासकर मर्द का ऊज़्व -ए-तनासुल जड़ से कमज़ोर हो जाता है! अगर हमल करार पा जाए तो बच्चा कमजोर, अपंग (हाथ पैर से अपाहिज़) पैदा होता है। या फिर जिस्म का कोई हिस्सा अधुरा रह जाएंगा!_

💫💫💫 _कुछ मोतमद उलमा-ए-दीन ने फरमाया है कि......!_
 _"खडे-खडे मुबाशरत करने से अगर औरत को हमल करार पा जाए तो औलाद बद दिमाग़ और बेवकूफ़ होंगी। या पैदाईशी तौर पर निम पागल (Half Mental) पैदा होंगी!_
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           👉🏻 _हकीमों की इस मुताल्लीक तहकीक यह है के "खड़े रहकर सोहबत करने से रअशा (बदन हिलने) की बीमारी हो जाती है।"_ *_वल - अयाज बिल्लाह (अल्लाह की पनाह!)_*
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         👉🏻 *_सोहबत करने का सही तरीक़ा यह है कि बिस्तर पर लेटे लेटे हो, औरत नीचे की जानीब और मर्द ऊपर की जानीब हो! जैसा कि कुरआने करीम मे भी इस बारे मे इशारा किया गया है!_*

💎 *_तर्जुमा:- फिर जब मर्द उस पर छाया उसे एक हल्का सा पेट रह गया_*

 📕 *_कुरआन ए करीम तर्जुमा कन्जुल इमान, पारा 9, सूरए, आराफ़, रूकू 14, आयत नं 189_*
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👉🏻 _इस आयते करीमा से हमें यह सबक मिलता है कि सोहबत के वक्त़ औरत चित लेटे और मर्द उस पर पट (उल्टा) लेटे कि इस तरीके सेे मर्द के जिस्म से औरत का जिस्म भी ढ़क जायेगा। जैसा की आयत ए करीमा मे इशारा किया गया है! और इस तरीके से मुबाशरत कानुन ए फितरत के मुताबीक है! अब अगर *इसकी खिलाफ वर्जी की गई तो बहरहाल नुक्सान तो जरूर होंगा!* देखा जाए तो इस तरीक़े में ज़्यादा राहत व आसानी है! औरत को इसमे मशक्कत नही होती और मर्द की मनी आसानी से निकल कर औरत की शर्मगाह में दाख़िल होती है और हमल जल्द करार पाता है।(ठहर जाता है!)_
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     _हकीम बु अली सीना जो अपने जमाने के एक मशहुर व मारूफ हकीम गुजरे है उन्होने लिखा है की......_

💫💫 _"अगर औरत उपर और मर्द निचे हो तो इस सुरत मे मर्द की कुछ मनी उसके उज्व मे बाकी रह कर तअफ्फुन पैदा करेंगी और बाद मे तकलिफ व अजीयत की वजह बनेंगी!_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-4⃣3⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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     🕋 *[किब्ला की तरफ रूख़ न हो]* 🕋
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 ✍🏻 _..... हुज़ूर सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है........._

 💫💫 _"सोहबत करने के आदाब में से एक अदब यह भी है कि सोहबत के वक्त़ मुँह क़िब्ला की तरफ से फेर लें।_

📕 *_[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 266,]_*
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       ✍🏻 _आला हज़रत [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] इर्शाद फरमाते है......._

 💫💫 _"सोहबत के वक्त़ क़िब्ला की तरफ मुँह या पीठ करना मक़रूह व ख़िलाफ़े अ़दब है जैसा के *"दुर्रे मुख़्तार"* मे बयान हुआ"_

📕 *_[फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा 140]_*

     👉🏻 *_सोहबत के वक्त़ क़िब्ला की तरफ से रुख फेरने के लिए गालीबन इस लिए कहा गया है की क़िब्ला की ताज़ीम हर मुसलमान पर ज़रूरी है, उस की तरफ़ रूख़ कर के बन्दा अपने परवरदिगार की इबाद़त करता है! और क़िब्ला की तरफ थूकने, पेशाब, पाख़ाना करने और बरहेना (नंगा) उस की तरफ रूख़ करने की सख़्त मुमानियत आई है।_*

📚 *_हदीस_* _एक हदीसे पाक मे पाक में है कि *नबी-ए-करीम ﷺ* ने इरशाद फरमाया.........._

💎 _"जब बन्दा नमाज़ पढ़ता है तो वह अपने रब से मुनाजाक कर रहा होता है! या उसका परवरदिगार उसके और क़िब्ला के दर्मियान होता है! (यानी क़िब्ला की जानिब अल्लाह तआला की रहमत ज़्यादा मुतवज्जहे होती है)_

📕 *_[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 274, हदीस नं 393, सफा नं 233,]_*
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                👉 *_अब चूँकि सोहबत के वक्त़ मर्द और औरत बरहेना (नंगी) हालत में होते है तो भला उस हालत में भला क़िब्ला की तरफ रूख़ कैसे किया जा सकता है। इसलिये मुबाशरत के वक्त अदबन किब्ला की जानीब रूख करने से मना फरमाया गया है!_* *_______________________________________*
🔥 *_नंगे होकर सोहबत करना_*🔥
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👉🏻 *_सोहबत के वक्त़ मर्द और औरत कोई चादर वगैरह ओढ़ ले, जानवरों की तरह बरहेना (नंगे होकर) सोहबत न करे।_*

📚 _*हुज़ूरे अकरम ﷺ* इरशाद फरमाते है ......._

 💎 *_"जब तुम मे कोई अपनी बीवी से सोहबत करे तो पर्दा कर ले बेपर्दा होगा तो फ़रिश्ते हया की वजह से बाहर निकल जाएंगे और शैतान आ जाएंगा, अब अगर कोई बच्चा हुआ तो शैतान की उसमे शिर्कत होगी।_*

📕 *_[गुनीयातुत्तालिबीन, सफा नं 116]_*

✍🏻 _*इमामे अहलेसुन्नत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ कादरी मुहद्दीस बरैलवी [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी किताब *"फ़तावा-ए-रज़वीया"* में फरमाते है.........._

💫💫 *_सोहबत के वक्त़ अगर कपड़ा ओढ़े है बदन छुपा हुआ है तो कुछ हर्ज नही और अगर बरहेना (नंगी हालत मे) है तो एक तो बरहेना सोहबत करना खुद मक़रूह है हदीस में है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने सोहबत के वक्त़ मर्द व औरत को कपड़ा ओढ़ लेने को हुक़्म दिया और फरमाया! "यानी गधे की तरह नंगे न हो"_*

📕 *_[फ़तावा ए रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 140,]*

✍🏻 _....आला हज़रत [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] एक दूसरी जगह इरशाद फरमाते है!........_

  💫💫 *_"बरहेना (नंगी हालत मे) रह कर सोहबत करने से औलाद के बेशर्म व बेहया होने का ख़तरा है"।_*
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📕 *_[फ़तावा ए रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 46,]_*
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         👉🏻 *_सोचीये इंसान की जरा सी लापरवाही कहॉ तक नुकसान का सबब बन जाती है! गालीबन इस जमाने मे जो शर्म और हया का जनाजा उठता जा रहा है, उसकी सैकडों वुजुहात मे से यह भी एक वजह रही हो की मुबाशरत बरहाना (नंगे) होकर की गयी हो, और उपर से कोई चादर या कपडा न लिया गया हो! और यह असर नस्ल (बच्चो) मे आया, नतीजा यह हुआ की शर्म व हया को मौजुदा नस्ल ने जिंदा ही दफन कर दिया है!_*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-4⃣4⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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⛺ *_दौराने जिमा (सोहबत) शर्मगाह देखना_* ⛺
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  ✍🏻 *_मसअ़ला_* _मियाँ बीवी का सोहबत के वक्त़ एक दूसरे की शर्मगाह को छुना बेशक जाइज़ है बल्कि नेक नियत से हो तो मुस्तहब व सवाब है"।_

📕 *_[फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 570, और जिल्द नं 9, सफा नं 72,]_*
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✍🏻 *_मसअ़ला_* _मर्द अपनी बीवी के हर उज्व (Part) को छु सकता है, और औरत भी अपने शौहर के हर उज्व को छु सकती है! चाहे शहवत से हो या बिला शहवत! यहॉ तक के एक दुसरे की शर्मगाह को भी देख सकते है! मगर बगैर जरूरत शर्मगाह का देखना और छुना खिलाफे ऊला मकरूह है!_

📕 *_[फ़तावा आलमगिरी जिल्द नं 5, सफा नं 227, बहारे शरीयत जिल्द नं 2, सफा नं 57,]_*
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👉🏻 *_दौराने सोहबत मर्द व औरत को एक दूसरे की शर्मगाह की तरफ नही देखना चाहिये, इसके बहुत से नुक़सानात है_*

📚 *_हदीस :_* _उम्मुल मोमिनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] फरमाती है कि......._

 💫 _*....हुज़ूरे अकरम ﷺ* का विसाल हो गया लेकिन न कभी आप ने मेरा सतर देखा और न मैंने आप का (सतर )देखा।_

📕 *_[इब्ने माज़ा शरीफ़, जिल्द नं 1, बाब नं 616, हदीस नं 1991, सफा नं 538,]_*
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📚 *हदीस :_* _हज़रत इब्ने अ़दी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत करते है की..... हज़रते इब्ने अब्बास ने इर्शाद फरमाया..........._

 💫 *_"तुम मे से कोई जब अपनी बीवी से सोहबत करे तो उस की फरज (शर्मगाह) को न देखे कि इस से आँखों की बीनाई (रौशनी) ख़त्म हो जाती है!_

📕 *_[हाशिया, मुसनद इमामे आ़ज़म, सफा नं 225,]_*
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✍🏻 *_आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] नक़्ल फरमाते है........._

      👉🏻 _"सोहबत के वक्त़ शर्मगाह देखने से हदीस में मुमानेअत (मनाई) फ़रमायी और फ़रमाया *"फइन्नहु युरेसुल-उम्मीये!"* यानी वह अंधे होने का सबब है। उलमा ए किराम ने फरमाया है कि......_ *_"इससे अंधे होने का सबब या तो वह औलाद अंधी हो, जो इस जिमा (सोहबत) से पैदा हुई, या माज़अल्लाह! दिल का अंधा होना है, के जो सब से बदतर है।"_*

📕 *_[फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 570,]_*
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✍🏻 _*....क़ानूने शरीअ़त* में है कि..........._

     👉🏻 _"औरत की शर्मगाह की तरफ नज़र न करें क्योंकि इस से निस्यान (भूलने की बीमारी) पैदा होती है और नज़र भी कमज़ोर होती है"।_

📕 *_[कानूने शरीअ़त, 2, सफा नं 202,]_* 
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 👉🏻 _सोहबत के आदाब मे से एक यह भी है के सोहबत के दौरान मर्द औरत की शर्मगाह की तरफ न देखे.।_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-4⃣5⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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💫 *_पिस्तान (स्तन) चुमना_*💫
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 👉 _मुबाशरत के वक्त बीवी की छाती चुमने या चुसने मे कोई हर्ज नही, लेकीन खयाल रहे की दुध हलक मे न जाए! अगर हलक मे दुध आ गया तो फौरन थुक दे, जान बुझकर दुध पिना नाजाइज व हराम है!_
        _इमाम अहले सुन्नत आला हजरत अहमद रजा खॉन कादरी रदि अल्लाहु तआला अन्हु *फतावा रज्वीया* मे नक्ल फरमाते है........._

💫 _"सोहबत के वक्त अपनी बीवी के छाती (स्तन) मुँह मे लेना जाइज है बल्की अच्छी नियत से हो तो सवाब की उम्मीद है, जैसा के हमारे इमाम, इमाम ए आजम अबु हनीफा रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने मियॉ-बीवी का एक दुसरे की शर्मगाह को छुने के बारे मे फरमाया *"अर्जु अन्नहा युवज्जेराने अलैहे"* यानी मै उम्मीद करता हु के वह दोनो उसपर अज्र (सवाब) दिये जाएंगे! हॉ अगर दुध वाली औरत हो तो ऐसा चुसना न चाहीये जिससे दुध हलक मे चला जाए! और अगर मुँह मे आ जाए और हलक मे न जाने दे तो हर्ज नही की_ *_औरत का दुध हराम है नजीस (नापाक) नही!_*

📕 *_[फतावा रज्वीया जिल्द 1, सफ नं 72]_*
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       👉 *_कुछ लोगो मे यह गलत फहमी है के दौरान ए जिमा (सोहबत) अगर औरत का दुध मर्द के मुँह मे चला गया तो औरत मर्द पर हराम हो जाती है, और खुद ब खुद तलाक वाके हो जाती है! यह बात गलत है, इसकी शरीयत मे कोई असल नही! फिक्ह की मशहुर किताब "दुर्रे मुख्तार" मे है........_*

💫💫 *_"मर्द ने अपनी औरत की छाती (स्तन) चुसी तो निकाह मे कोई खराबी न आई चाहे दुध मुँह मे आ गया हो, बल्की हलक से उतर गया हो तब भी निकाह न टुटेंगा! लेकीन हलक मे जान बुझकर लेना जाइज नही!"_*

📕 *_[दुर्रे मुख्तार ब हवाला, कानुन ए शरीयत, जिल्द 2, सफ नं 52]_*
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🎆 *_[जिमा के दौरान बात करना]* 🎆
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✍🏻 _जिमा के दौरान बात चीत न करे ख़ामोश रहे!इमामे अहले सुन्नत आ़ला हज़रत [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है..._

 💫 *_"सोहबत के दौरान बात चीत करना मक़रूह है! बल्कि बच्चे के गूंगे या तोतले होने का ख़तरा है"।_*

📕 *_[फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 76,]*
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🔥 *_[दौराने मुबाशरत किसी और का ख़्याल]_*🔥
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👉🏻 _सोहबत के दौरान मर्द किसी दूसरी औरत का और औरत किसी दूसरे मर्द का ख़याल न लाऐ। यानी ऐसा न हो कि मर्द जिमा तो अपनी बीवी से करे और तसव्वर करे कि फलां औरत से जिमा कर रहा हूँ। और इसी तरह औरत किसी और मर्द का तसव्वर करे तो यह सख़्त गुनाह है।_
         
✍🏻 _*....*हुज़ूर पुरनूर सैय्यदना ग़ौसे आ़ज़म शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी [रदि अल्लाहु तआला अन्हु]*" नक़्ल फरमाते है कि....._

 💎 *_"सोहबत के दौरान मर्द अपनी बीवी के अलावा किसी दूसरी औरत का ख़याल लाऐ तो यह सख़्त गुनाह है और एक तरह का छोटू क़िस्म का जिना है"_*

📕 *_[गुनीयातुत्तालिबीन,]*
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    🥛 *[सोहबत के बाद पानी न पीये]* 🥛

           👉🏻 _जैसा कि पहले बयान कीया जा चुका है कि सोहबत करने के बाद जिस्म का दर्जा-ए-हरारत (temperature) बढ़ जाता है इस लिए उस वक्त़ प्यास भी शिद्दत से महसुस होती है।लेकिन ख़बरदार ! सोहबत के फ़ौरन बाद पानी हरगिज न पीये। हकीमों ने लिखा है..._

💫 *_"सोहबत के फ़ौरन बाद पानी नही पीना चाहिये क्योंकि इस से दमा (साँस) की बीमारी होने का खतरा है।_*
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-4⃣6⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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 🎆 *[दोबारा सोहबत करना हो तो]* 🎆
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  👉🏻 _एक रात मे मुबाशरत (सोहबत) के बाद उसी रात में दूसरी मरतबा सोहबत करने का इरादा हो तो मर्द और औरत दोनो वुज़ू करले कि यह फ़ायदेमन्द है, और अगर सोहबत न भी करना हो तो वुज़ू करके सो जाए।_

📚 *_हदीस :_* _हज़रत उमर व अबू सईद खुदरी [रदि अल्लाहु तआला अन्हुम] से रिवायत है कि *नबी-ए-करीम ﷺ* ने इर्शाद फरमाया_

 💎💎 *_"जब तुम मे से कोई अपनी बीवी से एक बार सोहबत करने के बाद दोबारा सोहबत का इरादा करे तो उसे वुज़ू करना चाहिए।_*

📕 *_[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 139, इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, सफा नं 188,]_*
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✍🏻 *_इमाम ग़ज़ाली_* _[रदि अल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है-------_

💫 _"एक बार सोहबत कर चुके, और दोबारा (सोहबत) का इरादा हो तो चाहिए कि अपना बदन धो डालें (वुज़ू कर ले) और अगर ना पाक़ आदमी कोई चीज़ खाना चाहे तो चाहिए कि वुज़ू कर ले फिर खाये! सोने का इरादा हो तो भी वुज़ू करके सोए, हालाकीं (वुज़ू करने के बाद) नापाक़ ही रहेगा (जब तक ग़ुस्ल न कर ले) लेकिन सुन्नत यही है"।_

📕 *_[कीमीया ए सआ़दत, सफा नं 167,]_*
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         🎆 *[वुज़ू करके सोए]* 🎆

     👉🏻 _मुबाशरत (सोहबत) के बाद सोने का इरादा हो तो मर्द और औरत दोनो पहले अपने मकाम ए मख्सुस (शर्मगाह) को धो ले और वुज़ू करले फिर उस के बाद सो जाए।_
📚 *_हदीस :_* _उम्मुल मोमीनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] फरमाती है.._

 💎 *_"रसूलुल्लाह ﷺ_* _हालते जनाबत मे (मुबाशरत के बाद) सोने का इरादा फ़रमाते तो अपनी शर्मगाह धो कर नमाज़ जैसा वुज़ू कर लेते थे" (फिर आप सो जाते)_

📕 *_[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 194, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 129,]_*
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 🎆 *[बीमारी मे मुबाशरत]* 🎆
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       👉🏻 _औरत अगर किसी दुख, परेशानी व बीमारी में मुब्तला हो तो उस की सेहत का ख़याल किये बगै़र हरगिज़ सोहबत न करे, वैसे इन्सानियत का तकाज़ा भी यह है कि दुखी या बीमार इन्सान को और तकलीफ़ न दी जाए बल्कि उसे आराम और सुकून फरहाम करे।_

             👉🏻 _औरत कीसी बिमारी मे या तकलीफ मे हो तो उसकी सेहत का खयाल किए बगैर मुजामेअत करना मुनासीब नही! तिब की बाज किताबो मे नक्ल है की....._

💫 *_"बुखार की हालत मे मुबाशरत न करे की बदन मे हरारत बस जाती है, और फेफडों के खराब होने का कवी अंदेशा है!"_*
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    🎆 *[सोहबत मज़े के लिए न हो]* 🎆

💫💫 *_हज़रत मौला अली मुश्किलकुशा* [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी *"वेसाया"* (वसीयत) मे और *हज़रत इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली* [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी किताब *"कीमीया-ए-सआ़दत"* में नक़्ल किया है कि-----

 👉🏻 *_"जब कभी सोहबत करे तो नियत सिर्फ़ मज़ा लेने या शहवत (हवस) की आग बुझाने की न हो बल्कि नियत यह रखे कि जिना से बचूँगा और औलाद सालेह व नेक सीरत पैदा होगीं। अगर इस नियत से सोहबत करेगा तो सवाब पाएंगा।_*

📕 *_[वसाया शरीफ, कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 255,]_*

👉🏻 _हजरत उमर फारुख ए आजम रदि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है......._
💫💫 *_"मै निकाह सिर्फ इसलिये करता हु की सालेह औलाद हासील करु!"_*

📕 *_[इहया उल उलुम जिल्द 2 सफा नं 44,]_*
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