25/10/2020

दुरूद ए पाक , फरिश्ते, दोज़ख़, चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण, का बयान

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     दुरूदे पाक
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*_1. जो कोई एक बार दुरूदे पाक पढ़ता है तो उसके दुरूद से एक परिंदा पैदा होता है जिसके 70000 बाज़ू हैं हर बाज़ू में 70000 पर हैं हर पर में 70000 चेहरे हैं हर चेहरे में 70000 मुहं हैं हर मुहं में 70000 ज़बान है और वो हर ज़बान से 70000 बोलियों में रब की तस्बीह पढ़ता है और इन तमाम तस्बीहों का सवाब उस पढ़ने वाले के नामये आमाल में लिखा जाता है_*

_*📕 नूर से ज़हूर तक, सफह 15*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

 *_जो नबी पर एक बार दुरूद शरीफ पढ़े तो मौला तआला उस पर 10 रहमते नाज़िल फरमायेगा उसके 10 गुनाह मिटा देगा और उसके 10 दर्जे बुलन्द करेगा और दूसरी रिवायत में है कि मौला और उसके फरिश्ते उस पर 70 मर्तबा दुरूद पढ़ते हैं_*

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 3, सफह 76*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

*_जो रोज़ाना 100 बार नबी करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम पर दुरूदे पाक पढ़े और शहादत की तमन्ना रखे तो वह शहीद मरेगा_*

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 4, सफह 174*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

*_जो कोई दिन भर में 1000 बार दुरूद शरीफ पढ़ेगा तो वो उस वक़्त तक नहीं मरेगा जब तक की अपनी जगह जन्नत में ना देख ले_*

_*📕 खज़ीनये दुरूद शरीफ, सफह 14*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

 *_जब भी जहां भी और जितनी बार भी नबी करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का नाम मुबारक आये तो हर बार आप पर दुरूदे पाक पढ़ना बाज़ उल्मा के नज़दीक वाजिब है और ऐसा ना करने वालों पर सख्त वईदें आई है_*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफह 21*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जिसने रमज़ान पाया और अपनी बख्शिश ना करा सका वो हलाक हुआ जिसने अपने वालिदैन को पाया और उनकी खिदमत करके अपनी बख्शिश ना करा सका वो हलाक हुआ और जिसके पास मेरा ज़िक्र हुआ और उसने मुझपर दुरूद ना पढ़ा वो हलाक हुआ_*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 97*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

 *_बाज़ लोग हिंदी में नामे अक़्दस के आगे बजाये सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम लिखने के सिर्फ सल्ल. लिखते हैं या अंग्रेजी में S.A.W. और उर्दू में ص ل ع م लिख देते हैं ऐसा करना सख्त नाजायज़ो हराम है_*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफह 21*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

 *_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जिसने मेरे नाम के साथ दुरूदे पाक लिखा तो जब तक वो वहां लिखा रहेगा फरिश्ते उसके लिए मग़फिरत की दुआ करते रहेंगे और उसका सवाब जारी रहेगा_*

_*📕 कुर्बे मुस्तफा, सफह 79-80*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

*_जिसने दुआ के अव्वल और आखिर में दुरूद शरीफ पढ़ा तो उसकी दुआ रद्द नहीं की जाती_*

_*📕 क़ुर्बे मुस्तफा, सफह 75*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

 *_जिसने दुरूदे पाक को ही अपना वज़ीफा बना लिया तो ये उसकी दुनिया और आखिरत के लिए तन्हा काफी है और उसको दूसरे किसी वज़ीफे की जरूरत नहीं है_*

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 3, सफह 77*_

_*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*_

_*हदीसे पाक में आता है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता*_

_*📕 क़ुर्बे मुस्तफा, सफह 100*_





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दोनों किबलों का बयान पोस्ट
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Part 1
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

दोनों किबलों का बयान पोस्ट(1)

सवाल- ख़ान-ए-काबा की तामीर कितनी बार हुई और किस किस ने कराई?
जवाब- मशहूर यह है कि दस बार हुई,(1)सबसे पहले फ़रिश्तों ने की हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश से दो हज़ार साल पहले,(2)दूसरी बार हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने की,(3)तीसरी बार हज़रत शीश अलैहिस्सलाम ने की,(4)चौथी बार हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने की,(5)पांचवी बार कौम इमालका ने की,(6)छटी बार क़बील-ए-जुरहम ने की,(7) सातवीं बार हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के जद्दे आला कुसई बिन किलाव ने की,(8)आठवीं बार कुरैश ने तामीर की जिसमें हमारे नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने भी शिरक़त फ़रमाई,(9)नवीं बार हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रदियल्लाहु अन्हु ने अपने दौरे ख़िलाफ़त में तामीर की जो नबी सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के तजवीज़ करदा नक़्शे के मुताबिक थी यानी आपने हतीम को ख़ान-ए-काबा में दाख़िल कर दिया और उसके दो दरवाज़े बनाऐ एक मश़्रिक(पूरब)की तरफ़ और दूसरा मग़रिब(पश्चिम) की तरफ़,(10)दसवीं बार हज्जाज बिन यूसुफ सक़्फ़ी ने की।
(सावी जिल्द 3 सफ़्हा 83/ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 206/रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 157/खाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 321/जुमल जिल्द 1 सफ़्हा 106)

लेकिन अल्लामा ऐनी शारेह बुखारी फरमाते है कि ख़ान-ए-काबा की तामीर सिर्फ पाँच बार हुई,(1)फ़रिश्तों ने की,(2)हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने,(3)कुरैश ने की,(4)हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर ने की,(5)हज्जाज बिन यूसुफ ने की।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 1 सफ़्हा 615)

इस पर तरक्की करते हुऐ अल्लामा हलबी अपनी किताब में लिखते है कि दर हक़ीक़त ख़ान-ए-काबा काबा की तामीरे जदीद सिर्फ तीन बार हुई,(1)हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की तामीर,(2)ज़मानऐ जाहिलिय्यत में कुरैश की तामीर इन दोनों तामीरों में दो हज़ार सात सौ पैंतीस साल का फ़ासला रहा,(3)हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर की तामीर जो कुरैश की तामीर के 82 साल बाद हुई बाकी फ़रिश्तों और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और फ़राजिन्दों की तामीर यह सही रिवायतों से साबित नही और इलावा दूसरो ने सिर्फ टूट फूट की मरम्मत कराई या मामूली तरमीम की अज़ सरे नो तामीर नही की।
(सीरते हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 204)

सवाल- ख़ान-ए-काबा की तामीर कितने पहाड़ो के पत्थरों से हुई?
जवाब- पाँच पहाड़ो के पत्थरों से हुई (1)तूरे सीना,(2)तूरे ज़ैता,(3)जूदी,(4)लबनान,(5)हिरा।
(सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 88)

सवाल- ख़ानऐ काबा की तामीर क्यों की गई?
जवाब- हक़ीक़ते हाल तो अल्लाह तआला को ही मालूम अलबत्ता एक रिवायत मे है कि जब अल्लाह तआला ने फ़रिशतों से फरमाया कि में अपना ज़मीन में नाइब बनाने वाला हुए तो फ़रिशतों ने कहा ऐसे को नाइब बनाऐगा जो ज़मीन में फसाद फैलाऐगा और खूंरेज़ी करेगा हम तो तेरी तसबीह व तहलील और तकदीस बयान करते हैं फ़रिशतों की इस बात से रब तआला को जलाल आ गया तो फ़रिशतों ने रब तआला को राज़ी करने के लिए अर्शे आज़म का तवाफ़ करना शुरू दिया यहाँ तक कि सात फेरे रब्बे करीम को फ़रिश्तों की यह अदा पसन्द आ गई तो हुक्म दिया ज़मीन में मेरे लिए एक मकान बनाओ ताकि वह बन्दे जिनसे में नाराज़ हो जाऊँ वह वह अगर उस मकान की पनाह ले और उसका तवाफ़ करके मुझे राज़ी किया है फिर फ़रिश्तों ने ख़ान-ए-काबा की तामीर की।
(शेख़ज़ादा जिल्द 1 सफ़्हा 420)

सवाल- क्या ख़ान-ए-काबा की तामीर में हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने भी कुछ ख़िदमत अन्जाम दी?
जवाब- हाँ जब हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की मद्द से ख़ान-ए-काबा तामीर फ़रमा रहे थे तो हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने इन्जीनियरिंग की ख़िदमत अन्जाम दी।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 322)



LAST Part 2
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दोनों किबलो का बयान पोस्ट(2)आखिरी

सवाल- ख़ान-ए-काबा में सबसे पहले बुत किसने रखा?
जवाब- अमर बिन लिही ने।
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 183)

सवाल- ख़ान-ए-काबा कितने सालों तक बुत खाना रहा?
जवाब- एक हज़ार साल तक।
(रूहुल बयान जिल्द 4 सफ़्हा 483)

सवाल- उसके इर्द-गिर्द कितने बुत नसब किये गऐ थे?
जवाब- तीन सौ साठ।
(ज़रक़ानी जिल्द 2 सफ़्हा 335)

सवाल- किस यह बात सही है कि काबे शरीफ के ऊपर से अगर बीमार परिन्दा गुजर जाऐ तो उसे शिफ़ा मिल जाती है?
जवाब- हाँ वहाँ की हवा से उसकी बीमारी दूर हो जाती है।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 150)

सवाल- बैतुल मुकद्दर की तामीर किसने की?
जवाब- बुन्याद हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम ने रखी फिर उसकी तकमील हजरत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने फरमाई।
(जज़बुल कुबूल सफ़्हा 115/फ़तावा रिज़वितया जिल्द 2 सफ़्हा 209)

सवाल- हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने बैतुल मुकद्दर की बुन्याद किस जगह रखी?
जवाब- जहाँ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का ख़ेमा नसब किया गया था।
(नुज़हतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 558)

सवाल- हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने बैतुल मुकद्दर की तामीर किन लोगों से कराई?
जवाब- जिन्नात और शयातीन से।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 5 सफ़्हा 233)

सवाल- बैतुल मुकद्दर कब तक किबला रहा?
जवाब- हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तक।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 433)
एक रिवायत में है कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तक किबला रहा बाकी तमाम नबी बनी इसराईल वगैरह सब का किबला ख़ान-ए-काबा काबा रहा।
(तफ़सीर नईमी पारा 11 सफ़्हा 475)

सवाल- हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम के लिये कब तक किबला रहा?
जवाब- तकरीबन सोला महीने 15 दिन।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 433)

सवाल- फिर आपके लिये तहवीले किबला का हुक्म कहाँ हुआ?
जवाब- मदीना मुनव्वरा में हुआ जबकि आप बैतुल मुकद्दर की तरफ़ रूख करके दो रक़ात नमाज़ जुहर अदा कर चुके थे और दो रकात बाकी थी।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 103)

सवाल- क्या हर एक की बन्दगी के लिये किबला अलग-अलग है?
जवाब- हाँ मुक़र्ररबीन फ़रिश्तों का किबला अर्शे आज़म है रूहानिय्यीन का किबला कुर्सी है कर्रोबीन का किबला बैते मअमूर है मलाईकह ऐ ज़मीन का किबला हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का जिस्म ज्यादा तर बनी इसराईल के नबियों का किबला बैतुल मुकद्दर रहा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम व हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम और आपकी उम्मत का किबला ख़ान-ए-काबा है और मोमिनों की रूहों का किबला सिदरतुल मुन्तहा है।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 455)

सवाल- रौज़ऐ अक़दस अफ़ज़ल है या ख़ान-ए-काबा?
जवाब- रौज़ऐ अक़दस बल्कि तमाम नबियों के मज़ार।
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 324)







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          फ़रिश्तों का बयान
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Part 1
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फ़रिश्तों का बयान पोस्ट(1)

सवाल- फ़रिश्ते किसे कहते हैं?
जवाब- फ़रिश्ते लतीफ जिस्म रखते हैं नूर से पैदा किये गऐ हैं उनको अल्लाह तआला ने यह कुदरत दी है कि जो शक़्ल चाहें इख्तियार करले।
(तकमीलुल ईमान सफ़्हा 9)

सवाल- फ़रिश्ते मर्द हैं या औरत?
जवाब- न मर्द हैं न औरत।
(तकमीलुल ईमान सफ़्हा 9)

सवाल- क्या फ़रिशतों की पैदाइश आदमियों की तरह है?
जवाब- नहीं बल्कि फ़रिश्ते लफ्जे"कुन"से पैदा किये गऐ हैं।
(आलहिदायतुल मुबारकह सफ़्हा 4)

सवाल- फ़रिश्तों की तादाद कितनी है?
जवाब- सही तादाद तो अल्लाह व रसूल जानें अल्बत्ता हदीस शरीफ में है कि आसमान व ज़मीन में कोई एक बालिशत जगह खाली नहीं जहाँ फ़रिश्तों ने सजदे में पेशानी न रखी हो ज़मीन से सिदरतुल मुन्तहा तक पचास हजार साल की राह है उसके आगे मुस्तवी उसकी दूरी खुदा जाने,इससे आगे अरशे आज़म के सत्तर परदे हैं हर हिजाब(परदे)से दूसरे हिजाब तक पाँच सौ बरस का फासला है और उससे आगे अर्श इन तमाम वुसअतों(ख़ाली मकाम)में फ़रिश्ते भरे हैं।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 2 सफ़्हा 26/अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 9)

सवाल- सारी मख़लूकात में किस की तादात ज्यादा है?
जवाब- फ़रिश्तों की तादाद ज्यादा है हदीस शरीफ में है कि अगर सारी मख़लूकात को दस हिस्सो में तकसीम किया जाए तो नौ हिस्से फ़रिश्तों के हैं और एक हिस्सा सारी मख़लूकात का।
(तकमीलुल ईमान सफ़्हा 9/तफसीर जुमल जिल्द 4 सफ़्हा 534)

सवाल- क्या सब फ़रिश्ते एक ही बार में पैदा हो गऐ या उनकी पैदाइश का सिलसिला जारी है?
जवाब- पैदाइश का सिलसिला जारी है हदीस शरीफ में है कि अर्श की दाहनी तरफ नूर की एक नहर है सातों आसमान और सातों ज़मीन और सातों समुन्दरों के बराबर है इसमें हर सुबह हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम नहाते है जिससे उनके नूर पर नूर और जमाल पर जमाल बढ़ता है फिर जब आप पर झाड़ते हैं तो जो बूंद गिरती है तो अल्लाह तआला उस से उतने-उतने हजार फ़रिश्ते बनाता है दूसरी हदीस में है कि चौथे आसमान में एक नहर है जिसे नहरे हयात कहते हैं हजरत जिब्राईल हर रोज़ उसमें नहाकर पर झाड़ते हैं जिससे सत्तर हजार कतरे झड़ते हैं और अल्लाह तआला हर कतरे से एक-एक फ़रिश्ता पैदा करता है।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 2 सफ़्हा 26/अलहिदायतुल मुबारकाह सफ़्हा 9)

सवाल- क्या इसके इलावह कोई और भी सूरत है जिससे फ़रिशते पैदा होते हैं?
जवाब- हाँ एक फ़रिश्ता और है जिसका नाम रूह है यह फ़रिश्ता आसमान और ज़मीन और पहाड़ो से बड़ा है क़यामत के दिन तमाम फ़रिश्ते एक सफ़ में खड़े होंगे और यह फ़रिश्ता तन्हा एक सफ़ में खड़ा होगा तो इन सब के बराबर होगा यह फ़रिश्ता चौथे आसमान में हर रोज बारह हजार तसबीहें पढ़ता है और हर तसवीह से एक फ़रिश्ता बनता है,दुसरी हदीस शरीफ में है कि रूह एक फ़रिश्ता है जिसके सत्तर हजार सर हैं और हर सर में सत्तर हजार चहरे और हर चहरे में सत्तर हजार मूँह और हर मूँह में सत्तर हजार जुबानें और हर जुबान में सत्तर हजार लुगत यह उन सब लुगतों से अल्लाह तआला की तसबीह करता है और हर तसबीह से अल्लाह तआला एक फ़रिश्ता पैदा करता है(अल्लाहुअकबर)इसी तरह हदीस शरीफ में है कि हमारे आका हुजूर अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम ने फरमाया जो मुझ पर मेरे हक़ की ताजीम के लिए दुरूद भेजे अल्लाह तआला उस दुरूद से एक फ़रिश्ता पैदा करता है जिसका एक पर पूरब और एक पशिचम में होता है अल्लाह तआला उस से फरमाता है दुरूद भेज मेरे बन्दे पर जैसे उसने मेरे नबी पर दुरूद भेजा पस वह फ़रिश्ता क़यामत तक उस पर दुरूद भेजता रहेगा इसी तरह नेक कलाम अच्छा काम फ़रिश्ता बनकर आसमान की तरफ़ बुलन्द होता है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 4 सफ़्हा 148वजिल्द 7 सफ़्हा 169/उम्दतुल क़ारी जिल्द 9 सफ़्हा 16/अलहिदायतुल मुबारकाह सफ़्हा 6व11)


Part 2
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फ़रिश्तों का बयान पोस्ट(2)

सवाल- क्या सारे फ़रिश्तों का मरतबा बराबर है?
जवाब- नहीं बल्कि उनमें भी इन्सानों की तरह अवाम और ख्वास हैं और ख्वास फ़रिश्ते रुतबे में आम फ़रिश्तों से अफ़ज़ल हैं।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 2 सफ़्हा 45व46)

सवाल- खास फ़रिश्ते कौन-कौन हैं?
जवाब- यह हैं,
हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम,
हजरत मीकाईल अलैहिस्सलाम,
हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम,
हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम,
अर्श उठाने वाले, मुकर्रबीन, कर्रोबीन,रूहानिय्यीन।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 2 सफ़्हा 45)

सवाल- क्या इन खास फ़रिश्तों में भी कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत है?
जवाब- हाँ यह चार फ़रिश्ते हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम हजरत मीकाईल अलैहिस्सलाम हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम बाकी तमाम फ़रिश्तों से अफ़ज़ल हैं।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 2 सफ़्हा 45/तकमीलुल ईमान सफ़्हा 9)

सवाल- इन चार फ़रिश्तों में कौन अफ़ज़ल है?
जवाब- हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 2 सफ़्हा 45)

सवाल- इन्सान फ़रिश्तों से अफ़ज़ल है या फ़रिशते इन्सान से अफ़ज़ल हैं?
जवाब- जमहूर एहले सुन्नत के नज़दीक ख़ास इन्सान यानी नबी व रसूल खास फ़रिश्तों से अफ़ज़ल हैं और आम इन्सान यानी औलियाऐ किराम आम फ़रिश्तों से अफ़ज़ल हैं और ख़ास फ़रिश्ते आम इन्सानों से अफ़ज़ल हैं।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 2 सफ़्हा 45/तफसीर कबीर जिल्द 4 सफ़्हा 84)

सवाल- क्या फ़रिश्तों के पर होते हैं?
जवाब- हाँ दो-दो तीन-तीन चार-चार और बाज़ फ़रिश्तों के तो इससे भी ज्यादा होते हैं जैसे कि हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम के बारे में है कि आपके 600 पर हैं।
(तकमीलुल ईमान सफ़्हा 9)

सवाल- क्या फ़रिश्तों को लौहे महफूज का इल्म होता है?
जवाब- हाँ ख़ास फ़रिश्ते लौहे महफूज पर मुत्तलअ है और आम फ़रिशते अपने ख़ास के ज़रीऐ लौहे महफूज की कुछ बातों पर मुत्तलअ होते हैं।
(तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 307)

सवाल- क्या फ़रिश्ते अंबियाऐ किराम से ज्यादा इल्म रखते हैं?
जवाब- नहीं अंबियाऐ किराम उनसे ज्यादा इल्म रखते हैं,इल्म ही ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम को फ़रिश्तों से सजदा कराने का शर्फ बख्शा।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 40व277)

सवाल- अल्लाह तआला ने फ़रिश्तों को किस कदर ताक़त व कुव्वत अता फरमाई है
जवाब- इसकी पूरी हकीक़त तो अल्लाह तआला जाने अलबत्ता एक रिवायत में है कि एक फ़रिश्ता दुनिया को हलाक करने के लिये काफी है।
(शरह शिफा जिल्द 1 सफ़्हा 735)

सवाल- क्या फ़रिश्ते भी हुजूर अकरम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की उम्मत हैं?
जवाब- हाँ उम्मा हैं आप उनकी तऱफ भी रसूल बनाकर भेजे गऐ।
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 165/सावी जिल्द 4 सफ़्हा 68)

सवाल- फ़रिश्तों ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम को किस दिन सज्दा किया?
जवाब- जुमे के दिन जवाल से लेकर असर तक।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 1 सफ़्हा 10)

सवाल- सबसे पहले किस फ़रिश्ते ने सज्दा किया?
जवाब- हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने फिर हजरत मीकाईल अलैहिस्सलाम फिर हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम ने फिर हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम फिर मलाइका मुकर्रबीन ने।
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 1 सफ़्हा 10)

सवाल- क्या फ़रिश्तों के पीर होते हैं जिस तरह इन्सान और जिन्नात के लिए पीरो मुरशिद होते हैं?
जवाब- हाँ हुजूर गौसे आजम फरमाते हैं कि में आदमियों और जिन्नों और फ़रिश्तों सबका पीर हूंँ।
(बहजतुल असरार सफ़्हा 23/फ़तावा रिज़विया जिल्द 9 सफ़्हा 141)

सवाल- क्या फ़रिश्तों को देखना मुम्किन है?
जवाब- हाँ देखना मुम्किन है।
(फ़तावा हदीसीया सफ़्हा 145)

सवाल- क्या किसी ने देखा भी है?
जवाब- हाँ अंबियाऐ किराम सहाबऐ इज़ाम औलियाऐ किराम अपनी बेदारी में फ़रिश्तों को देखते हैं लेकिन उनकी असली सूरत में नहीं।
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 425/तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 143)

सवाल- हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम,हजरत मीकाईल अलैहिस्सलाम,हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम,हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम का अस्ल नाम क्या है और कुन्नियत क्या है?
जवाब- हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम का अस्ल नाम अब्दुल्लाह है लेकिन इमाम सुहैली फरमाते है कि जिब्राईल सुरयानी जुबान का लफ्ज है जिसके माना अब्दुर्रहमान या अब्दुल अज़ीज़ के हैं एक कौल यह है कि अस्ल नाम अब्दुल जलील और कुन्नियत अबुलफ़तह है,
हजरत मीकाईल अलैहिस्सलाम का अस्ल नाम अब्दुर्रज़्ज़ाक और कुन्नियत अबुल ग़नाइम है,
हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम का अस्ल नाम अब्दुल ख़ालिक और कुन्नियत अबुलमनाफिख है,
हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम का अस्ल नाम अब्दुल जब्बार और कुन्नियत अबु यहया है।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 1 सफ़्हा 45व84)


Part 3
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फ़रिश्तों का बयान पोस्ट(3)

सवाल- क्या हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को उनकी असली सूरत पर देखना मुमकिन है?
जवाब- हाँ देखना मुमकिन है लेकिन सिर्फ हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने दो मरतबा देखा है एक बार ग़ारे हिरा में
दूसरी बार सिदरतुल मुन्तहा पर।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 5/ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 57)

सवाल- क्या हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम किसी ने नहीं देखा है?
जवाब- हाँ हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के सिवा किसी नबी ने उनको उनकी असली सूरत में नहीं देखा है।
(सावी जिल्द 4 सफ़्हा 115/सीरत हलबी जिल्द 2 सफ़्हा 294)

सवाल- हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम किन बातों पर मामूर हैं?
जवाब- हवा चलाने,लश्करों को फतह व शिकस्त देने आज़ाब नाज़िल करने,कफ़िर और सरकश बादशाहों को हलाक करने अल्लाह तआला की बारात में हाजतें पेश करने,अम्बियाए किराम की बारगाहों में हज़िर होने वही और अल्लाह तआला के हुक्मों के पहुंचने पर मामूर है।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 108)

सवाल- हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम की अस्ली सूरत क्या है?
जवाब- अस्ली सूरत यह है, नूरी जिस्म है, उनके जिस्म में 600 पर हैं और हर पर इस क़दर फैला हुआ है कि उससे आसमान का किनारा छुप जाऐ और उन सब परों पर ज़बुर जद व याकूत व मोती जड़े हुऐ हैं एक मर्तबा हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने उनको देखा कि सर आसमान में है और पाँव ज़मीन में और मश़्रिक व मग़रिब का फ़ासिला उनसे पुरा हो गया है।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 308/खाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 179)

सवाल- अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को किस क़दर ताक़त अता की है?
जवाब- अल्लाह तआला ने उन्हें इतनी ताक़त व कुव्वत अता फ़रमाई है कि आसमान से ज़मीन तक बावजूद इस क़दर फ़ासले के पलक मारने की देर में उतर भी आते और चढ़ भी जाते हैं।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 179)

सवाल- हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम किस नबी की बारगाह में कितनी बार हाज़िर हुऐ?
जवाब- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की बारगाह में बारह मर्तबा,
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में चार बार,
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में पचास मर्तबा,
हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में बयालीस मर्तबा,
हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में चार बार,
हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में तीन मर्तबा,
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में चार सौ मर्तबा,
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में दस बार और,
हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की ख़िदमत ए मुकद्दर में चौबीस हज़ार मर्तबा हाज़िर हुऐ।
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 234/ज़रक़ारी जिल्द 1 सफ़्हा 234)

सवाल- क्या अब भी हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ज़मीन पर ऊतर आते है?
जवाब- हाँ, हदीस शरीफ़ में है कि हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम उस बन्दऐ मौमिम की मौत के वक़्त हज़िर होते है जिसकी मौत पाकी पर हो।
(फ़तावा हदीसिया सफ़्हा 129)

सवाल- हज़रत इसराफ़ील अलैहिस्सलाम किन बातों पर मामूर है?
जवाब- सूर फूकनें, इन्सानों और जानवरों में रूह फूकने और लौहे महफ़ूज पर मामूर हैं और हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम व हज़रत मीकाईल अलैहिस्सलाम व हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह के हुक्म भी पहुँचाते हैं कुछ रिवायतों में है कि रात की बारह घड़ियां में बारह अज़ाने कहते है हर घड़ी की अज़ान अगल है, उनकी अज़ानों को इन्सान और जिन्नतों के इलावा सातों आसमानों और सातों ज़मीन के तमाम फ़रिश्ते सुनते हैं।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 310 पारा 30 सफ़्हा 26)

सवाल- हज़रत इसराफ़ील अलैहिस्सलाम की लम्बाई चौड़ाई कितनी है?
जवाब- उसकी हक़ीक़त तो अल्लाह तआला जाने अलबत्ता बाज़ रिवायतों से इस कदर साबित होता है कि उनका एक पर पूरब के किनारे और एक पश्चिमी और अर्शे आज़म उनके कंधे पर है लेकिन कवी अल्लाह तआला की तजल्ली से इतने सिमट जाते है कि छोटी चिड़ियाके मानिन्द हो जाते है।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 309)



Part 4

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फ़रिश्तों का बयान पोस्ट(4)

सवाल- क्या हज़रत इसराफ़ील अलैहिस्सलाम लौहे महफ़ूज की बातों को भी जानते हैं?
जवाब- हाँ हज़रत इसराफ़ील अलैहिस्सलाम को लौहे महफ़ूज की पोशीदा बातों पर भी इत्तेलाअ है,वह साहिबे लौह कहलाते हैं उनके मुतालिक यह फ़ज़ीलत आई है कि जब ज़मीन और आसमान में किसी चीज़ के मुतालिक अल्लाह तआला का इरादा होता है तो लौहे महफ़ूज खुद बुलन्द होकर उनके सामने हो जाती है यह उस वक़्त उसमें नज़र करते हैं और उस मुकद्दर (लिखी हुई) बात में गौर करते हैं अगर वह आमाल की जिन्स(किस्म)से होती है तो हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को उसका हुक्म फरमाते हैं और अगर वह हज़रत मीकाईल अलैहिस्सलाम ताल्लुक से हो तो आप इनको मामूर कर देते हैं।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 307)

सवाल- क्या हज़रत इसराफ़ील अलैहिस्सलाम भी किसी नबी की ख़िदमत में हाज़िर हुऐ?
जवाब- नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के इलावा किसी नबी की ख़िदमत में हाज़िर नहीं हुऐ और न होंगे।
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 405)

सवाल- हज़रत इसराफ़ील अलैहिस्सलाम किस जगह से सूर फूकेंगे?
जवाब- बैतूल मुकद्दस की एक चट्टान पर खड़े होकर सूर फूकेंगे।
(सावी जिल्द 3 सफ़्हा 54)

सवाल- हज़रत मीकाईल अलैहिस्सलाम किन बातों पर मामूर हैं?
जवाब- बारिश बरसाने,ज़मीन से हरयाली उगाने हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम की मदद करने और मख़लूक का रिज़्क मुअय्यम करने पर मामूर है।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 308/तक़मीलूल ईमान सफ़्हा 9)

सवाल- हज़रत मीकाईल अलैहिस्सलाम के फ़ज़ाइल क्या हैं?
जवाब- हदीस शरीफ़ में है कि बैते मामूर तो ख़ान-ए-काबा के ऊपर सातवें आसमान में फ़रिश्तों का किबला है आसमान के फ़रिश्ते उसमें जमा होकर जमाअत का इन्तेजाम करते हैं हज़रत मीकाईल अलैहिस्सलाम इमाम बनते हैं और सब फ़रिश्तों को नमाज़ पढ़ाते हैं।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 310)

सवाल- हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम किन बातों पर मुकर्रर है?
जवाब- रूहों को खीचने और बीमारियों और आफ़तों पर मुकर्रर हैं।
(तफ़सीर अज़ीज़ी पारा 30 सफ़्हा 26/तक़मीलूल ईमान सफ़्हा 10)

सवाल- क्या हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम तन्हा रूहों को क़ब्ज़ करते हैं?
जवाब- कुछ की रूह तन्हा खींचते हैं लेकिन ज्यादातर अपने मातहत फ़रिश्तों के साथ मिलकर रूह क़ब्ज़ करते हैं उनके मातहत बहुत फ़रिश्ते हैं आप उनके सरदार हैं।
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 23)

सवाल- हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम एक ही आन और घड़ी में कितनी रूहें क़ब्ज़ फ़रमा सकते हैं?
जवाब- एक लाख रूहें क़ब्ज़ कर लेते हैं हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम की ताक़त व कुव्वत तमाम पूरब वालों और पश्चिम वालों और तमाम दरयाओं और हवाओं के रहने वालों पर ऐसी है जैसे किसी शख्स के सामने दस्तर ख़्वान हो अब वह जो चाहे उठाले ख्वाब मरने वाला पूरब में हो या पश्चिम में हो और इतनी रूहें क़ब्ज़ करने के बावजूद अल्लाह तआला की इबादत में भी मशगूल रहते हैं।(और आज का इन्सान कहता है मुझे वक़्त नहीं मिलता इबादत के लिए )
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 19/मवाहिब लदुन्निया जिल्द 2 सफ़्हा 389)

सवाल- क्या हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम रूह क़ब्ज़ करने के बाद खुद लेकर जाते हैं या दूसरे फ़रिशतों के हवाले कर देते हैं?
जवाब- मोमिन की रूह रहमत के फ़रिश्ते और काफिर की रूह अज़ाब के फ़रिश्ते के हवाले कर देते हैं।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 19)


Part 5

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फ़रिश्तों का बयान पोस्ट(5)

सवाल- क्या हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम सिर्फ इन्सानों की रूह क़ब्ज़ करते हैं या हर जानवर की?
जवाब- हक़ीक़त तो अल्लाह व उसका रसूल को मालूम अलबत्ता हदीस शरीफ़ में है कि जानवरों और कीड़ों की रूहें तसबीह में हैं जब उनकी तसबीह ख़त्म हो जाती है तो उनपर मौत तारी हो जाती है उनकी मौत मलकुल मौत के क़ब्ज़े में नहीं यानी अल्लाह तआला उन जानवरों की ज़िन्दगी बिला वास्ता मलकुल मौत ख़त्म कर देता है बाज़ रिवायत में है कि मलकुल मौत सिर्फ इन्सानों की रूह क़ब्ज़ करते हैं बाक़ी एक फ़रिश्ता जिन्नात की और एक फ़रिश्ता शैतानों की और एक फ़रिश्ता चरिन्दों परिन्दों दरिंदों मछलियों कीड़ों मकोड़ों की रूह क़ब्ज़ करने पर मुकर्रर है बाज़ रिवायत में है कि मलकुल मौत हर जानवर हर इन्सान और जिन और तमाम जानवरों की रूहें क़ब्ज़ करते हैं।
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 21/फ़तावा हदीसिया सफ़्हा 30/ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 51)

सवाल- क्या यह रिवायत सही है कि पहले मलकुल मौत लोगों के पास खुल्लम खुल्ला आते थे लेकिन जबसे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने आपकी आँख फोड़ दी तब से आप पोशीदा तौर पर आने लगे?
जवाब- हाँ यह दुरूस्त(सही)है।
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 20/अलइततेहाफ़ सफ़्हा 117)

सवाल- हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम को रूह क़ब्ज़ करने पर मुकर्रर करने की क्या वजह है?
जवाब- यह और फ़रिश्तों के ऐतेबार से ज्यादा सख़्त है इसलिए इन्हें रूह क़ब्ज़ करने पर मामूर किया गया।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 39)

सवाल- किरामन कातेबीन कौनसे फ़रिश्ते हैं?
जवाब- बह फ़रिश्ते हैं जो इब्ने आदम की बातों और कामों और अच्छाई और बुराई लिखते हैं बन्दा जब कोई नेकी करता हैं तो दाहनी तरफ का फ़रिश्ता फौरन दस गुना करके लिखता हैं और यह फ़रिश्ता बाई तरफ़ के फ़रिश्ते से अमीन हैं और जब कोई बन्दा वुराई करता हैं तो दाहनी तरफ बाला फ़रिश्ता बाई तरफ़ वाले से कहता हैं अभी न लिख शायद कि वह बन्दा तोबा कर ले और अगर तौबा नहीं करता हैं तो कि वह बाई तरफ़ वाला फ़रिश्ता उसके नाम-ए-आमाल मैं एक गुनाह लिख देता है।
(ख़ाज़िन जिल्द 2 सफ़्हा 117/खाज़िन जिल्द 6 सफ़्हा 196/ज़रक़ानी जिल्द 6 सफ़्हा 82)

सवाल- हर आदमी के सात कितने फ़रिश्ते होते हैं?
जवाब- चार फ़रिश्ते होते हैं दो फ़रिश्ते दिन और दो फ़रिश्ते रात मैं रहते हैं और रात दिन के आमाल के दफ्तर अलग-अलग होते हैं।
(तफ़सीर अज़ीज़ी पारा 30 सफ़्हा 88)

सवाल- क्या यह फ़रिश्ते हर वक़्त आदमी के साथ रहते हैं या किसी वक़्त अलग हो जाते हैं?
जवाब- सही कोल यह हैं की पेशाब,पाखाना और हमबिस्तरी वक़्त दूर हो जाते है।
(रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 370/खाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 195)

सवाल- क्या किरामन कातेबीन हमारे सात मेहरबानी करते हैं?
जवाब- हाँ उनकी मेहरबानी और उनका करम यह है कि इन्सान के तमाम बुरे कामों और पोशीदा बातों पर आगाह और वाकिफ़ होते हैं लेकिन किसी के सामने ज़ाहिर नहीं करते और न किसी को रुसवा करते हैं इसी तरह अगर कोई एक नेकी करता है तो इसका सवाब दस गुना लिखते हैं और अगर कोई नेकी का इरादा करता है मगर किसी रूकावट की वज़ह से न कर सका तो उसके नामऐ आमाल में एक नेकी का सवाब लिख देते हैं और अगर कोई गुनाह का इरादा करता है लेकिन खौफ़े खुदा से न किया तो उसको भी नेकी के हिसाब में शुमार करके एक नेकी का सवाब उसके हिसाब में लिखते हैं इसी तरह अगर किसी से कोई गुनाह हो जाता है तो 6 घण्टे तक मुहलत देते हैं नाम-ए-आमाल में कुछ नहीं लिखते शायद कि वह बन्दा नादिम शर्मिन्दा होकर तौबा करले या कोई ऐसा नेक काम करले जो उस गुनाह को मिटा दे अगर इतनी देर तक भी बन्दा तौबा नहीं करता और न ही कोई नेक काम करता है तो उसके नाम-ए-आमाल नाम में एक गुनाह लिख देते हैं फिर जब कभी तौबा व इस्तिग़फ़ाह करता है या कोई अच्छा काम बजालाता है तो उस लिखे हुऐ गुनाह को मिटा देते हैं।
(तफ़सीर अज़ीज़ी पारा 30 सफ़्हा 88)

सवाल- इन्सान के मरने के बाद किरामन कातेबीन कहा जाते हैं?
जवाब- जब इन्सान मर जाता है तो किरामन कातेबीन अल्लाह तआला की बारगाह में अर्ज करते हैं ऐ रब्बे कुद्दुस हमारा काम ख़त्म हो गया तेरा बन्दा अम्ल करने की दुनिया से निकल गया इजाज़त दे कि हम आसमान पर आऐं और तेरी इबादत करें अल्लाह तआला फ़रमाया है कि आसमान मेरी इबादत करने वालों से भरा है तुम्हारी ज़रूरत नहीं फिर अर्ज़ करते हैं इलाही हमें ज़मीन में जगह दे इरशाद होता है मेरी ज़मीन इबादत करने वालों से भरी हे तुम्हारी कुछ ज़रूरत नहीं अर्ज करते हैं ऐ अल्लाह तआला अब हम क्या करें इर्शाद होता है मेरे बन्दे की क़ब्र पर खड़े होकर क़यामत तक तसबीह व तहलील और तकबीर पढ़ो और उसका सवाब मेरे बन्दे के लिये खिलते रहो और काफ़िर के लिए हुक्म होता है कि उसकी क़ब्र पर वापस जाओ और क़यामत तक उसपर लानत करते रहो।
(रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 370/शरहुस्सुदूर सफ़्हा 370/अलहिदाया अलमुबारक सफ़्हा 17)


LAST PART 6
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फ़रिश्तों का बयान पोस्ट(6)आख़िरी

सवाल- हफ़ज़ह कौनसे फ़रिश्ते  हैं?
जवाब- वह फ़रिश्ते हैं जो इन्सानों की जिस्मानी बलाओं आफ़तों की हिफ़ाज़त करते हैं और उनके रिज़्क और कामों की हिफाजत करते हैं यह फ़रिश्ते दिन के अगल और रात के अगल होते हैं इनका इस्तेमाल(यानी इकटठा)नमाज़े फज्र व अस्र में होता है रात के फ़रिश्ते नमाज़े फज्र तक अपना काम करते हैं और बाद नमाज़े फज्र चले जाते हैं और दिन के फ़रिश्ते उस वक़्त से नमाज़े असर तक हिफ़ाज़त व देखभाल करते हैं और असर की नमाज़ के बाद रवाना हो जाते है और असर के फ़रिश्ते उस वक़्त से नमाज़े फज्र तक निगह बानी करते हैं जब यह फ़रिश्ते ऊपर जाते हैं तो अल्लाह तआला बावजूद अपने इल्मे जाती के उन फ़रिश्तों से पूछता है कि तुम ने मेरे बन्दें को किस हाले में छोड़ा है फ़रिश्ते जवाब देते हैं ऐ परवरदिगार हमने उनको नमाज़ पढ़ते हुऐ छोड़ा है और जब हम उसके पास गऐ थे उस वक़्त भी वह में मशगूल था।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 4 सफ़्हा 6/सावी जिल्द 2 सफ़्हा 19)

सवाल- हर बन्दे के साथ कितने फ़रिश्ते होते हैं?
जवाब- इस बारे में बहुत कोल हैं दो,चार,पाँच,दस,एक सौ साठ,तीन सौ साठ।
(रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 370/ज़रक़ानी जिल्द 6 सफ़्हा 82)

सवाल- इतने फ़रिश्ते किन-किन चीज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं?
जवाब- दो फ़रिश्ते तो आमाल की हिफ़ाज़त करते हैं जो किरामन कातेबीन कहलाते हैं जिनका बयान गुजर चुका बाकी एक फ़रिश्ता आँखों की हिफ़ाज़त के लिऐ मुकर्रर है कि आँखों को तकलीफ़ की चीज़ों से बचाता है और एक फ़रिश्ता पेशानी की निगरानी करता है कि वह अगर खुदा का जिक्र करे तो उसको बुलन्द करे और सरकशी करे तो उसको झुकाऐ और एक फ़रिश्ता मूँह की हिफ़ाज़त करता है कि उसमें कोई तकलीफ़ देने वाला जानवर दाख़िल नहीं हो सके एक फ़रिश्ता बन्दे के सोने जागने में जिन और इन्सान और हैवानात से हिफ़ाज़त करता है और जो चीज तकलीफ़ देने के लिये आती है तो यह फ़रिश्ता उससे कहता है पीछे हट और दो फ़रिश्ते दोनों होटो पर मुकर्रर है कि जब इन्सान दुरूद शरीफ़ पढ़ता है तो उसकी हिफ़ाज़त करते हैं।
(तफ़सीर इब्ने जरीर जिल्द 3 सफ़्हा 77से79/ज़रक़ानी जिल्द 6 सफ़्हा 82/खाज़िन व मआलिम जिल्द 4 सफ़्हा 6)

सवाल- ज़बानिया कौनसे फ़रिश्ते हैं?
जवाब- वह फ़रिश्ते हैं जिनको अल्लाह तआला ने दोज़खियों पर अज़ाब देने के लिये मुकर्रर किया है यह निहायत सख़्त और ताकतवर हैं इनमें खुदा ने नरमी और रहम पैदा ही नहीं किया उनमें से एक फ़रिश्ता सत्तर हजार दोजखियों को एक दफ़ा में जहन्नम में झोंक देगा उनकी उन्नीस है और इन सब के सरदार मालिक हैं जो दोज़ख़ के ख़ाज़िन(दरोगा)हैं फिर हर एक के मातहत इतने फ़रिश्ते हैं जिनका शुमार अल्लाह ही जानता है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 101/दकाइकुल अख़बार सफ़्हा 36)

सवाल- कर्रो बीन कौनसे फ़रिश्ते हैं?
जवाब- यह ख़ास फ़रिश्तों में से है जो अर्शे आज़म के ईर्द-गिर्द सफ़ बनाए हुऐ तसबीह व तकवीर में मशगूल हैं अर्शे आज़म के इर्द-गिर्द फ़रिश्तों की सत्तर हजार सफ़ें हैं कुछ सफ़ आगे और कुछ सफ़ पीछे यह आर्श का तवाफ़ करते हैं एक सफ आती है तो दुसरी सफ़ जाती है जब आपस में बाज़ से बाज़ मिलते हैं तो एक सफ़ वाले"लाइला-ह-इल्लल्लाह" कहते तो दूसरी सफ़ वाले अल्लाहु अकबर कहते हैं।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 6 सफ़्हा 75)

सवाल- क्या कर्रो बीन और अर्शे आज़म को उठाने वाले फ़रिश्ते सिर्फ ज़िक्रे इलाही करते हैं?
जवाब- नहीं, उनके मुतालिक यह भी आया है कि यह मुसलामानों के लिये इस्तिग़फ़ार(बख़्शिश)चाहते हैं और यह दुआ माँगते हैं कि ऐ हमारे रब तेरी रहमत व इल्म में हर चीज़ समाई है त उन्हें बख्शदे जिन्होंने तौबा की और तेरी राह पर चले और उन्हें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा और जन्नत में दाख़िल कर जिसका तूने उनसे वादा फ़रमाया है।
(कुरान मुकद्दस सूरऐ मौमिन/खाज़िन व मआलिम जिल्द 6 सफ़्हा 75).









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CHAAND GARHAN AUR SURAJ GARHAN KE MAUQE PAR LOGO KE MUKHTALIF NAZRIYAAT AUR UNKI TARDEED.
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➡SAWAAL:Chand garhan aur suraj garhan ke bare men ulama ki kya rai hai.Aam Zindagi men chand garhan aur suraj garhan ke waqt mukhtalif nazriyaat aur khiyaalat bayaan kiye jaate hain bil khusus suraj garhan aur chand garhan ke waqt jo auraten ayyam e hammal se guzar rahi hoti hain logo ke khyalon ke mutabiq hamila(pregnant ) aurto ko un dino men sidhna letna chahiye ya chalte phirte rehna chahiye aur barah e raast suraj ya chaand ke samne nahi aana chahiye,aur lete huwe koi karwat nahi leni chahiye hatta ke suraj aur chand garhan mukkammal taur par khatam ho jae.Kuch azad khiyaal log in baton ko toh hum pursti tasawwur karte hain.Kiya yeh nazaryaat haamila aurat ya uske shohar ke bare men islaami taur par durust hai ya nahi?nez hamal ke ilawa aam dino men aurat ke saath(Suraj chaand garhan ke waqt)hum bistari karna jaez hai ya nahi.wazaahat ke saath jawaab de kar shukriya ka mauqa ataa farmaaiye.

✔JAWAAB:Suraj aur chand garhan ke muta'lliq ahadees mubaraka ki roshni men jo haqiqat waazeh hoti hai.Wo muaashra e arab men pae jane waale un nazaryaat ka radd hai jo suraj aur chaand ke mutalliq logo ke zehno men raasikh th.Kuffar o mushrikeen yeh khayaal karte the ke kisi bure shaks ki wajah se suraj aur chaand garhan lagta hai.Nabi kareem صلى الله عليه وسلم ne waazeh lafzon men bayaan farmayaa ke:"ان الشمس والقمر آيتان من آيات الله لا يخسفان لموت احد ولا لحياته فاذا رايتم ذالك فاذكروالله"
Suraj aur chand dono Allah Azwajal ki nishaniyo men se hai wo nishaniyan hai un ko na kisi ki maut ki wajah se garhan lagta hai na kisi ke zindah rehne ki wajah se lihaza jab tum unka garhan dekho toh Allah TaAllah ko yaad kiya karo

📚Sahih Al bhukari 1052 sahih muslim907

Usi tarah jab nabi Akram صلى الله عليه وسلم ke saahibzaade hazrat ibrahim رضى الله تعالى عنه ka wisaal huwa aur ittefaqan us mauqe par suraj ko garhan lag gaya to baaz no (new) muslim sahiba ne kaha ke aapke sahabzade ke wafaat ki wajah se suraj ko garhan lag gaya! Rasool Allah صلى الله عليه وسلم ne fauran uska radd farmaya aur irshaad farmaya ke suraj aur chaand Allah taAllah ki nishaniyon men se do nishaniya hain'Unhe na kisi ke maut ki wajah se garhan lagta hai na hayaat ki wajah se.

📚Sharha sahih muslim J-2Safa-735

mazkura ahaadees se malum huwa ke suraj aur chaand garhan ka kisi shaks  ki maut wa hayaat aur deegar hawadis(hadsa) se koi ta'alluq nahi hai balke yeh Allah Azwajal ki qudrat kaamila ka ek izhaar hai ke chand aur suraj jaisi badi badi taqaten bhi usi ke qabza wa qudrat men hai aur jab wo unko be noor kar sakta hai to na tawaa(kamzor) insaan ki us ke huzur kiya majaal aur taaqat hai?Suraj aur chaand ko kisi beemari ya nuksaan aur khatraat(dangers ) ka baais qaraar dena shar'ee nuqta nazar se durust nahi hai.Ho sakta hai Tabbi(Dr ) lihaaz se uske baaz asraat(jaise ke nuqsan)insaani jism aur sehat par murtab hote hon lekin shareeat e mutahhira men garhan ke saath un baaton ka tasawwur nahi diya gaya.Isi tarah garhan ke baare men yeh samjhna ke shar'an uske asraat haamila aurato par murrattab hote hain yeh bhi mehaz to humparsti aur baatil nazrayaat ka hissa hai.Suraj aur Chaand garhan sharee nuqta e nazar se insaan ki maamulaat e zindagi men qattan(bilkul) haail nahi hai albatta us waqt tauba isteghfaar aur zikar wa azkaar ka hukm hai.

📚Ahsan al fatawa al maroof fatawa khalilya J-1 S-184-185









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DOZAKH KA BAYAN
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DOZAKH KA BAYAN Part;-01
ALLAHU AKBAR

Ye Ek Makaan Hai Ke Os Qahaar O Jabbar Ke Jalal O Qahar Ka Mazhar Hai.
Jis Tarah Oski Rahmat O Nemat Ki Inteha Nahi.
 Isi Tarah Iske Ghajab O Qahar Ki Koi Had Nahi Ke Har Wo Taklif Tabahi Barbadi Ko Sochi Samjhi Jaye-

Ek Adna Hissa Hai Oske Be Inteha Azaab Ka Qur'an Majeed O Ahadees Me Jo Iski Sakhtiya'n Darz Hain Unme Se Kuch Bayan Karta Hun.
Ke Musalman Dekhe Or Isse Panah Mange Or Un Aamaal Se Bache Jinki Jaza Jahannam Hai-

Hadees Me Hai Ke Jo Banda Jahannam Se Panah Mangta Hai.
Jahannam Kahta Hai Ae Mere *RAB*! Ye Mujhse Panah Mangta Hai Tu Isko Panah De.
Qur'an Majeed Me Kasrat Se Irshad Hua Ke Jahannam Se Bacho! Dozakh Se Daro! Hamare *AAQA-O-MAULA صلى اللّٰه تعالىٰ عليه وسلم* Humko Sikhane Ke Liye Kasrat Ke Saath Osse Panah Mangte-

Jahannam Ke Sharare(Jingaarya'n Shole) Unche Unche Mahlo Ke Barabar Udenge Goya Zard Rang Ki Ont(Camel) Ki Qataar Ke Peham Ate Rahenge-

Qur'an Majeed Me Iska Tazkira Surat-Tul-Murshilaat Ayat 32-33 Me Mouzud Hai-
[BAHAR-E-SHARIAT, DOZAKH KA BAYAN, HISSA:-01,PAGE:-163-]

MAZMOON JARI HAI


DOZAKH KA BAYAN Part;-02
Suratul-Ul-Baqara Ayat 24 Me Jahannam Ka Aedhan Ka Zikr Is Tarah Mauzood Hai
*📖فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِیۡ وَقُوۡدُہَا النَّاسُ وَ الۡحِجَارَۃُ﴿۲۴﴾*
Jahannam Ka Aedhan Aadmi Or Patthar Hai-

Dunya Ki Aag Se Jahnnam Ki Aag 70 Guna Zyada Garam Hai Jisko Kamm Darja Ka Azaab Hoga Ose Aag Ki Jootiya'n Pahna Di Jayegi Jisse Oska Dimag Aesa Kholega Jaise Taambe Ka Bartan Kholta Hai.
Wo Samjhega Ke Sabse Zyada Azaab Ospar Hi Horaha Hai Lekin Ospe Sabse Halka Azaab Horaha Hai-

Jispar Sabse Halka Azaab Hoga Osse *ALLAHﷻ* Puchega: Ke Agar Saari Zameen Teri Hojaye To Kya Is Azaab Se Bachne Ke Liye Tu Sab Fadya Me Dedega(Wo Maal Rupya Jise Dekar Qaidi Reha Ho)?
Arz Karega: Haan!
Farmayega: Ke Jab Tu Pust Aadam Me Tha To Humne Isse Bahaut Asaan Chiz ka Hukm Diya Tha Ke Kufr Na Karna Magar Tune Na Mana-

Jahannam Ki Aag Hazaar Saal Tak Sulgai Gai To Ye Surkh Hogai.
Fir Hazaar Saal Sulgai Gai To Safed Hogai.
Fir Hazaar Saal Sulgai Gai To Siyah Hogai.
To Ab Nari Siyah Hai Jisme Roshni Ka Naam Nahi-

[BAHAR-E-SHARIAT, DOZAKH KA BAYAN, HISSA:-01,PAGE:-164-]

MAZMOON JARI HAI*


DOZAKH KA BAYAN Part;-03
Jibrail عليه السلام Ne Nabi صلى اللّٰه تعالىٰ عليه وسلم Se Qasam Kha Kar Arz Ki Ke Agar Jahannam Se Soi(Needle) Ke Naake Ki Barabar Khol Diya Jaye To Tamam Zameen Wale Sab Iski Garmi Se Mar Jaye

Or Qasam Kha Kar Kaha : Ke Agar Jahannam Ka Koi Daroga(Custodian) Ahle Dunya Par Zahir Ho To Zameen Ke Rahne Wale Tamam Ke Tamam Oski Haebat Dar Se Mar Jaye.
Or Ba Qasam Bayan Kiya: Ke Agar Jahannamiyo'n Ke Zanjeer(Fetter) Ki Ek Kadi Dunya Ke Pahado Par Rakh Di Jaye To Pahaad(Mountain) Kaanpne Lage Or Unhe Qaraar Na Ho Yaha'n Tak Ke Niche Ki Zameen Dhans Jaye-

Ye Dunya Ki Aag(Jiski Garmi Or Tezi Se Koun Waqif Nahi Hai Ba'z Mausam Me To Iske Qareeb Jana Duswaar Hota Hai, Fir Bhi Ye Aag) Khuda Se Dua karti Hai Ke Ise Jahannam Me Fir Na Le Jaye.
Magar Taj'jub Hai Insaan Se Ke Jahannam Me Jane Ka Kaam Karta Hai Or Os Aag Se Nahi Darta Jisse Aag Bhi Darti Or Panah Mangti Hai-

[BAHAR-E-SHARIAT, DOZAKH KA BAYAN, HISSA:-01,PAGE:-165-]

MAZMOON JARI HAI*



DOZAKH KA BAYAN Part;-04
Dozakh Ki Gahrai Ko Khuda Hi Jane Ke Kitni Gahri Hai.
Hadees Me Hai Ke Agar Patthar Ki Chattaan Jahannam Ke Kinare Se Osme Phenki Jaye To 70 Saal Me Bhi Niche Tak Na Poh'chegi-

Or Agar Insaan Ke Sir Barabar Sisa Ka Gola Aasman Se Zameen Ko Phenka Jaye To Raat Aane Se Pahle Zameen Tak Pahunch Jayega Hala'nke Ye 500 Saal Ki Raah Hai.
Fir Osme Tarah Tarah Ke Tabqaat O Wadi Or Kuwe(Well), Hain
Ba'az Wadi Aesi Hain Ke Jahannam Bhi Har Roz 70 Marataba Ya Osse Zyada Baar Panah Mangta Hai-

Ye Khud Os Makaan Ki Halat Hai, Agar Isme Or Kuch Azaab Na Hota To Yahi Kiya Kamm Tha! Magar Kuffar Ki Sarjanis Ke Liye Or Tarah Tarah Ke Azaab Isme Hai.
Lohe Ke Aese Bhari Gurzu Hatyar Saman Se Farishte Marenge Ke Agar Koi Hatyar Zameen Par Rakh Diya Jaye To Tamam Jin Or Insaan Jama Hokar Osko Utha Nahi Sakte -
[BAHAR-E-SHARIAT, DOZAKH KA BAYAN, HISSA:-01,PAGE:-166-]

MAZMOON JARI HAI*


DOZAKH KA BAYAN Part;-05
Ont(Camel) Ki Gardan Ke Barabar Bichchu(Scorpion) Or ALLAHﷻ Jane Kis
Qadar Bade Saanp(Snake) Ke Agar Ek Martaba Kaat Le To Iski Sojish(Swelling,inflammation)
Dard Be Chaini 1000 Saal Tak Rahe-

Tel Ki Jali Hui Tah Ki Misl Sakht Kholta Pani Pine Ko Diya Jayega Ke Muh Ke Qareeb Hote Hi Iski Tezi Se Chehre Ki Khaal Gir Jayegi-

Quran Me Iska Tazkira Is Surah Me Aya Hai.
*🎴وَ اِنۡ یَّسۡتَغِیۡثُوۡا یُغَاثُوۡا بِمَآءٍ کَالۡمُہۡلِ یَشۡوِی الۡوُجُوۡہَ*
*: سورة الكهف 29*

Sir Par Garam Pani Bahaya Jayega.
Jahannamiyo'n Ke Badan Se Jo Peep(Pus) Bahegi Wo Pilai Jayegi-

📖Iska Bhi Zikr Quran Majeed Ke Is Surah Me Mouzud Hai
*🎴یُصَبُّ مِنۡ فَوۡقِ رُءُوۡسِہِمُ الۡحَمِیۡمُ ﴿ۚ۱۹﴾*
*: سورة الحج 19*

*🎴مِّنۡ وَّرَآئِہٖ جَہَنَّمُ وَ یُسۡقٰی مِنۡ مَّآءٍ صَدِیۡدٍ ﴿ۙ۱۶﴾*
*: سورة إبراهيم 16*

Khaar Daar Thuhad(Zahrila Darakht Jisme Se Doodh Nikalta Hai) Wo Khane Ko Diya Jayega Wo Aesa Hoga Ke Agar Iska Ek Qatra Dunya Me Aye To Iski Sojish O Badbu Se Tamam Ahle Dunya Ki Ma'esat(Economy) Barbad Karde-

_[BAHAR-E-SHARIAT, DOZAKH KA BAYAN, HISSA:-01,PAGE:-167-]

MAZMOON JARI HAI*



DOZAKH KA BAYAN Part;-06
Khaar Daar Zahrila Darakht Khayega To Wo Gale Me Jakar Phanda Dalega.
Iske Utarne Ke Liye Paani Mangege To Unko Wo Kholta Hua Pani Diya Jayega Ke Mu'h Ke Qareeb Aate Hi Mu'h Ki Saari Khaal Gall Kar Osme Gir Padegi Or Pet Me Jate Hi Aanto(Intestinal) Ko Tukde Tukde Kar Dega-

Or Wo Shorbe Ki Tarah Bah Kar Qadmo'n Ki Taraf Niklegi.
Piyaas Is Bala Ki Hogi Ke Is Pani Par Aese Girenge Jaise To'Nas(Yaani Intehai Shadid Piyas) Ke Mare Hue Ont(Camel).

Phir Kuffar Jaan Se Aaziz Aakar Ba'Ham Mashwara Karke Malik عليه الصلوٰة و السلام Daroga-E-Jahannam(Jahannam Ke Mohafiz) Ko Pukarenge Ke Ae Malik(عليه الصلوٰة و السلام)! Tera Rab Hamara Qissa Tamam Karde.
Malik عليه الصلوٰة والسلام Hazaar Saal Tak Jawab Na Denge.
Hazar Saal Ke Baad Farmayenge Mujhse Kya Kahte Ho.
Osse Kaho Jiski Na"Farmani Ki Hai!

100 Saal Taak Rab-Ul-Izzat Ko Oski Rahmat Ke Naamo'n Se Pukarenge.
Wo 100 Saal Tak Jawab Na Dega.

Iske Baad Farmayega To Ye Farmayega" Door Hojao! Jahannam Me Pade Raho! Mujhse Baat Na Karo! Os Waqt Kuffar Har Qism Ki Khair Se Na Umeed Ho Jayenge-

Or Gadhe Ki Awaz Ki Tarah Chilla Kar Royenge Ibteda"an Aanso Niklega Jab Aanso Khatam Ho Jayenge To Khoon Ki Aanso Royenge.
Rote Rote Gaalo Me Khandaqo'n(Trenches) Ki Misl Gad'he(Pit-گڑھے)Pad Jayenge.
Rone Ka Khoon Or Peep(Pus) Is Qadar Hoga Ke Agar Osme Kashtiya(Boat)Dali Jaye To Chalne Lage-

[BAHAR-E-SHARIAT, DOZAKH KA BAYAN, HISSA:-01,PAGE:-168-169-]*_

MAZMOON JARI HAI



DOZAKH KA BAYAN Part;-07
Jahannamiyo'n Ki Sahkle(Face) Aesi Hongi Ke Agar Dunya Me Koi Jahannami Isi Soorat Me Laya Jaye To Tamam Log Iski Bad"Soorti Or Badbu Ki Wajah Se Mar Jaye-

Or Jism Inka Aesa Bada Kar Diya Jayega Ke Ek Shana Se Dusre Shana Tak Tez Sawaar Ke Liye 3 Din Ki Safar Hogi.
Khaal Ki Motai 42 Haath Ki Hogi.
Or Zaban Ki Lambai 3 K.M 6 K.M Tak Bahar Ghasti Hogi Ke Log Osko Ronde'ge Ragdenge-

Baithne Ki Jagah Itni Hogi Jaise Makka Se Madina Tak.
Or Jahannami Ke Niche Ka Hont Latak Kar Naaf Tak Aajayega-

In Mazameen Se Ye Malum Hota Hai Ke Kuffar Ki Shakal Jahannam Me Insaani Shakal Nahi Hogi Ke Ye Shakal Ahsane Taqweem(Acchi Soorat) Hai
*🎴لَقَدۡ خَلَقۡنَا الۡاِنۡسَانَ فِیۡۤ اَحۡسَنِ تَقۡوِیۡمٍ ۫﴿۴﴾*
*سورة التين 4*
Beshak Humne Aadmi Ko Acchi Soorat Par Banaya-

Or Ye ALLAHﷻ Ko Mahboob Hai.
Ke Oske Mahboob Ki Shakal Se Moshaba(Conformable)Hai
Balke Jahannamiyo'n Ka Wo Hulya Hai Jo Upar Bayan Hua Hai.

[BAHAR-E-SHARIAT, DOZAKH KA BAYAN, HISSA:-01,PAGE:-170-]

MAZMOON JARI HAI


DOZAKH KA BAYAN LAST PARTt;-08
Phir Aakhir Me Kuffar Ke Liye Ye Hoga Ke Oske Qad Ke Barabar Aag Ke Sandoq(Box) Me Ose Band Karenge.
Fir Osme Aag Bhadkayege Or Aag Ka Qufal(Ek Qism Ka Tala)Lagaya Jayega.
Phir Ye Sandoq Aag Ke Dusre Sandoq Me Rakha Jayega Or In Dono Ke Darmiyan Aag Jalai Jayegi Or Isme Bhi Aag Ka Tala Lagaya Jayega.
 Phir Isi Tarah Osko Ek or Sandoq Me Rakh Kar Or Aag Ka Tala Laga Kar Aag Me Daal Diya Jayega To Ab Har Kafir Ye Samjhega Ke Iske Siwa Ab Koi Aag Me Na Raha-

Or Ab Hamesha Iske Liye Azaab Hai.
Jab Sab Jannati Jannat Me Dakhil Ho Jayenge Or Jahannam Me Sirf Wahi Rah Jayenge Jinko Hamesha Ke Liye Isme Rahna Hai.
Is Waqt Jannat O Dozakh Ke Darmiyan Mout Ko Mendhe Ki Tarah La Kar Khada Karenge Phir Munadi(Pukarne Wala) Jannat Walo Ko Pukarega.
Jannati Darte Hue Jhankenge Ke Kahi Aesa Na Ho Ke Yaha'n Se Nikalne Ka Hukm Ho.
Phir Jahannamiyo'n Ko Pukarega Wo Khus Hote Hue Jhankenge Ke Sayad Is Musibat Se Rehai Hojaye.
Phir In Sab Se Puchega Ke Ise Pahchante Ho?

Sab Kahenge Haa'n! Ye Mout Hai.
Mout Ko Zibah Kar Di Jayegi Or Kahega: Ae Ahle Jannat ! Hameshgi Hai Ab Marna Nahi.

Or Ae Ahle Naar! Hameshgi Hai Ab Mout Nahi.

Os Waqt Jannati Ke Liye Khusi Par Khusi Hai.

Or Jahannami Ke Liye Gham Balaye Gham-

[BAHAR-E-SHARIAT, DOZAKH KA BAYAN, HISSA:-01,PAGE:-170-171]

*📖رَبَّنَاۤ اٰتِنَا فِی الدُّنۡیَا حَسَنَۃً وَّ فِی الۡاٰخِرَۃِ حَسَنَۃً وَّ قِنَا عَذَابَ النَّارِ ﴿۲۰۱﴾*
Hame Dunya Me Bhalai De Aur Akhirat Me Bhalai De Aur Hame Azaab-E-Dozakh Se Bacha-
*: سورة البقرة 201*

*📖رَبَّنَاۤ اِنَّنَاۤ اٰمَنَّا فَاغۡفِرۡ لَنَا ذُنُوۡبَنَا وَ قِنَا عَذَابَ النَّارِ ﴿ۚ۱۶﴾*
Hum Iman Laye Tu Hamare Gunah Muaf Kar Or Hame Dozakh Ke Azaab Se Bacha Le-
 *: سورة آل عمران 16*

*📖 سُبۡحٰنَکَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ﴿۱۹۱﴾*
Paaki Hai Tujhe Tu Hame Dozakh Ke Azaab Se Bacha Le-
*: سورة آل عمران 191*

*📖 اٰمَنُوۡا ۚ رَبَّنَا وَسِعۡتَ کُلَّ شَیۡءٍ رَّحۡمَۃً وَّ عِلۡمًا فَاغۡفِرۡ لِلَّذِیۡنَ تَابُوۡا وَ اتَّبَعُوۡا سَبِیۡلَکَ وَ قِہِمۡ عَذَابَ الۡجَحِیۡمِ ﴿۷﴾*
Ae *Rab* Hamare, Tere Rahmat O ilm Me Har Chiz Ki Samai Hai
Tu Unhe Baksh De Jinho Ne Tauba Ki Or Teri Raah Par Chale Or Unhe Dozakh Ke Azaab Se Bacha Le-
*: سورة مومن 7*

MAZMOON KHATAM








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